Placeholder canvas

वैदिक संस्कृत से लेकर रवीश कुमार की लप्रेक तक, जानिए ‘हिंदी भाषा’ की कहानी!

भारत में हर साल 14 सितम्बर को 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है। दरअसल, भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को एक मत से यह निर्णय लिया कि ‘हिन्दी’ भारत की राजभाषा होगी। हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये सन् 1953 से संपूर्ण भारतवर्ष में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

त्तर भारत से ताल्लुक रखते हुए भी हैदराबाद में अपनी मास्टर्स की डिग्री के दौरान पिछले दो सालों में मुझे पता चला कि हमारे देश में ‘हिंदी दिवस’ भी मनाया जाता है। क्योंकि यूनिवर्सिटी में पूरा एक सप्ताह ‘राजभाषा सप्ताह’ के नाम से इसके लिए समर्पित होता था।

इसके अलावा मेरी रूममेट हिंदी विभाग से थीं। तो फिर चाहे हिंदी विषय हो, लेखक या कवि हों या फिर हिंदी की अलग-अलग विधाएँ, हमारी खूब चर्चा होती थी। उनसे हिंदी के बारे में बहुत कुछ जानने-समझने को मिला। उन्होंने मुझे बताया कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं, बल्कि राजभाषा है।

दरअसल, भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को एक मत से यह निर्णय लिया कि ‘हिन्दी’ भारत की राजभाषा होगी। इस महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारतवर्ष में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हिंदी दिवस के बारे में पता चला और साथ ही पता चला हिंदी भाषा का इतिहास। अक्सर हमें बताया जाता है कि मैथिली, मगही, अवधी, बृज, भोजपुरी, कन्नौजी, कुमाउँनी, भोजपुरी आदि सब बोलियां हैं और हिंदी इनकी जननी भाषा है। लेकिन अगर आप साहित्य और इतिहास के पन्ने खंगाले तो आपको पता चलेगा कि ये सभी उत्तर भारत की क्षेत्रीय भाषाएँ हैं।

हर एक सदी में नए बदलावों के बाद आज जो हिंदी हम जानते और बोलते हैं उसका स्वरुप 10वीं शताब्दी एडी से निखरना शुरू हुआ था।

यदि भारत में भाषाओं की बात की जाए तो, तो उन्हें दो समूहों में बांटा जा सकता है – इंडो-आर्य भाषाएँ (हिंदी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती आदि) और द्रविड़ियन भाषाएँ (तेलुगु, कन्नड़, तमिल, मलयालम)!

आर्य भाषाओं में सबसे पुरानी भाषा ‘वैदिक संस्कृत’ (1500 ईसा पूर्व – 800 ईसा पूर्व) है। वैदिक संस्कृत, संस्कृत का एक पुरातन रूप है। संस्कृत का यह रूप प्राचीन भारतीय ग्रंथों वेदों की भाषा है। वैदिक संस्कृत भाषा की उत्पत्ति थी जिसने बाद में इस समूह में हिंदी और अन्य भाषाओं को जन्म दिया।

इसके बाद इसी का एक और रूप ‘शास्त्रीय संस्कृत’ (800 ईसा पूर्व – 500 ईसा पूर्व) आया। शास्त्रीय संस्कृत अभी भी भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है और उत्तराखंड राज्य की आधिकारिक भाषा है। शास्त्रीय संस्कृत उस समय उच्च वर्ग की भाषा मानी जाती थी और आम लोग एक दूसरी भाषा ‘प्राकृत’ (500 ईसा पूर्व – 500 ईस्वी) का इस्तेमाल करते थे, जो उसी युग में वैदिक संस्कृत से जन्मीं थी।

प्राकृत की साहित्यिक भाषा ‘पाली’ थी। प्राकृत और पाली दोनों, स्थानीय भाषा के रूप में बढ़ते रहे और एक और भाषा, ‘अपभ्रंश’ (500 इसवी – 1000 इसवी) को जन्म दिया। आप महाकवि कालिदास के कार्यों में अपभ्रंश भाषा का प्रयोग देख सकते हैं। अपभ्रंश से ही ‘खड़ी बोली’ (900 ईस्वी – 1200 ईस्वी) की उत्पत्ति हुई, जिसका आधुनिक रूप ‘हिंदी’ है।

खड़ी बोली से लोग धीरे- धीरे ‘हिंदुस्तानी’ बोलने लगे। हिंदुस्तानी भाषा हिंदी और उर्दू का मिश्रण है। पर 19वीं शताब्दी में हिंदी और उर्दू को दो अलग-अलग भाषाओं के तौर पर जाना जाने लगा। हिंदी और उर्दू का व्याकरण एक है, लेकिन दोनों की लिपि अलग हैं।

हिंदी भाषा के ज्यादातर शब्द संस्कृत से आये तो उर्दू के शब्द फारसी, अरबी और तुर्की से मिले।

आज हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है हिंदी। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।

भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो में भी हिंदी भाषा बोली जाती है।

