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भला घूमना और फिल्में देखना भी किसी का काम हो सकता है? यही तो करता है इस जोड़ी का स्टार्टअप

Bengaluru Couple's Startup

बेंगलुरु के बेंजामिन और आइवी ने IT की नौकरी छोड़ एक मज़ेदार स्टार्टअप शुरू किया है, जिसमें उनका काम है सिर्फ घूमना और फ़िल्में देखना। ये दोनों फेसबुक, नेटफ्लिक्स, वायकॉम 18, कलर्स, एक्सेल एंटरटेनमेंट जैसी कंपनी की फिल्मों, विज्ञापनों और वेब सीरीज़ के लिए लोकेशन तलाशते हैं।

2017 में पुणे का येरवडा जेल तब काफी चर्चा में आ गया, जब अभिनेता फरहान अख्तर ने अपनी फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ का एक गाना जेल के अंदर, 4000 कैदियों की मौजूदगी में लॉन्च किया था। शायद यह पहली घटना थी, जब देश के इस हाई-सिक्योरिटी वाले जेल में, फिल्म से जुड़ी किसी गतिविधि को करने की मंजूरी दी गई थी।  

येरवडा जेल, जहां हाई-प्रोफाइल अपराधियों को रखा जाता है, वही जेल है जहां 26/11 के आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी दी गई थी। देश की एक ऐसा जेल जहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम होते हैं, वहां किसी फिल्म का म्यूजिक वीडियो लॉन्च करना और इसके लिए अनुमति लेना वाकई एक मुश्किल काम था। इस मुश्किल काम को आसान बनाया, बेंगलुरु के स्टार्टअप Filmapia के फाउंडर्स बेंजामिन और आइवी, और उनकी टीम ने।   

Filmapia फिल्मों, विज्ञापनों और वेब सीरीज़ की शूटिंग के लिए, सही लोकेशन खोजने का काम करता है। लखनऊ सेंट्रल के इस म्यूजिक लॉन्च से तक़रीबन तीन महीने पहले, फिल्म निर्माताओं ने Filmapia से संपर्क किया था। जेल में म्यूजिक लॉन्च की अनुमति लेने के लिए Filmapia की टीम ने बहुत मेहनत की और आख़िरकार उन्हें अनुमति मिल गयी।  

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येरवडा जेल में लखनऊ सेंट्रल की टीम

इस बेहद मुश्किल काम को मुमकिन कर दिखाने के बाद, बेंजामिन और आइवी को तस्सली हो गयी कि अपनी IT की नौकरी छोड़कर, इस स्टार्टअप को शुरू करके उन्होंने कोई गलती नहीं की है। इसके बाद से ही, उन्हें और ज्यादा काम मिलना भी शुरू हो गया।  

किसी भी सामान्य, फिल्मों के शौकीन दंपति की तरह, बेंजामिन और आइवी को भी नई फ़िल्में देखना और उनके बारे में चर्चा करना पसंद था। लेकिन उन्होंने दूसरों से विपरीत, एक कदम आगे बढ़कर Filmapia की शुरुआत की और अपने मनपसंद काम को ही अपनी कमाई का जरिया बना लिया।  

जब उन्होंने शुरुआत की थी, तब उनके पास मनोरंजन उद्योग का कोई अनुभव नहीं था और न ही कोई और संपर्क था। बावजूद इसके, उन्होंने अब तक 170 प्रोजेक्ट पूरे कर लिए हैं। साथ ही, उनके क्लाइंट लिस्ट में फिल्म मेकिंग छात्रों से लेकर फेसबुक, नेटफ्लिक्स, वायकॉम 18, कलर्स, एक्सेल एंटरटेनमेंट जैसे 100 नाम शामिल हैं।  

हालांकि, आइवी बताती हैं कि उनका कॉर्पोरेट जगत में काम करने का अनुभव भी बेकार नहीं गया। वह कहती हैं, “हमने तक़रीबन दो दशकों तक कॉर्पोरेट जगत में काम किया है, जिसकी वजह से हम दोनों, कई लोगों को जानते हैं और हमारा एक मजबूत नेटवर्क भी है। हमारे उसी नेटवर्क की वजह से हमें, रिसॉर्ट्स, अलग-अलग संस्थानों और निजी संपत्तियों में शूटिंग की अनुमति मिलने में आसानी होती है। साथ ही, हम अनुमति मांगते समय उस जगह के मालिकों की समस्याओं का भी ध्यान रखते हैं।” 

