भारत में अधिकांश घरों में आपको बाइक मिल जाएगी। आज के समय में परिवहन का यह सबसे सस्ता साधन है। ऐसे में जब आपके पास बाइक है तो इसकी सही देखभाल भी आपको ही करनी होगी। बाइक की जब भी बात होती है तो साथ में हम उसके कवर को लेकर भी चर्चा करते हैं। धूप-पानी से बचाव के लिए बाइक को ढंक कर रखने का चलन है। आज हम आपको एक ऐसे बाइक कवर स्टार्टअप के बाइक ब्लेज़र के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने एक अनोखा बाइक कवर डिजाइन किया है।
‘बाइक ब्लेज़र’ के फाउंडर हैं 27 वर्षीय केशव राय, जिन्होंने अपने माता-पिता, रेनू राय और राकेश कुमार के साथ मिलकर 2016 में इस कंपनी की नींव रखी थी। केशव कहते हैं कि उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही इस अनोखे बाइक कवर पर काम शुरू किया था। तब से लेकर अब तक बाइक कवर के डिज़ाइन में कई बदलाव आये हैं और साल 2018 में उन्होंने आखिरकार यह सेमीऑटोमैटिक बाइक कवर लॉन्च किया। यह कवर आज न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी ग्राहकों के बीच भी अपनी जगह बना रहा है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए केशव ने अपने इस सफर के बारे में बताया।
कुछ अलग करने की चाह में हुए है असफल भी
केशव कहते हैं कि वह पढ़ाई में सामान्य छात्र रहे हैं। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई पूरी करके मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। लेकिन जब वह कॉलेज पहुंचे तो उन्हें एक सेमेस्टर में ही समझ आ गया कि यह वह इंजीनियरिंग नहीं है, जो वह करना चाहते हैं। उन्होंने बताया, “मुझे हमेशा से ही साइंस मॉडल बनाना अच्छा लगता था। कभी मैं इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर एक्सपेरिमेंट करता तो कभी मैकेनिकल। इसलिए लगने लगा कि मुझे कुछ ऐसा ही करना चाहिए जहां यह सब करने का मौका मिले। लेकिन कॉलेज में सिर्फ थ्योरी पर फोकस था। इसलिए मैं पढ़ाई से ज्यादा अपने आइडियाज पर काम करने लगा।”
इंजीनियरिंग के दूसरे साल से ही उन्होंने अपने आइडियाज पर काम करना शुरू कर दिया। केशव कहते हैं कि वह हमेशा अपने दोस्तों के साथ बैठकर कुछ न कुछ चर्चा करते रहते थे। “एक चर्चा के दौरान किसी ने कहा कि अगर हम कॉलेज न आकर, कहीं से भी क्लास ले सकें तो कितना अच्छा रहेगा। उनकी इस बात से आईडिया आया कि क्या वर्चुअल कॉलेज सेटअप नहीं किया जा सकता? हमने इस पर काम भी शुरू कर दिया। पॉकेट मनी इकट्ठा करके वेबसाइट डेवलप किया, लेक्चर रिकॉर्ड करने शुरू किये और भी बहुत कुछ। लेकिन कुछ कारणवश यह लॉन्च नहीं हो पाया।”
इसके बाद केशव को लगने लगा कि उन्हें अपनी स्किल्स पर काम करने की जरूरत है। उन्हें कॉलेज जाना ज्यादा पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने मैक डी के एक आउटलेट में पार्ट टाइम जॉब शुरू कर दी। “पहला आईडिया फ्लॉप हो गया था। इसके बाद फिर से मैंने एक और आईडिया पर काम करना शुरू किया। मैंने एक ऐसा अलार्म एप बनाने का सोचा जो एक ग्रुप में लोगों को कनेक्ट कर सके और अगर उन लोगों का साथ में कहीं प्लान है या कोई मीटिंग है तो उन्हें एक समय पर साथ में अलर्टस जा सकें। साथ ही, ग्रुप में जुड़े लोगों को पता चल सके कि कौन एक्टिव हो गया है और कौन नहीं। इस आईडिया को मैंने अपने पापा से भी डिसकस किया और उन्हें यह पसंद आया,” उन्होंने बताया।
एप्लीकेशन की डेवलपमेंट के लिए केशव और उनके परिवार ने एक लाख रुपए से ज्यादा इन्वेस्टमेंट की थी। लेकिन यह बन नहीं पाई और उन्हें काफी नुकसान हुआ। केशव कहते हैं कि इसके बाद उन्हें खुद पर संदेह होने लगा। उन्हें लगने लगा कि वह कहीं आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
मेट्रो स्टेशन की पार्किंग में मिला आईडिया
केशव ने बताया कि वह अपनी इंजीनियरिंग के आखिरी साल में थे और उनके आइडियाज फेल हो चुके थे। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी ठीक से नहीं की थी। इसलिए उन्हें लगने लगा था कि क्या वह कभी कुछ कर पाएंगे। उन्होंने कहा, “मैं बहुत निराश था और इसलिए अपना बैग पैक करके घर से निकल पड़ा। मैंने घर पर कहा कि मैं दोस्त के घर रहूंगा। लेकिन मैं दोस्त के घर जाने की बजाय दिल्ली की सड़कों पर था। दो-तीन मैंने ऐसी ही गुजारे, कभी पार्क में सोया तो कभी किसी मंदिर में।”
