Placeholder canvas

दो साल पहले गुम हुआ वंश आख़िर डिजिटल इंडिया की सहायता से पहुँचा घर !!!

भारत में हर साल करीबन एक लाख बच्चे गुम हो जाते है। और अधिकतर गुमशुदा ही रह जाते है। वंश भी इन्ही में से एक बनकर रह जाता अगर वक़्त पर दृष्टी नामक संस्था ने टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर उसे अपने घर न पहुँचाया होता।

भारत में हर साल करीबन एक लाख बच्चे गुम हो जाते है। और अधिकतर गुमशुदा ही रह जाते है। वंश भी इन्ही में से एक बनकर रह जाता अगर वक़्त पर दृष्टी नामक संस्था ने टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर उसे अपने घर न पहुँचाया होता।

मोदीनगर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले दस वर्षीय वंश की माँ का देहांत तभी हो चूका था जब वह महज़ ४ साल का था। उसके पिता, बबली गुज्जर एक ऑक्सीजन सिलिंडर की फैक्ट्री में काम करते थे। घर पर कोई और बड़ा न होने की वजह से वंश, बड़े भाई दीपांशु और छोटे भाई वरुण के साथ दिन भर रहता। तीनो बच्चे स्कूल से लौटकर बस्ता फेंककर खेलने निकल पड़ते। खेलते खेलते कई बार वे बहोत दूर भी निकल जाते।

वंश के घर से करीब एक किलोमीटर दूर एक रेल की पटरी थी जहाँ ट्रेन अक्सर रुका करती थी।

२२ जून २०१३ को वंश खेलते खेलते उस पटरी तक जा पहुँचा। और एक रुकी हुई ट्रेन में जाकर बैठ गया। इससे पहले कि वह उस ट्रेन से निचे उतरता, ट्रेन चल पड़ी। घबराकर आठ साल का नन्हा वंश ट्रेन में ही बैठा रहा।और तभी उतरा जब ये ट्रेन चेन्नई जाकर रुकी।

Vansh was sold to a childless couple in Chennai.
वंश को गैर क़ानूनी ढंग से गोद लिया गया

चेन्नई से वंश को दो लोग सिलिगुडी ले आये, और फिर पश्चिम बंगाल के सिंगला चाय बागान ले गए। यहाँ से एक विवाहित दंपत्ति ने उसे गैर कानूनी तरीके से गोद ले लिया।
यह दंपत्ति सिक्किम के सोरेंग गाँव का रहने वाला था। यह लोग वंश को अपने घर ले आये और उसे अपने बेटे की तरह रखा। पर जब भी वह अपने घर जाने की बात करता तो वे वंश को  मारने पीटने लगते।

वंश ने याद करते हुए बताया –
“वो लोग अच्छे नहीं थे। मुझे मारते थे। अगर मैं कहता कि मुझे घर जाना है तो वो मुझे बहुत मारते थे।”

दो साल बीत गए। अब तो वंश उन्ही की बोली भी बोलने लगा। घर वापस लौट पाने की भी उसने सारी उम्मीदे छोड़ दी थी।

सिक्किम के जिस सोरेंग गाँव में वंश रह रहा था वहा से कुछ दूर नामची नामक गाँव में दृष्टी नामक एक गैर सरकारी संस्था भी कई सालो से काम कर रही थी।

इसे कुदरत का करिश्मा ही कह लीजिये कि अचानक, १६ सितम्बर २०१५ को किसीने इस संस्था में फ़ोन करके बताया कि वंश एक गोद लिया हुआ बच्चा है और उसके दत्तक माता पिता उस पर बहुत ज़ुल्म करते है।

ये सुनते ही संस्था के जनरल सेक्रेटरी श्री.पसांग शेरिंग भूटिया ने तुरंत ही वहाँ के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट और पुलिस की मदत से वंश को उस दंपत्ति के चंगुल से छुडवाया। उसे संस्था के ही एक आश्रय गृह, मंजुशा में रखा गया।

