ई-वेस्ट से बना है यह सस्ता और कारगर RO, एक बूंद पानी भी नहीं होता बर्बाद

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गुजरात के अभिमन्यु और वरदान राठी ने एक सस्ता व कारगर वॉटर प्यूरीफायर तैयार किया है और अब तक वे अपने स्टार्टअप, 'सस्टेनेबल लाइवलीहुड इनिशिएटिव इंडिया (SLII)' के ज़रिए 60 से ज्यादा प्यूरीफायर बेच भी चुके हैं।

देश के किसी भी हिस्से में आप चले जाएं, पेयजल को लेकर लोग बात करते दिख जाएंगे। दरअसल आज भी शुद्ध पानी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यही वजह है कि इस दौर में भी देश में कई लोगों तक पीने का शुद्ध पानी नहीं पहुंच पा रहा है। आंकड़ों के अनुसार 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग आज दूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं। 

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत की 85% पेयजल की जरूरतें भूजल स्रोतों से ही पूरी होती है। ऐसे में हमारे प्राकृतिक संसाधन घट रहे हैं और यह शहर और गांव दोनों की आबादी को खतरे में डाल रहा है।

हालांकि RO वॉटर प्यूरीफायर सिस्टम और अन्य फिल्टर जैसे समाधान पानी को साफ करने के अच्छे विकल्प बन गए हैं। लेकिन ये सारे मशीन महंगे तो हैं ही साथ में पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव भी डालते हैं। वास्तव में, RO प्यूरीफायर का उपयोग करने से, फायदे से ज्यादा नुकसान होता है क्योंकि मशीन जितना पानी ट्रीट करती है, उससे ज्यादा पानी बर्बाद करती है।

लेकिन सूरत (गुजरात) के दो भाइयों ने अपने स्टार्टअप, सस्टेनेबल लाइवलीहुड इनिशिएटिव इंडिया (SLII) के माध्यम से इस संकट को हल करने के लिए एक अनूठा समाधान खोजा है। उन्होंने एक ऐसा ऐसा वॉटर प्यूरीफायर बनाया है जो दूषित पानी को मिनटों में पीने योग्य बनाता है। इस प्यूरीफायर के रखरखाव में बिजली का खर्च नहीं होता है। इस प्रणाली को उन्होंने ‘वरदान’ नाम दिया गया है। उनका दावा है कि यह भारत का सबसे सस्ता प्यूरीफायर है जो केवल 8 पैसे प्रति लीटर के खर्च पर पानी साफ करता है।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए,  SLII के सह-संस्थापक अभिमन्यु राठी कहते हैं, ” हमें इस प्रोडक्ट को बनाने में नौ साल लगे। यह विचार हमें 2012 के आसपास आया, तब मैं केमिकल इंजीनियरिंग कर रहा था। पढ़ाई के दौरान अलग-अलग प्रोजेक्ट्स  पर काम करते हुए, मैंने महसूस किया कि पानी का मुद्दा समाज में संकट का विषय है। पानी की कमी हर एक वर्ग, जाति और समुदाय के लिए समस्या है।” 

सेल फ़ोन के पुराने स्क्रीन को बनाया सोलर सेल 

Vardan RO A low cost Water purifier
Vardan RO

2015 में ग्रेजुएशन के बाद, अभिमन्यु ने अपने इस प्रोडक्ट को बनाने पर विशेष ध्यान दिया, साथ ही अपने स्टर्टअप की शुरुआत भी की ताकि इसे एक व्यावसायिक रूप दिया जा सके। 2017 में, उनके छोटे भाई वरदान ने भी केमिकल इंजीनियरिंग पढ़ाई पूरी की और कंपनी के सह-संस्थापक बन गए। दोनों ने पानी की समस्या को करीब से समझने के लिए जलवायु परिवर्तन पर एक कोर्स किया।

