IITians ने शुरू की बिना मिट्टी की खेती, आधे एकड़ में उगाई 7000 किलो सब्जियां

Hydroponic Farming Startup

IIT Bombay से ग्रैजुएट अमित कुमार और अभय सिंह ने कोटा में, ‘Eeki Foods’ नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया है।

IIT Bombay से ग्रैजुएट अमित कुमार और अभय सिंह ने कोटा में, ‘Eeki Foods’ नाम से एक Hydroponic Farming Startup शुरू किया है। वे हाइड्रोपोनिक्स तकनीक, जैविक तरीकों से बनाई गई खाद, कीटनाशक और मिनरल्स से भरपूर पानी का इस्तेमाल कर टमाटर, खीरा-ककड़ी, करेला, लौकी, मिर्च और बैंगन जैसी सब्जियां उगा रहे हैं। वैसे तो, हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करने वाले ऐसे कई वेंचर्स हैं, लेकिन Eeki Foods इन सब से अलग है। क्योंकि, यह अपना ध्यान हरी-पत्तेदार सब्जियां, मुख्य रूप से एग्जॉटिक किस्म की सब्जियां जैसे- अरुगुला, लैटस या केल उगाने की बजाय, भारत की सामान्य सब्जियां, जो रोज़ खाई जाती हैं, उनका उत्पादन करते हैं।

यह स्टार्टअप, सब्जियां उगाने के लिए कोकोपीट या दूसरे ग्रोइंग मीडियम का इस्तेमाल नहीं करता है, बल्कि Internet of Things (IoT) तकनीक का इस्तेमाल कर, पूरी तरह से बिना किसी ग्रोइंग मीडियम की मदद से, ऑटोमेटिक ‘ग्रोइंग चेंबर’ में ये सभी सब्जियां उगाते हैं।

Eeki Foods के सह-संस्थापक अभय सिंह ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहा, “भारत में हाइड्रोपोनिक्स के बिजनेस में लगे ज्यादातर स्टार्टअप, मुख्य रूप से एग्जॉटिक किस्म की हरी-पत्तेदार सब्जियां उगाने पर ध्यान देते हैं। ऐसी बहुत सारी हाइड्रोपोनिक किट ऑनलाइन मौजूद हैं, जिनसे उगाई जाने वाली हरी-पत्तेदार सब्जियां आपको बाजार में अच्छी कीमत दिला सकती हैं। हालाँकि, इनमें से ज्यादातर वेंचर्स छोटे स्तर तक ही सीमित रह गए। वे बड़े पैमाने पर बढ़ नहीं पाए, क्योंकि एग्जॉटिक किस्म की मांग, सामान्य भारतीय सब्जियों जैसे- टमाटर, खीरा, ककड़ी, बैंगन और मिर्च जितनी नहीं है। जो कंपनी उच्च गुणवत्ता वाली भारत की सामान्य सब्जियों के साथ-साथ, एग्जॉटिक किस्म की सब्जियां भी उगाती है, उसे बड़े पैमाने पर बढ़ने और अपनी उपज को बेचने के लिए, एक बड़ा बाजार मिल सकता है।”

अपने बिजनेस को बड़े स्तर तक पहुँचाने के लिए, इस स्टार्टअप ने ‘ग्रोइंग चैंबर्स’ बनाये हैं, जिन्हें वे पेटेंट कराने वाले हैं। उनका दावा है कि ग्रोइंग चैंबर्स से, इनमें उगने वाली सब्जियों के स्वाद और पोषक तत्वों को बेहतर बनाये रखने में मदद मिलती है। साथ ही, ऐसी कंपनियां जो हाइड्रोपोनिक्स तकनीक और कोकोपीट जैसे ग्रोइंग मीडियम का इस्तेमाल कर, सब्जियां उगाती हैं, उनकी तुलना में इन ग्रोइंग चेम्बर्स में उगी सब्जियां ज्यादा सस्ती और अच्छी होती हैं।

उनका बिजनेस मॉडल अलग-अलग कृषि साझेदारों के साथ, कमर्शियल फार्म सेटअप जैसा ही है। एक तरफ, जहाँ कृषि साझेदार शुरुआती पूंजी लगाते हैं, वहीं स्टार्टअप उपज बढ़ाने और बाजार में बेचने की जिम्मेदारी लेता है। फार्म के मालिक को बिक्री का एक हिस्सा दिया जाता है।