द बेटर इंडिया ने Filmapia के फाउंडर्स से बात की और जाना कि उनका एक सिने-प्रेमी होने से लेकर, फिल्मों की कहानी पढ़ने और उसके लिए सूंदर लोकेशन की तलाश करने के लिए, भारत सहित दुनियाभर की सैर करने तक का यह सफर कैसा रहा।  

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बेंजामिन और आइवी

एक बिल्कुल नई शुरुआत  

बेंजामिन, मायानगरी मुंबई से ताल्लुक रखते हैं। आइवी, बेंगलुरु से हैं जो एक IT हब है। बेंजामिन अपनी IT की नौकरी के लिए बेंगलुरु चले गए थे, तब से इस दंपति ने बेंगलुरु में ही रहने का फैसला किया। इस दंपति को बचपन से ही, हिंदी के साथ लोकल भाषाओं की भी फिल्में देखने का शौक था। बेंजामिन कहते हैं,”उस समय मनोरंजन के काफी कम विकल्प हुआ करते थे, इसलिए हम हर दिन फिल्म देखा करते थे। शादी के बाद भी, हम मिलकर अलग-अलग देशों की फिल्में देखा करते थे। हम फिल्मों में दिखनेवाले सुंदर लोकेशन का पता लगाते कि कौनसा सीन कहां फिल्माया गया है। हमने जल्द ही, इन जानकारियों को अपने ब्लॉग के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना शुरू किया। किसी फिल्म की सुंदर शूटिंग लोकेशन या फिल्मों में दिखाए गए मशहूर होटल्स और जगहों को करीब से देखने के लिए, हमने इन सभी जगहों पर घूमना शुरू किया। रामनगर का चट्टानी इलाका, जहां ‘शोले’ (1975) फिल्म की शूटिंग की गयी थी और कोलार, जहां ‘कयामत से कयामत तक’ (1988) की शूटिंग हुई थी। इन दोनों जगहों पर लिखा गया हमारा ब्लॉग, लोगों को खूब पसंद आया। इसके बाद हमने एक ट्रेवल बिज़नेस शुरू करने के बारे में सोचा, लेकिन हमारा वह प्रयास सफल नहीं रहा।”  

2014 में, एक विज्ञापन फिल्म निर्माता ने उन्हें उनकी वेबसाइट पर संपर्क किया और उन्हें शूटिंग के लिए एक ऐसी जगह खोजने को कहा, जहां चट्टाने भी हो और लंबी घास भी।  

आइवी कहती हैं, “उस समय हम काफी हैरान थे। लेकिन, साथ ही बहुत उत्साहित भी हुए। हमने कर्नाटक में नंदी पहाड़ियों के पास, उनके पसंद की जगह ढूंढ निकाली। हमने वहां शूटिंग की अनुमति ली और सबकुछ तय करके शूटिंगवाले दिन वहां पहुंच गए। उस शूटिंग का मॉडल एक छोटा बच्चा था, जिसे उस दिन कुछ मीठा खाने का मन कर रहा था। हमने आस-पास घूम-घूमकर, उसके लिए गुलाब जामुन का इंतजाम किया था। वह हमारा पहला प्रोजेक्ट था, जो Myntra के लिए था। वह काफी सफल रहा और हमें उनसे और दो प्रोजेक्ट भी मिले। यह एक ऐसा काम था, जिसे हम ज़िंदगीभर कर सकते थे। इसलिए, पहले प्रोजेक्ट के बाद, हमने 2017 से अपनी नौकरी के साथ-साथ शूटिंग लोकेशन ढूंढने का काम शुरू कर दिया।” 

