हम सभी के घरों में कुछ कपड़े ऐसे होते हैं, जिन्हें हम न तो खुद पहनते हैं और न ही दूसरों को पहनने के लिए देते हैं। बस ये इकट्ठा होते रहते हैं, कभी घर के इस कोने में तो कभी उस कोने में। फिर एक दिन हम उन कपड़ों को इकट्ठा कर, कचरे में पहुँचा देते हैं। लेकिन, हम यह नहीं समझते हैं कि घर की सफाई के चक्कर में हम पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। पर्यावरण के लिए जितना प्लास्टिक हानिकारक हैं, ये पुराने और बेकार कपड़े भी उतने ही हानीकारक हैं। इसलिए, जरूरी है कि हम इन्हें बिना सोचे-समझे कचरे में फेंकने से पहले, इनके फिर से इस्तेमाल (Reuse Waste Clothes) पर विचार करें।
कुछ ऐसा ही, दिल्ली में रहने वाली 33 वर्षीय मीनाक्षी शर्मा कर रही हैं। बचपन से ही ‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट’ के सिद्धांत पर काम करने वाली मीनाक्षी आज एक ‘अपसायक्लिंग आर्टिस्ट’ हैं, जो पुराने कपड़ों का इस्तेमाल कर बैग, पर्दे, कालीन जैसे नए उत्पाद बनाती हैं। वह आज न सिर्फ अपने बल्कि दूसरे घरों और बड़े उद्यमों से भी पुराने और बेकार कपड़े कचरे में नहीं जाने देती हैं। पिछले 10 सालों से वह हर महीने 200 किलो से ज्यादा पुराने-बेकार कपड़ों को लैंडफिल में जाने से रोक रही हैं।
मीनाक्षी ने अपने इस सफर के बारे में द बेटर इंडिया को बताया, “मैं हमेशा से ही पुरानी चीजों को फेंकने की बजाय, उनसे कुछ नया बनाने में विश्वास करती हूँ। मेरा मानना है कि अगर हमारा नजरिया चीजों को नया रूप देने का हो तो कुछ भी बेकार नहीं होता है। आपको इन पुरानी चीजों को फेंकने का विचार करने से पहले, बस कुछ पल सोचना है कि क्या ये वाकई बेकार चीजें हैं। मैंने अपनी रूचि के हिसाब से पर्ल एकेडमी ऑफ फैशन से ‘मर्चेंडाइजिंग ऐंड प्रोडक्शन’ में कोर्स किया। कोर्स के दौरान भी मैं ऐसे ही प्रोजेक्ट करती थी, जिनमें पुराने कपड़ों से कुछ नया किया जा सके।”
कोर्स के बाद सबको लगा था कि मीनाक्षी किसी अच्छी फर्म के साथ जुड़ जाएंगी। उन्होंने कुछ महीने एक जगह नौकरी करने की कोशिश भी की। लेकिन उनके मन को संतुष्टि नहीं मिल रही थी। वह नए-नए कपडे डिज़ाइन करके इंडस्ट्री का कचरा बढ़ाने की बजाय, इस कचरे को इस्तेमाल करके कुछ नया बनाने में विश्वास रखतीं थीं। इसलिए, उन्होंने नौकरी छोड़कर कुछ अलग करने की योजना बनाई। साल 2011 में उन्होंने ‘यूज मी‘ की शुरुआत की। वह कहतीं हैं कि उनके काम की शुरुआत घर से हुई थी लेकिन, धीरे-धीरे यह ब्रांड बन गया।
आज वह न सिर्फ लोगों के घरों से निकलने वाले पुराने कपड़ों बल्कि अलग-अलग उद्यमों से निकलने वाले कचरे को भी ‘अपसायकिल'(बेकार पड़ी चीजों को फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाने की प्रक्रिया) कर अपने ग्राहकों को कुछ नया देती हैं।
मीनाक्षी बतातीं हैं, “हमने एक लंबा सफर तय किया है। इस काम की शुरुआत मैंने अकेले की थी लेकिन, अब 30 महिलाएं टीम का हिस्सा हैं। इसके अलावा, ‘यूज मी’ का उद्देश्य सिर्फ बिजनेस नहीं है बल्कि हम लोगों को कचरा प्रबंधन के लिए, सही समाधान देना चाहते हैं। हम कपड़ों के क्षेत्र में काम करते हैं लेकिन, अगर कोई ग्राहक हमारे पास अपने घर के किसी भी कचरे की समस्या के साथ आता है तो हम उनकी पूरी मदद करने की कोशिश करते हैं।”