अभय सिंह कहते हैं, “भीलवाड़ा में हमारा आधे एकड़ में फैला एक कमर्शियल फार्म है, जहाँ एक महीने में सात हजार किलो साग-सब्जियों का उत्पादन होता है। जिनमें मुख्य रूप से टमाटर और चेरी टमाटर शामिल हैं। हम अपनी उपज को औसतन 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं। इस तरह, हमें हमारे फार्म से हर महीने लगभग 3.5 लाख रुपये की कमाई होती है। आज, हमारे साथ कोटा, राजस्थान में लगभग 300 B2C (business-to-consumer) कंपनियां जुड़ी हुई हैं। लॉकडाउन के दौरान, नीमच (मध्य प्रदेश) और जयपुर (राजस्थान) के कुछ स्टोर में भी, हम अपनी उपज को सीधे ग्राहकों को बेच रहे थे। हमारी सब्जियां Eeki Foods ब्रांड के तहत, स्थानीय रूप से उगाई और बेची जाती हैं। जिससे फल-सब्जियां कहाँ उगाई गई हैं और इसकी प्रमाणिकता क्या है? इन सबका पता लग सके साथ ही, ग्राहकों को ‘फार्म-टू-फोर्क’ का भी अनुभव मिल सके।”  

2019 की शुरुआत में बने, इस स्टार्टअप ने एक छोटे से 500 वर्ग फुट के रूफटॉप फार्म के कांसेप्ट के साथ, अपने इस सफ़र की शुरुआत की थी, जहां उन्होंने कई हाइड्रोपोनिक्स तकनीकों के साथ एक्सपेरिमेंट किया। जिसके लिए उन्होंने अपनी बचत से, 15 लाख रुपये का शुरुआती निवेश किया। लगभग एक साल बाद, उन्होंने कोटा में अपना पहला R&D फार्म विकसित किया। इस फार्म के अलावा, आज भीलवाड़ा में उनका एक कमर्शियल फार्म भी है। साथ ही, वे तालेड़ा में एक और ऐसे ही फार्म को शुरू करने वाले हैं। जबकि कोटा में दो और फार्म को बनाने का काम शुरू हो गया है। आज, उनके पास राजस्थान में पाँच अलग-अलग कमर्शियल कृषि साझेदार हैं। इसके साथ ही, वे NCR, चेन्नई और लद्दाख में भी अपना काम शुरू करने की सोच रहे हैं।

वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत तक, वे 12 फार्म सेटअप करना चाहते हैं, जो बड़े ग्रोसरी स्टोर्स की मांगों को पूरा करेंगे। साथ ही, स्थानीय सब्जी बेचने वालों और डिस्ट्रीब्यूटर्स से साझेदारी के साथ, 40 लाख रुपये महीने के राजस्व कमाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने की भी कोशिश करेंगे।

Hydroponic Farming Startup
Hydroponics farm

IIT से लेकर सब्जियां उगाने तक

पढ़ाई के दौरान, कैंपस में अमित और अभय अपने कई इंजीनियरिंग साथियों की तरह ही थे। वे रोबोटिक्स, ऑटोमेशन और IoT से जुड़ी हुई कॉलेज की गतिविधियों में हमेशा शामिल होते थे। 2014 में मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग और मटीरियल साइंस में बी.टेक की डिग्री लेने के बाद, उन्होंने एक ही डोमेन में काम किया। लेकिन अपनी नौकरी के बाद, वे कुछ अलग करना चाहते थे। वे लोगों से जुड़े विषयों जैसे- परिवहन, संचार आदि की परेशानियों के समाधान का पता लगाना चाहते थे और अंत में, उन्होंने लोगों के खाने से जुड़ी परेशानियों पर काम करने का फैसला किया।

2018 की शुरुआत में, अपनी नौकरी छोड़ने के बाद पहले छह महीनों तक, उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों के ग्रामीण इलाकों का दौरा किया और विशेष रूप से कुछ ऑर्गेनिक फार्म्स को समझने की कोशिश की। इस दौरान, उन्होंने पारंपरिक कृषि, विशेष रूप से जैविक खेती की सीमाओं की कुछ समझ हासिल की जैसे- जैविक खाद की कमी, उपज की बाजार तक पहुंच और प्रकृति की अनिश्चितताओं (सूखा पड़ना, बेमौसम बारिश, कीटों का अटैक आदि) से फसलों को बचाना आदि। इन्हीं कारणों से, उन्हें लगा कि सामान्य जैविक खेती को बड़े स्तर पर नहीं ले जाया जा सकता।

