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डॉक्टर ने कार को बनाया क्लिनिक, सड़कों पर करते हैं मरीजों का फ्री इलाज

Dr Sunil Turned His Car Into A Mobile Clinic, Treats Patients For Free

बेंगलुरु में रहनेवाले डॉक्टर सुनील कुमार उन लोगों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं, जिनकी जेब में डॉक्टर को देने के लिए पैसे तक नहीं होते हैं। पिछले 10 सालों में उन्होंने 800 मेडिकल कैंप लगाए हैं और 1 लाख 20 हजार से ज्यादा गरीब मरीजों का फ्री में इलाज किया है।

बेंगलुरु के डॉ. सुनील, आम लोगों की तरह ही किसी अच्छे प्राइवेट हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करना और आलीशान जिंदगी जीना चाहते थे। लेकिन 10 साल पहले हुई एक घटना ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। आज वह अपने बारे में नहीं, बल्कि उन लोगों के बारे में सोचते हैं, जिनके पास डॉक्टर की फीस तो छोड़िए, दवाइयों और खाने तक के लिए पैसे नहीं होते हैं।

डॉक्टर सुनील, ऐसे ज़रूरतमंद लोगों के पास खुद जाकर उनका फ्री में इलाज करते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी कार को मोबाइल क्लिनिक (Mobile Clinic) बना दिया है। 24 घंटे वह अपना फ़ोन ऑन रखते हैं। जैसे ही कोई कॉल या मैसेज मिलता है, वह तुरंत अपने चलते-फिरते क्लिनिक के साथ लोगों का इलाज करने निकल पड़ते हैं। 

एक घटना ने बदल थी जिंदगी

बेंगलुरु, मल्लेश्वरम के रहनेवाले डॉ सुनील कुमार हेब्बी के Mobile Clinic की शुरुआत साल 2010 में हुई थी। रोजाना की तरह, वह दिन भी उनके लिए बहुत बिजी दिन था। वह तमिलनाडु में होसुर-चेन्नई हाईवे से अपने अस्पताल की तरफ जा रहे थे। तभी अचानक उनके सामने एक सड़क दुर्घटना हो गई। डॉक्टर सुनील तुरंत उस ओर भागे। उन्होंने उस घायल व्यक्ति को प्राथमिक उपचार दिया और नजदीकी अस्पताल ले आए, ताकि उसका अच्छे से इलाज हो सके।

भागदौड़ भरी जिंदगी में शाम होते-होते वह इस घटना को भूल चुके थे। अगले दिन उनके पास उस व्यक्ति की मां का फ़ोन आया। उन्होंने, डॉ सुनील को धन्यवाद कहा और घर आने का आग्रह करने लगीं। डॉक्टर सुनील भी समय निकालकर उनके घर चले गए। वहां जाकर सुनील को एहसास हुआ कि अगर उन्होंने उस आदमी का समय पर इलाज नहीं कराया होता, तो यह शायद मर गया होता।

Doctor Sunil Kumar Hebbi in his car clinic
Dr Sunil Kumar Hebbi

घायल आदमी की मां ने हाथ जोड़कर डॉ. सुमन को धन्यवाद कहा। उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे। उन लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि किसी डाक्टर के पास जाकर इलाज कराना उनके बस की बात नहीं थी।

अपने आप से किया एक सवाल

डॉक्टर सुनील ने अपने आने वाले जीवन के लिए जो भी प्लानिंग की थी, वह उस पर फिर से सोचने के लिए मजबूर हो गए। उन्होंने अपने-आप से एक सवाल किया कि मैंने अपनी जिंदगी का जो उद्देश्य बना रखा है क्या वह सही है? 

उन्होंने बताया, “बीजापुर मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी करना और एक अच्छे प्राइवेट अस्पताल में नौकरी पाना, एक ऐसा सपना था, जिसे सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि मेरा पूरा परिवार, मेरे इस सपने के साथ अपनी जिंदगी जी रहा था।”

परिवार ने उन्हें पढ़ाने के लिए जो संघर्ष किया, उसके बारे में बताते हुए वह कहते हैं, “मेरी मेडिकल डिग्री पूरी कराने के लिए परिवार को कर्ज लेना पड़ा था और जब मुझे अच्छी नौकरी मिली, तो लगा जैसे हमारी सारी परेशानियां खत्म हो गई हैं। ऐसे में नौकरी छोड़कर Mobile Clinic शुरू करना आसान नहीं था।”

किसी एक को चुनना था मुश्किल

डॉक्टर सुनील, घर की स्थिति सुधारने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। लेकिन उस एक घटना ने उन्हें झंकझोर कर रख दिया था। वह ऐसे गरीब लोगों का इलाज करना चाहते थे, जिन्हें डॉक्टर की मदद की जरूरत तो है, लेकिन वहां तक उनकी पहुंच नहीं है। वहीं दूसरी तरफ परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपनी नौकरी छोड़कर लोगों की सेवा में जुट जाएं। डॉक्टर सुनील अब बीच का रास्ता खोजने लगे।

वह बताते हैं, “तब मैंने सप्ताह के दो दिन शनिवार और रविवार को गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए मोबाइल क्लिनिक (Mobile Clinic) में काम करने का फैसला किया। इन दो दिनों में मेरी छुट्टी रहा करती थी। मैंने अपने पैसे से लोगों के लिए कई मेडिकल कैंप लगाए थे।”

An ambulance being donated for the work done by the doctor.
An ambulance being donated

