सॉफ्टवेर इंजिनियर बना किसान, अब उगाते है सिर जितना बड़ा अमरुद और कमाते हैं 10 लाख प्रति एकड़!

हरियाणा के जींद जिले के संगतपुरा गांव में जन्मे नीरज किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। कंप्यूटर इंजीनियर की डिग्री लेने के बाद नीरज ने अच्छी कंपनी में काम किया। लेकिन साल 2004 में नीरज ने अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से खेती करने का निश्चय किया। अब वे 'जंबो' अमरुद की खेती से लाखों में कमा रहे है।

नीरज ढांडा शायद जिंदगीभर सॉफ्टवेयर इंजीनियर ही रह जाते अगर उन्होंने रायपुर की वीएनआर नर्सरी का दौरा नही किया होता तो, जहां उन्होंने पहली बार ‘जंबो’ अमरुद देखा।

हरियाणा के जींद जिले के संगतपुरा गांव में जन्मे नीरज किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। हालांकि उनके परिवार में कोई भी नहीं चाहता था कि नीरज खेती करें लेकिन नीरज को बचपन से लगता था कि वे अच्छी खेती कर सकते हैं।
“मैं हमेशा सोचता था कि कैसे किसान एक बीज़ से सैकड़ों बीज़ बना देते हैं। इससे ज्यादा फायदे वाला बिज़नेस कहीं देखा है? लेकिन उस समय मैं बहुत छोटा था यह समझने के लिए कि आखिर क्यों किसान दिन प्रतिदिन गरीब हो रहे हैं,” नीरज ने बताया।

कंप्यूटर इंजीनियर की डिग्री लेने के बाद नीरज ने गुरुग्राम और फरीदाबाद की अच्छी कंपनियों में सॉफ्टवेयर डेवलपर के तौर पर काम किया।

उनका परिवार उनके खेती करने के खिलाफ था, इसलिए नीरज नौकरी में ही अपना मन लगाते रहे। लेकिन, उनकी दिलचस्पी इसमें नही थी और इसीलिए जो सॉफ्टवेयर फर्म उन्होंने शुरू की थी वह नही चली। साल 2004 में नीरज ने आख़िरकार अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से खेती करने का निश्चय किया।

“अपने कॉलेज के दिनों में, मैं महाबलेश्वर से स्ट्रॉबेरी के कुछ पौधे लाया था और उन्हें अपने फार्म में बो दिया। उत्पादन भी अच्छा हुआ और मैं अपने फार्म को बढ़ाने में अपना दिमाग लगाना चाहता था न कि अपने ज्ञान को सैलरी के लिए बेचने में,” नीरज ने कहा।

शुरू में उन्होंने पारम्परिक दाल और सब्जियों की खेती की और अलाहाबाद सफ़ेदा अमरुद भी बोये।

उनकी फसल की गुणवत्ता बाजार में मिलने वाली दूसरी फसलों से अच्छी थी। क्योंकि नीरज ने जैविक खेती की थी। लेकिन जब वे अपनी फसल को बाजार में लेकर गए तो उन्हें पता चला कि किसान को मूल्य तय करने का अधिकार नहीं होता है।

नीरज ने कहा कि वे अपने अमरुद 15 रूपये किलो बेचेंगे, लेकिन बिचौलिए ने बताया कि वे केवल 7 रूपये प्रति किलो दे रहे हैं और उससे भी इसी दाम में खरीद सकते हैं। लेकिन नीरज नही माने तो बिचौलिए ने उनसे कुछ नही खरीदा। और अमरुद केवल 1 या 2 दिन ही सही रहते हैं, ऐसे में नीरज को काफी नुकसान हुआ। क्योंकि बाद में उन्हें बचे-कुचे अमरूदों को 3 रूपये किलो की दर से बेचना पड़ा।

“उस दिन मेरे सवालों का जबाब मिला कि क्यों किसान गरीब होते हैं। एक किसान इतनी मेहनत करता है, बीज़ खरीदता है और दूकानदार के बताए दाम पर उर्वरक लेता है, खेत में मजदूरी भी करता है और ट्रांसपोर्ट के लिए भी पैसे देता है। और बिचौलिए, जिन्होंने कुछ भी नहीं किया वे उसकी फसल का दाम तय करते हैं,” नीरज ने कहा।

इस घटना के बाद नीरज को समझ में आया कि किसान तभी आगे बढ़ सकते हैं अगर वे बिचौलिये को छोड़ खुद लोगों तक अपनी फसल पहुंचाए। इसलिए बिचौलियों के लाख विरोध करने पर भी नीरज ने बाजार में अपना एक काउंटर खोल लिया।

“हालांकि, मुझे पहले तय किया हुआ मूल्य नहीं मिला, लेकिन जब मैंने सीधा ग्राहकों को बेचना शुरू किया तो मुझे कम से कम 11 या 12 रूपये प्रति किलो मिले,” नीरज ने बताया।

