एक अधिकारी की सोच का कमाल! चिड़ियाघर बना 100% प्लास्टिक फ्री और जीरो कार्बन फुटप्रिंट वाला

Dehradun zoo

साल 2014 में जब पीके पात्रो ने देहरादून जू के डायरेक्टर का पद संभाला था, तभी से उन्होंने इसे एक सस्टेनेबल मॉडल के तौर पर विकसित करना शुरू कर दिया था। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा है कि आज यह जू जीरो कार्बन फुट प्रिंट वाली जगह बनने की ओर बढ़ रहा है।

जहां-जहां हम इंसान जाते हैं, वहां हम किसी न किसी रूप में कार्बन फुटप्रिंट जरूर छोड़ते हैं। ऐसे में जू में रहने वाले जानवर, जिन्हें पूरी तरह से प्राकृतिक माहौल में रहने की आदत है, उन्हें एक बेहतरीन सस्टेनेबल माहौल देना वहां के कर्मचारियों का प्रमुख दायित्व बन जाता है। वहीं दूसरी ओर जितनी बड़ी जगह में चिड़ियाघर बनाए जाते हैं, इसके रखरखाव और यहां आए पर्यटकों के वेस्ट से उस जगह को दूषित होने से बचाना भी एक बड़ा काम होता है। इस क्षेत्र में देहरादून जू ने एक मिसाल कायम की है।

पिछले पांच-छह सालों से देहरादून जू में सस्टेनेबल माहौल तैयार करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। यहां न सिर्फ वेस्ट मैनेजमेंट बल्कि सोलर ऊर्जा और रेनवॉटर के उपयोग के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। जू को जीरो कार्बन फुट प्रिंट की और अग्रसर करने के पीछे यहां के डायरेक्टर पीके पात्रो का बहुत बड़ा हाथ है।  

यह उनकी सोच का ही परिणाम है कि आज यहां काम करने वाले हर एक कर्मचारी की सोच में बड़ा बदलाव आया है। पात्रो का मानना है कि किसी आर्डर या दबाव में किया गया काम कभी सस्टेनेबल बदलाव नहीं ला सकता।  

द बेटर इंडिया से बात करते हुए पात्रो कहते हैं, “जू में पिछले तीन सालों से प्लास्टिक को पूरी तरह से रीसायकल किया जा रहा है। जो भी कचरा जू के अंदर आता है वह बाहर नहीं जाता बल्कि रीसायकल किया जाता है। इस तरह से हमने सैकड़ों किलो प्लास्टिक को लैंडफिल में जाने से बचाया है और जिस रचनात्मकता से यहां प्लास्टिक रीसायकल होता है, वह यहां आने वाले हर एक इंसान की सोच को भी बदलता है।”

जब उन्होंने जू का काम संभाला था तब उन्होंने एक विशेष पर्यावरण संरक्षण प्लान भी तैयार तैयार किया था। यह देश का पहला ऐसा जू है जहां पर्यावरण के लिए इस तरह के किसी प्लान के तहत काम हो रहा है। 

Dehradun zoo

नई सोच के साथ नई शुरुआत 

पात्रो 2003 से वन विभाग में काम कर रहे हैं। वह उत्तराखंड केडर में अलग-अलग जगह पर काम कर रहे थे। साल 2014-15 से वह देहरादून जू में डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहे हैं। जब वह यहां आए थे, उस दौरान 25 हेक्टर वाले इस जू का डेवलपमेंट का प्लान चल रहा था। तभी उन्होंने सस्टेनेबिलिटी को ध्यान में रखकर रिडेवलपमेंट के प्लान पर काम करना शुरू किया। 

वह कहते हैं, “अपने अनुभवों से जो भी मैंने सीखा था, मैं चाहता था वह गलती यहां न दोहराई जाए। इसलिए मैंने एक टारगेट के तौर पर सस्टेनेबल जू बनाने पर काम किया। हमने एक स्पेशल पर्यावरण प्लान भी तैयार किया, जिससे हम एक टारगेट के तौर पर पर्यावरण पर काम कर सके।”

पर्यावरण अनुकूलता के लिए उठाए कई कदम 

पात्रो का कहना है कि सस्टेनेबल जू बनाने के लिए सिर्फ प्लास्टिक फ्री एरिया बनना काफी नहीं है। जू में कैसे ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक साधनों और ऊर्जा का उपयोग हो इसपर भी ध्यान देने की जरूरत है।

इस जू के पास ISO की ओर से जारी 14001 और 9001, दोनों सर्टिफिकेट हैं। गौरतलब है कि देश में 9001 का सर्टिफिकेट मैनजमेंट और 14001 का सार्टिफिकेट पर्यावरण सबंधी बातों का ध्यान रखने वाले संस्थाओं को दिया जाता है। 

केवल सरकारी फंडिंग पर निर्भर न होकर, पात्रो ने अलग-अलग कंपनियों से CSR के लिए भी संपर्क किया। उन्होंने जू में ग्रीन एनर्जी के लिए 55 किलोवाट के सोलर पैनल CSR के तहत लगवाए हैं। साथ ही जू में हर जगह LED बल्ब का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे बिजली की खपत को कम किया जा सके।

P.K Patro Dehradun Zoo Director
P.K Patro Dehradun Zoo Director

उन्होंने बताया, “हम ग्रीड से भी बिजली लेते हैं क्योकि कुछ ऐसी जगह है, जहां सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता लेकिन जितनी ऊर्जा हम ग्रीड से लेते हैं वापस सोलर से प्रोडक्शन करके वापस भी दे देते हैं।” 

