राजस्थान के बीकानेर जिले के देसली गांव के रहने वाले रवि बिश्नोई करीब 14 वर्षों से न्यूज रिपोर्टिंग कर रहे थे, लेकिन 2019 में उन्होंने पत्रकारिता छोड़ खेती करने का फैसला (Left Job To Take Up Farming) किया।
उन्होंने जी न्यूज, इंडिया न्यूज और न्यूज 18 जैसे मीडिया संस्थानों में काम किया था और अपने रिजाइन के वक्त, वह न्यूज 18 के बीकानेर डिवीजन के ब्यूरो चीफ के रूप में काम कर रहे थे। साथ ही, वह रक्षा मंत्रालय से भी मान्यता प्राप्त रक्षा संवाददाता भी थे।
इस विषय में रवि ने द बेटर इंडिया को बताया, “मीडिया में नौकरी करते हुए, मुझे जॉब इनसिक्योरिटी महसूस हो रही थी। इसलिए मैं कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे मुझे जीवन में एक स्थायित्व मिले। इसके लिए खेती से बेहतर जरिया कुछ नहीं हो सकता था।”
वह बताते हैं, “मेरे पास गांव में 20 बीघा जमीन थी। इस पर कभी खेती नहीं हुई थी और यह बिल्कुल वीरान पड़ी थी। मैंने अपनी नौकरी छोड़ (Left Job), इसी जमीन पर खेती शुरू कर, लोगों के सामने एक मॉडल पेश करने का प्रयास किया।”
बेचनी पड़ी ज़मीन
रवि कहते हैं कि जीवन में किसी भी नई चीज को शुरू करने के लिए निवेश की जरूरत होती है। उनका खेत बीहड़ था और उन्हें इसमें खेती शुरू करने के लिए बीकानेर में अपने 30×60 के प्लॉट को बेचना पड़ा।
वह बताते हैं, “जमीन बेचने से मुझे 15 लाख रुपए मिले और 5 लाख रुपए पिता जी ने दिए, जो छह-सात साल पहले पुलिस से रिटायर हुए हैं। इस तरह मैंने 20 लाख रुपए में खेती और अपने परिवार के साथ फार्म हाउस में रहने के पूरे इंतजाम किए।”
वह आगे बताते हैं, “आज सरकार किसानों को बढ़ावा देने के लिए कई सब्सिडी देती है, लेकिन इसमें काफी वक्त लगता है। मैं अपनी नौकरी छोड़ चुका था (Left Job)। शुरुआत में कुछ पैसे थे, इसलिए परेशानी नहीं हुई लेकिन जैसे-जैसे सेविंग्स खत्म होने लगी, खुद के साथ-साथ परिवार का भी हौसला टूटने लगा। वैसे मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपने फैसले पर अडिग रहा।”
रवि कहते हैं, “ मुझे इस बात का अहसास था कि परंपरागत तरीके से खेती करके ज्यादा आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। इसलिए मैंने वैज्ञानिक खेती पर जोर दिया। मैं खेती में डीएपी और यूरिया के बदले गोबर की खाद और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का उपयोग करने लगा। इसलिए सभी संसाधनों को जुटाने और जल्दी खेती शुरू करने के लिए मुझे पैसे की जरूरत थी। इसी कारण मैंने बीकानेर में अपना एक प्लॉट बेच दिया।”
कैसे करते हैं खेती
रवि बताते हैं, “पश्चिमी राजस्थान में किसानों को अत्यधिक गर्मी और आंधी – इन दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए मुझे कुछ ऐसा करने की जरूरत थी कि मेरी फसलों को ज्यादा नुकसान न हो। लेकिन इस समस्या को अचानक हल नहीं किया जा सकता था। फिर, मैंने ऐसे पौधों को तलाशना शुरू किया, जो तेजी से बढ़ता हो और उससे कमाई भी हो जाए।”