अमित कहते हैं, “आखिरकार साल 2018 के बीच में, हमने खेती के लिए हाइड्रोपोनिक्स तकनीक को चुना और चंडीगढ़, गोवा के साथ-साथ, राजस्थान के भी कई खेतों का दौरा किया। हमें महसूस हो गया था कि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक, सामान्य खेती करने के तरीकों में नये और अच्छे बदलाव ला सकती है। इसके बाद, हम दोनों ने कोकोपीट और इंडोर खेती का इस्तेमाल कर, हाइड्रोपोनिक्स के अलग-अलग तरीके जैसे- एरोपोनिक्स, न्यूट्रीएंट फिल्म तकनीक (NFT) आदि को अपनाया। हमने देशभर के कई शहरों के मुख्य सप्लायर्स से, हाइड्रोपोनिक्स किट भी खरीदीं। सभी सेटअप को जांच-परखने के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इनमें से कोई भी सेटअप, बड़े पैमाने पर भारत की सामान्य सब्जियां, जो रोज के खाने में इस्तेमाल होती हैं, उन्हें नहीं उगा सकते।”

Hydroponic Farming Startup
Produce from their hydroponics farm

कम कीमतों में अच्छी उपज

इसके बाद, उन्होंने खेती के स्तर और उपज की कीमत पर ध्यान देना शुरू किया। नोएडा के नेचर मिरेकल जैसे स्टार्टअप, जो हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से फल-सब्जियां उगाते हैं। वे स्थानीय बाजार में मिलने वाली सब्जियों की कीमतों की तुलना में, अपनी सब्जियों को बहुत ज्यादा कीमत पर बेचते हैं। ऐसा उनके फल-सब्जियों को उगाने के तरीके और तकनीक के कारण होता है।  

अभय बताते हैं, “शुरुआत में, हमने बैंगन और करेले जैसी सब्जियों के लिए, कोकोपीट को ग्रोइंग मीडियम के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन इससे उत्पादन की लागत बढ़ गई। क्योंकि, इसके लिए उत्पादकों को नियमित रूप से कोकोपीट तथा दूसरे ग्रोइंग मीडियम जैसे- वॉल्कैनिक स्टोन को हर दो साल में बदलना पड़ता है। कुछ विशेष फसलों के लिए, इसे दो साल की बजाय, हर चार से छह महीने में बदलना पड़ता है, जिससे pH संतुलित बना रहे। अगर आप इन्हें नहीं बदलते हैं, तो आपको नियमित रूप से इनकी देखरेख करनी पड़ेगी।”

इस दौरान, उन्हें लगा कि उत्पादन की लागत कम करने के लिए, Eeki Foods को सब्जियों को उगाने में, ग्रोइंग मीडियम का इस्तेमाल नहीं करना होगा। वे ऐसा ही ग्रोइंग चेंबर बनाने की कोशिश कर रहे थे, जिसका अब वे पेटेंट करवाने वाले हैं। इसमें किसी भी तरह का ग्रोइंग मीडियम जैसे- कोकोपीट, वॉल्कैनिक स्टोन या सामान्य मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता है।

अभय आगे कहते हैं, “इससे हमें सब्जियों को उगाने की लागत को कम करने में मदद मिली। जैसे- अगर कोकोपीट का इस्तेमाल करके, उगाई गई किसी सब्जी की कीमत 22 रुपये प्रति किलो है, तो वह सब्जी हम 12 रुपये प्रति किलो की दर से उगा सकते हैं और इसकी कीमत फसल पर निर्भर करती है। हम बहुत कम लागत पर, अच्छी गुणवत्ता वाली फल-सब्जियां उगा रहे हैं। अब, हम अपनी उपज को लगभग उसी कीमत पर बेच सकते हैं, जैसे आम तौर पर ठेले पर बेची जाने वाली सब्जियां। उदाहरण के लिए, अगर किसी महीने में टमाटर खुदरा बाजार में 40 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं, तो Eeki Foods के टमाटर 47 रुपये प्रति किलो में मिल जायेंगे।”

वह कहते हैं, “हम अपनी फल-सब्जियां, बाकी फार्म्स की तुलना में, औसतन 40 प्रतिशत कम कीमत पर बेच पा रहे हैं। क्योंकि, हम किसी तरह का ग्रोइंग मीडियम इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। जबकि दूसरे फार्म्स फसल के आधार पर, कोकोपीट या कोई दूसरा ग्रोइंग मीडियम इस्तेमाल कर रहे होंगे। उदाहरण के लिए, हम दूसरे फार्म्स की तुलना में, टमाटर को 20 प्रतिशत और खीरा-ककड़ी को 50 प्रतिशत कम कीमत पर बेचते हैं।

