नगर निगम के कचरा गाड़ी में अपने घर का कचरा डालते समय, क्या आप कभी ध्यान देते हैं कि हर रोज आपके घर से कितना कचरा निकल रहा है? या फिर यात्रा के दौरान कभी आपने ध्यान दिया है कि अपने पीछे आप कितना कचरा छोड़कर आ रहे हैं? शायद नहीं! लेकिन, जब हम अपने शहरों में कचरे के ढेर लगे देखते हैं, तो बस यही कहते हैं कि कितनी गंदगी है यहां। पर, अगर हम अपने घरों से निकलने वाले कचरे पर ध्यान दें, तो न सिर्फ हम अपने जीवन को ‘जीरो वेस्ट’ और इको फ्रेंडली बना सकते हैं बल्कि अपने शहर और देश को भी ‘जीरो वेस्ट’ बना सकते हैं। जैसा कि पंजाब के लुधियाना में रहने वाली 23 वर्षीया ज्योत्सना जैन कर रही हैं।
ज्योत्सना को हमेशा से ही प्रकृति से लगाव रहा है। लेकिन, अपनी ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने ‘क्लाइमेट चेंज’ से संबंधित एक वीडियो देखकर, यह तय कर लिया कि वह अपनी जीवनशैली को इको फ्रेंडली बनाने की कोशिश करेंगी। ताकि, वह कुछ हद तक पर्यावरण संरक्षण में सहयोग कर पाएं। पिछले दो सालों में ज्योत्सना ने अपने जीवन में, छोटे-बड़े कई बदलाव किए हैं और आज वह गर्व से कहती हैं कि वह ‘जीरो वेस्ट और इको फ्रेंडली लाइफस्टाइल’ फॉलो कर रही हैं।
ज्योत्सना के लिए ‘जीरो वेस्ट लाइफस्टाइल’ का मतलब है- अपने दैनिक जीवन में हानिकारक रसायनों से मुक्त, प्रकृति के अनुकूल चीजें इस्तेमाल करना, अपने घर से निकलने वाले कचरे का सही प्रबंधन करना, ताकि यह लैंडफिल या पानी-स्त्रोतों में पहुंचकर प्रदूषण का कारण न बने और जितना हो सके बड़ी-बड़ी कंपनियों पर अपनी निर्भरता कम करना।
एक बार में उठायें एक कदम:
उन्होंने कहा, “जब मैंने ‘जीरो वेस्ट लाइफस्टाइल’ को अपनाने की शुरुआत की, तो एक बात अच्छे से समझी कि यह बदलाव चंद दिनों में नहीं आएगा। इसके लिए पूरे धैर्य और संयम से अपनी एक-एक आदत को सुधारने पर काम करना होगा। साथ ही, आपको अपनी जीवनशैली पर ध्यान देना है न कि दूसरों की। इसलिए आप अपनी सोच को दूसरों पर थोपने की कोशिश न करे बल्कि अपनी आदतें बदलें। आपको देखते हुए आसपास के लोग खुद बदलने लगेंगे।”
इसलिए, उन्होंने सबसे पहले अपने जीवन में ‘सिंगल यूज’ प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने पर ध्यान दिया। उन्होंने कुछ कपड़े के बैग खरीदे, जिनमें बाजार से घर का सामान लाया जा सके। उन्होंने अपने घर के दरवाजे पर दो-तीन कपड़े के बैग लटका दिए। इसी तरह, कुछ बैग कार में भी रख दिए। उन्होंने कहा, “आप चीजें तो खरीद सकते हैं, लेकिन आदतों में बदलाव लाना आसान नहीं होता। इसलिए मैंने उन जगहों पर कपड़े के बैग रखे, जहां घर से निकलते समय हमारी नजर उन पर पड़े और हम उनका उपयोग करना न भूलें।”
अब वह किराने का सामान भी ज्यादातर लोकल दुकानों से ही खरीदती हैं। जहां से वह कपड़े के थैलों में दाल, चावल और स्टील के डिब्बों में तेल, आटा जैसी चीजें ला सकती हैं। वह बताती हैं, “किराने का सामान खरीदते समय, मैं हमेशा कोशिश करती हूँ कि मुझे चीजें कपड़े के बैग में मिल जाएं या फिर ये कांच की बोतलों में पैक हों। अगर कोई चीज प्लास्टिक के डिब्बे में ही मिलती है, तो मैं चेक करती हूँ कि प्लास्टिक पैकेजिंग वाला समान एक या दो से ज्यादा न हो।” इसके बावजूद, अगर कभी घर में ऐसा प्लास्टिक आ जाता है, जिसे रीसायकल नहीं किया सकता, तो वह उससे ‘इको ब्रिक’ बना लेती हैं।
