क्या आपके गाँव में आज भी नदियों, झरनों या तालाबों में उतना ही पानी है, जितना 15-20 साल पहले हुआ करता था? शायद नहीं! क्योंकि, आधुनिक जीवनशैली में हम लोगों ने इन जल स्त्रोतों को कोई जगह ही नहीं दी है। यही वजह है कि देश के अधिकांश इलाकों में, जल संकट के बादल मंडराने लगे हैं। लेकिन, आज हम आपको उत्तराखंड के ऐसे शख्स से मिलवा रहे हैं, जिन्होंने अपने गाँव के एक पुराने झरने को नयी जिंदगी दी है। आज उनके प्रयासों से, यह झरना सैकड़ों परिवारों की जीवन रेखा बना हुआ है।
यह कहानी उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में सिरकोट गाँव के रहने वाले जगदीश चंद्र कुनियाल की है। जिन्होंने अपने खेतों और चाय बागानों के साथ-साथ, झरने को भी बचाये रखा। हरियाली से घिरे इस झरने से, न सिर्फ गाँव वालों को पानी मिल रहा है, बल्कि आसपास के कई गांवों को भी, इससे जल आपूर्ति हो रही है। स्थानीय लोग इसे गदेरा कहते हैं।
55 वर्षीय जगदीश बताते हैं कि उन्होंने अपने क्षेत्र में, पर्यावरण का नुकसान होते हुए भी देखा है। लगातार पेड़-पौधों की कटाई से, जंगल कम होने लगे और इसका सीधा असर भूजल स्तर पर पड़ा। जैस-जैसे भूजल स्तर कम हुआ, इस तरह के प्राकृतिक झरने भी सूखने लगे।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “1990 की शुरूआत में, मुझे लगा कि अब मुझे ही कुछ करना चाहिए। मैं चिपको आंदोलन से काफी प्रभावित था। इसलिए, मैंने सोचा कि पेड़ों के कटने से जो नुकसान हुआ है, वह पेड़ लगाने से ही ठीक होगा। इसलिए, मैंने ठान लिया कि जहाँ-जहाँ पेड़ कटने से जगह खाली हुई है, मैं वहाँ पौधरोपण करूँगा।”
लगा दिए हजारों पेड़:
मात्र आठवीं कक्षा तक पढ़े, जगदीश ने अकेले ही यह काम शुरू किया। उन्होंने देखा कि उनके गाँव का यह गदेरा लगातार सूख रहा है और इसे बचाने का एक ही रास्ता था कि ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए जाएं। लेकिन, यह काम आसान नहीं था।
जगदीश कहते हैं, “मैंने साल 2000 तक पेड़-पौधे लगाने की कोशिश की, लेकिन उनमें से बहुत कम ही पौधे बच सके। क्योंकि, मैं पौधे लगाता और जानवर इन्हें खा लेते थे या कई बार बच्चे भी खेल-खेल में इन्हें तोड़ देते थे। गाँव के लोग भी अक्सर मेरा मजाक ही बनाया करते थे, यह कह कर कि तुम्हें इधर-उधर पेड़ लगाने से कोई फायदा नहीं होगा। इन दस सालों में, गदेरा लगभग पूरा ही सूख गया था इसलिए, मुझे लगा कि मुझे कुछ और करना पड़ेगा।”
जगदीश ने अपना तरीका बदला और इस झरने के आसपास, चाय का बागान लगाना शुरू किया। इस बागान की देखभाल के लिए, उन्होंने एक मजदूर भी रख लिया। इससे बागान की देखभाल के साथ-साथ, कोई पौधों को नुकसान भी नहीं पहुंचा सकता था। इसके साथ ही, जगदीश और अधिक पेड़-पौधे लगाते रहे और इनकी पूरी देखभाल भी करते रहे।
