ज़िंदगी को पूरी तरह से जियो ताकि आख़िरी पलों में कोई पछतावा न रहे!

Humans of Bombay पोस्ट में एक गुजराती आंटी ने बताया कि कैसे अब तक उन्होंने अपनी ज़िंदगी को पूरे दिल से जिया है। उनका अनुभव हमें सिखाता है कि मुश्किलें जीवन का हिस्सा हैं पर ज़िंदगी चलती रहनी चाहिए। ताकि अगर आप किसी पल मर भी जाएँ तो भी आपको कोई पछतावा न रहे।

“मैं हमेशा से ही बहुत आत्म-विश्वासी रही हूँ। मुझे तैयार होना, दोस्तों के साथ बाहर जाना बहुत पसंद है और ख़ासकर, गाना और डांस करना। मैंने अंग्रेजी-माध्यम से दसवीं की कक्षा पास की और जब मैं 19 साल की थी तो मेरी सगाई हो गयी। लेकिन जिनसे मेरी सगाई हुई, वह बहुत अच्छे इंसान थे। हमारी सगाई के बाद के दो साल बहुत यादगार रहे! वो अक्सर कॉलेज बंक करके मेरे साथ फिल्म या नाटक देखने आ जाते। शादी के बाद भी हमने ज़िंदगी को भरपूर जिया। मैंने उनके घर को अपना बना लिया। मैं एक संपन्न परिवार से थी, जहाँ हमारे पास कई कारें थीं। पर जब मेरे पिता ने मुझसे पूछा कि क्या मुझे यहाँ कार की ज़रूरत है? तो मैंने कहा, ‘आप चिंता न करें, मेरे पति ने मुझे बस की सारी रूट समझा दी हैं।’

हमने साथ एक बेहतरीन ज़िंदगी जी, हम शानदार पार्टियाँ देने के लिए मशहूर थे! ये उन दिनों की बात है जब मिक्सर या माइक्रोवेव नहीं हुआ करते थे। सब कुछ खुद ही करना पड़ता था! तैयार होना, खाना, पीना, डांस करना… वो दिन ही कुछ और थे!

और हम बहुत घूमते भी थे– लेकिन 1984 में जब हम पहली बार मेरी बहन के यहाँ अमेरिका गये, तो मेरा एक्सीडेंट हो गया। एक कार ने मुझे टक्कर मारी और मैं उड़कर रोड पर जा गिरी और फिर वह कार मुझे रोंदते हुए आगे बढ़ गयी। मेरी टाँगे टूट गयी थीं। मैं बहुत दर्द में थी… मुझे नहीं पता था कि मैं दोबारा चल भी पाऊँगी या नहीं।

जब हम अस्पताल गये तो डॉक्टर ने कहा कि हम किस्मत वाले हैं, जो मैं बच गयी। मैं तीन महीने तक अस्पताल में रही और इसके बाद हम अपने ट्रिप को छोड़कर घर वापिस आ गये। फिर भी, पता है मैं ऐसी थी कि कभी भी शांत नहीं बैठ सकती थी। यह चमत्कार था कि मैं बच गयी तो क्यों इसे व्यर्थ जाने दूँ?- इसलिए मैं फिर से अपने पैरों पर खड़ी हुई, काम करने के लिए, हमारी पार्टियों के लिए और अपने प्यार (पति) के साथ यह दुनिया घुमने के लिए!

साल 2007 में मेरे पति का निधन हो गया, पर उससे पहले मैंने उनके साथ ज़िंदगी के खुबसूरत 60 साल बिताए। पर हम हमेशा कहते थे कि पार्टी चलती रहनी चाहिए– इसलिए मैं अपना मंगलसूत्र पहनकर, तैयार होकर हम दोनों के लिए बाहर जाती हूँ। ये सच है कि मैं उन्हें बहुत याद करती हूँ पर मैं उनके लिए जीती हूँ और यही मेरा उद्देश्य है!

फोटो साभार: humans of bombay

तो मैं आज भी पार्टी शुरू करने वालों में से हूँ! चाहे फिर मेरे पैर दुखने ही क्यों ना लग जाएँ पर मैं जाती हूँ– और मेरा फेवरेट होली है!

कुछ दिनों पहले, सिंगापूर में एक कॉकटेल पार्टी में– ये सभी युवा बच्चे बहुत बोर हो रहे थे– वहां भी सबसे पहले मैंने डांस शुरू किया! अपने 90वें जन्मदिन पर मैंने शैम्पेन की बोतल खोली! तो अब तक ये ‘मज्जा नी’ ज़िंदगी रही– अगर मैं अभी मर भी जाऊं तो मुझे कोई पछतावा नहीं रहेगा! इसलिए मैंने अपने बच्चों को कहा है कि अगर कभी ऐसा हो तो– रोना मत! म्यूजिक चलाना और क्या पता? मैं शायद उठ जाऊं और फिर से डांस करने लगूं!

 

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