इसके अलावा, बाहर जाने के लिए वह जो बैग इस्तेमाल करती हैं, उसमें भी वह एक कटलरी किट (जिसमें चम्मच, फोर्क, स्ट्रॉ होती है) अपने साथ रखती हैं। जिससे बाहर कुछ खाते समय, उन्हें प्लास्टिक की कटलरी इस्तेमाल न करनी पड़े। पानी की बोतल भी वह हमेशा अपने साथ रखती हैं, ताकि बाहर से पानी की बोतल न खरीदनी पड़े। जब वह बाहर से कोई प्लास्टिक रैपर वाली चीज खरीदती हैं, तो रैपर को वह अपने बैग में ही रख लेती हैं। ताकि, बाहर कचरा न फैले।
उन्होंने बताया, “कई बार यात्रा करते समय भी खाने-पीने की चीजों से कचरा फैलता है जैसे- बिस्कुट, चॉकलेट आदि के प्लास्टिक के रैपर या दूसरी कोई चीज। मैं उन्हें भी अपने कपड़े के एक बैग में रखकर घर ले आती हूँ। फिर इन्हें अलग-अलग करती हूँ। जैसे- गीला कचरा, कंपोस्टिंग में काम आता है, वहीं सूखे कचरे को रीसायकल किया जाता है। ऐसा कचरा जिसे रीसायकल नहीं किया जा सकता, मैं उसे अलग जगह स्टोर करती हूँ। जब यह सूखा कचरा अधिक मात्रा में इकट्ठा हो जाता है, तो मैं ऐसे कचरे को रीसायकलर्स को दे देती हूँ।”
रसायन मुक्त होने की भी है कोशिश:
ज्योत्सना आगे बताती हैं कि प्लास्टिक के इस्तेमाल को धीरे-धीरे कम करने के बाद, उन्होंने अपने घर में इस्तेमाल होने वाले रसायन युक्त उत्पादों पर ध्यान दिया। उन्होंने कहा, “अपने घर के फर्श, टॉयलेट आदि को साफ़ करने के लिए, हम जो क्लीनिंग एजेंट्स इस्तेमाल करते हैं, उनमें हानिकारक रसायन होते हैं। इसलिए, मैंने इनके कई प्राकृतिक विकल्प तलाशे हैं। मैं अपने घर में ही नींबू, संतरे और कीनू जैसे फलों के छिलकों को फेंकने की बजाय, इनसे ‘बायोएंजाइम‘ बनाती हूँ। जिन्हें आप ‘मल्टी-पर्पस क्लीनर’ की तरह इस्तेमाल कर सकते है।”
आगे वह बताती हैं कि इसी बायोएंजाइम में रीठा मिलाकर, इसे बर्तन धोने के लिए भी इस्तेमाल में लिया जा सकता है। कपड़े धोने के लिए भी वह रीठा और बायोएंजाइम का घोल इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने बताया, “वैसे आजकल बाजार में ऐसे क्लीनिंग एजेंट भी उपलब्ध हैं, जिन्हें बनाने में हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं होता है और ये इको फ्रेंडली हैं। लोग चाहें तो सामान्य रसायन युक्त क्लीनिंग एजेंट्स की जगह, इन इको फ्रेंडली एजेंट्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन अगर आपके पास बायोएंजाइम बनाने का समय है, तो आप इसे अपने घर पर बनाकर जरूर उपयोग करें।”