स्टार्टअप ने कई फसलों के लिए, इन ग्रोइंग चैंबर्स को विकसित करने में दो साल लगाए। जहाँ हर किस्म की फल-सब्जियों के लिए, अलग-अलग ग्रोइंग चेम्बर्स की जरूरत होती है। जैसे- टमाटर को उगाने के लिए करेले की तुलना में, इनकी जड़ों में ज्यादा तापमान मेंटेन करने की जरूरत होगी। इन ग्रोइंग चैंबर्स का उद्देश्य, बिना किसी ग्रोइंग मीडियम के इस्तेमाल के, पौधों की जरूरतों जैसे- सही तापमान, ह्यूमिडिटी और दूसरी चीजों को पूरा करना है। उन्होंने पेटेंट फाइल करने के लिए, आवेदन तैयार कर लिया है और एक साल के भीतर ही, उन्हें यह पेटेंट मिलने की उम्मीद है। साथ ही, वे इसे और सुधारने के लिए, आईआईटी जोधपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में असोसिएट प्रोफेसर, डॉ. दीपक अरोड़ा के साथ मिलकर, काम कर रहे हैं।

अमित बताते हैं, “हमें उम्मीद है कि पेटेंट फाइल करने के एक साल के भीतर ही, हर फसल के लिए ग्रोइंग चेम्बर्स के डिज़ाइन और सेटअप के हिसाब से, पेटेंट मिल जायेंगे। जैसे- सोलनेसी (बैंगन, टमाटर, मिर्च) या क्युकरबिटेसी (करेला, खीरा-ककड़ी, खरबूजा जैसे पौधों की 800 किस्में)। दूसरे शब्दों में, हमारे फार्म्स में अलग-अलग फसलों के समूह के लिए, अलग-अलग ग्रोइंग चेम्बर्स होंगे। दूसरी ओर, पालक या लैटस जैसी हरी-पत्तेदार सब्जियां उगाने के लिए, हम स्टैंडर्ड NFT तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।”

Hydroponic Farming Startup
Preparing a hydroponics farm

जब कमर्शियल फार्म सेटअप की बात आती है, तो हरेक कृषि साझेदारों को शुरुआती निवेश करना होगा, जो जगह, जमीन के क्षेत्रफल और सरकारी सब्सिडी पर निर्भर करेगा। Eeki Foods इन फसलों को उगाने और उन्हें स्थानीय बाजारों में बेचने की जिम्मेदारी लेता है।

अभय बताते हैं, “फसल की किस्मों पर, मुनाफा निर्भर करता है। हमारे कृषि साझेदारों को चार साल में, उनके निवेश पर रिटर्न (RoI) मिलेगा। फिलहाल, राजस्थान में हमारे पाँच अलग-अलग कृषि साझेदार हैं। फार्म की निगरानी के लिए, हमने एक IoT सिस्टम बनाया है, जो हमें कहीं से भी इसकी निगरानी और इसके जरूरी मानकों को नियंत्रित करने में मदद करता है। वहीं, पॉलीहाउस की सफाई, छंटाई, फलों को काटने या तोड़ने जैसे कामों को मैन्युअली किया जाता है। सिंचाई, खाद, तापमान प्रबंधन तथा खेती करने की दूसरी सभी प्रक्रियाएं ऑटोमेटिक होती है, जिससे फसल को अच्छे से उगने में मदद मिलती है।”

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल कर रहे, इस स्टार्टअप के आगे बढ़ने की काफी संभावनाएं हैं। इस महीने Eeki Foods ने GSF Accelerator से फंडिंग जुटाई है। इसके अलावा, Infobridge Holdings के फाउंडर और CEO, नाहो शिगेटा, Core91 VC के डायरेक्टर, शालीन संजय शाह और एक गल्फ-बेस्ड सिंडिकेट भी Eeki Foods के निवेशक हैं।

अभय कहते हैं, “हमारा उद्देश्य यह बताना है कि फसलों की अच्छी पैदावार के लिए, हमारी तकनीक का इस्तेमाल, देशभर की अलग-अलग जलवायु या मौसम में किया जा सकता है। साथ ही, दूसरे हाइड्रोपोनिक्स वेंचर्स की तुलना में, हमारी तकनीक से बहुत सस्ती दर पर अच्छी फसल उगाई जा सकती है।”

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक

संपादन- जी एन झा

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