क्या आपने पेड़-पौधों के एम्बुलेंस के बारे में सुना है? नहीं न, तो चलिए आज हम आपको एक ऐसे अधिकारी की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो पेड़-पौधों के लिए एम्बुलेंस और अस्पताल चला रहे हैं। यह प्रेरक कहानी पंजाब के एक IRS रोहित मेहरा की है। उन्होंने पेड़-पौधों के लिए ट्री एम्बुलेंस (Tree Ambulance) और अस्पताल की शुरूआत की है। पेड़ों के इस अनोखे अस्पताल में पेड़-पौधों की करीब 32 बीमारियों का इलाज किया जा रहा है।
फिर से लगाये जा रहे पौधे, पेड़ों के लिए भी मरहम
अमृतसर में रहने वाले IRS रोहित मेहरा ने द बेटर इंडिया को बताया, “कई पेड़ों में फल नहीं आते हैं। इसके अलावा, कील लगाने और दीमक से भी पेड़ खराब होते हैं। इन सबका इलाज विशेषज्ञ कर रहे हैं। ट्री एम्बुलेंस (Tree Ambulance) में गैंती, फावड़ा, गड्ढा खोदने की मशीन, कटर, कैंची, आरी, पानी की टंकी, खाद की बोरी, दवा डालने की मशीन आदि भी रखी गई है।”
रोहित बताते हैं, “इस एंबुलेंस के जरिए पौधों को फिर से लगाने तक का काम भी किया जा रहा है। कई लोगों के घरों में पीपल का पेड़ निकल आता है, उसे किसी को अगर हटाना है तो पौधे को बिना नुकसान पहुँचाए, हम उसे फिर से लगा देते हैं।”
मोबाइल नंबर जारी
IRS रोहित कहते हैं कि यदि किसी के घर में पेड़-पौधे मुरझाने लगें या सूखने लगें तो उन्हें उखाड़कर फेंकना नहीं चाहिए बल्कि उसका इलाज करवाना चाहिए। उन्होंने बताया, “ट्री एम्बुलेंस (Tree Ambulance) की सहायता पाने के इच्छुक लोगों के लिए हमने एक मोबाइल नंबर 8968339411 जारी किया है। यदि किसी के पेड़ पौधे, किसी रोग से ग्रस्त हैं या मुरझा रहे हैं तो लोग इसकी सूचना, इस मोबाइल नंबर पर देते हैं। इसके बाद टीम मौके पर जाकर पेड़-पौधों की जांच करती है और आवश्यक इलाज मुहैया कराती है।”
टीम में 13 विशेषज्ञ शामिल
पेड़ों को पुनर्जीवित करने और उनके इलाज के लिए ट्री एम्बुलेंस (Tree Ambulance) के जरिए विशेषज्ञ उपलब्ध रहते हैं। विशेषज्ञों की इस टीम में आठ बोटनिस्ट (वनस्पति-वैज्ञानिक) और पांच वैज्ञानिक शामिल हैं। रोहित कहते हैं कि इस टीम को अब तक ट्री एम्बुलेंस (Tree Ambulance) की सहायता के लिए 300 कॉल आ चुकी हैं। ट्री एंबुलेंस (Tree Ambulance) का नाम ‘पुष्पा ट्री ऐंड प्लांट हॉस्पिटल ऐंड डिस्पेंसरी’ रखा गया है। अमृतसर में यह सेवा मुफ्त प्रदान की जा रही है।
25 छोटे-बड़े जंगल भी लगा चुके हैं
ट्री एम्बुलेंस (Tree Ambulance) और अस्पताल की सुविधा शुरू करने वाले IRS रोहित अब तक 500 वर्ग फुट से लेकर चार एकड़ तक की जगह में 25 छोटे-बड़े जंगल भी लगा चुके हैं। पर्यावरण के प्रति अपने लगाव के चलते, उन्होंने सबसे पहले लुधियाना रेलवे स्टेशन पर एक वर्टिकल गार्डन तैयार किया था। इसके लिए, उन्होंने प्लास्टिक की करीब 70 टन बेकार बोतलों का इस्तेमाल किया। यह कोशिश कामयाब होने के बाद, उन्होंने लुधियाना के सार्वजनिक स्थलों तथा कॉलेजों समेत जम्मू, सूरत, अमृतसर आदि शहरों में विभिन्न स्थानों पर करीब 500 वर्टिकल गार्डन्स तैयार कर दिए।