इसी कड़ी में जयपुर में रहने वाले फैमिली फॉरेस्ट्री के मशहूर जानकार डॉ. श्याम सुंदर ज्ञानी की सलाह ली। उन्होंने अपनी खेत की सीमाओं पर सहजन और खेजड़ी के 2000 से अधिक पौधे लगा दिए। जिसमें अभी करीब 1000 पौधे कारगर हैं। दोनों पौधों की खासियत यह है कि ये काफी तेजी से बढ़ते हैं और औषधीय गुणों से भरपूर हैं। उनके पास करीब 500 पौधे जामुन, आंवला, अमरूद जैसे फलों के भी हैं।
वह कहते हैं, “मेरे पौधे चार-पांच फीट के हो चुके हैं और मुझे उम्मीद है कि अगली आंधियों में मेरे खेत में लगी नाजुक फसलों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा।”
रवि ने अपनी खेती के लिए सुभाष पालेकर के जीरो बजट तकनीक को भी अपनाया, लेकिन उन्हें नतीजे कुछ खास नहीं मिले।
वह बताते हैं, “मैंने खेती के लिए जीरो बजट तकनीक को भी आजमाया। लेकिन यह तकनीक उपजाऊ जमीन पर अधिक कारगर है। राजस्थान के रेतीली मिट्टी में इस मॉडल को सफल होने में थोड़ा वक्त लगेगा। इसके लिए खेत में और अधिक पेड़-पौधे लगाने होंगे, ताकि मिट्टी शिफ्ट न करे।”
रवि ने अपनी खेती के लिए दो गाय भी खरीदी हैं। इससे अपने परिवार के लिए दूध हासिल करने के साथ-साथ खेती के लिए खाद की पूर्ति भी होती है। वह कहते हैं कि वह गोबर को सीधे खेत में न देकर, पहले इसे मिट्टी के अंदर दबा देते हैं और ऊपर से गोमूत्र का छिड़काव करते हैं। यह किण्वन क्रिया (Fermentation) फसलों पर दोगुना असर करता है।
सब्जियों की खेती पर जोर
रवि बताते हैं कि वह अपनी आधी जमीन पर गेहूं, सरसों जैसी फसलों की खेती करते हैं, तो आधी जमीन पर घीया, लौकी, तरबूज, खरबूज, खीरा जैसे सब्जियों को उगाते हैं। इसमें उन्हें उत्तर प्रदेश में सब्जियां उगाने वाले एक खास समुदाय से मदद मिलती है।
वह बताते हैं, “पहले साल ड्रिप इरिगेशन और पाइप वगैरह का इंतजाम कर, सब्जियों की खेती शुरू करने में करीब पांच लाख का खर्च आया। मुझे इससे कुल आय के रूप में 10 लाख की उम्मीद थी। लेकिन, दोनों बार मार्च के दौरान देश में लॉकडाउन लग गया। इस दौरान ऐसी सब्जियों की मांग सबसे ज्यादा रहती है। लेकिन मंडियों में ठीक भाव नहीं मिले और हमें काफी नुकसान हुआ। इस तरह हम करीब 6.5 लाख तक ही पहुंच पाए।”
रवि की सब्जियां स्थानीय मंडियों में बिकने के साथ-साथ, पंजाब तक भी सप्लाई होती हैं।
वह कहते हैं, “पंजाब के लोग घीया और लौकी को काफी पसंद करते हैं। लेकिन, वहां इसकी खेती फरवरी-मार्च के बाद ही शुरू होती है। ऐसे में आस-पास के राजस्थानी किसानों के लिए मौका होता है कि वे इसकी खेती जल्द शुरू कर अच्छी कमाई कर सकें। मेरी सब्जियां भी वहां तक सप्लाई होती है और हमें काफी अच्छा भाव मिलता है।”
कोरोना के अलावा अन्य परेशानियां
रवि बताते हैं, “जब मैं पत्रकारिता करता था, तो मुझे चीजें बहुत आसान लगती थीं। लेकिन जब मैंने खुद खेती शुरू की, तो मुझे किसानों की समस्याओं का अंदाजा हुआ। खेती एक ऐसा पेशा है, जिसमें आप कितनी भी कोशिश कर लें, यदि मौसम ने साथ नहीं दिया, तो सब बेकार है। सबकुछ ठीक रहने के बावजूद, एक बारिश आपको रातोंरात बर्बाद कर सकती है।”
