घर में झाड़ू-पोंछा लगाने से लेकर पद्म श्री तक का सफर, पढ़िए दुर्गा बाई की प्रेरक कहानी

Durga Bai Vyom

मध्य प्रदेश के डिंडोरी की रहनेवाली दुर्गा बाई व्योम को सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया है। लेकिन उनके यहां तक पहुंचने की राह काफी मुश्किल रही है। पढ़िए उनकी प्रेरक कहानी!

मूल रूप से मध्य प्रदेश के डिंडोरी के छोटे से गांव बुरबासपुर की रहने वाली दुर्गा बाई व्योम (Durga Bai Vyom) कभी स्कूल नहीं गईं। लेकिन कला के दम पर उन्होंने देश में अपनी एक खास जगह बनाई है। दरअसल, दुर्गा बाई को आदिवासी कला को एक नई ऊंचाई देने के लिए हाल ही में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 

लेकिन उनकी यहां तक पहुंचने की राह काफी कठिनाइयों से भरी हुई थी। उनके चार भाई-बहन हैं और पिता चमरू सिंह की कमाई इतनी नहीं थी कि वे अपने बच्चों की ठीक से परवरिश कर सकें। इस वजह से दुर्गा कभी स्कूल की दहलीज तक नहीं पहुंच पाईं।

47 वर्षीया दुर्गा को बचपन से ही चित्रकारी से खास लगाव था और सिर्फ छह साल की उम्र से उन्होंने चित्रों को बनाना शुरू कर दिया। उनकी कलाओं में गोंड समुदाय से जुड़ी लोककथाओं की झलक देखने को मिलती है।

दुर्गा इस कला को अपने पूर्वजों की धरोहर मानती हैं। उन्होंने अपनी दादी और माँ से “दिग्ना” कला सीखी, जिसमें शादियों और खेती से जुड़े त्योहारों में घर की दीवारों पर एक खास अंदाज में छवियां उकेरी जाती हैं। धीरे-धीरे यही शैली उनकी पहचान बन गई। 

Durga Bai making pictures
चित्र बनातीं दुर्गा बाई

जब वह 15 साल की थीं, तो उनकी शादी सुभाष व्योम से हो गई। सुभाष खुद मिट्टी और लकड़ी के मूर्तियां बनाने के लिए जाने जाते थे। 1996 में, उनके पति को भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में लकड़ी से आकृतियां बनाने का काम मिला था और वह पहली बार अपने गांव से बाहर आईं। 

यहां उनकी प्रतिभा को जनगढ़ सिंह श्याम और आनंद सिंह श्याम जैसे गोंड कलाकारों ने पहचाना और उन्हें गोंड चित्रकला के नए-नए कौशल सिखाए। इसी दौरान उनके बेटे की तबियत काफी खराब हो गई और उन्हें भोपाल में लंबे समय तक रुकना पड़ा।

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इसके बाद, दुर्गा ने अपनी काबिलियत पहचानी और यही रहने का मन बना लिया। एक बार तय करने के बाद वह भारत भवन से जुड़ीं और 1997 में उनकी पेंटिंग पहली बार प्रदर्शित हुई। लेकिन, भोपाल में रहना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने अपने तीन बच्चों की देखभाल के लिए झाड़ू-पोंछा का काम शुरू कर दिया। 

Durga Bai with her husband Subhash Vyom
अपने पति के साथ दुर्गा बाई

धीरे-धीरे उनकी जिंदगी आगे बढ़ने लगी और अपनी पेंटिंग से लोगों का दिल जीतना शुरू कर दिया। उन्हें इस साल पद्म श्री मिलने से पहले रानी दुर्गावती राष्ट्रीय अवार्ड और विक्रम अवार्ड जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 

उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे कई महानगरों के अलावा इंग्लैंड और यूएई जैसे देशों में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी आदिवासी कलाओं से लोगों को परिचित कराया है। उन्होंने संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन को पेंटिंग के जरिए दर्शाया है, जो 11 अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। 

दुर्गा ने चित्रकारी की बारीकियां अपनी दादी और माँ से सीखी

उनका मानना है कि उनके समुदाय के बच्चे इस कला में माहिर हैं और वह इसे और बढ़ावा देना चाहती हैं, ताकि उनकी प्राचीन परंपराएं हमेशा बरकरार रहे।

वास्तव में, एक मुफलिसी की जिंदगी से निकल दुर्गा बाई व्योम (Durga Bai Vyom) ने जिस उपलब्धि को हासिल किया है, वह देश की करोड़ों बेबश महिलाओं के लिए एक उदाहरण है। द बेटर इंडिया ‘पद्म श्री’ दुर्गा बाई के जज्बे को सलाम करता है।

संपादन- जी एन झा

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