Placeholder canvas

केरल के अनाथालय से यूपीएससी तक: आईएएस मोहम्मद अली शिहाब की अविश्वसनीय कहानी!

केरल के मलप्पुरम जिले के पास एक छोटे से गांव में जन्में आईएएस अधिकारी मोहम्मद अली शिहाब नागालैंड के एक दुर्गम जिले कैफाइर में नियुक्त हैं। 11 साल की उम्र के बाद उनका जीवन अनाथ आश्रम में बीता। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया है।

नका जन्म केरल के मल्लापुरम जिले के कोंडोट्टी के पास एडवन्नाप्परा के एक गांव में हुआ था। एक मस्तमौला बच्चा जो स्कूल से भागने का कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेता था। तब 80 के दशक के बाकी गाँव के और लड़कों की तरह उनका भी एक सपना था- अपनी दुकान खोलने का।

स्कूल से भागने का कारण अक्सर उनके अस्थमा पीड़ित पिता होते थे, जिनकी मदद के लिए वे कभी उनकी पान की दुकान तो कभी बांस की टोकरी बेचने के लिए जाते।

मात्र 11 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता कोरोत अली को खो दिया और उनकी माँ फातिमा पर पांच बच्चों को पालने की जिम्मेदारी आ गयी। आर्थिक हालत इतने खराब थे कि वे अपने एक बेटे और दो बेटियों को कोज़हिकोडे के एक अनाथ आश्रम में छोड़ने पर मजबूर हो गयी।

उन्होंने अनाथालय में दस साल बिताये। एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने से लेकर केरल जल प्राधिकरण में एक चपरासी के रूप में काम करने तक, और ग्राम पंचायत में एक क्लर्क के रूप में काम करते हुए, उन्होंने आखिरकार सबसे प्रतिष्ठित संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को पास कर ही लिया।

यह अविश्वसनीय कहानी है आईएएस अधिकारी मोहम्मद अली शिहाब की!

2011 बैच के अधिकारी, वर्तमान में वे भारत के नागालैंड में सबसे दूरस्थ जिलों में से एक के डिप्टी कमिश्नर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने फ़ोन पर इस जिले में हो रहे भारी भूस्खलन के परिणामों के बारे में बताया। साधन भेजने के सभी रास्तों के बंद हो जाने के बाद अब सभी जरूरी चीज़े हेलीकाप्टर द्वारा भेजी जा रही हैं।

द बेटर इंडिया के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, उन्होंने बताया कि कैसे एक अनाथालय में रहने से लेकर भारत के एक पिछड़े ज़िले में कार्यरत होना उनके जीवन में एक सर्कल के जैसा है।

जब वे अनाथालय गए तो शिहाब के जीवन में बहुत परिवर्तन आया, उनके जीवन में जिस अनुशासन की कमी थी वह आया। वे कहते हैं कि संसाधन और अवसर सीमित थे, लेकिन चुनौतियां काफी थीं। वे पढ़ाई में लगातार आगे बढ़े और एसएसएलसी को अच्छे अंक के साथ पास किया। उसके बाद वे एक पूर्व-डिग्री शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल हो गए।

अनाथालय में रात को आठ बजे खाना खाने के बाद सो जाना और फिर आधी रात को उठकर पढ़ना। वह भी बेडशीट के नीचे टोर्च की कम रौशनी में ताकि वे अपने दोस्तों की नींद न खराब कर दें। वे अच्छे कॉलेज से रेगुलर ग्रेजुएशन करना चाहते थे और इसके लिए अपने परिवार से बात करने के लिए अपने गाँव लौटकर आये। लेकिन आर्थिक परेशानियों के चलते उन्हें किसी का साथ नहीं मिला। इसलिए उन्होंने प्राथमिक स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करना शुरू कर दिया।

लेकिन उस समय भी, अपनी सीमित योग्यता के साथ, उन्होंने 21 राज्य स्तरीय लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं को पास किया।