लेकिन तीसरे दिन वह कौशाम्बी मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठे हुए थे। उन्होंने देखा कि पार्किंग में बहुत से बाइक खड़ी हैं। “तभी एक बंदा वहां आया और अपनी बाइक को साफ़ करने के लिए कपड़ा ढूंढ़ने लगा। उसे अपनी बाइक में कपड़ा नहीं मिला तो साथ खड़ी एक बाइक पर रखा कपड़ा लिया और उससे अपनी बाइक साफ़ की। उसने वह कपड़ा वापस भी नहीं रखा बल्कि अपनी बाइक में रखकर चलता बना। पहले मुझे बहुत हंसी आई और फिर लगा कि ऐसा तो हर दूसरा इंसान करता होगा तो क्या इस परेशानी का कोई हल नहीं हो सकता,” उन्होंने कहा।
केशव को आईडिया मिल चुका था और वह तुरंत अपने घर लौट गए। घर लौटकर उन्होंने अपने परिवार से एक बार फिर आईडिया डिसकस किया और उनके माता-पिता ने उनका साथ दिया। सबसे पहले उन्होंने खुद बाइक कवर डिज़ाइन किया, जिसे बाइक पर लगाना आसान हो और साथ ही, इसे कोई चोरी न कर सके। कई महीनों की मेहनत के बाद उन्होंने ‘बाइक ब्लेज़र’ बनाया और प्रगति मैदान में लगे एक इनोवेशन मेला में इसे प्रदर्शित किया। यह उनके कवर का पहला मॉडल था, जो सेमी-ऑटोमेटिक था लेकिन सिर्फ बाइक की सीट और टंकी को कवर करता था।
ग्राहकों के फीडबैक के आधार पर उन्होंने इसका दूसरा मॉडल बनाया, जिसमें कवर बाइक के स्पीडोमीटर को भी ढकता था। उन्होंने कहा कि उनको इस कवर के लिए ऑर्डर मिले, लेकिन यह इतना पॉपुलर नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने तय किया कि वह पूरी बाइक को ढकने के लिए कवर बनाएंगे।
विदेशों में भी जा रहा है बाइक ब्लेज़र
साल 2018 में उन्होंने बाइक ब्लेज़र का फाइनल मॉडल लॉन्च किया। उनके इस मॉडल को लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली। उन्होंने बताया, “हमारे बाइक कवर के दो पार्ट हैं- एक डिवाइस और दूसरा कवर। डिवाइस सेमीऑटोमेटिक है, जिसके अंदर कवर होता है। इसे हैंडल की मदद से बाहर निकाल कर बाइक पर चढ़ाया जाता है और फिर हैंडल की मदद से ही यह वापस डिवाइस में आ जाता है। इस डिवाइस को बाइक के साड़ी गार्ड पर आसानी से फिट किया जा सकता है और इसमें एंटी-थेफ़्ट बोल्ट है। जिस कारण इसके चोरी होने का डर नहीं है।”
इस कवर को अच्छी गुणवत्ता के कपड़े से बनाया गया है, जो हर तरह के मौसम में बाइक को बचाता है। इस कवर को बाइक पर चढ़ाने के लिए मुश्किल से 30-40 सेकंड का समय लगता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने इस कवर का डेमो वीडियो यूट्यूब पर पोस्ट किया था, जिसके बाद एक विदेशी ने इसे देखा और उन्हें एक बड़ा ऑर्डर दिया। साल 2018 के अंत में उन्होंने लैटिन अमेरिका (पेरू) में बाइक ब्लेज़र एक्सपोर्ट किए। केशव कहते हैं कि उन्होंने जो भी फंडिंग की, सब अपने घर से की। उनके परिवार ने ढाई लाख रुपए की इन्वेस्टमेंट से काम शुरू किया था।
आज उनका टर्नओवर एक करोड़ रुपए से ज्यादा है और वह 75000 बाइक कवर बेच चुके हैं। उन्होंने न सिर्फ भारत में बल्कि श्रीलंका और पेरू जैसे देशों में भी बाइक कवर एक्सपोर्ट किए हैं।
उनके एक ग्राहक कौशिक बताते हैं कि कवर का मटीरियल अच्छी गुणवत्ता का है और वाटर प्रूफ है। साथ ही, इसका डिवाइस भी वजन में हल्का है और इसे आसानी से बाइक पर लगाया जा सकता है। बाइक पर इस कवर को चढ़ाना और उतारना बहुत ही आसान है।
केशव कहते हैं कि आईडिया सोचना आसान है लेकिन इस पर काम करके इससे बिज़नेस खड़ा करना बहुत मुश्किल।
केशव अपनी कामयाबी का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं, जिन्होंने हमेशा उन पर विश्वास किया। उन्होंने अपने इस अनोखे प्रोडक्ट का पेटेंट भी करा लिया है। उनके इस बाइक कवर की कीमत 700 रुपए से 900 रुपए तक है।
आठ महीने की वारंटी के साथ मिलने वाले इस बाइक कवर का डिवाइस खराब होने पर आप कंपनी से कुछ पैसे देकर रिप्लेस करा सकते हैं। इसी तरह अगर डिवाइस ठीक है और कवर को किसी ने फाड़ दिया है तो आप सिर्फ कवर ले सकते हैं। केशव कहते हैं कि आगे उनकी योजना गाड़ियों के लिए इस तरह के कवर डिज़ाइन करने की है।
अगर आप उनके इस बाइक कवर को खरीदना चाहते हैं तो उनकी वेबसाइट देख सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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