इसके अलावा उन्होंने जू के आसपास के लोगों के साथ मिलकर एक LED रिपेरिंग प्रोग्राम चलाया था। इसके तहत गांव की महिलाओं को LED रिपेरिंग करना सिखाया गया। ये महिलाएं जू में खराब हुए सभी बल्ब की रिपेयर करने का काम करती हैं। 

इसके साथ ही वह रेनवॉटर हार्वेस्टिंग पर भी काम कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने एवरेज रेनफॉल को ध्यान में रखकर एक्शन प्लान बनाया है। ज्यादा बारिश के समय पानी जमीन का जल स्तर भी बढ़ाने का काम करता है।  

यहां प्लास्टिक को बखूबी रीसायकल किया जाता है

देहरादून जू में साल भर में तकरीबन पांच लाख से ज्यादा पर्यटक आते हैं।  पात्रो कहते हैं, “हम प्लास्टिक को सिर्फ कलेक्ट करके छोड़ने या बाहर रीसायकल करने के बजाय खुद इसे रीसायकल करने की कोशिश करते हैं। दरअसल सबसे ज्यादा गंदगी प्लास्टिक से फैलती है इसलिए हमने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर विशेष ध्यान देकर प्लास्टिक कचरा रीसायकल करने का काम किया है।”  

जू के स्टाफ खुद अलग-अलग तरीकों से प्लास्टिक रीसायकल करने का काम करते हैं। पर्यटकों को यहां प्लास्टिक की बोतल अंदर ले जाने पर टैग के साथ 10 रुपये का टोकन लेना पड़ता है। अपने 10 रुपये वापस लेने के लिए उन्हें लौटते वक्त बोतल वापस बाहर दिखाना पड़ता है। टैग लगी बोतल जो भी लाता है, उसे 10 रुपये मिलते हैं फिर चाहे वह पर्यटक हो या जू का सफाई कर्मी। इस तरह सफाई कर्मियों को भी कुछ एक्स्ट्रा पैसे कमाने का मौका मिलता है।

decoration with recycled plastic

बोतल के अलावा प्लास्टिक पैकेट्स को रीसायकल करके कई डेकोरेटिव चीजें यहां के स्टाफ खुद बनाते हैं। पात्रो ने बताया कि वह जल्द ही पैकेज ड्रिंकिंग वॉटर कंपनी के साथ मिलकर एक कलेक्शन सेंटर खोलने की तैयारी कर रहे हैं। यहां आप घर के पुराने बोतल को जमा करके प्वाइंट्स कलेक्ट कर सकते हैं। जिसे बाद में जू की अलग-अलग एक्टिविटी में इस्तेमाल किया जा सकेगा।  

ऑफिसर नहीं लीडर बनकर बदली कर्मचारियों की सोच 

देहरादून जू के फारेस्ट रेंज ऑफिसर मोहन सिंह रावत, यहां मैनेजमेंट का काम भी देखते हैं। वह कहते हैं, “पात्रो जी हमारे जू के भीष्म पितामाह हैं। उन्होंने हमारी सोच को बदला है। जू के हर एक स्टाफ में एक बदलाव आया है। इसी वजह से जू में भी बदलाव दिख रहा है। सभी स्टाफ इसे अपना घर समझकर काम करते हैं। जू का दौरा करते समय कुछ भी कचरा दिखता है तो वह बिना आर्डर दिए खुद चीजें उठा लेते हैं। साथ ही हमारे प्रोग्राम में प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल कम होता है। विशेष अवसर पर बैनर्स पर भी हम तारीख नहीं लिखवाते हैं, जिससे उसे सालों साल इस्तेमाल किया जा सके।”

पिछले कुछ सालों में यहां पर्यटकों की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है। इसके साथ-साथ जू ने 80-100 cubic meters का सिविल कंस्ट्रक्शन काम प्लास्टिक वेस्ट से किया है। वहीं उन्होंने अब तक तक़रीबन एक लाख प्लास्टिक बोतल और 800 किलो प्लास्टिक बैग्स को रीसायकल भी किया है। 

zoo decoration with plastic waste

देहरादून स्थित एक एनजीओ Nature Science Initiative से जुड़ीं सौम्या प्रसाद कहती हैं, “अक्सर विदेशों में घूमते हुए हम भारत की गंदगी और गैरजिम्मेदार व्यवहार की शिकायत करते हैं। लेकिन जिस तरह पिछले कुछ सालों में देहरादून जू में पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष कदम उठाए हैं, उससे काफी फर्क पड़ा है। हम अपने बच्चों को ज़ू दिखाने ले जाते हैं, लेकिन यहां जानवरों की जानकारी के साथ बच्चे और भी बहुत सारी चीजें सीख सकते हैं।”

जू में पीने के पानी से लेकर जानवरों के रहने की जगह की नियमित सफाई, इन सभी मुद्दों पर पात्रो खुद ध्यान रखते हैं। वह कहते हैं, “मुझे बड़ी ख़ुशी होती है कि सभी यहां अपने अपने काम की जिम्मेदारी लेते हैं। सभी लोग अपना काम कर रहे हैं। हम पर्यटकों से फीडबैक लेते हैं ताकि भविष्य में हम और अच्छा काम कर सकें।”

जू में इस तरह के सस्टेनेबल सिस्टम से पर्यटकों को एक अच्छा अनुभव तो मिलता ही है, साथ ही यहां रहने वाले जानवरों को भी प्रकृति के पास रहने का एहसास होता है।  

संपादन- जी एन झा

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