साथ ही, वह इस बात पर भी ध्यान दिलाते हैं कि आज देश में जैविक उत्पादों के लिए अलग मंडी नहीं है। नतीजन, आपको जैविक तरीके से उपजाई साग-सब्जियों को भी उसी दर पर बेचना पड़ेगा, जो केमिकल से उपजाए उत्पादों में मिल रहे हैं।
वह कहते हैं, “आज पेट्रोल-डीजल के दाम तेजी से बढ़ने के कारण, ट्रांसपोर्टेशन का खर्च 8 रुपए प्रति किलोमीटर से बढ़कर 14 रुपए हो गया है। इसके अलावा, हर नाके पर वैन को 50-100 रुपए रिश्वत भी देनी पड़ती है, क्योंकि यदि आप नहीं देते हैं, तो वे आपकी गाड़ी को एक-दो घंटे के लिए रोक देंगे और आपकी सब्जी मंडी में समय पर नहीं पहुंचेगी और सब बेकार हो जाएगा। इन सभी चीजों का भार किसानों को ही उठाना पड़ता है।”
ड्रिप इरिगेशन से लेकर सोलर सिस्टम तक
वह कहते हैं कि राजस्थान के अधिकांश किसान फ्लड इरिगेशन तकनीक के जरिए खेती करते हैं, जिससे पानी की काफी बर्बादी होती है और राजस्थान में वैसे भी पानी की काफी दिक्कत है।
इसलिए रवि ने ड्रिप इरिगेशन सिस्टमअपनाया है। इसके लिए उन्होंने सरकारी मानकों के अनुसार 100×100 के एक डिग्गी बनवायी है, जो करीब 14 फीट गहरी है।
वह बताते हैं, “डिग्गी में प्लास्टिक की शीट लगाई गई है। इसे बनाने में कुल डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए। डिग्गी को एक स्विमिंग पूल की तरह बनाया गया है, जिसमें बच्चे खूब नहाते हैं। यह डिग्गी नहर से नीचे और खेतों से है, ताकि इसमें पानी अपने-आप भर जाए और सिंचाई हो जाए। हमने ट्यूबवेल चलाने के लिए 5 किलोवाट का एक सोलर पैनल भी लगाया है।”
पत्नी और बच्चे भी हुए गांव में शिफ्ट
रवि बताते हैं, “मेरे बच्चे बीकानेर में कान्वेंट स्कूल में पढ़ते थे। लॉकडाउन के दौरान वे रहने के लिए गांव आए। शुरू-शुरू में उनका यहां मन नहीं लगता था। लेकिन, धीरे-धीरे वे खेतों में मिट्टी से खेलने लगे और मेरा हाथ बटाने लगे। फिर, उन्हें यहां इतना अच्छा लगने लगा कि उन्होंने शहर वापस जाने से इंकार कर दिया। इसके बाद, मैंने उनका दाखिला गांव के ही एक निजी स्कूल में करवा दिया।”
वह आगे बताते हैं, “मेरी पत्नी शहर में एक निजी स्कूल में अंग्रेजी और सोशल साइंस पढ़ाती थीं। लेकिन अब वह गांव के उसी स्कूल में पढ़ाने लगी हैं, जहां मेरे बच्चे पढ़ते हैं। इससे गांववालों को भी अच्छा लगता है कि शहर से उनके बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई गांव आया है। मेरे माता-पिता भी यहां आ गए हैं। अब इन सभी के साथ रहना, मुझे अलग अहसास देता है।”
क्या है भविष्य की योजना
रवि ने अपने फार्म हाउस को ‘ओम कृषि फार्म’ नाम दिया है, जो नेशनल हाईवे 911 पर है। उन्होंने यहां रहने के लिए तीन कमरे भी बनवाए हैं। खेतों के बीच, उनका यह घर यहां से गुजरने वाले यात्रियों के लिए, आकर्षण का एक खास केन्द्र है। कई यात्री रुककर उनके फार्म हाउस पर घूमने के लिए भी आते हैं।
भविष्य में रवि का इरादा अपने फार्म हाउस को एग्रो-टूरिज्म के रूप में विकसित करने की है। जहां शहर के लोग, जैविक उत्पादों के साथ ही गांव की आबोहवा का आनंद ले सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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