बॉटनी प्रोफेसर ने डिग्री को किया सार्थक, 120 छात्र करने लगे हैं बागवानी

Jaya bharadwaj gardening at her home in haryana

हरियाणा के नारनौल की रहनेवाली, जया भारद्वाज ने अपने बागवानी के शौक को अपना काम बना लिया। आज वह कॉलेज में बॉटनी पढ़ाती हैं और छात्रों को बागवानी करना भी सिखाती हैं।

महेंद्रगढ़ (हरियाणा) के नारनौल की रहनेवाली, जया भारद्वाज को बचपन से ही बागवानी का शौक(Gardening As A Hobby) रहा है। पेड़-पौधों के प्रति उनका लगाव इतना ज्यादा था कि उन्होंने अपना करियर भी इसी क्षेत्र में बनाया। उन्होंने महारानी कॉलेज, जयपुर से बॉटनी में ग्रेजुएशन और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी (हरियाणा) से मास्टर्स किया। चूँकि वह बचपन से ही पौधों के प्रकार, उनके बढ़ने के तरीकों  के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहती थीं, इसलिए उन्होंने बॉटनी पढ़ने का पहले से ही मन बना लिया था। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताती हैं, “मैं हमेशा जानना चाहती थी कि कैसे कम जगह में ज्यादा पौधे लगाए जाएं? साथ ही, कैसे पौधों में फलों और फूलों की उत्पादकता को बढ़ाया जाए?” 

उनके घर में हमेशा से एक बागान रहा है। वह बचपन से ही अपने माता-पिता को बागवानी में मदद किया करती थीं। पढ़ाई पूरी करने के बाद, साल 2017 में उन्होंने भिवानी (हरियाणा) के चौधरी बंसीलाल यूनिवर्सिटी में बॉटनी प्रोफेसर के तौर पर नौकरी करना शुरू किया।  

यूनिवर्सिटी में बनाया किचन गार्डन

Gardening As A Hobby taken up by chaudhari bansilal university bhiwani students
हॉबी क्लब

हॉबी क्लब से हुई शुरुआत

जया बताती हैं, “हमारी यूनिवर्सिटी में साल 2019 में हॉबी क्लब की शुरुआत की गई। यह पहली बार था कि हरियाणा की किसी यूनिवर्सिटी में इस तरह का हॉबी क्लब शुरू किया गया।” अलग-अलग 11 विषयों के साथ शुरू किए गए हॉबी क्लब में गार्डनिंग (Gardening As A Hobby) और लैंडस्केपिंग को भी शामिल किया गया था, जिसे जया ही चला रही हैं। जया बताती हैं, “बॉटनी के छात्रों के अलावा भी ह्यूमैनिटी, पॉलिटिकल साइंस और हिंदी जैसे विषयों की पढ़ाई करते बच्चों ने भी हॉबी के रूप में गार्डनिंग को चुना। उन्हें गार्डनिंग सिखाना मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी।”  जया ने यूनिवर्सिटी में ही लैंडस्केपिंग करके, उन्हें गार्डनिंग करना सिखाया। 2019 से फरवरी 2020 के दौरान, उन्होंने अपने यूनिवर्सिटी के एक हिस्से को किचन गार्डन के तौर पर विकसित किया। साथ ही, उन्होंने वहां कई और पौधे भी लगाए हैं, जिससे कैंपस का नज़ारा ही बदल गया। वह बताती हैं, “लॉकडाउन के दौरान भी हमारी हॉबी क्लास चल रही थी। सभी बच्चे ऑनलाइन भी गार्डनिंग सीख रहे थे। मुझे बड़ी ख़ुशी है कि तकरीबन 120 बच्चों ने अपने-अपने घर में गार्डनिंग की और कई पौधे लगाए।”

hobby club in chaudhary bansilal university to learn Gardening As A Hobby
बागवानी करते कॉलेज के बच्चें

फ़िलहाल, जया अपनी यूनिवर्सिटी के नए कैंपस में, वहां के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट और अपनी टीम के साथ मिलकर पेड़-पौधे लगाने का काम कर रही हैं। 

उन्होंने बताया कि एक समान रंग, लंबाई और प्रकृति के पौधों को एक साथ लगाने, पौधों के लिए सही मिट्टी का चयन करने, जैसे बिंदुओं को ध्यान में रख कर गार्डनिंग करनी चाहिए। इस तरह की सही प्लानिंग के साथ अगर गार्डनिंग की जाए, तो पौधे अच्छे से बढ़ते हैं और गार्डन दिखने में ज्यादा सुंदर भी लगता है। 

 घर में भी करती हैं बागवानी 

jaya bharadwaj's garden at haryana

कॉलेज के बाद जितना भी समय मिलता है, उसका उपयोग भी वह बागवानी में ही करती हैं। वह बताती हैं, “मुझे गुलाब बेहद पसंद है। मैं हमेशा अलग-अलग तरह के गुलाब लगाती रहती हूँ। जिसमें मेरे भैया मनु भारद्वाज भी मेरा साथ देते हैं।” फ़िलहाल, आपको इनके टेरेस पर गुलाब की 50 वैरायटी दिख जाएंगी। 

वह इन सारे गुलाब के पौधों की प्रकृति पर रिसर्च का काम भी कर रही हैं। जिससे यह पता चल सके कि कौनसे पौधे में ज्यादा गुलाब आ रहे हैं? कौनसा पौधा किसी भी जलवायु और प्राकृतिक परिस्थिति में आसानी से उग रहा है, ताकि सबसे सस्टेनेबल वैरायटी की पहचान हो सके। 

गुलाब के अलावा उन्होंने डहेलिया, चंपा, एडीनियम सहित कई और फूलों के पौधे भी लगाए हैं। इसके साथ ही, उनके घर पर कई औषधीय पौधे भी लगे हैं। फलों की बात करें तो अनार, मौसंबी, अमरूद के पेड़ भी आपको इनके घर में मिल जाएंगे। वह घर के आंगन में मौसमी सब्जियों के साथ कई पत्तेदार सब्जियां भी उगाती हैं। 

वह बताती हैं, “फलों के लिए हम गमलों का इस्तेमाल करते हैं। जबकि सब्जियों को अगर जमीन में लगाया जाए तो उनकी उत्पादकता बढ़ती है। इसलिए सब्जियों को हम आँगन में उगाते हैं।”

जया आगे भी बायोडाइवर्सिटी को ध्यान में रखकर कई रिसर्च करना चाहती हैं। अगर आप भी गार्डनिंग से जुड़ी कोई जानकारी चाहते हैं, तो आप उनसे उनके मेल jayabhardwaja@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।

संपादन -अर्चना दुबे

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