बंद हुआ स्कूल तो आया ख्याल
IRS रोहित बताते हैं कि वायु की खराब गुणवत्ता के चलते बेटे के स्कूल में छुट्टी की जानकारी हुई तो उनके मन में पर्यावरण प्रदूषण से लड़ने के इस ख्याल ने जन्म लिया। धीरे-धीरे स्थानीय लोगों ने रोहित से संपर्क करना शुरू कर दिया। साथ ही, उनसे उनकी खाली पड़ी ज़मीनों को हरा-भरा करने में मदद की गुहार भी लगाई। लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। लुधियाना में वर्टिकल गार्डन्स बनाने के उनके बेहतरीन कार्य की चर्चा हर जगह हो चुकी है। इसके अलावा मुल्लांपुर दाखा (लुधियाना) में वे बंजर जमीन पर छोटा जंगल उगा चुके हैं।
मियावाकी तकनीक से तैयार किए जंगल
IRS रोहित ने जापान की ‘मियावाकी तकनीक’ से कम अवधि में जंगल तैयार किए। उन्होंने बताया, “मियावाकी एक ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से खास तौर पर तीन तरह के पौधों- झाड़ीनुमा, मध्यम आकार के पेड़ और छांव देने वाले बड़े पेड़ को ज़मीन में रोपकर, जंगल बनाया जा सकता हैं। इस तकनीक को जापान के अकीरा मियावाकी ने विकसित किया था। उन्हीं के नाम पर इस तकनीक को मियावाकी तकनीक का नाम दिया गया है।”
ग्रीन मैन रोहित
लुधियाना में पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे काम की वजह से, रोहित मेहरा को लुधियाना का ग्रीन मैन भी पुकारा जाने लगा है। उन्हें हमेशा से ही पर्यावरण के प्रति लगाव रहा है। उनके परिवार वाले भी पेड़-पौधे लगाना, सबसे बड़ा पुण्य समझते हैं। रोहित कहते हैं, “पेड़-पौधे सजीव होते हैं। पेड़-पौधों के लिए अस्पताल और एम्बुलेंस (Tree Ambulance) का ख्याल भी इसी बात से आया कि इंसान और पशुओं के दुख-दर्द दूर करने के लिए अस्पताल हैं तो पेड़-पौधों के लिए भी अस्पताल क्यों न हो।”
लेखक भी हैं
IRS रोहित मेहरा ने पेरेंटिंग टिप्स पर एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम है ‘सुपर चाइल्ड’। इसमें पेरेंटिंग के 52 टिप्स दिए गए हैं। अभिभावकों को बताया गया है कि वे किस प्रकार बेहतर पेरेंटिंग कर सकते हैं।
प्रकृति प्रेमी रोहित के कामकाज में उनकी पत्नी और बेटे भी मदद करते हैं। वे भी प्रकृति से प्रेम करते हैं और पर्यावरण संरक्षण को आवश्यक मानते हैं।
लोगों के सम्मिलित प्रयासों से बदलेगी तस्वीर
पर्यावरण संरक्षण के लिए सम्मिलित प्रयासों को रोहित बेहद आवश्यक मानते हैं। उनका कहना है कि इससे ही पर्यावरण संरक्षण की पहल को बल मिल सकता है। वायु प्रदूषण की जो हालत विभिन्न शहरों में देखने को मिलती है, उसमें बदलाव लाने का यही रास्ता है। वह पौधों को लगाए जाने के साथ ही, उनकी देखभाल को भी बेहद जरूरी बताते हैं। ताकि ये पेड़ बनें तो अगली पीढ़ी तक इनका लाभ पहुंच सके।
द बेटर इंडिया इस प्रकृति प्रेमी अधिकारी के जज्बे को सलाम करता है। यदि आपको भी इस कहानी से प्रेरणा मिली और आप रोहित मेहरा से संपर्क करना चाहते हैं तो 94192 09650 पर कॉल कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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