पैरों में 12 उँगलियों वाली भारत की ‘गोल्डन गर्ल’ के लिए बनेंगें स्पेशल जूते!

21 वर्षीय स्वप्ना बर्मन ने 2018 एशियाई खेलों में हेप्टाथलॉन केटेगरी में स्वर्ण पदक जीतकर पुरे भारत देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है। लेकिन इस खिलाड़ी के बारे में सबसे अलग बात यह है कि उनके पैरों में कुल 12 उंगलियां हैं। चेन्नई की एक फर्म ने उनके पैरों के अनुकूल जूते बनवाने की पेशकश की है।

21 वर्षीया स्वप्ना बर्मन ने 2018 एशियाई खेलों में हेप्टाथलॉन केटेगरी में स्वर्ण पदक जीतकर पुरे भारत देश का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है। लेकिन इस खिलाड़ी के बारे में सबसे अलग बात यह है कि उनके पैरों में कुल 12 उंगलियां हैं, याने कि दोनों पैरों में 6-6 उँगलियाँ हैं।

खेलों के दौरान, इस खिलाड़ी को 6 उँगलियों के हिसाब से अपने साइज के जूते न मिलने के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। पर फिर भी हर एक दर्द को सहते हुए उन्होंने अपनी जगह बनाई।

पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी से ताल्लुक रखने वाली स्वप्ना के पिता रिक्शा चलाते हैं और उनका बचपन संघर्षों भरा रहा है। आप उनकी कहानी यहां देख सकते हैं।

अपनी दौड़ से पहले और दौड़ के दौरान स्वप्ना को जिस दर्द का सामना करना पड़ा, उसे सुनकर चेन्नई के एक सरकारी कंपनी ने स्वप्ना के पैरों के अनुकूल जूते बनवाने की पेशकश की है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (रेलवे कोच निर्माता) के महाप्रबंधक सुधांशु मणि ने बताया, “हम जूतों की कंपनी-नाइकी के सम्पर्क में हैं। हम स्वप्ना के वापिस आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि उनके पैर का माप लेकर हम जूतें बनवा सकें।”

हालांकि, सर्जरी द्वारा इस तरह के पैरों को सही किया जा सकता है लेकिन स्वप्ना के लिए यह कभी भी विकल्प नहीं रहा।उनकी मां, बसाना देवी के पैर में भी अतिरिक्त ऊँगली हैं। इसलिए सब यही सोचते हैं कि जैसे उनकी माँ ने जीवन काटा, स्वप्ना भी वैसे ही काट लेंगी। जब भी वे जूते पहनती तो उन्हें दर्द और असुविधा होती।

उनकी जीत के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने स्वप्ना के लिए दस लाख रुपये और सरकारी नौकरी का इनाम देने का वादा किया है।

अपने पूरे प्रशिक्षण के दौरान, उन्होंने अपने साइज के जूतों के लिए संघर्ष किया है। न केवल प्रतियोगिता के दौरान बल्कि ट्रेनिंग के दौरान भी उन्हें असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ा। हालांकि, अब सरकार और कॉर्पोरेट उनकी मदद के लिए आगे आ रहे हैं लेकिन अगर उन्हें यह मदद अपनी ट्रेनिंग में मिलती तो और भी अच्छा होता।

पर अब उम्मीद है कि उनके बाद अब बाकी जरूरतमंद खिलाड़ियों को समय रहते मदद प्रदान की जाएगी।

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संपादन – मानबी कटोच


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