वह कहती हैं कि जब आप बर्तन और कपड़े धोने के लिए प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते हैं, तो बाद में बचने वाले पानी को आसानी से बागवानी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। क्योंकि इस पानी में कोई रसायन नहीं होता, इसलिए यह पौधों के लिए सही रहता है। उनकी दिनचर्या की बात करें, तो वह बांस का टूथब्रश इस्तेमाल करती हैं और टूथपेस्ट भी उन्होंने खुद बनाया है। हाथ धोने और नहाने के लिए, वह हाथ से बनाया गया साबुन ही उपयोग में लेती हैं। अपनी त्वचा की देखभाल के लिए भी ज्योत्सना प्राकृतिक चीजों पर ही निर्भर हैं। जैसे कि मॉइस्चराइजर के लिए वह नारियल या खुबानी के तेल का उपयोग करती हैं। शैम्पू के लिए उन्होंने रीठा, आंवला और शिकाकाई पाउडर बनवाया है।
जिम्मेदारी के साथ करें कचरा प्रबंधन:
ज्योत्सना आगे कहती हैं कि उनके घर में दो डस्टबिन (कूड़ादान) हैं। एक बिन में वह ऐसा कचरा डालती हैं, जिससे खाद बनाई जा सके। इस कचरे को वह अपने घर पर लगी कंपोस्टिंग बिन में डाल कर खाद बनाती हैं। फिर उस खाद का उपयोग, वह अपने घर में गार्डनिंग के लिए करती हैं। वहीं, दूसरे बिन में वह सूखा कचरा डालती हैं। इसके भरने के बाद, वह कचरे को अलग-अलग करती हैं।
उन्होंने कहा, “इस कचरे को मैं कई अलग-अलग केटेगरी में रखती हूँ। उनमें से एक केटेगरी है- इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट। अधिक मात्रा में ई-वेस्ट इकट्ठा हो जाने पर, मैं इन्हें ई-वेस्ट रीसायकल करने वाली कंपनियों को दे देती हूँ। इसी तरह, मैं प्लास्टिक, कांच और मेटल के कचरे को भी अलग-अलग करती हूँ। फिर इनमें से रीसायकल होने वाली चीजों को रीसायक्लर्स को और बाकी बचे कचरे से इको-ब्रिक बनाती हूँ। आप इको-ब्रिक को कई तरह के फर्नीचर बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।”
इको फ्रेंडली लाइफस्टाइल का मतलब यह नहीं कि आप सिर्फ इको फ्रेंडली चीजें खरीदें। बदलाव तब आएगा, जब आप ऐसी चीजों को बार-बार इस्तेमाल करेंगे। जैसे- कपड़े के बैग, स्टील स्ट्रॉ आदि ऐसी चीजें हैं, जिन्हें आप एक बार खरीदकर, सालों-साल इस्तेमाल कर सकते हैं। प्रकृति के अनुकूल जीवन जीना बहुत किफायती है। जरूरत है कि आप सही आदतें अपनाएं।
प्रकृति के प्रति लगाव के कारण ही, ज्योत्सना ने ‘परमाकल्चर डिज़ाइन‘ और ‘मियावाकी फारेस्ट‘ पर भी कोर्स किया है। ‘परमाकल्चर डिज़ाइन’ पर काम करने वाले कुछ संगठनों के साथ, वह स्वयंसेविका के रूप में काम कर रही हैं।
उनकी इस जीवनशैली का असर, उनके पूरे परिवार पर भी देखने को मिलता है। उनके माता-पिता भी अब अपनी आदतों में बदलाव ला रहे हैं। आगे उनके परिवार की कोशिश है कि वे ऊर्जा और पानी के मामले में भी आत्मनिर्भर बनें। अंत में वह सिर्फ यही कहती हैं, “हालांकि, हमारी दुनिया ‘प्लास्टिक फ्री’ नहीं है। अक्सर हमारे या आपके घर में, प्लास्टिक कहीं न कहीं से आ ही जाता है। लेकिन, फर्क इस बात से पड़ता है कि अपने घर में प्लास्टिक आने के बाद, आप इसका क्या करते हैं। आपके कचरा-प्रबंधन का तरीका ही आपकी जीवनशैली में बदलाव लेकर आता है।”
यकीकन, ज्योत्सना की सोच और उनके विचार काबिल-ए-तारीफ हैं और हम सबके लिए एक प्रेरणा हैं। अगर आपको ज्योत्सना की कहानी अच्छी लगी है, तो आप उन्हें इंस्टाग्राम पर फॉलो कर सकते हैं।
संपादन – प्रीति महावर
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