वह कथक डांसर, जिसे 16 साल की उम्र में रबिन्द्रनाथ टैगोर ने दिया ‘नृत्य सम्राज्ञी’ का ख़िताब!

उत्तर-प्रदेश के बनारस में संस्कृत और संगीत के विद्वान पंडित सुखदेव प्रसाद के घर में सितारा देवी का जन्म हुआ। दिन था 8 नवंबर 1920 और मात्र सोलह साल की उम्र में उनके नृत्य से प्रभावित होकर महकबी रबिन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें नृत्य सम्राज्ञी की उपाधि दी।

नारस घराने में गायकी से लकर नृत्य, किसी कला की कोई कमी नहीं है। जहाँ ठुमरी की रानी ‘गिरिजा देवी’ बनारस के घराने से थीं, वहीं महान कथक नृत्यांगना सितारा देवी की जड़ें भी बनारस से जुड़ी हुई हैं।

उत्तर-प्रदेश के बनारस में संस्कृत और संगीत के विद्वान पंडित सुखदेव प्रसाद के घर में सितारा देवी का जन्म हुआ। दिन था 8 नवंबर 1920, उस दिन धनतेरस का त्यौहार था और इसीलिए उनका नाम धनलक्ष्मी रखा गया। छोटी धनलक्ष्मी को सभी ‘धन्नो’ कहकर पुकारते थे।

आज द बेटर इंडिया पर पढ़िए कैसे ‘धन्नो’ आगे चलकर, भारत की मशहूर कथक डांसर ‘सितारा देवी’ बन गई!

सितारा देवी

सितारा देवी के पिता संगीत के विद्वान थे, इसलिए घर में संगीत के सुर र्और नृत्य की झंकार, दोनों ही छोटी सी धन्नो के कानों में लगातार पड़ते रहते। उसी झंकार को धन्नो ने धीरे-धीरे आत्मसात कर लिया और अपने पिता की देख-रेख में नृत्य सीखने लगी। उन दिनों नाचने-गाने को स्त्रियों के लिए बुरा माना जाता था, इसलिए उन्हें लोगों की कड़वी बातों का भी सामना करना पड़ा।

यहाँ तक कि समाज ने उनके परिवार का बहिष्कार कर दिया था। पर समाज के हर एक सवाल का जवाब सितारा ने अपनी कला और हुनर से दिया। कोई भी मुश्किल उनके विश्वास को न हिला पायी। मात्र 10 साल की उम्र में उन्होंने अकेले परफॉर्म करना शुरू कर दिया था। कला की दुनिया में किसी सितारे की तरह चमकने वाली धन्नो का नाम जल्द ही ‘सितारा देवी’ रख दिया गया।

यह भी पढ़ें- गिरिजा देवी: 15 साल में विवाहित, बनारस की एक साधारण गृहणी से ‘ठुमरी की रानी’ बनने का सफ़र

साल 1933 में बॉलीवुड से काशी आए, फिल्म निर्माता निरंजन शर्मा को एक ऐसी अदाकारा की तलाश थी, जिसमें नृत्य के साथ ही सुरीले गायन की भी प्रतिभा हो। कबीर चौरा में उनकी नजर धन्नो के हुनर पर पड़ी। उन्होंने उनके पिता से धन्नो को मुंबई भेजने के लिए कहा। बताया जाता है कि तब महज़ 13 साल की उम्र में धन्नो को फिल्म की शूटिंग के लिए मुंबई रवाना करने के लिए उनके मोहल्ले के बच्चे और महिलाएं भी स्टेशन तक गए थे।

धन्नो से सितारा देवी

और काशी के कबीरचौरा की गलियों में पली ‘धन्नो’ मुंबई की फिल्मी दुनिया का ‘सितारा’ बनकर छा गईं।

सितारा देवी ने अच्छन महाराज, शंभू महाराज और लच्छू महाराज से शिक्षा तो लखनऊ घराने की ली, लेकिन धीरे-धीरे अपनी एक अलग शैली विकसित की। अपनी इसी अलग शैली से उन्होंने बनारस घराने में कथक का विस्तार किया।

ये वो दौर था जब कथक के लिए लखनऊ, जयपुर और रायगढ़ जैसे घराने ज्यादा प्रचलित थे, लेकिन सितारा देवी ने बनारस घराने को एक ख़ास पहचान दी। सितारा देवी सिर्फ 16 बरस की थीं, जब एक कार्यक्रम में कवी रबिन्द्रनाथ टैगोर आए थे।

टैगोर ने जब सितारा को नृत्य करते देखा, तो बस देखते रह गये। इतनी कम उम्र में इतनी गहरी साधना, शायद ही उन्होंने पहले कभी देखी थी। महाकवि रबिन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘नृत्य सम्राज्ञी’ की उपाधि से नवाज़ा!

नृत्य सम्राज्ञी सितारा देवी

सितारा देवी ने निरंजन की पहली फिल्म ‘वसंत सेना’ में नृत्यांगना के तौर पर अभिनय की शुरुआत की। इसके बाद फिल्मों में कोरियोग्राफी के ज़रिये भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी, वहीं कथक नृत्य को दुनिया में विशिष्ट पहचान भी दिलाई।

सितारा को संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, कालिदास सम्मान व पद्मश्री से भी नवाज़ा गया। बाद में इन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण दिया गया, जिसे इन्होंने लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि क्या सरकार मेरे योगदान को नहीं जानती है? ये मेरे लिये यह सम्मान नहीं है। मैं भारत रत्न से कम नहीं लूंगी।

शोहरत और कामयाबी का लम्बा सफ़र तय करने वाली सितारा देवी ने 94 वर्ष की आयु में दुनिया से विदा ली। 25 नवंबर 2014 को उन्होने अपनी आख़िरी सांस ली।

अपनी ज़िन्दगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली सितारा देवी नृत्य मंच पर अपनी ऐसी अमिट छाप छोड़ गयीं हैं, जो सदियों तक शास्त्रीय संगीत सिखने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेंगी।

संपादन – मानबी कटोच


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X