उनकी मेहनत रंग लाने लगी। जैसे-जैसे इलाके में जंगल बढ़ा, वैसे-वैसे भूजल स्तर भी बढ़ा। साल 2012 में, पहली बार जगदीश ने देखा कि जो गदेरा सूख गया था, उसमें फिर से पानी आने लगा है। गाँव के लोगों को जब इससे थोड़ा-थोड़ा पानी मिलने लगा, तब उन्हें समझ में आया कि जगदीश के प्रयास कितने जरूरी थे। इसके बाद, उन्होंने गाँव के दूसरे हिस्सों में भी पेड़-पौधे लगाए। पिछले 30 सालों में, वह अपने गाँव में लगभग 15 हजार पेड़ लगा चुके हैं।
वह कहते हैं, “मैं हर साल बरसात के महीने में सैकड़ों पेड़-पौधे लगाता हूँ। पिछले साल बारिश कम होने की वजह से, कुछ पेड़ सूख भी गए थे।”
जगदीश ने ये सारे काम अपने पैसों से किये हैं। उनके पास खेती के लिए, थोड़ी बहुत जमीन है और वह एक राशन की दुकान चलाते हैं। उनके गाँव के स्थानीय निवासी विनोद देवराड़ी बताते हैं, “अब इस गदेरे से न सिर्फ हमारे गाँव बल्कि आसपास के गांवों को भी मदद मिल रही है। गाँव के 150 से ज्यादा परिवार, पानी के लिए इस गदेरे पर ही निर्भर हैं। खेती में भी, इससे हमारी काफी मदद होती है। यह जगदीश जी के प्रयासों का ही नतीजा है और अब हम सभी गाँव वाले, इस काम में उनके साथ हैं।”
स्थानीय निवासी गोपाल दत्त का कहना है कि दूसरे गांवों में भी, जगदीश के कार्यों की चर्चा हो रही है। उनका गाँव एक बेहतर उदाहरण बन गया है। जिससे प्रेरणा लेकर, दूसरे लोग भी इस तरह की पहल कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री से मिली सराहना:
जगदीश कहते हैं कि कुछ समय पहले, एक पत्रकार ने पहली बार उनके काम के बारे में लिखा। वहीं से, जगदीश के कार्यों के बारे में प्रधानमंत्री को पता चला और अपने कार्यक्रम, ‘मन की बात’ में उन्होंने जगदीश की सराहना की। इस बारे में वह बताते हैं, “प्रधानमंत्री जी की सराहना से मुझे बहुत खुशी हुई। लेकिन, मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया है। मैंने जो भी किया, वह मेरे और मेरे गाँव के लिए है और ऐसे काम सभी को करने चाहिएं। हमारे पूरे गाँव को आज पानी मिल रहा है, गाँव में हर तरफ हरियाली बढ़ी है, इससे अच्छा और क्या होगा?”
पर्यावरण हित को हमेशा प्राथमिकता देने वाले जगदीश, किसी की मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते हैं। उनका मानना है कि आपके अच्छे काम ही आपको आगे बढ़ा सकते हैं। किसी की आर्थिक मदद करने से, आपके पास कोई कमी नहीं होगी, बल्कि आपका आत्म संतोष बढ़ेगा।
वह कहते हैं,”मैंने कभी यह नहीं सोचा कि मेरे पास कम साधन हैं। मुझसे जितना हो सका, मैंने सिर्फ लोगों की मदद की। इस अच्छे काम का नतीजा, यह है कि आज मेरे चारों बच्चे साक्षर हैं। मेरे दोनों बेटे और एक बेटी, अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं। वहीं, मेरी छोटी बेटी अभी पढ़ रही है। मेरा पूरा परिवार इन कामों में मेरा सहयोग करता है।”
जगदीश को किसी पुरस्कार की लालसा नहीं है, वह बस अपने गाँव, पर्यावरण और लोगों के लिए काम करते रहना चाहते हैं।
द बेटर इंडिया जगदीश के इस जज्बे को सलाम करता है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, तो आप जगदीश चंद्र कुनियाल से 9627375779 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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