सूरत की रहनेवाली 56 वर्षीया, दीप्ति पटेल जब भी लम्बी छुट्टी पर जाती हैं, उन्हें अपने घर से ज्यादा खुद के उगाए पेड़-पौधों की चिंता होती है और हो भी क्यों न? सालों से वह इन पेड़-पौधों का अपने बच्चों की तरह ध्यान जो रखती आ रही हैं। छोटे-छोटे प्रयासों से शुरुआत करके, आज उन्होंने अपने घर को 1000 से ज्यादा पौधे लगाकर हरा-भरा बना दिया है।
बचपन से ही गार्डनिंग की शौकिन रहीं दीप्ति के घर पर हमेशा से ही पेड़-पौधे लगाने की जगह थी। इससे उन्हें, उनके शौक़ को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिली। आज वह अपने घर पर 60 से अधिक किस्मों के फल, कई किस्मों के गुलाब, कैक्टस, वॉटर लिली सहित, सभी मौसमी सब्जियां उगाती हैं।
पेशे से टीचर दीप्ति अपने काम के बाद, गार्डनिंग के लिए समय निकालती हैं और खुद ही गार्डन का सारा काम करती हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहती हैं, “सालों से मेरा शाम का समय इन पेड़-पौधों के साथ ही बीतता है। इनका साथ मेरी दिन भर की थकान और किसी भी किस्म का तनाव दूर कर देता है।”
किसान पिता से मिला बागवानी का शौक
अहमदाबाद में पली-बढ़ीं दिप्ती के पिता नौकरी के साथ-साथ किसानी भी किया करते थे। उनसे थोड़ा-थोड़ा सीखकर, वह बचपन में फूलों के पौधे लगाया करती थीं। उन्होंने बताया कि उन्हें गुलाब उगाने का बेहद शौक़ था, शुरुआत भी उन्होंने गुलाब और गुड़हल के पौधों से ही की थी। 1980 के दौरान वह ठण्ड में कुछ सब्जियां भी घर पर उगाया करती थीं। लेकिन 1987 में शादी के बाद सूरत आने पर, उनके घर पर जगह तो थी, लेकिन ससुराल में बागवानी का शौक़ किसी को भी नहीं था।
वह कहती हैं, “सूरत आने के बाद मैंने फिर से फूलों और कुछ सजावटी पौधे लगाने से शुरुआत की थी। धीरे-धीरे मैंने बड़े गमले में कुछ सब्जियां और अनार, चीकू, सीताफल जैसे फल उगाना भी शुरू किया था, जिसे मेरे घरवालों ने बेहद पसंद किया और कुछ ही सालों में मेरा घर कई पेड़-पौधों से भर गया।”
गार्डनिंग कोर्स से मिली कई जानकारी
उन्होंने कभी भी अपने बागीचे में काम के लिए माली नहीं रखा। उनका मानना है कि गार्डनिंग में खुद के अनुभव से इंसान सबसे ज्यादा सीखता है। दीप्ति को जहां से भी गार्डनिंग से जुड़ी जानकारी मिलती, वह लेती रहती थीं और उसे आजमाने की कोशिश भी करती थीं। उन्होंने तीन दिन का एक छोटा सा टेरेस गार्डनिंग कोर्स भी किया था। उन्होंने बताया, “साल 2008 में सूरत के वनिता विश्राम ग्राउंड में लगे एक मेले में कृषि यूनिवर्सिटी का एक स्टॉल लगा था। वहां, वे टेरेस गार्डनिंग के कोर्स की जानकारी दे रहे थे। मैंने वहां तुरंत रजिस्ट्रशन करा लिया। यह कोर्स मात्र तीन दिन का था, जिसमें हमें कम्पोस्ट बनाने से लेकर मौसम के हिसाब से सब्जियां उगाना सिखाया गया।”
इस कोर्स के दौरान, दीप्ति का एक गार्डनिंग ग्रुप भी बन गया, जहां से उन्हें नए बीज और जरूरत पड़ने पर सारी जानकारी मिलने लगी। फिर क्या था? उनके शौक को मानो पंख लग गए। पहले मात्र वह ठण्ड में ही साब्जियां उगाया करती थीं, लेकिन ट्रेनिंग के बाद उन्होंने साल भर कुछ न कुछ सब्जियां उगाना शुरू किया।
समय के साथ उन्हें ऑनलाइन शॉपिंग की जानकारी हुई। उन्होंने एवोकाडो, ड्रैगन फ्रूट सहित कई विदेशी किस्म के फलों के बीज ऑनलाइन ही ऑर्डर करके मंगाए।
परिवार के लिए उगाने लगी फल-सब्जियां
स्कूल के बाद और सुबह जल्दी उठकर, वह हर दिन तीन से चार घंटे गार्डनिंग के लिए समय निकालती हैं। फ़िलहाल उनके घर पर थाई और देसी मिलाकर तीन किस्मों के अमरुद, पपीते की दो किस्में, अनार के तीन पेड़, ड्रैगन फ्रूट की दो किस्में, सीताफल की दो किस्मों सहित अंजीर, रामफल, लक्ष्मणफल, सफ़ेद जामुन, संतरा, मौसम्बी, एप्पल, केला, चेरी, पैशन फ्रूट के अलाव ऐसे-ऐसे फल भी उगे हैं, जिनके नाम भी हमने शायद ही सुने होंगे।
हालांकि, उनके पास 100 यार्ड की बड़ी छत है, घर के दोनों तरफ सात फुट की लम्बी क्यारियां बनी हैं, बावजूद इसके वह बताती हैं कि उन्हें पौधे लगाने के लिए जगह कम पड़ती है। घर के सामने वाले भाग में उन्होंने सजावटी पौधे लगाए हैं। जबकि घर के दोनों तरफ बनी क्यारियों में कुछ बड़े पेड़ लगे हैं। बाकि के सारे पौधे उन्होंने छत पर क्यारियां बनाकर और ग्रो बैग का इस्तेमाल करके लगाए हैं।
इन सारे पौधों को वह बिना किसी केमिकल वाली खाद और कीटनाशक के ही उगाती हैं। वह अपने घर के गीले कचरे और गार्डन वेस्ट से हर छह महीने में 500 से 600 किलो कम्पोस्ट तैयार करती हैं। वहीं, कम्पोस्ट कम पड़ने पर वह बाहर से वर्मी कम्पोस्ट लाकर इस्तेमाल करती हैं।
उन्होने बताया, “पिछले दो सालों से मैं कैक्टस और वॉटर लिली की किस्में भी उगा रही हूँ। अब तो छत पर थोड़ी भी जगह नहीं बची है। मेरे घरवाले भी मुझे कहते हैं, अब बस करो।”
दीप्ति, टेरेस गार्डनिंग करने वालों को, वॉटर प्रूफिंग करने के बाद जमीन से थोड़ा ऊपर क्यारी बनाने की सलाह देती हैं। इससे छत और घर को नुकसान होने की संभावना बिल्कुल कम हो जाती है।
आशा है, आपको दीप्ति के बेहतरीन गार्डन के बारे में पढ़कर अच्छा लगा होगा।
हैप्पी गार्डनिंग!
संपादनः अर्चना दुबे
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