गणेश विसर्जन के बाद टूटी हुई मूर्तियों को इकट्ठा कर विसर्जित कर रहें हैं मुंबई के चीनू क्वात्रा

मुंबई के एक एनजीओ 'आरणा फाउंडेशन' ने एक मुहीम चलाई है। जिसके जरिये वे स्वयंसेवकों की मदद से मुंबई में बीच पर विसर्जन के मूर्ति के टुकड़ों को इकट्ठा करते हैं। एक हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवको ने समुद्र तटों को साफ करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता चिनु क्वात्रा के इस एनजीओ के साथ हाथ मिलाया।

र साल हम बड़े ही धूमधाम से बप्पा को अपने घर लेकर आते हैं, लेकिन उनकी विदाई के बाद हम देखते तक नहीं हैं कि उनका क्या हाल हुआ है!

लेकिन इस बार मुंबई के एक एनजीओ ‘आरणा फाउंडेशन’ ने एक मुहीम चलाई है, जिसके जरिये वे स्वयंसेवकों की मदद से मुंबई के समुद्र तट पर विसर्जन किये जाने के बाद बाप्पा की मूर्तियों के टुकड़ों को इकट्ठा करते हैं।

एक हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवको ने समुद्र तटों को साफ करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता चिनु क्वात्रा के इस एनजीओ के साथ हाथ मिलाया है। उन्होंने जुहू से 35 मूर्तियां और दादर से 15 मूर्तियां इकट्ठी की। इन टूटी हुई मूर्तियों को ठीक से विसर्जित करने के लिए बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के कर्मियों को सौंप दिया गया।

क्वात्रा जो कि स्वयं गणपति के भक्त हैं, ने कहा, “गणपति खुशी लाते हैं, लेकिन यह बहुत दुखद है कि त्योहार के बाद हम अपने भगवान के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। मैं गणेश जी का भक्त हूँ और समुद्र तट पर अपने भगवान की मूर्तियों को इस तरह टुकड़ों में देखकर मुझे बहुत दुःख होता है। खासकर कि पीओपी से बनी मूर्तियां। उनके हाथ, पैर, और सूंड सब अलग- अलग टुकड़ों में पड़े होते है।”

उन्होंने आगे कहा, “जैसे हम विसर्जन करते हैं वैसे ही बहुत ध्यान से हम उनकी मूर्तियों के टुकड़ों को इकट्ठा कर बीएमसी को सौंप देते हैं।”

ये मूर्तियां समुद्री जीवों के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। इसका पर्यावरण पर बहुत गहरा और बुरा असर होता है। हालांकि, यह अच्छी बात है कि बहुत से लोग समय की गंभीरता को समझते हुए इको-फ्रेंडली गणेश चतुर्थी मनाने पर जोर दे रहे हैं।

क्वात्रा और बाकी सभी स्वयंसेवकों की यह पहल न केवल हमारे समुद्र तटों को साफ़ करने में मदद कर रही है बल्कि बप्पा के प्रति हमारी आस्था का भी मान रख रही है। इसके अलावा बहुत से महानगरों में आर्टिफिशल तालाब बनाये गए हैं जहां आप गणपति विसर्जन कर सकते हैं। इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा।

मूल लेख: तन्वी पटेल

संपादन – मानबी कटोच


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