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Mercedes Benz में गई नौकरी, चाट-समोसे बेच हर महीने कमा रहे 2 लाख रुपए से ज़्यादा

मूल रूप से बिहार के भागलपुर के रहने वाले कुमार अभिषेक पहले बेंगलुरु में मर्सिडीज बेंज में काम कर रहे थे। लेकिन कोरोना महामारी के दौर में खतरे को देखते हुए, उन्होंने चाट-समोसे की दुकान खोल ली। अपने इस food business से, वह हर महीने लाखों कमा रहे हैं। पढ़िए उनकी पूरी कहानी!

कोरोना महामारी के कारण, भारत में करोड़ों लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई, जिस वजह से उन्हें कई आर्थिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन, कुछ लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और वक्त से लड़ते हुए, कुछ अलग करने का फैसला किया। कुछ ऐसी ही कहानी है, कुमार अभिषेक की। अभिषेक मूल रूप से बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं। वह बीते छह वर्षों से बेंगलुरु में मर्सिडीज़ बेंज़ (Mercedes Benz) में एक जर्मन ट्रांसलेटर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे, लेकिन चार महीने पहले उनकी नौकरी चली गई। लेकिन, अभिषेक को खतरे का अंदाजा पहले ही हो गया था और कोरोना महामारी शुरु होने के कुछ समय बाद उन्होंने अपना फूड बिजनेस (Food Business) शुरू कर दिया था। इस Food Business के जरिए, आज वह हर महीने न सिर्फ लाखों की कमाई कर रहे हैं, बल्कि पांच लोगों को आमदनी का जरिया भी दिया है।

कैसे हुई शुरुआत

द बेटर इंडिया से बातचीत में अभिषेक ने बताया, “मैं हमेशा से ही कुछ अपना शुरू करना चाहता था। इस मकसद के साथ, करीब डेढ़ साल पहले मैंने बेंगलुरु में 3 लाख रुपए से अपने फूड बिजनेस (Food Business) को शुरू कर दिया। मैंने कुछ समय तक नौकरी और बिजनेस साथ में किया, लेकिन चार महीने पहले कंपनी का प्रोजेक्ट खत्म हो गया और मैंने अपनी फुल टाइम जॉब गंवा दी। लेकिन इससे मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा और मैंने अपना पूरा ध्यान अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने में लगा दिया।”

अभिषेक ने अपने Food Business का नाम ‘साईं चाट सेंटर’ रखा है। बेंगलुरु में जहां वह चाट सेंटर चला रहे हैं, वहीं कोलकाता में ‘साईं टी प्वाइंट’ की शुरुआत की।

Kumar Abhishek at his Sai Chaat Corner, A food business in Bengaluru

अपने फूड बिजनेस (Food Business) से उन्हें हर दिन करीब 7000 से 9000 रुपए की कमाई होती है। वह कहते हैं, “उम्मीद है कि जनवरी में कोरोना महामारी का असर कम होगा और धीरे-धीरे कर्मचारी ऑफिस आने लगेंगे। बेंगलुरू में हम ऐसी जगह दुकान चला रहे हैं, जहां कम से कम 12000 कर्मचारी काम करते हैं। कोरोना को लेकर जैसे ही स्थिति सामान्य हो जाएगी, हमें कस्टमर की कोई दिक्कत नहीं होगी। फिलहाल हम हर दिन 4000-5000 रुपए कमाते हैं। स्थिति सामान्य होने पर हर दिन 10000-12000 रुपए से अधिक की कमाई होगी।”

क्या है खास

अभिषेक बताते हैं, “हमारे बेंगलुरु दुकान में चाट, समोसा, रोल, पराठा, मोमोस जैसी खाने की कई चीजें मिलती हैं। वहीं, कोलकाता में चाय-कॉफी, मैगी, ब्रेड आमलेट, पकौड़ा जैसी चीजें मिलती हैं।”

उनके पास समोसा 15 रुपए में, चाट 30 रुपए में, तो पराठा 30-40 रुपए में मिलता है। साथ ही वह, साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखते हैं।

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वह कहते हैं, “बेंगलुरु में अधिकांश जगहों पर सिर्फ साउथ इंडियन नाश्ता मिलता है, लेकिन हमारे यहां साउथ इंडियन और नॉर्थ इंडियन, दोनों मिलते हैं। हमारे दुकान में समोसा सबसे ज्यादा बिकता है। इसकी वजह यह है कि अन्य सभी जगहों पर समोसे के साथ सिर्फ चटनी दे दी जाती है। लेकिन हम समोसे को तोड़कर, उसमें हरी और मीठी चटनी के अलावा सेव और प्याज भी डाल देते हैं, जिससे उसका स्वाद और बढ़ जाता है।”

वह आगे कहते हैं, “हम गरीब स्कूली बच्चों, मजदूरों, दिव्यांगों और सेना के जवानों को आधी कीमत पर खाना खिलाते हैं। इस तरह हमारे यहां कोई भी आसानी से खाना खा सकता है। इसके अलावा, हमारे यहां सबके लिए पानी हमेशा फ्री है यानी जरूरतमंदों को पानी लेने के लिए दूसरे दुकानों की तरह सामान खरीदने की कोई जरूरत नहीं है।”