उन्होंने पानी की समस्या के समाधान खोजने पर काम किया और एक नहीं कई तरह के प्रयोग किए। अभिमन्यु कहते हैं, “हमने बाजार में मौजूद कई वॉटर प्यूरीफायर का अध्ययन किया। हमने देखा की उनमें से अधिकांश मशीनों में बिजली और रखरखाव की लागत लगती है। शहरी लोगों के लिए तो यह ठीक है लेकिन गांव के लिए यह पहुंच से बाहर की बात थी। इसलिए, हम कुछ ऐसा लाना चाहते थे, जिसमें रखरखाव की लागत कम हो।” 

उन्होंने ग्राफेन (Graphene) के साथ प्रयोग करना शुरू किया। वह कहते हैं, “ग्राफेन किसी भी वस्तु को सोखने का काम करता है और इसके जीवाणुरोधी गुणों के कारण फ़िल्टरिंग के रूप में यह अच्छी तरह से काम करता है। हालांकि, यह महंगा है। इसलिए हमने सालों लगाकर एक कम लागत वाली वस्तु बनाने और ढूंढ़ने का काम किया। जिससे पानी को आसानी से फ़िल्टर किया जा सके।”

आगे वह कहते हैं कि पानी से अन्य दूषित पदार्थों को निकालने के लिए उन्होंने सौर ऊर्जा से चलने वाली UV प्रकाश तकनीक का सहारा लिया। सोलर सेल को उन्होंने रीसायकल  ई-वेस्ट से बनाया। यह UV सेल पुराने मोबाइल फोन स्क्रीन से बने होते हैं। उन्होंने मोबाइल फोन स्क्रीन को सोलर सेल में बदलकर इस्तेमाल किया।  

सालों तक इस प्रोजेक्ट पर काम करने के बाद, आखिरकार इन दोनों भाइयों ने एक ऐसा प्यूरीफायर तैयार कर लिया, जिसमें कोई मूविंग पार्ट नहीं है। अभिमन्यु ने इसका नाम अपने भाई वरदान के नाम पर रखा। 

वरदान कहते हैं, “हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती रिसर्च फंड की कमी थी। हमने अपनी बचत से 30,000 रुपये इसमें खर्च किए। मैं उस दौरान एक पेंट कंपनी में काम करता था और थोड़े-थोड़े पैसे भी लगाता था। जबकि अभिमन्यु ने इस दौरान बस प्रोजेक्ट पर ही काम किया। हमें 2017 में राज्य सरकार से अनुदान भी मिला और कुछ पैसे हमने परिवार वालों से उधार लिए ।”

प्रोडक्ट के बारे में बात करते हुए वरदान ने कहा कि इसकी कीमत 5,000 रुपये है और यह बिना किसी रखरखाव के खर्च के 1,00,000 लीटर पानी को शुद्ध कर सकता है, औसतन 40 लीटर पानी हरदिन। यह दस साल तक चलेगा और 8 पैसे प्रति लीटर की दर से पानी को शुद्ध करेगा। सबसे अच्छी बात यह कि इस पूरी प्रक्रिया में पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होती है।

वरदान कहते हैं, “बाजार में मिलने वाले RO फ़िल्टर पानी को 16 पैसे में ट्रीट करके साफ करते हैं। जबकि ग्रेविटी-आधारित, और बिना बिजली के चलने वाला यह वॉटर प्यूरीफायर भारत में सबसे सस्ता मशीन है।”

उन्होंने तापी नदी के पानी से कुछ परीक्षण भी किए, जिसमें  पानी की गुणवत्ता से जुड़ी कई चीजें सामने आई, जैसे –

-टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (TSS) 75 पीपीएम से घटकर 2 पीपीएम से कम हो गया,  कुल 97.50% की कमी। पानी में टीएसएस हानिकारक कण माने जाते हैं जो सस्पेन्शन में रहते हैं।  

-टोटल डिसॉल्व्ड सॉलिड्स (TDS ) 4,000 पीपीएम से घटकर 250 पीपीएम हो गया।  93.75% की कमी।  टीडीएस का ऊंचा स्तर पानी को कड़वा, नमकीन या खारा स्वाद देने के लिए जिम्मेदार होता है।

– Chemical Oxygen Demand (COD) 350 पीपीएम से घटकर 15 पीपीएम हो गया। 95.75% की कमी। यह पानी में मौजूद कार्बनिक और अकार्बनिक रसायनों का माप है।