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इस दंपति ने फिल्मों की शूटिंग से कई और चीजें भी सीखीं, जैसे शूटिंग के दौरान भीड़ को संभालना, शूटिंग में मौजूद लोगों और इस्तेमाल की हुई संपत्ति की सुरक्षा करना। साथ ही, उनको मनोरंजन जगत की अव्यवस्था को भी समझने का मौका मिला।  

आइवी ने बताया, “कई बार लोकेशन मैनेजर, किसी लोकेशन के लिए ज्यादा कमीशन ले लेते थे और लोकेशन पर मौजूद संपत्ति पर ध्यान भी नहीं देते थे। लेकिन, हम अपने काम को अच्छी तरह से, पेशेवर रूप से करना चाहते थे। हम लोकेशन चार्ज और उसके पेमेंट में पूरी पारदर्शिता रखना चाहते थे। यह काम बहुत भाग-दौड़ वाला था और इसमें काफी रिसर्च और समय की जरूरत भी पड़ती थी। इसलिए, हमने 2018 में अपनी-अपनी नौकरियां छोड़कर Filmapia को औपचारिक रूप से लॉन्च किया।” 

क्या है बिजनेस मॉडल 

Filmapia का बिज़नेस मॉडल, तीन तरीके से काम करता है, जिसमें से एक सबसे आसान तरीका है कि फिल्म निर्माता उनकी वेबसाइट से अपने पसंद की शूटिंग लोकेशन चुन लेता है। वहीं, अगर फिल्म निर्माता के पास समय नहीं है, तो उनकी जरूरतों के मुताबिक कंपनी उन्हें विकल्प भेजती है। हालांकि, उनके सबसे अच्छे लोकेशन, तीसरे तरीके में मिलते हैं।  

इसके बारे में बेंजामिन कहते हैं, “फिल्म निर्माता हमें अपनी स्क्रिप्ट भेजते हैं और हम पात्रों के मुताबिक, उन्हें लोकेशन के विकल्प भेजते हैं। हम कोशिश करते हैं कि सभी लोकेशन उनके बजट के अंदर हो। उदाहरण के लिए, अगर उन्हें बेंगलुरु में समंदर किनारे वाले लोकेशन की जरूरत है, तो हम उन्हें गोवा या मुंबई की बजाए मंगलुरु के समुद्र की तस्वीरें भेजते हैं। हम अक्सर लोकेशन खोजने के लिए, आस-पास ड्राइव पर जाते हैं और कई बार हमें बिल्कुल ही अनदेखी जगहें मिल जाती हैं। इसी तरह हमने कर्नाटक में याना गुफा, मंगलुरु में एक झील के बीच बना एक मंदिर और 400 साल पुराना केरल का एक घर खोज निकाला था।”  

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शूटिंग के लिए नई-नई जगहों की खोज करना, फिल्म निर्माता के लिए काफी फायदेमंद होता है। जैसे एक बार केरल का एक घर जिसमें एक तहखाना था, चेन्नई के एक फिल्म निर्माता को इतना पसंद आया कि उन्होंने उस घर के आधार पर अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट लिख डाली। उन्होंने एक बार बेंगलुरू के पास, एक ऐसा जंगल खोजा जहां कई पुरानी गाड़ियां पड़ी थीं। यह लोकेशन एक एक्शन फिल्म निर्माता की मनपसंद जगह बन चुकी है।  

यह दंपति, किसी भी घर या संस्थान को शूटिंग-लोकेशन के रूप में अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने से पहले, उस संपत्ति के मालिक की सुविधा का भी ध्यान रखते हैं। फिर चाहे वो उनके सवालों का जवाब देना हो, या जरूरी कॉन्ट्रैक्ट तैयार करना हो, या उन्हें नुकसान या मरम्मत के लिए मुवावज़ा देना हो।  

कनाडा में रहने वाले रोहन चंद्रशेखर का कहना है कि उनके लिए बेंगलुरू में अपनी संपत्ति की देखभाल करना एक बड़ी परेशानी थी, लेकिन Filmapia से जुड़ने के बाद उनका यह काम काफी आसान बन गया।  