नीरज ऐसे फल की तलाश में भी थे जो जल्दी खराब ना हो।

और उनकी तलाश खत्म हुई वीएनआर नर्सरी पर, जब उन्होंने अमरुद की वीएनआर-बिही किस्म देखी। जो वजन में आधे किलो से भी ज्यादा थे और ये 15 दिन तक खराब भी नही होते।

वीएनआर-बिही को उगाने वाले नारायण चावड़ा छत्तीसगढ़ के रायपुर में गोमची गांव से हैं। उन्होंने थाईलैंड अमरुद को देखा और उसके आकार, स्वाद, बीज़ कम होना और लंबे समय तक खराब न होने के गुणों से काफी प्रभावित हुए।

साल 1996 में ही चावड़ा ने इस अमरुद के लिए भारतीय मौसम के अनुरूप ब्रीडिंग प्रोग्राम शुरू किया था। उन्होंने अब तक कई फसलों और फलों की वैरायटी उगाई हैं।

नीरज को इस जंबो अमरुद ने प्रभावित किया और उन्होंने तुरंत इसके 3000 पौधे खरीद लिए और उन्हें जींद में अपने 7.5 एकड़ खेत में से 3 एकड़ में लगा दिया।

पहला साल थोड़ा चुनौतीपूर्ण था क्योंकि मौसम में बदलाव के कारण बहुत से पौधे खराब हो गए। हालांकि, यह भी नीरज के लिए एक अनुभव था। धीरे-धीरे नीरज ने सीखा कि इस पौधे की देखभाल कैसे होती है और कैसे इस अमरुद को रखा जाता है, वह भी तब से जब वे बहुत छोटे होते हैं।

नीरज बताते हैं, “आप शाखा पर ज्यादा वजन नही रहने दे सकते हैं। किसी भी शाखा का वजन 2 किलो से ज्यादा नही होना चाहिए। तो अगर ज्यादा भारी अमरुद चाहिए तो शाखा पर सिर्फ दो सबसे अच्छे फूलों को रखे और बाकी को झाड़ दें। तो एक पेड़ से आपको 80 से 100 किलो अमरुद मिल सकते हैं और हर एक अमरुद का वजन 800 ग्राम से 1 किलो होता है।”

नीरज ने यह भी बताया कि इस अमरुद को बहुत मेहनत और समर्पण की जरूरत होती है। जब ये अमरुद केवल मटर के दाने के आकार के होते हैं तभी से इन्हें धुंध से बचाने वाली पॉलिथीन और अख़बार से ढककर रखना होता है और फिर अमरुद को फोम के कवर में रखें।

जब तक कि अमरुद तोड़ने लायक न हो जाये, किसान को इन्हें समय-समय पर देखते रहना चाहिए और कवर को मौसम के अनुसार बदलते रहना चाहिए।

वे बताते हैं, “हम शुरू से ही फल पर नीम की पत्तियों से बना एक स्प्रे करते हैं। कवर भी फलों को बाहरी कीड़े, नमी आदि से बचाता है।”

सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहे नीरज के लिए इन अमरूदों की मार्केटिंग करना मुश्किल नहीं रहा।

नीरज ने अपने फल बाजार में नहीं बेचे बल्कि अपनी वेबसाइट, ‘डोर नेक्स्ट फार्म’ के जरिये आर्डर लेकर ग्राहकों के घर तक पहुंचाए।

अब नीरज के पास 6 किसानों की टीम है और उनके दोस्त राजेश ने भी उनके साथ काम करना शुरू किया है।

नीरज कहते हैं कि वे इन अमरूदों की फसल से लगभग 10-12 लाख रूपये प्रति एकड़ कमा लेते हैं। साथ ही वे गांव के युवाओं को भी खेती के गुर सिखाते हैं।

जब हमने उनके काम की सराहना की तो उन्होंने कहा कि इसमें मेरा ही फायदा है क्योंकि जैसे-जैसे समुदाय बढ़ेगा तो हमारे पास अपनी प्रोसेसिंग यूनिट होगी और हम दूसरे उत्पाद भी साथ में ले पाएंगे।

“इन दिनों, जब कोई बुजुर्ग व्यक्ति मेरे फार्म में आता है तो उनके पोते-पोती उनके साथ आते हैं और मुझे पूछते हैं कि वे कैसे अपने पुरखों की जमीन को इस्तेमाल में लाकर कृषि से लाभ कमा सकते हैं। यही वह बदलाव है जो मैं देखना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है कि आने वाली पीढ़ी जैविक खेती ही चुनेगी। और साथ ही बिचौलिया रहित बाजार बनाएंगे न कि अपने पूर्वजों की तरह शिक्षा और जागरूकता के अभाव में परेशानियां झेलेंगे,” नीरज ने कहा।

आप नीरज से dhandaneeraj13@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेख: मानबी कटोच


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X