Mr. Bhutia, from the NGO Drishti, rescued Vansh from his 'foster' family.
दृष्टि नामक गैर सरकारी संस्था ने बचाया वंश को

जब वंश थोडा सामान्य हुआ तो उससे संस्था वालो ने उसके घर के बारे में पूछा। इसपर वंश ने बताया की वह मोदीनगर का रहने वाला है।

सिक्किम के एक छोटे से गाँव में बसे इस संस्था के लोगों ने मोदीनगर का नाम कभी नहीं सुना था। इस समय टेक्नोलॉजी का सहारा लिया गया। गूगल पर ढूंढने पर पता चला की मोदीनगर, उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद जिल्हे का एक गाँव है।
इसके बाद संस्था के सेक्रेट्री श्री भूटिया ने गाज़ियाबाद पुलिस थाने में इस बात की रिपोर्ट लिखवाई। इसके अलावा उन्होंने गाज़ियाबाद के चाइल्ड लाइन को भी इस बात की जानकारी दी।

कई दिनों तक पुलिस की तलाश जारी रही। वंश से उसके पिता का नाम पूछने पर वह इतना ही कह पाया था की वह गुज्जर जाती का है। पर क्योंकि सिक्किम के लोग गुज्जर नामक जाती से भी अपरिचित थे इसलिए उन्होंने समझा कि वंश गुजराती है।

इसी बात को ध्यान में रखते हुए पुलिस मोदीनगर में बसे गुजराती परिवारो से पूछताछ में लगी रही।

इसी समय भूटिया जी ने इंटरनेट से फिर मोदीनगर पुलिस स्टेशन का नंबर ढूंढ निकाला। यहाँ के एस.एच.ओ, श्री. दीपक शर्मा ने उन्हें अपना व्हाट्स ऐप का नंबर देते हुए उनसे वंश की तस्वीर भेजने को कहा। इसके अलावा वंश से अपने घर के आसपास की कुछ जगहों के बारे में भी पूछा। जिसपर वंश ने बताया की उसके घर के पास एक लाउड स्पीकर की दूकान तथा एक आटा चक्की भी है।

इन्ही सूत्रो के साथ आखिर वंश के पिता श्री बबली गुज्जर को ढूंढ लिया गया। तुरंत ही व्हाट्स ऐप के ज़रिये वंश के पिता की तस्वीर भूटिया जी को भेजी गयी। और वंश ने अपने पिता को पहचान लिया।

वंश के पिता – बबली गुज्जर

 

६ अक्टूबर २०१५ को  वंश के पिता, बबली गुज्जर और उसके ताउजी, श्री. ललित कुमार, अपने खोये हुए बेटे को लेने के लिए सिक्किम पहुंचे।

TBI से बात करते हुए बेहद भावुक होकर वंश के पिता ने कहा-

” मैं पूरी ज़िन्दगी इन लोगो का शुक्र गुज़ार रहूँगा। मैं दो साल तक अपने बच्चे को ढूंढता रहा। हर उस जगह गया जहाँ पुलिस को मोदीनगर से खोये हुए बच्चे मिले। हरिद्वार में भी एक बार मुझे बुलाया गया पर वहाँ सब दो से चार साल के बच्चे थे। मैं बहुत मायूस हो चूका था। पर दृष्टी संस्था मेरे लिए भगवान् के रूप में सामने आई।”

चाइल्ड वेलफेयर समिति द्वारा सभी ज़रुरी कार्यवाही के बाद ८ अक्टूबर २०१५ को, अपने ग्यारवे जन्मदिन से ठीक १३ दिन पहले, वंश उसी ट्रेन में बैठकर अपने पिता और ताउजी के साथ अपने घर वापस चला गया।

मोदिनगर के एस.एच.ओ दीपक शर्मा के साथ वंश तथा बबली गुज्जर

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X