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रोहन द बेटर इंडिया को बताते हैं, “मेरे पास किरायेदारों को ढूंढ़ने का समय नहीं था, इसलिए मैंने एजेंट की तलाश की, जो मेरे घर का ध्यान रखे। लेकिन जब मैंने Filmapia की वेबसाइट देखी, तो मुझे यकीन नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है। मैंने बेंजामिन से पूछा कि क्या यह सच में है। उन्होंने इस सारी प्रक्रिया को मेरे लिए बहुत आसान बना दिया। मुझे प्रोडक्शन टीम में से किसीसे बात करने की जरूरत नहीं पड़ती, मैं अब बस, फाउंडर्स से ही बात करता हूँ।” 

रोहन की ही तरह कई और लोग भी Filmapia से जुड़े हुए हैं, जिनके घरों को यह कंपनी शूटिंग लोकेशन के रूप में इस्तेमाल करती है। आइवी बताती हैं कि उन्होंने अपनी कंपनी की मार्केटिंग पर शायद ही कुछ खर्च किया हो, या किसी प्रोजेक्ट को पाने में किसी की कोई मदद ली हो। उनका कहना है कि कंपनी का विकास, बिल्कुल ऑर्गेनिक तरीके से हुआ है, जिसकी वजह से कंपनी के समय और पैसों की भी बचत हुई है।  

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बेंजामिन कहते हैं, “हमारे किसी भी क्लाइंट को खुद आकर शूटिंग लोकेशन देखने, या किसी लोकेशन में उस जगह के मालिक से बात करने या उनको समझाने की जरूरत नहीं पड़ती। अपने क्लाइंट के लिए किया गया हमारा होमवर्क, उनका खर्च 50 प्रतिशत तक कम कर देता है। वहीं, हमारा कमिशन उनकी जरूरतों पर निर्भर करता है।” 

एक बार क्लाइंट और लोकेशन के मालिक के बीच सहमति होने के बाद, कंपनी सभी डायरेक्टर्स के साथ मीटिंग करती है। इस मीटिंग में डायरेक्टर ऑफ़ फोटोग्राफी और लाइट टीम के साथ मिलकर कैमरा एंगल्स, प्रॉप्स, लोकेशन की लाइट जैसी कई जरूरी चीज़ें चेक की जाती है। साथ ही, वे दोनों कोशिश करते हैं कि वह शूटिंग के दौरान भी वे वहां मौजूद रहे।   

इस दंपति को काम करते समय कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, जैसे मिसकम्युनिकेशन, प्रॉपर्टी का नुकसान, कई बार शूटिंग कैंसल हो जाना आदि। हालांकि, वे इन सारी चुनौतियों से कुछ न कुछ सीखते हैं और उस सीख का भविष्य में, और बेहतर योजना तैयार करने में इस्तेमाल भी करते हैं।  

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Filmapia अपने काम के माध्यम से पर्यटन को भी बढ़ा रहा है, जिससे स्थानीय समुदायों को फायदा पहुंच रहा है। 

आइवी कहते हैं, “भारत की अनदेखी जगहों को बड़े परदे पर दिखाने से, वहां का पर्यटन भी विकसित होता है। इससे हम उम्मीद करते हैं कि उस जगह के स्थानीय समुदायों के जीवन में भी बदलाव आएगा। जैसे ‘3 इडियट्स’ (2009) में दिखाई गयी पैंगोंग त्सो झील से, लद्दाख में पर्यटन को काफी बढ़ावा मिला। इसके अलावा, कभी-कभी फिल्म निर्माता भाषा की दिक्क्तों के कारण बाहर कहीं शूटिंग करने से हिचकिचाते हैं, लेकिन हम इसे कम करने की कोशिश करते हैं और कई क्षेत्रीय फिल्म निर्माताओं को बाहर शूटिंग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।” 

हालांकि फ़िलहाल महामारी के कारण उनका काम थोड़ा कम हो गया है, लेकिन बेंजामिन और आइवी भविष्य में OTT (Over The Top) फिल्म निर्माताओं के साथ मिलकर कुछ नया करने की योजना पर काम कर रहे हैं।  

Filmapia के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

मूल लेख – गोपी करेलिया

संपादन- जी एन झा

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