डॉक्टर सुनील जानते थे कि उनके लिए हफ्ते के दो दिन काफी नहीं है। इसलिए उन्होंने अपनी कार को एक चलते-फिरते मोबाइल क्लीनिक (Mobile Clinic) में बदल दिया, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बना सकें। उन्होंने कहा, “अब मैं आसानी से एक जगह से दूसरी जगह जाकर मरीजों को देख सकता था। मुझे किसी बुनियादी ढांचे या क्लिनिक की जरूरत नहीं थी।”

Mobile Clinic के लिए छोड़ दी नौकरी

लोगों की सेवा करना और जरूरतमंदों का इलाज करना सुनील का जुनून बन गया था। बहुत सोचने के बाद, आखिरकार साल 2011 में उन्होंने बीजेएस ग्लोबल हॉस्पिटल की अपनी नौकरी छोड़ दी और ऐसे लोगों की मदद के लिए ‘मातृ सिरी फाउंडेशन’ नाम से एक गैर-सरकारी संगठन स्थापित किया। 

वह बताते हैं, “मेरे पास इलाज के लिए आने वाले कई लोग काफी गरीब होते हैं। मेरी फीस तो छोड़िए उनके पास दवाओं तक के पैसे नहीं होते। मैं Mobile clinic के ज़रिए उनका फ्री में इलाज करता हूं। फीस उन्हीं मरीजों से लेता हूं, जो इसे दे पाने में सक्षम हैं। बिना किसी बाहरी आर्थिक सहायता के इतने लोगों की मदद कर पाना मेरे लिए भी संभव नहीं है। मेरे दोस्त या कुछ लोग इस काम में सहयोग देने के लिए दान देते रहते हैं। आज उन पैसों की वजह से ही मैं इतने लोगों का इलाज कर पा रहा हूं।”

कोविड के समय में रात 11 बजे तक किया काम

भले ही सुनील एक दशक से अपना मोबाइल क्लीनिक ( Mobile clinic ) चला रहे हों, लेकिन कोविड-19 के समय वह काफी बिज़ी रहे। इतना काम उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। वह कहते हैं, “पहली लहर आई, तो हम में से कोई नहीं जानता था कि क्या होने वाला है। कोविड-19 जिस समय पीक पर था, उस दौरान पूरे महीने मेरा फ़ोन बजता रहा। मेरे पास किसी भी दूसरी चीज़ के लिए समय नहीं था।”

उन्होंने बताया, “मेरा दिन सुबह 8 बजे शुरू होता और रात को 8 बजे मैं घर लौटता था। कई बार काम करते हुए रात के 11.30 तक बज जाते थे। मेरी कार (Mobile Clinic) में जरूरी दवाएं, ग्लूकोमीटर ऑक्सीजन सिलेंडर, ब्लड प्रेशर मॉनीटर और एक ईसीजी मशीन हमेशा रहती है। लोग मुझसे फोन, फेसबुक और व्हाट्सएप पर मैसेज करके संपर्क करते हैं। उसके हिसाब से ही मैं अपने पूरे दिन की प्लानिंग करता हूं।”

भाई की मौत के बाद भी नहीं रुकी Mobile Clinic

डॉक्टर सुनील का बचपन भी काफी गरीबी में बीता है। वह उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं, “मेरे परिवार के साथ-साथ गांव के सभी लोगों को इलाज के लिए कई किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता था। दरअसल, सबसे नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गांव से लगभग 50 किलोमीटर दूर था। इमरजेंसी के समय ना तो पास में कोई डॉक्टर होता था और ना ही कोई अस्पताल। आपात स्थिति के मामले में अनुभव बहुत ही डरावने रहे।”

At an award ceremony - doctor Sunil Kumar Hebbi
Award ceremony

उनके डॉक्टर बनने के पीछे यही एक बड़ी वजह थी। वह लोगों को समय पर इलाज देकर उन्हें ठीक करना चाहते थे। डॉक्टर सुनील का अपने काम के प्रति समर्पण सचमुच तारीफ के काबिल है। साल 2021 में कोविड-19 की वजह से उन्होंने अपने भाई को खो दिया। परिवार की तरफ से तुरंत घर लौट आने का दवाब था। लेकिन वह रुके नहीं, उनका फोन वैसे ही बजता रहा और वह अपनी Mobile clinic के साथ लोगों का इलाज करने के लिए जाते रहे।

वह कहते हैं, “मुझे लोग इतनी उम्मीदों के साथ फोन करते थे। संकट के समय में मैं अपना फोन स्विच ऑफ करके नहीं बैठ सकता था। यह मेरा कर्तव्य था और लोगों को मेरी जरूरत थी।”

“Mobile Clinic में सहयोगियों की है ज़रूरत”

फिलहाल डॉक्टर सुनील 800 से ज्यादा मेडिकल कैंप लगा चुके हैं। बैंगलोर और उसके आस-पास के एक लाख 20 हजार से ज्यादा मरीजों का इलाज किया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने एनजीओ द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए 2018 में भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से उन्हें पुरस्कार भी मिला है। उनके इस काम के लिए उन्हें और भी बहुत सारे अवॉर्ड मिले हैं।

सुनील, लोगों से आगे आने और दान देने का आग्रह करते हैं। उन्होंने कहा, “तीसरी लहर आ चुकी है और काफी तेजी से अपने पैर पसार रही है। हमें Mobile clinic में पैसे, दवाओं और सहयोगियों की जरूरत है। आगे आकर हमारे इस काम में मदद करें।”

डॉ. सुनील से +91 97419 58428 पर संपर्क किया जा सकता है।

मूल लेखः विद्या राजा

संपादनः अर्चना दुबे

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