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लॉकडाउन का किया सही इस्तेमाल, 350 दुर्लभ पेड़ों का बीज बैंक बनाकर बांटते हैं मुफ्त

(free seed bank)

पालनपुर, गुजरात के 26 वर्षीय निरल पटेल ने लॉकडाउन के दौरान एक अनोखा बीज बैंक बनाया है। वह महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान तक पार्सल से विलुप्त होती वनस्पतियों और पेड़ों के बीज पहुंचाते हैं।

पालनपुर, गुजरात के 26 वर्षीय ‘निरल पटेल’ बचपन से ही प्रकृति प्रेमी रहे हैं। उन्होंने पर्यावरण और पेड़ों को बचाने तथा उनके संरक्षण के लिए, एक विशेष ‘बीज बैंक’ (free seed bank) शुरू किया है। उन्होंने मात्र छह महीनों में ही, गुजरात के विलुप्त होते 350 से भी अधिक वनस्पतियों, लताओं, और पेड़ों के बीज इकट्ठा किये हैं। वह पालनपुर के नीलपुर मॉडल स्कूल में साल 2017 से 2020 तक कॉन्ट्रैक्ट पर, शिक्षक के तौर पर काम कर रहे थे। द बेटर इंडिया से बात करते हुए निरल बताते हैं, “लॉकडाउन के दौरन जब मेरे पास काफी खाली समय था, तभी मुझे बीज इकट्ठा करने का ख्याल आया।”

वह बताते हैं, “पहले मैंने गुजरात में पाए जाने वाले, पेड़-पौधों और वनस्पतियों के बारे में जानकारियां इकट्ठा करना शुरू किया।” इसके बाद, उन्होंने सोशल मिडिया और वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थियों से, गुजरात की दुर्लभ वनस्पतियों और पेड़ों के बारे में पता लगाना शुरू किया।  

जंगलों में घूम-घूम कर इकट्ठा किये बीज   

निरल बताते हैं, “मैं फेसबुक पर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले कई ग्रुप से जुड़ा हूँ। वहीं, मुझे लोगों से पेड़ों के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। जैसे- कौन से पेड़ कहा पाए जाते हैं, किन पेड़ों की प्रजातियां बिल्कुल लुप्त होती जा रही हैं, आदि।” कुछ महीनों के बाद, उन्होंने बीजों को अलग-अलग जगहों से इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उन्होंने गुजरात के अरवल्ली, नवसारी, वलसाड, डांग जिले के जंगलों से भी कई बीज जमा किये हैं।

free seed bank

निरल बताते हैं, “उन दिनों, मैं जंगलों से हमेशा कई पेड़ों के बीज लेकर आता था। फिर उन सभी बीजों के बारे में जानकारियां जुटाता था।” उनके पास वरुण, पारस पीपल, कचनार, खेजड़ी या शमी, बहेड़ा, अर्जुन, हरड़ जैसे 350 से अधिक दुर्लभ पेड़ों के बीज उपलब्ध हैं। उन्होंने अपने पास हरेक बीज का एक सैंपल सुरक्षित रखा है। साथ ही, बाकी के बीजों को उन्होंने बांटने के लिए रखा है। उन्होंने अक्टूबर 2020 में ‘पालनपुर बीज बैंक’ नाम से फेसबुक पेज बनाया। वह बताते हैं कि उनको सोशल मिडिया पर काफी अच्छी प्रतिक्रया मिल रही है।  

पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य   

निरल इन बीजों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहते हैं। सोशल मिडिया से ही, वह कई प्रकृति प्रेमियों तक ये बीज पहुंचाने का काम कर रहे हैं। वह कहते हैं, “मैं लोगों को ये बीज मुफ्त में देता हूँ, लेकिन कई लोग मुझे अपनी इच्छा से इन बीजों के पैसे भी देते हैं।”  

वह कहते हैं कि उन्हें उत्तराखंड,जम्मू और हिमाचल प्रदेश जैसे कई अन्य राज्यों से भी लोग बीज के लिए फोन करते हैं। लेकिन, इन राज्यों की जलवायु अलग-अलग होने के कारण, कुछ पौधे वहां ठीक से विकसित नहीं हो पाते। हालांकि, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की जलयायु एक सामान होने के कारण, वहां एक तरह के पौधे आसानी से अंकुरित हो जाते हैं। 

free seed bank

अब तक उन्होंने पार्सल से, 450 बीज लोगों तक पहुचाएं हैं। उन्होंने बताया कि वह हर दिन तक़रीबन 30 से 40 पार्सल करते हैं। निरल बताते हैं, “देसी बीजों के लेन-देन से न सिर्फ हमारी दुर्लभ वनस्पतियों का बचाव होगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण भी होगा। वहीं, हाइब्रिड बीज प्राकृतिक न होने के कारण जलवायु के अनुकूल नहीं होते हैं। इसलिए, वे राज्यों की अलग-अलग जलवायु में ठीक से विकसित नहीं हो पाते हैं।” 

निःस्वार्थ सेवा  

निरल पटेल की पर्यावरण के प्रति इस सराहनीय पहल के बारे में, वडोदरा की डॉ. हेमा मोदी बताती हैं कि निरल के बीज बैंक (free seed bank) में मौजूद पेड़ों के बीज काफी दुर्लभ हैं। इन पेड़ों और वनस्पतियों में कई औषधीय गुण होने के साथ-साथ, ये वातवरण को भी शुद्ध बनाये रखते हैं। वह पिछले तीन सालों से वैजयंती घास, ईश्वरी, बहेड़ा, कपोक जैसे दुर्लभ पौधों के बीज की तलाश में थीं। 

उन्होंने कहा, “मैं वन विभाग और कई सोशल मीडिया ग्रुप में भी, लोगों से इन बीजों और पौधों के बारे में पूछती रहती थी। इस दौरान, सोशल मिडिया के जरिये ही मुझे निरल के बीज बैंक (free seed bank) के बारे में पता चला। इसके बाद, उन्होंने मुझे मेरे मनचाहे बीज उपलब्ध कराये।” 

free seed bank

निरल चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग पौधारोपण से जुड़े। वह स्कूली बच्चों, आसपास के युवाओं और अपने दोस्तों को भी बीज बांटते रहते हैं, ताकि वे कम से कम एक पौधा तो जरूर लगाएं। उन्होंने दवाइयों के खाली पैकेट का इस्तेमाल कर, बच्चों के लिए बीज के कुछ विशेष पैकेट भी तैयार किये हैं। आशा है कि निरल पटेल के इन बेहतरीन प्रयासों से पर्यावरण में थोड़ा ही सही, लेकिन कुछ सकारात्मक बदलाव तो जरूर आएगा।

संपादन – प्रीति महावर

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