केरल जल प्राधिकरण में चपरासी के रूप में काम करते हुए उन्होंने कलीकट विश्वविद्यालय में इतिहास में बीए में दाखिला लिया। तीन वर्षों तक, उन्होंने विभिन्न सरकारी विभागों में छोटी नौकरियां की और अपनी पढ़ाई को जारी रखा। अपनी ग्रेजुएशन पूरी होने तक वे 27 वर्ष के हो चुके थे।

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने सिविल सर्विस क्यों नहीं चुनी तो उन्होंने कहा कि उन्हें सिविल सर्विस के बारे में ज्यादा नहीं पता था और वे निश्चित नहीं थे जब तक उन्होंने अपनी तैयारी शुरू नहीं की थी।

उन्होंने बताया, “मेरे भाई, जो जानते थे मैंने राज्य स्तर पर पीएससी पास किया है। उन्होंने मुझे सिविल सर्विस के टेस्ट देने के लिए कहा। ईमानदारी से, इसमें आने से पहले मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा हूँ।”

जब एक स्थानीय दैनिक अखबार ने उनके पीएससी पास करने की खबर को छापा और उनसे पूछा कि आपका उद्देशय क्या है? तो उनके पास कोई जबाव नहीं था। और जब लगातार यही सवाल उनसे पूछा जाने लगा तो वे कहते कि वे सिविल सर्विस करना चाहते हैं। जब यह कहानी उनके अनाथालय के अफसरों की नजर में आयी तो उन्होंने कहा कि वे शिहाब को पूर्ण रूप से आर्थिक मदद देने के लिए तैयार हैं। यह बीएस कुछ समय तक की बात थी। कुछ ही दिनों में नई दिल्ली स्थित ज़कात फाउंडेशन ने केरल में उन प्रतिभागियों की परीक्षा रखी, जिनमें से चयनित होने वाले छात्रों को वे यूपीएससी की मुफ्त में तैयारी करवाते। शिहाब ने परीक्षा पास की और नई दिल्ली चले गए।

उन्होंने साल 2007 और 2008 में प्रीलिम्स टेस्ट दिया और उनकी उम्र 30 साल होने वाली थी। शिहाब को पता था कि उनके पास ज्यादा मौके नहीं बचे हैं। उस समय तक उनकी शादी भी हो चुकी थी। एक नौ महीने का बच्चा भी था। इसी सब में वे अपनी तैयारी और घर के प्रति जिम्मेदारियों के बीच जूझते रहे।

उन्होंने मुख्य परीक्षा अपनी मातृभाषा, मलयालम में दी। और इंटरव्यू ट्रांसलेटर की मदद से दिया। साल 2011 में अपनी लगातार प्रयासों से और अपने शुभचिंतकों की दुआयों से आखिरकार तीसरी बार में उन्होंने यूपीएससी पास कर लिया।

उन्होंने बताया, “ज़कात में मेरी तैयारी और बाद में लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकडेमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन में मेरी ट्रेनिंग ने मुझे इस नौकरी क हर एक पहलु से अवगत करवाया। यहां तक कि हमें हमारे कैडर की भाषा भी सिखाई गयी, जो कि मेरे केस में नागालैंड था।”

शिहाब दावा करते हैं कि वे नागमीज़ उतना ही अच्छे से बोल पाते हैं जितना कि अपनी मातृभाषा। सबसे पहले वे दीमापुर जिले में असिस्टेंट कमिशनर के रूप में नियुक्त हुए, उन्होंने कोहिमा में भी सब-डिविज़नल मेजिस्ट्रेट के रूप में भी सेवाएं दी हैं, म्यांमार से लगे मोन ज़िले के अतिरिक्त डिप्टी कमिशनर, नागालैंड सचिवालय के विद्युत विभाग में संयुक्त सचिव और प्रोजेक्ट डायरेक्टर आईएफएडी (कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय निधि)।

उन्हें नवंबर 2017 में कैफाइर में स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसे प्रधान मंत्री और नीति आयोग ने देश के 117 महत्वाकांक्षी जिलों में से एक घोषित किया था।