– Biological Oxygen Demand (BOD), पानी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की गणना, 115 पीपीएम से घटकर 3 पीपीएम हो गई, जो लगभग 97.5% की कम हुआ। 

-पानी का मैलापन, जो इसकी पारदर्शिता को प्रभावित करता है, उसमें 110 एनटीयू से 0.15 एनटीयू तक की गिरावट, यानी 99.85% सुधार दिखा। 

-आमतौर पर कीटाणुनाशक के रूप में उपयोग किए जाने वाला क्लोराइड, यदि अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है तो यह त्वचा रोग का कारण बन सकता है। इसका स्तर 1,400 पीपीएम से घटकर 30 पीपीएम हो गया, जो 97.85% की कमी है।

-इन प्रक्रिया से आर्सेनिक, लीड, कैडमियम, पारा और कोबाल्ट जैसे भारी धातु भी हट गए। 

-फ़िल्टर होने के बाद यह प्यूरीफायर 99.99% ऐसे रोगाणुओं और वायरस को हटा देता है, जो स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करते हैं।

abhimanyu rathi
Abhimanyu Rathi Is Receiving Award

कार्बन उत्सर्जन को रोकने में मददगार 

अभिमन्यु का कहना है कि यह प्रोडक्ट गांव में उपयोग करने  के लिए बिल्कुल सही है। उन्होंने कहा, “इससे हम कई टन कार्बन उत्सर्जन को बचाकर पर्यावरण को लाभ पहुंचाएंगे। ग्रामीण भारत में लोग बैक्टीरिया और कीटाणुओं को मारने के लिए, उबलते पानी पर निर्भर रहते हैं। पानी गर्म करने के लिए किसी न किसी  रूप में कार्बन उत्सर्जन होता है। जबकि प्यूरीफायर के इस्तेमाल से सालाना 5-8 टन कार्बन उत्सर्जन की बचत होगी।” 

साल 2020 से वह अपने इस प्रोडक्ट को बेच रहे हैं। फ़िलहाल उन्होंने 60 से ज्यादा वॉटर प्यूरीफायर बेचे हैं।  

उनके एक ग्राहक जिग्नेश मोदी हैं। इस प्रोडक्ट के बारे में वह कहते हैं, “मैं इससे पहले एक सामान्य RO प्यूरीफायर का उपयोग कर रहा था। एक साल पहले मुझे इस प्रोडक्ट के बारे में पता चला। पुराने प्यूरीफायर के लिए वार्षिक रखरखाव के लिए, मुझे 3,000 रुपये खर्च करने पड़ते थे। वरदान में ऐसी कोई परेशानी नहीं है। मुझे कोई रखरखाव खर्च नहीं करना पड़ता है। एक साल होने को है और इसमें अभी तक कोई समस्या सामने नहीं आई है।”

एक अन्य ग्राहक जिगर नंदा का कहना है कि इस नई प्यूरीफायर मशीन से पानी के स्वाद में बदलाव को महसूस किया जा सकता है। उन्होंने अपने पांच रिश्तेदारों के लिए भी इसे खरीदा था। वह कहते हैं, “इसमें बिजली की जरूरत भी नहीं पड़ती है। सूरत में पानी की गुणवत्ता खराब है। लेकिन ‘वरदान’ के कारण पानी में कड़वेपन की समस्या भी नहीं रहती।”

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक निर्मल्या बल्लव कहते हैं, “ग्राफेन नॉन-टॉक्सिक है और पानी को साफ करने में कुशलता से काम करता है। ग्राफेन का उपयोग बढ़ रहा है और यूके में इसका व्यावसायिक रूप से उपयोग किया जा रहा है।” 

अभिमन्यु और वरदान फ़िलहाल देश मुख्य पांच वॉटर प्यूरीफायर बनाने वाली कंपनियों के साथ काम कर रहे हैं। वहीं वह अपने स्टार्टअप SILL  से जरिए वॉटर प्यूरीफायर के साथ सोलर से जुड़े प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहे हैं। 

यदि आप प्यूरीफायर खरीदना चाहते हैं तो यहां संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेख- हिमांशु नित्नावरे  

संपादन- जी एन झा

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