बेज़ुबान और बेसहारा जानवरों के दर्द को समझकर उन्हें नयी ज़िन्दगी दे रही हैं डॉ. दीपा कात्याल!

डॉ. दीपा कात्याल के जानवरों के प्रति उनके प्यार और सद्भावना ने उन्हें जानवरों का डॉक्टर बना दिया। परिवार का अच्छा ख़ासा व्यापार होते हुए भी, दीपा ने इस काम को चुना ताकि वे जरुरतमन्द जानवरों की देखभाल कर सकें।

पने आस-पास आपको बहुत से लोग मिल जायेंगे जिन्हें जानवर पालने का शौक़ होता है। वैसे तो भारत में अनगिनत लोग हैं जो अपने पालतू जानवरों का बहुत ख्याल रखते हैं, पर केवल तब तक जब तक वो शारीरिक रूप से  ठीक होते हैं। अक्सर जब उम्र बढ़ने के साथ ये जानवर किसी बीमारी का शिकार हो जाते हैं या फिर कभी दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं तो बहुत से लोग उनसे किनारा कर लेते हैं।

बहुत ही कम लोग होते हैं, जो हर सम्भव कोशिश कर इन जानवरों का दर्द समझते हैं और उसे दूर करने के लिए प्रयासरत होते हैं।

इन्हीं में से एक हैं डॉ. दीपा कात्याल, जिनके जानवरों के प्रति उनके प्यार और सद्भावना ने उन्हें जानवरों का डॉक्टर बना दिया। परिवार का अच्छा ख़ासा व्यापार होते हुए भी, दीपा ने इस काम को चुना ताकि वे जरुरतमन्द जानवरों की देखभाल कर सकें।

दीपा के पिता को भी जानवरों से बेहद लगाव था और इसलिए दीपा के आठवें जन्मदिन पर उन्होंने दीपा को तोहफ़े में एक कुत्ते का बच्चा लाकर दिया, जिसका नाम रखा गया रॉकी। रॉकी शुरू में बहुत गुस्से वाला था लेकिन बहुत ही संयम और धैर्य से दीपा ने उसे संभाला। जब दीपा 24 साल की हुईं तो रॉकी 18 साल का था और एक दिन उसकी मौत हो गयी। जानवरों के प्रति अपने प्रेम के चलते दीपा ने जानवरों का डॉक्टर बनने का फ़ैसला किया।

इसी बीच दीपा को उनके काम के दौरान एक और कुत्ते का बच्चा तोहफ़े में मिला जो बिल्कुल उनके रॉकी की तरह दिखता था। उन्होंने इसका नाम भी रॉकी रखा। लेकिन कुछ साल बाद पता चला कि रॉकी को इंटरवर्टेब्रल डिस्क की बीमारी थी। दीपा किसी भी हाल में रॉकी का दर्द कम करना चाहती थी पर जानवरों के लिए पेन मैनेजमेंट (दर्द प्रबंधन) के विषय में भारत में ज्यादा कुछ नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें भी इसके विषय में ज़्यादा जानकारी नहीं थी।

रॉकी के दर्द को कम करने के लिए उन्होंने ऑस्ट्रेलिया जाने का फ़ैसला किया।  वहां की क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी से अपने दूसरी मास्टर्स डीग्री करते हुए, उन्होंने इस विषय पर काम किया। उन्होंने विभिन्न तकनीकों के बारे में सीखा जिससे जानवरों को दवाइयों के अलावा और भी कई तरीकों से दर्द से निजात दी जा सके।

रॉकी को इस दर्द से तो छुटकारा मिला लेकिन कुछ साल बाद उसके पिछले दोनों पैर लकवाग्रस्त हो गये। पर दीपा ने हार नहीं मानी बल्कि उसने बाहर से एक व्हील कार्ट मंगवाई और भारतीय जानवरों की आवश्यकतानुसार उसे तब्दील करवाया।

अब उनका रॉकी बिना किसी की मदद से इस व्हील्कार्ट के सहारे कहीं भी आ जा सकता है। हालांकि, डॉ दीपा का सफ़र यहीं नहीं रुका। न जाने कितने ही जानवर, चाहे वह इलेक्ट्रिक शॉक से घायल बंदर हो, चोट लगी चील हो, या फिर बीमार पाइथन हो, सभी का उनके क्लिनिक में इलाज किया जाता है।

आज उनके घर में आप तरह-तरह के जीव-जानवर देख सकते हैं। इनका इलाज़ करने के बाद दीपा इनकी देखभाल भी कर रही हैं। ऐसे जानवर भी जिन्हें हम और आप खतरनाक मानते हैं और सपने में भी उन जीवों के पास न जाएं, ऐसे जीवों को भी दीपा के यह आश्रय मिलता है। इनमें शामिल हैं, कुत्ते, बिल्ली, चिड़िया, चील, बन्दर, पाइथन आदि।

एक सांप के साथ डॉ दीपा जिसका उन्होंने इलाज़ किया था

इसके साथ ही वे इन जानवरों के पुनर्वास पर भी काम कर रही हैं। प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियाई वन्यजीव विशेषज्ञ, स्टीवन इरविन, (‘क्रोकोडाइल हंटर’) से सीखने के बाद डॉ. दीपा आज आसानी से वन्यजीवन को संभालने में सक्षम है। दीपा को उम्मीद है कि एक दिन भारत में भी जानवरों के पेन मैनेजमेंट और पुनर्वास के लिए ख़ास तौर पर क्लिनिक होंगे। साथ ही, वे उन छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं जो इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं।

आप डॉ दीपा कात्याल से सम्पर्क करने के लिए  deepa@deepakatyal.in पर मेल लिख सकते हैं।

मूल लेख: मानबी कटोच


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X