“यह भारत के सबसे दूरस्थ और दुर्गम ज़िलों में से एक है। दीमापुर जाने के लिए एक पहाड़ी इलाके के माध्यम से अपने वाहन से भी 12- 15 घंटे लग जाते हैं। कैफाइर नागालैंड का एकमात्र जिला है जिसे इन महत्वाकांक्षी जिलों की सूची में जगह मिली है।”

उनके नेतृत्व में, यह जिला अब विकास की ओर कई कदम उठा रहा है।

एक कृषि अर्थव्यवस्था के रूप में इस जिले को साल 2004 में गठित किया गया था और कई जनजातियां यहां रहती हैं। यहां कानून व्यवस्था के मुद्दे रहते हैं और साथ ही यह जिला म्यांमार के साथ अपनी सीमा साँझा करता है। लेकिन डीसी बताते हैं कि यहां सबसे बड़ी समस्या है सामाजिक व आर्थिक पिछड़ापन।

वे सबसे पहले छह क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिनमें शामिल हैं, शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, कौशल विकास, बुनियादी ढांचा, और बैंकिंग!

“दो मुख्य फसलें जो ये आदिवासी उगाते हैं वे हैं कोलर राजमा और मक्का। जिनके लिए बाहर बहुत बड़ा बाजार है। लेकिन कैफाइर से इन्हें दीमापुर भेजना बहुत महंगा पड़ जाता है। हम उनकी फसलों के लिए अच्छी कीमतें पाने और उनकी आय को दोगुना करने के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि रास्ता बहुत कठिन है पर हम यह करके रहेंगें।”

उनके काम की सफलता इस बात से झलकती है कि वे दो चुनाव शांतिपूर्वक करवाने में सफल रहे हैं। कई आदिवासियों के बीच रिश्तों को सुधारने के लिए वे लगातार चर्च जाते, आदिवासी लीडर से मिलते और साथ ही एनजीओ के मदद लेते रहे। जिले में नेताओं ने कैफाइर को केंद्र द्वारा महत्वाकांक्षी जिलों में रखने की बात को बहुत ही सकारात्मक रूप में लिया है और अब वे इसे ऊपर उठाने के लिए काम कर रहे हैं।

“मैं एक अनाथ था और मेरा यह जिला भी अनाथालय के जैसा है। 11 साल की उम्र में अपने पिता की मौत के बाद मेरा जीवन बाकी सबसे अलग हो गया और मेरा जिला भी बाकी दुनिया से एकदम अलग है। लेकिन सीमित अवसरों और संसाधनों के बावजूद, यहां स्थानीय लोगों ने मुझे सिखाया है कि हर एक अवसर को उत्सव के जैसे मनाना चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं, नागालैंड को त्योहारों की भूमि कहा जाता है। लेकिन हम आगे बढ़ने और ज़िले के पूर्ण विकास के लिए दृढ हैं।”

इस आईएएस अफसर ने मलयालम में अपनी आत्मकथा भी लिखी है, जिसका नाम है ‘विरलाट्टम’ (जिसका मतलब है उंगलियां)

यूपीएससी उम्मीदवारों को अपने अंतिम संदेश में, वे कहते हैं, “यूपीएससी, सबसे प्रतिष्ठित होने के अलावा, एक योग्यता आधारित परीक्षा भी है। अगर केरल से मेरे जैसे लड़के इसे पास करने के लिए सभी बाधाओं को पार कर सकते हैं, तो कोई भी कर सकता है। अगर आप अपने पहले प्रयास में पास नहीं होते हैं तो आशा न छोड़ें। भारत एक बहुत बड़ा देश है। यहां अवसरों की कमी नहीं है। यदि आप सभी कड़ी मेहनत और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते हैं तो आप यकीनन सफल होंगें। मैं आप सभी को अपने सपनों को पाने के लिए बस शुभकामनायें दूंगा।”

मूल लेख: जोविटा अरान्हा


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X