आधुनिक हिंदी के भी दो रूप हैं, एक पश्चिमी हिंदी और एक पूर्वी हिंदी।

पश्चिमी हिंदी, जो कि खड़ी-बोली से विकसित हुई है और दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है और पूर्वी हिंदी पर अवधी का प्रभाव है। खड़ी-बोली के विकास में अमीर खुसरो, मीरा बाई, कबीर आदि जैसे संतों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। बाकी अवधी के विकास में तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालांकि, आधुनकि हिंदी का प्रचार व प्रसार 19वीं शताब्दी से शुरू हुआ। साल 1803 में आगरा के लल्लू जी लाल का काव्य-संग्रह ‘प्रेमसागर’ निकला। यह सबसे पुरानी खड़ी बोली क्लासिक्स में से एक है। भोजपुरी बोलने वाले विद्वान पंडित मिश्रा ने कथ-उपनिषद में नचिकेता की प्रसिद्ध कहानी के आधार पर खड़ी बोली में एक हिंदी गद्य ‘नासिकोतोपख्यान’ लिखा।

फिर बनारस के भारतेन्दु हरिश्चंद्र के काम ने इस भाषा को पहचान दिलाई। उनके नाम पर हिंदी लेखन में आज पुरुस्कार भी दिया जाता है। कई अन्य लेखकों ने व्यक्तिगत निबंध, विनोदी और व्यंग्यात्मक लेखन, नाटक, समीक्षाओं का निर्माण किया और साथ ही संस्कृत, बंगाली और अंग्रेजी का अनुवाद हिंदी में किया।

हिंदी की मजबूती की दिशा में एक और महत्वपूर्ण घटना स्वामी दयानद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की नींव थी जिन्होंने हिंदी को अपनाया था, यह उनके प्रचार और प्रचार की भाषा थी।

आधुनिक हिंदी के सबसे महान उपन्यासकार और लघु कथा लेखक मुंशी प्रेम चंद (1880 से 1936) हैं। अगर काव्य की बात की जाये तो मैथिल शरण गुप्त थे। हिंदी पत्रकारिता भी तस्वीर में आई जब कानपुर के पंडित जुगल किशोर ने कलकत्ता से पहले हिंदी साप्ताहिक ‘उदन्त मार्तण्ड’ की शुरुआत की।

19वीं शताब्दी के दौरान कई प्रसिद्ध पत्रकारों ने जैसे रोहतक के बालमुकुंद गुप्ता और मथुरा के प्रभुदयाल पांडे ने कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र हिंदी ‘बंगवासी’ संपादित किया जो उस समय के दो दशकों तक सबसे प्रभावशाली हिंदी समाचार पत्र था ।

कुछ अन्य कवियों ने हिंदी साहित्य के विकास पर एक अलग छाप छोड़ी है। इनमें से सूर्यकांत निराला का उल्लेख किया जा सकता है, जिन्होंने हिंदी में पूरी तरह से एक नया आंदोलन लाया- उन्होंने कविता को तुकबंदी और निश्चित लम्बाई से मुक्त कर दिया।  लेखन की इस विधा को छायावाद कहा गया।

इनके अलावा महान कवियत्री और लेखिका महादेवी वर्मा के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है। जिन्होंने अपनी लेखनी से न केवल भारतवासियों बल्कि बाहर के देशों में भी लोगों का दिल जीता। उनकी लेखनी में क्रन्तिकारी भावना थी।

उनकी समकालीन लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान भी इसी भाषा में लिखती थीं। इसके अलावा सिनेमा में भी हिंदी को जगह मिलनी शुरू हो गयी। साल 1913 में दादा साहेब फाल्के की पहली हिंदी फिल्म ‘राजा हरीश चंद्र’ के बाद 1931 में पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ आयी। यहां से हिंदी सिनेमा का सफर शुरू हो गया।

 

और इस तरह आधुनिक हिंदी को उसका रूप मिला। आज हिंदी उन सात भाषाओं में से एक है जिसका उपयोग वेब एड्रेस बनाने में किया जा सकता है। हिंदी की स्क्रिप्ट फोनेटिक (शब्द उच्चारण) पर आधारित है। यह जैसे बोली जाती है, वैसे ही लिखी भी जाती है।

खैर, आजकल भारत में खासकर की युवाओं द्वारा मानक हिंदी न बोलकर हिंगलिश (हिंदी व इंग्लिश का मिश्रण) या फिर हिंदुस्तानी (हिंदी व उर्दू का मिश्रण) भाषा बोली जाती है। यह अब केवल बोल-चल की भाषा न रहकर लेखन-शैली भी हो गयी है।

यदि आप मशहूर पत्रकार रवीश कुमार जी द्वारा शुरू की गयी ‘लप्रेक’ सीरीज या फिर अनुराधा बेनीवाल की ‘आज़ादी मेरा ब्रांड’ पढेंगें तो आपको समझ में आएगा कि प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी भाषा और इस भाषा में कितना अंतर है।


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X