टीपू सुल्तान: ‘मैसूर का शेर’, जिसने रखी थी भारत में ‘रॉकेट टेक्नोलॉजी’ की नींव!

'मैसूर का शेर' कहे जाने वाले टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवम्बर 1782 को हुआ था। उन्होंने अंग्रेजों को कई बार बुरी तरह हराया। उन्हें 'मिसाइल मैन' भी कहा जाता है। आधुनिक रॉकेट का प्रोटोटाइप टीपू के पिता हैदर अली ने बनाया था, जिसे बाद में टीपू ने और आगे बढाया।

टीपू सुल्तान को ‘मैसूर का शेर’ कहा जाता था। उन्हें यह ख़िताब उनके पिता हैदर अली ने दिया था। 18वीं सदी में मैसूर ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को सबसे कठिन चुनौती दी थी। पहले हैदर अली और उसके बाद टीपू सुल्तान ने मद्रास में ब्रिटिश सेना को बार-बार हराया था। टीपू सुल्तान का नाम अंग्रेजों के सबसे बड़े 10 दुश्मनों की फ़ेहरिस्त में शामिल था।

टीपू सुल्तान को ‘मिसाइल मैन’ भी कहा जाता है। बताया जाता है कि उन्होंने ही भारत में सबसे पहले लोहे से बने रॉकेट्स का इस्तेमाल युद्ध में किया था।

इनमें से कुछ रॉकेट आज भी लंदन म्यूजियम में रखे हुए हैं, जिन्हें अंग्रेज अपने साथ ले गये थे।

टीपू सुल्तान की बचपन की तस्वीर

इतिहासकारों की माने तो विस्फोटकों से भरे रॉकेट का पहला प्रोटोटाइप टीपू के पिता हैदर अली ने विकसित किया था। जिसे बाद में टीपू सुल्तान ने आगे बढ़ाया। इनमें गनपाउडर भरने के लिए लोहे की नलियों का इस्तेमाल होता था। ये ट्यूब तलवारों से जुड़ी होती थी।

ये रॉकेट करीब दो किलोमीटर तक वार कर सकते थे।

फोटो स्त्रोत

टीपू ने इसे स्थिरता प्रदान करने के लिए इनमें बांस का भी इस्तेमाल किया था। उनके प्रोटोटाइप को आधुनिक रॉकेट का पूर्वज कहा जा सकता है। इसमें किसी भी अन्य रॉकेट की तुलना में अधिक रेंज, बेहतर सटीकता और कहीं अधिक विनाशकारी धमाका करने की क्षमता थी। इन विशेषताओं की वजह से इसे उस समय दुनिया का सर्वश्रेष्ठ हथियार माना जाने लगा।

मैसूर युद्ध के दौरान मैसूरियन सेना द्वारा रॉकेट्स के इस्तेमाल का चित्रण (विकिपीडिया)

माना जाता है कि पोल्लिलोर की लड़ाई (आज के तमिलनाडु का कांचीपुरम) में इन रॉकेट ने ही खेल बदलकर रख दिया था। शायद यह अंग्रेजों की भारत में सबसे बुरी हार थी। अंग्रेज चकित और हैरान थे कि आखिर कैसे टीपू ने यह रॉकेट बनाया।

1793 में भारत में ब्रिटिश सेनाओं के उप-सहायक जनरल मेजर डिरोम ने बाद में मैसूरियन सेना द्वारा प्रयोग किए जाने वाले रॉकेटों के बारे में कहा, “कुछ रॉकेटों में एक चैम्बर था, और वे एक शैल की तरह फटे; दुसरे रॉकेट, जिन्हें ग्राउंड रॉकेट कहा जाता है, उन की गति सांप के जैसी थी, और उनसे जमीन पर हमला करने पर, वे फिर से ऊपर उठते, और फिर जब तक उनमें विस्फोट खत्म नहीं हो जाता तब तक हमला करते।”

अपनी गद्दी पर बैठे टीपू सुल्तान (विकिपीडिया)

टीपू ने रॉकेट टेक्नोलॉजी पर और अधिक शोध करने के लिए श्रीरंगपटनम, बैंगलोर, चित्रदुर्ग और बिदानूर में चार तारामंडलपेट (तारों के बाज़ार) की स्थापना की। भारत में मिसाइल प्रोग्राम की नींव 18वीं सदी में ही रखी जा चुकी थी। इस मिसाइल कार्यक्रम के जनक एपीजे अब्दुल कलाम भी टीपू से काफी प्रभावित थे।

अब्दुल कलाम, टीपू सुल्तान के रॉकेट कोर्ट (वह प्रयोगशाला जहां टीपू ने अपने रॉकेट का परीक्षण किया था) के संरक्षण के पक्ष में थे और वे इसे एक म्यूजियम की शक्ल देना चाहते थे। उनके इस विचार का उल्लेख उनकी पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ में मिलता है। इसी किताब में कलाम ने लिखा है कि उन्होंने नासा के एक सेंटर में टीपू की सेना की रॉकेट वाली पेंटिग देखी थी।

टीपू सुल्तान पर पोस्टल स्टैम्प (दाएं) व श्रीरंगपटनम की वह जगह जहां टीपू का शव मिला था (बाएं)

हालांकि, आज श्रीरंगपटनम में बहुत कुछ नहीं बचा है, जो टीपू सुल्तान और उनके बनाये रॉकेट के बारे में बता सके लेकिन विश्व सैन्य इतिहास पर मैसूरियन रॉकेट की छाप हमेशा रहेगी। एयरोस्पेस के वैज्ञानिक प्रोफेसर रोद्दम नरसिम्हा ने अपने एक लेक्चर में कहा था,

“यह टीपू था, जिसने एक हथियार के रूप में रॉकेट की पूरी क्षमता को जाना – अपने दिमाग में भी और मैदान में भी और उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी में तहस-नहस करने के लिए इस्तेमाल किया। इसलिए, आज विश्व में इस्तेमाल होने वाले सभी रॉकेट्स का इतिहास मैसूर के युद्ध में इस्तेमाल होने वाले रॉकेट्स में ढूंढा जा सकता है।”

संपादन – मानबी कटोच

मूल लेख: संचारी पाल


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X