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साल 2008 में काबुल में शहीद हुए दो आईटीबीपी सैनिकों को मिलेगा कीर्ति चक्र!

इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) के दो कॉन्सटेबल को भारत सरकार द्वारा कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। पंजाब के पठानकोट से ताल्लुक रखने वाले अजय सिंह पठानिया और हिमाचल प्रदेश के मंडी के रहने वाले कॉन्स्टेबल रूप सिंह ने 7 जुलाई, 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास में बहुत सी जानें बचाने के लिए अपनी परवाह नहीं की।

इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) के दो कॉन्सटेबल को भारत सरकार द्वारा कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। गृह मंत्रालय ने बताया कि साल 2008 में इन दो आईटीबीपी कॉन्सटेबलों ने अफगानिस्तान के काबुल में भारतीय एम्बेसी (दूतावास) में विस्फोटक से भरे एक वाहन को रोकते हुए अपनी जान गँवा दी थी।

पंजाब के पठानकोट से ताल्लुक रखने वाले अजय सिंह पठानिया और हिमाचल प्रदेश के मंडी के रहने वाले कॉन्स्टेबल रूप सिंह ने 7 जुलाई, 2008 को काबुल में भारतीय दूतावास में बहुत सी जानें बचाने के लिए अपनी परवाह नहीं की।

बिज़नेस स्टैण्डर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस दिन पठानिया और सिंह सुबह 8:30 के आस-पास दूतावास के गेट पर ड्यूटी पर थे। जब उन्होंने देखा कि ब्रिगेडियर आर.डी मेहता और काउंसलर वी. वेंकटेश्वरा राव की गाड़ी दूतावास में प्रवेश कर रही थी। लेकिन तभी उनकी नजर इस गाडी के पीछे आ रही एक सफेद टोयोटा कोरोला कार पर पड़ी।

बॉम्बिंग साईट (स्त्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स)

पठानिया और सिंह अफगानिस्तान में कुछ साल से ड्यूटी कर रहे थे, इसलिए वे आत्मघाती हमलावरों और उनके तरीकों से भली-भांति परिचित थे। उन्होंने तुरंत भांप लिया कि उस सफ़ेद कार में विस्फोटक और कोई आत्मघाती हमलावर हो सकता है।

पठानिया ने चिल्लाकर सिंह को चेतावनी दी और कार को रोकने का इशारा किया और सिंह ने भी तुरंत उस पर प्रतिक्रिया की। ऐसे में यह कार, आगे वाली कार में घुस गयी और एक तेज धमाका हुआ, जिसमें ब्रिगडियर और काउंसलर की मौत हो गयी।

कीर्ति चक्र (स्त्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स)

इस हादसे में पठानिया और सिंह ने भी अपनी जान गँवा दी। लेकिन उनकी इस तेजी और सूझ-बुझ ने दूतावास के सभी कर्मचारियों को बचा लिया। इसीलिए उनके बलिदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित करने का फैसला किया है।

द बेटर इंडिया इन सैनिकों के हौंसले व हिम्मत को सलाम करता है!

मूल लेख: विद्या राजा 


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