पुराने कपड़ों को नया रूप:
अपने काम के बारे में मीनाक्षी बतातीं हैं कि उनके पास कपड़े व्यवसाय से जुड़े स्टोर और उद्यमों से बेकार कपड़ा आता है। इन बेकार और पुराने कपड़ों से वह और उनकी टीम नए उत्पाद बनाते हैं। जैसे- अगर उनके पास डेनिम जींस से बचे हुए कपड़े या पुरानी डेनिम जींस आती हैं तो वह इनसे बैग बनाते हैं। अगर फिर भी कपड़ा बचता है तो इसे कहीं ‘पैचवर्क’ में इस्तेमाल कर लिया जाता है। इसी तरह, वे पुराने सूट, साड़ी, दुपट्टों आदि से घरों के लिए खूबसूरत परदे भी बनाते हैं। वे रंग-बिरंगे और आकर्षक कालीन बनाने के लिए भी इन्हीं कपड़ों का इस्तेमाल करते हैं।
वह कहतीं हैं, “अगर लोग अपने घरों के पुराने कपड़ों से ही कालीन बना लें तो उन्हें प्लास्टिक की चटाई खरीदने की जरूरत ही नहीं होगी। कपड़े के ये कालीन ज्यादा समय तक चलेंगे भी और इन्हें बार-बार धोकर इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा, अब हम कपड़ों का इस्तेमाल करके खास मौकों और आयोजनों के लिए सजावट भी करते हैं। हमने कपड़ों से क्रिसमस के पेड़ भी बनाए हैं, जिन्हें बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है।”
इसके अलावा, अगर कोई परिवार अपने घर के पुराने कपड़ों से कुछ नया बनवाना चाहता है तो उनसे संपर्क कर सकता है। हालांकि, उनकी यह सेवा सिर्फ दिल्ली निवासियों के लिए है। अब तक, उन्होंने बहुत से परिवारों की कचरा प्रबंधन में मदद की है। चाहे वह पुराने कपड़े हों या पुराना फर्नीचर।
मीनाक्षी कहती हैं, “आज के जमाने में हम ‘बाय, यूज ऐंड थ्रो’ मतलब- खरीदो, इस्तेमाल करो और फेंक दो- इस सिद्धांत पर जी रहे हैं। जबकि, अगर हम अपने दादा-दादी के समय की बात करें तो वे किसी चीज को इस्तेमाल करने के बाद, उसे फिर से इस्तेमाल में लेने पर जोर देते थे। एक ही चीज का समय-समय पर बस रूप बदलता था। जैसे- साड़ियों से परदे या गद्दों के लिए खोल/कवर बना लेना और जब परदे बहुत पुराने हो जाएं तो इन्हें काटकर कोई कालीन या दरी बुन लेना।”
उनका उद्देश्य अपने ब्रांड को कोई ‘अपसायक्लिंग सेंटर’ बनाना नहीं है बल्कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को कचरा प्रबंधन से जोड़ना चाहती हैं। मीनाक्षी बताती हैं, “लोगों में कचरे को लेकर सही जागरूकता होना जरूरी है। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने का अर्थ यह नहीं है कि आप प्लास्टिक की जगह कपड़े का थैला इस्तेमाल करें बल्कि इसका सही अर्थ ये है कि आप अपने घर में कम से कम कचरा उत्पन्न होने दें। अगर हम एक ही कपड़े के थैले को बार-बार इस्तेमाल करने की बजाय, हर बार नया थैला खरीदेंगे तो यह इको-फ्रेंडली लाइफस्टाइल (पर्यावरण के अनुकूल जीवन जीने की कला) नहीं है। अपने दैनिक जीवन में कम कचरा उत्पन्न करना और कम से कम साधनों में जीवन जीने की कला, आपको पर्यावरण प्रेमी बनाती है।”
