कभी पिता की गोद में बैठ थामी थी स्टीयरिंग, MA पास कर बनीं HRTC की पहली महिला बस ड्राइवर

Seema Thakur, First Female driver of Himachal Pradesh

सीमा ठाकुर, हिमाचल राज्य परिवहन निगम की पहली महिला बस ड्राइवर हैं। इन दिनों वह शिमला-चंडीगढ़ रूट पर बस चला रही हैं। इस रूट पर बस चलाकर उन्होंने इंटर स्टेट रूट पर बस दौड़ाने वाली हिमाचल प्रदेश की पहली महिला बस ड्राइवर होने का तमगा भी हासिल किया।

सीमा ठाकुर! एक ऐसा नाम जिन्हें बस ड्राइवर की सीट पर बैठ बस दौड़ाते देख अगल-बगल से निकलने वाला हर कोई चकित रह जाता है। उनके साथ सफर करने वालों के दिमाग में भी उनका चेहरा छप सा जाता है। दरअसल, सीमा एचआरटीसी यानी हिमाचल राज्य परिवहन निगम की पहली महिला बस ड्राइवर (First female Bus driver) हैं और इन दिनों वह शिमला-चंडीगढ़ रूट पर बस चला रही हैं।

इस रूट पर बस चलाकर उन्होंने 31 मार्च, 2020 को किसी भी इंटर स्टेट रूट पर बस दौड़ाने वाली हिमाचल प्रदेश की पहली महिला बस ड्राइवर होने का तमगा हासिल किया।

पिता को देख, चढ़ा बस ड्राइवर बनने का शौक़

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला स्थित अर्की तहसील के दुधाना गांव की रहनेवाली सीमा ने द बेटर इंडिया को बताया, ‘मेरे पिता बलिराम ठाकुर भी एचआरटीसी में बस ड्राइवर थे। वह अक्सर लंबे रूट पर जाया करते थे और कई बार मुझे भी साथ ले जाते। लाडली होने के नाते वह पूरे टाइम मुझे अपने साथ बिठाए रखते थे और मैं भी कभी-कभार उनकी गोद में बैठकर स्टेयरिंग थाम लिया करती थी।

Seema Thakur
Seema Thakur

पहाड़ की घुमावदार सड़कों पर बस चलाते वक्त वह अक्सर गुनगुनाने लगते थे। मेरा भी बहुत मन करता था कि उन्हीं की तरह मैं भी एक दिन बस ड्राइवर की सीट पर बैठ इन सड़कों पर रफ्तार भरूं। उनका एक ही लक्ष्य रहता था कि सवारियों को सुरक्षित उनकी मंजिल तक पहुंचाया जाए। उनके इसी लक्ष्य को मैंने भी अपना इरादा बनाया और बस ड्राइवर बनना, मेरी प्राथमिकता व सपना दोनों बन गया और मैं खुशनसीब हूं कि मैं अपना यह सपना पूरा कर पाई।

अंग्रेजी में MA के बाद भी क्यों नहीं सोचा कुछ और?

सीमा ठाकुर (First Female Bus Driver) वेल एजुकेटेड हैं। वह एक अच्छी स्टूडेंट रही हैं और पढ़ाई को हर किसी के लिए बेहद जरूरी भी मानती हैं। उन्होंने डीएवी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा के बाद, शिमला के कोटशेरा कॉलेज से बीए किया और उसके बाद अंग्रेजी में एमए की डिग्री हासिल की।

वह बताती हैं, “बेशक लोगों को लगता है कि मैं अंग्रेजी में एमए होने की वजह से करियर के दूसरे विकल्पों पर भी गौर कर सकती थी। मसलन आगे टीचर बन सकती थी, अपने सब्जेक्ट में रिसर्च कर सकती थी, किसी प्रशासनिक सेवा की परीक्षा देकर अधिकारी बन सकती थी या कुछ और भी कर सकती थी। मेरे आगे भविष्य की कई राहें खुली थीं, लेकिन मैंने इनमें से किसी को भी चुनने की जगह अपने मन की सुनी। मेरा मन बस ड्राइवरी में ही रमता था और मैंने वही किया भी।”

आवेदन करने वाली एक मात्र महिला थीं (First Female Bus Driver) सीमा

सीमा ने बस ड्राइवर (First Female Bus Driver) बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए सबसे पहले मजबूत इरादा कर हैवी व्हीकल लाइसेंस बनवाया। इसके बाद, एचआरटीसी में चालकों की भर्ती निकली, तो उन्होंने भी आवेदन कर दिया। सीमा ने बताया कि 121 पदों पर भर्ती थी, लेकिन आवेदन करने वाली वह अकेली महिला थीं।

ड्राइविंग टेस्ट पास करने के बाद, साल 2016 में सीमा को एचआरटीसी में नियुक्ति मिली। यहां शिमला में उन्हें निगम की टैक्सी चलाने की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद, उन्होंने शिमला-सोलन के बीच चलने वाली 42 सीटर इलेक्ट्रिक बस भी चलाई।

सीमा कहती हैं, ‘बस ड्राइवरों को लेकर लोगाें की राय कोई बहुत अच्छी नहीं, लेकिन मैंने जो किया और जो पाया है, मैं उससे संतुष्ट हूं।” अब उन्हें इंतजार वॉल्वो ट्रेनिंग के लिए बंगलूरू भेजे जाने का है। इसे लेकर वह बेहद उत्साहित हैं। एचआरटीसी के बस ड्राइवरों का एक बैच पहले ही वहां ट्रेनिंग के लिए जा चुका है।

हवाई जहाज उड़ा रहीं महिलाएं, बस ड्राइवर होने पर आश्चर्य क्यों?

