Placeholder canvas

एक कजरी सुनिए बारिश में

जब सखी सहेलियां सवान में झूम झूम पिया संग झूले, कजली दूर परदेश में बसे अपने साजन को याद कर तड़प तड़प रह जाए. आह ने गीत का रूप लिया. काजमल माई के चरणों में सर रख जो गीत उसने बुने, उन्ही पीड़ा के तारों से बने कजरी के लोकप्रिय लोक गीत. सावन में गाये जाने वाले ये लोकगीत अमूमन औरतों द्वारा झुंड बना कर गाये जाते हैं.

प लोगों के लिए बरसात पुरानी ख़बर हो गयी है. लेकिन मैं हालिया लौटा हूँ एक लम्बे, उलझन-सुलझन भरे प्रवास के बाद और बादल उम्मीद जगाते हैं कि सब कुछ धुल-पुछ, भीग-भाग कर नया हो जाएगा. बारिश के मौसम में हमारे उत्तर-प्रदेश/बिहार में कजरी गाई जाती है. बनारस की रेवती सकालकर जी की दिलकश आवाज़ में एक बहुत ही लोकप्रिय कजरी सुनें – आपका दिन न बने तो पूरे पैसे वापस 🙂

साथ ही प्रस्तुत है एक पुरानी कविता :-

प्रकृति में विलीन होने का वक़्त

एक महल बादलों का
टूटा धरती पर वर्षा बन
टूटे सन्नाटे, देखो!
बेख़ौफ़, डरावने
अंधेरे सन्नाटे – अन्यमनस्क, दुरूह,
वो देखो, टूटे!

सौम्य रागनियों के मधुर सोते फूटे
नष्टप्रायः विकृत अंधकार में लरज़ती थिरकन स्व-चेत
नव-प्रकृति-बोध-अंकुरण के सर्वव्यापी संदेश
और मैं सीये जा रहा, सिये जा रहा मखमलों की रजाइयाँ
सर्पगंध-ग्रसित तमाम बोरडम की झाइयाँ
बिखर रहीं..
वो देखो – गिर रहे कमतरी के एहसास भी
तालाब भर रहे
संकल्प-साधक तरुवरों की कोंपलों
में विद्युत संचार की प्रतिभा है
नवांगतुक की आहट..
आज बुढ़िया ने फिर लाल साड़ी पहनी है

मैं उसके क़रीब जा बैठता हूँ
पोपले मुँह, नृत्यमयी झुर्रियाँ सलाम करती हैं
वह झूम-झूम के ज़ोर-ज़ोर से गाने लगती है
एक नज़र मुझ पर डाल कर
ज़ोर-ज़ोर से चक्की चलाती है
पक्की, खरी, ख़ालिस संभावनाओं से आकाश भर आता है

अब बहुत सी गिलहरियाँ, और मोर, और चकोर
और सब क़स्बे वाले आ गए हैं
उन्मत्त तान समस्त विस्तान में गुंजायमान
सभ्यता के चोंचलों के तिनके तैरते हवा में
हम सब एक हैं
बादल, बुढ़िया, गीत, संभावना
सब एक हैं
मैल बह निकला
हम सब आँख बंद किए घास के नुकीले की तरह
बूंदों से खेल रहे, सब एक हैं

बुढ़िया अब हौले से नाच रही है
वर्षागमन-मय-मत्त
हमारी पलकें बोझिलतर हुई जाती हैं
मर कर प्रकृति में विलीन होने का वक़्त है
बूंदों से एकाकार का
अहं के अपरिमित में विस्तार का

लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X