लोगों को करते हैं जागरूक:
ज्यादा से ज्यादा लोगों में कचरा-प्रबंधन के प्रति जागरूकता लाने के लिए, मीनाक्षी और उनकी टीम अलग-अलग जगह वर्कशॉप (कार्यशाला) भी करते हैं। स्कूल, कॉलेज और अलग-अलग आयोजनों में वर्कशॉप के जरिए, वे लोगों को वैसा कचरा दिखाते हैं जो अक्सर उन्हें कचरे जैसा लगता ही नहीं है। घर में सिर्फ फल-सब्जियों के छिल्के, बचा हुआ खाना, पॉलिथीन, कागज या कार्टन ही कचरा नहीं होता है। बल्कि आपकी अलमारियों में सालों से बिना इस्तेमाल के रखे पुराने कपड़े भी कचरा हैं। पुराना-टूटा फर्नीचर, मोबाइल, लैपटॉप के खराब पड़े चार्जर, ईयरफोन, टीवी रिमोट आदि भी कचरे की श्रेणी में आते हैं।
इन सब चीजों को आप कुछ दिन तक अपने घर में रखते हैं और फिर, धीरे-धीरे ये सब चीजें कचरे के डिब्बे में जाने लगती हैं। वहाँ से नगर निगम की कचरा गाड़ी में और उसके बाद किसी लैंडफिल में। पिछले कुछ सालों में जागरूकता बढ़ने के कारण, कुछ लोग अपने आसपास बेकार पड़ी चीजों को फिर से इस्तेमाल करने वाले लोगों (रीसायक्लर्स) को तलाशने लगे हैं लेकिन, फिर भी सारा कचरा रीसायकल नहीं होता है। मीनाक्षी का कहना है कि हमें शुरुआत अपने घर से करनी होगी और जिन चीजों को हम खुद नया रूप दे सकते हैं, कम से कम उन्हें कचरे में जाने से रोकना होगा।
मीनाक्षी की एक क्लाइंट, रश्मि पत्रलेखा बतातीं हैं कि अपने बेटे के पाँचवे जन्मदिन पर वह एक पार्टी आयोजित कर रहीं थीं। लेकिन, उनकी इच्छा थी कि पार्टी के लिए सजावट पर्यावरण के अनुकूल हो ताकि पार्टी के बाद कुछ भी लैंडफिल में न जाए। जब उन्हें कोई भी इवेंट प्लानर इस तरह का नहीं मिला तो उन्हें ‘यूज मी’ के बारे में पता चला। मीनाक्षी और उनकी टीम ने गुब्बारे और प्लास्टिक का कोई भी सामान इस्तेमाल किए बिना सारी सजावट ‘अपसायकिल’ उत्पादों से की। कहीं भी प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया गया था।
और तो और, पार्टी के बाद ‘यूज मी’ की टीम ने सभी सजावट के सामान को खुद निकालकर, भविष्य में होने वाले आयोजनों में इस्तेमाल करने के लिए रख लिया। रश्मि कहती हैं, “न सिर्फ सजावट ने हम सभी का मन मोह लिया बल्कि हमें इस बात की भी संतुष्टि मिली कि कोई भी चीज कचरे में नहीं गई।”
मीनाक्षी अंत में कहतीं हैं, “अगर कोई भी अपने घर में पड़ी पुरानी और बेकार चीजों को लेकर उलझन में है तो उन्हें सम्पर्क कर सकते हैं। लेकिन लोगों को यह समझना होगा कि उनका स्टूडियो कोई कूड़ा-करकट डालने की जगह नहीं है, जहाँ वे कैसा भी कचरा पहुँचा सकते हैं। अगर लोग वाकई सही मायनों में कचरा प्रबंधन करना चाहते हैं और ‘अपसायक्लिंग’ से जुड़ना चाहते हैं, तभी वे हमसे सम्पर्क करें।”
अगर आप यूज मी द्वारा निर्मित उत्पाद देखना चाहते हैं तो उनकी वेबसाइट देख सकते हैं। अगर आप उनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो उन्हें फेसबुक पेज या इंस्टाग्राम पर मैसेज कर सकते हैं।
तस्वीरें: मीनाक्षी शर्मा
संपादन- जी एन झा
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