कैसे करते हैं काम

अभिषेक बताते हैं, “हम ग्राहकों को होम डिलीवरी की सुविधा भी देते हैं। इसके लिए वे हमें सीधे फोन कर सकते हैं। हमारे सामान Swiggy और Zomato के जरिए भी ग्राहकों तक पहुंचते हैं। इसके अलावा, हम ऑर्डर पर ग्राहकों के यहां खाना बनाने भी जाते हैं।”

Kumar Abhishek from Sai Chat Centre frying pakoras

वह बताते हैं कि वह खाने के लिए थर्माकॉल से बने प्लेट की जगह, सुपारी के पत्ते से बने प्लेट का इस्तेमाल करते हैं। जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है।

हर काम को देते हैं सम्मान

33 वर्षीय अभिषेक बताते हैं, “मेरे पिता आईटीसी में स्टोर कीपर थे और माँ घर का काम संभालती थीं। हम चार भाई-बहन हैं। मैंने दूसरी क्लास तक एक निजी स्कूल में पढ़ाई की, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण, मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा। बाद में मैंने सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की।”

वह आगे बताते हैं, “मैं पढ़ाई में शुरू से ही अच्छा था और 2008 में मेरा दाखिला ईएफएल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में हो गया। यहां से 2011 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैंने कोलकाता में एमएसआर आईटी कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। यहां आईटी हेल्प डेस्क पर करीब डेढ़ साल तक काम किया।”

अभिषेक अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “मैं कोलकाता, सिर्फ 500 रुपए और दो जोड़ी कपड़े के साथ आया था। कई आईटी कंपनियों में काम करने के बाद, 2013 में मेरा चयन कोलकाता के ही केन्द्रीय विद्यालय में बतौर जर्मन टीचर हो गया। जहां मैंने दो साल तक काम किया।”

लेकिन, इसके बाद सरकार द्वारा केन्द्रीय विद्यालयों में जर्मन शिक्षकों के पद को खत्म कर दिया। इस घटना से अभिषेक की जिंदगी थम सी गई और उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है।

वह कहते हैं, “ नौकरी गंवाने के बाद, मैं खाली हाथ घर नहीं लौटना चाहता था। तब मैंने फिश मार्केट में अस्टिटेंट का काम करना शुरू कर दिया। मैं दिन भर काम करता था और रात में नौकरी की तैयारी करता था। फिर, एक महीने के बाद मेरा चयन मर्सिडीज बेंज में हो गया। यहां मैंने करीब 6 वर्षों तक काम किया।”

Kumar Abhishek handling catering service in Bengaluru
ऑर्डर पर भी खाना बनाने जाते हैं अभिषेक

वह कहते हैं, “मैंने फिश मार्केट से लेकर कॉर्पोरेट सेक्टर तक में काम किया है और फिलहाल खाने की दुकान चला रहा हूं। मेरी नजर में कोई काम छोटा-बड़ा नहीं है। मैं वक्त के हिसाब से आगे बढ़ने में यकीन रखता हूं।”

महामारी के कारण तीन महीने तक बंद रहा Food Business

अभिषेक बताते हैं, “कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण, उनका फूड बिजनेस (Food Business) तीन महीने तक बुरी तरह से प्रभावित रहा। इस दौरान उनकी रोजाना की कमाई 100-200 रुपए भी नहीं थी।”

वह बताते हैं, “चाट-समोसे का बिजनेस (Food Business) शाम चार बजे के बाद ही, सबसे ज्यादा चलता है। लेकिन इस दौरान हम दिन में 7 बजे से लेकर 4 बजे तक ही अपनी दुकान चला सकते थे। इस वजह से हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन, मैं अपने सहयोगियों को मुश्किलों से दूर रखना चाहता था और उन्हें अपनी पर्सनल सेविंग्स से सैलरी देता रहा। इन मुश्किल हालातों में, मुझे अपनी पत्नी का पूरा साथ मिला और उन्होंने घर को बखूबी संभाला। वह एक कंपनी में एचआर मैनेजर हैं।”

क्या है फ्यूचर प्लानिंग

अभिषेक बताते हैं, “मेरा इरादा फूड बिजनेस (Food Business) में ही आगे बढ़ने का है। हम जल्द ही बेंगलुरु से करीब सौ 100 किलोमीटर दूर, कनकपुरा स्थित एक योगाश्रम में अपना कैंटीन बनाने वाले हैं। यह काम मार्च तक शुरू हो जाएगा। इसके अलावा, हम बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय में भी अपनी कैंटीन खोलने वाले हैं।”

वह अंत में कहते हैं, “मैं उस जगह से आता हूं, जहां हर चीज के लिए एक अलग संघर्ष है। मैं अपनी कड़ी मेहनत से एक ऐसी ऊंचाई को हासिल करना चाहता हूं, जिससे मैं अधिक से अधिक लोगों को काम दे सकूं और उनकी जिंदगी को बेहतर बना सकूं।”

आप अभिषेक से 9901419767 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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