First female driver of Himachal Pradesh
First female driver of Himachal Pradesh

सीमा को इस बात का मलाल होता है कि लोग एक महिला के बस ड्राइवर (First Female Bus Driver) होने में आश्चर्य जताते हैं। इसे लेकर तमाम तरह की बातें करते हैं। वह कहती हैं, “मेरा मानना है कि जब वर्षों से महिलाएं हवाई जहाज उड़ा रही हैं, तो उनके बस ड्राइवर होने में लोगों को आश्चर्य क्यों होता है? सच तो यह है कि इन दिनों महिलाएं किसी से पीछे नहीं। वे हर वह काम कर रही हैं, जिसे कभी पुरूषों का क्षेत्र माना जाता था।”

हिमाचल राज्य परिवहन निगम के 8800 कर्मचारियों में सीमा अकेली महिला बस ड्राइवर (First Female Bus Driver) हैं। वह बताती हैं, “जब पहली बार मैंने प्रोफेशन में कदम रखा, तो इतने सारे पुरूषों के बीच एक अकेली महिला ड्राइवर देख कई बार लोगों की तिरछी नजरें मुझपर पड़ती थीं। कभी-कभी तो मैं सोचती थी कि मैं इस प्रोफेशन में क्यों आ गई, लेकिन मेरा सपना ऐसी हर सोच को पीछे कर देता था। मैंने हार नहीं मानी। कई बार लोगों को लगता है महिला ड्राइवर है, सेफ चलाएगी क्या? लेकिन मैंने हर परिस्थिति में खुद को साबित किया।”

वह मानती हैं कि गुजरते समय के साथ 80 प्रतिशत लोगों की सोच बदली है। वे मानने लगे हैं कि स्त्री भी पुरूष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है। लेकिन 20 प्रतिशत की सोच अभी बदलना बाकी है और इसमें वक्त लगेगा।

काफी कुछ करना पड़ता है नज़रअंदाज़

सीमा ठाकुर का कहना है कि बस ड्राइविंग एक बेहद जिम्मेदारी का काम है। कई परिवारों को सुरक्षित पहुंचाना होता है। महिलाएं बहुत अच्छी बस ड्राइवर (First Female Bus Driver) होती हैं। लेकिन इस काम में हमें काफी कुछ अनदेखा करना होता है। मसलन कौन क्या बोल रहा है? कौन क्या सोच रहा है? आदि। एक बस ड्राइवर के कंधे पर कई जिंदगियों और परिवारों का जिम्मा रहता है, ऐसे में ओवरस्पीड नहीं कर सकते। रोड पर सेफ और आराम से चलना होता है। एक्सलरेटर व ब्रेक पर पूरी तरह काबू रखना होता है।

सीमा का कहना है कि उनके पिता ही उनके सबसे पहले गुरू थे। वह कहती हैं, “आज मेरे पिता हमारे बीच नहीं, लेकिन उन्हें हमेशा याद रखूंगी। क्योंकि उन्होंने ही सबसे अलग हुनर सिखाया। जब उनसे ड्राइवर बनने के बारे में पूछती थी, तो मुझे रोकने या मना करने के बजाय, वह हमेशा उत्साहित ही करते थे। वह कहते थे कि लड़कियां आर्मी में हैं, टीचर हैं, जज हैं तो ड्राइवर क्यों नहीं बन सकतीं? उनका दिया यह आत्म विश्वास हमेशा साथ रहा।”

CM से सम्मान, राज्यपाल से मिली प्रशंसा

सीमा ठाकुर (First Female Bus Driver) को उनकी विशेष उपलब्धि के लिए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी सम्मानित किया। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने प्रशंसा पत्र भेज उनकी सराहना भी की। एचआरटीसी के किसी ड्राइवर को पहली बार ऐसा सम्मान मिला।

सीमा ठाकुर हिमाचल प्रदेश की उन तमाम युवतियों के लिए आदर्श हैं, जो अपने जीवन में कुछ अलग करना चाहती हैं। अपनी एक अलग राह चुनना चाहती हैं। सीमा खुद कहती हैं, “बाधाओं से हार मानकर रास्ता छोड़ देने वाले का कोई साथी नहीं होता। इंसान को सब कुछ अकेले ही करना होता है। महिलाएं तो वैसे भी अकेले ही सब कुछ करने में सक्षम हैं।”

संपादनः अर्चना दुबे

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