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कारगिल हीरो: दुश्मन को हराने के लिए बर्फीली पहाड़ियों पर इस सैनिक ने की थी नंगे पैर चढ़ाई!

कारगिल में शहीद हुए कप्तान नेइकेझाकुओ केंगुरुसी का जन्म कोहिमा के नेरहमा गांव में हुआ था। नागालैंड में एक शताब्दी पहले तक इस गांव को पेरहमा या फिर हमेशा लड़ने वालों का घर कहा जाता था। उन्हें महावीर चक्र से नवाज़ा गया।

कारगिल युद्ध के सैनिकों की विरासत भारत के लिए अमूल्य है। न जाने कितने जवानों ने कारगिल की बर्फीली पहाड़ियों में अपनी जान गंवा दी। उन्हीं में से एक थे कप्तान नेइकेझाकुओ केंगुरुसी।

उनके परिवार वाले और दोस्त उन्हें प्यार से नैबु बुलाते थे और उत्तर भारत में उनके जूनियर अफसर उन्हें निम्बू साहब कहकर पुकारते थे। कप्तान केंगुरुसी का जन्म कोहिमा के नेरहमा गांव में हुआ था।

नागालैंड में एक शताब्दी पहले तक इस गांव को पेरहमा या फिर हमेशा लड़ने वालों का घर कहा जाता था।

कप्तान केंगुरुसी के लिए स्वतंत्र नागा भावना उनकी पारिवारिक विरासत थी। उनके महान दादा, पेरेइल, गांव के सबसे सम्मानित योद्धाओं में से एक थे। आज, नेरहेमा में एक धुंधला हुआ स्मारक है, जो योद्धा के पोते को समर्पित है। वे भी अपने दादा की ही भांति योद्धा थे।

उन के पिता, नीसीली केंगुरुसी, सरकार में एक ग्रेड चपरासी थे। वे धार्मिक और युद्ध-विरोधी थे। इसलिए वह शुरू में नहीं चाहते थे कि उनका बेटा सेना में शामिल हो, लेकिन नैबु ने उन्हें आश्वस्त किया कि सशस्त्र बलों में सेवा करने का सम्मान इस से जुड़े जोखिमों से कहीं अधिक है। कोहिमा साइंस कॉलेज से स्नातक होने के बाद, उन्होंने 12 दिसंबर, 1998 को भारतीय सेना में कमीशन होने से पहले कोहिमा में एक सरकारी हाई स्कूल में एक शिक्षक के रूप में कार्य किया था।

साल 1999 में, जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ, तो कप्तान केंगुरुसी राजपूताना राइफल्स बटालियन में जूनियर कमांडर थे। अपने दृढ़ संकल्प और कौशल के लिए, उन्हें घातक पलटन बटालियन का मुख्य कमांडर बनाया गया था। शारीरिक रूप से फिट और प्रेरित सैनिक ही इस पलटन में जगह बना सकते हैं।

28 जून 1999 की रात को इस पलटन को ब्लैक रॉक पर दुश्मन द्वारा रखी गयी मशीन गन पोस्ट को हासिल करना था। इसकी फायरिंग के चलते भारतीय सेना उन दिनों उस क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पा रही थी।

जैसे ही कमांडो पलटन ने चट्टान को पार किया, उन पर मोर्टार और आटोमेटिक गन फायरिंग होने लगी। जिसमें सभी सैनिकों को चोटें आयीं। कप्तान केंगुरुसी को भी पेट में गोली लगी। अपनी चोट के बावजूद उन्होंने अपनी सेना को आगे बढ़ते रहने को कहा। जब वे अंतिम चट्टान पर पहुंच गए तो उनके और दुश्मन पोस्ट के बीच केवल एक दीवार थी।

उनके सैनिक आगे बढ़ें और इस दीवार को भी पार करें इसके लिए कप्तान केंगुरुसी ने एक रस्सी जुटायी। हालाँकि, बर्फीली चट्टान पर उनके जूते फिसल रहे थे। वे चाहते तो आसानी से वापिस जाकर अपना इलाज करवा सकते थे। लेकिन कप्तान केंगुरुसी ने कुछ अलग करने की ठानी थी।

16,000 फीट की ऊंचाई पर और -10 डिग्री सेल्सियस के कड़े तापमान में, कप्तान केंगुरुसी ने अपने जूते उतार दिए। उन्होंने नंगे पैर रस्सी की पकड़ बना कर आरपीजी रॉकेट लॉन्चर के साथ ऊपर की चढ़ाई की।

ऊपर पहुंचने के बाद, उन्होंने सात पाकिस्तानी बंकरों पर रॉकेट लॉन्चर फायर किया। पाकिस्तान ने बंदूक की गोलीबारी के साथ जवाब दिया लेकिन उन्होंने भी तब तक गोलीबारी की जब तक कि उन्होंने पाकिस्तानी बंकरों को खत्म नहीं कर दिया। इसी बीच दो दुश्मन सैनिक उनके पास आ पहुंचे थे, जिन्हें उन्होंने चाकू से लड़ते हुए मार गिराया। उन्होंने अपने राइफल से दो और घुसपैठियों को मार गिराया। लेकिन दुश्मन की गोली लगने से वे भी चट्टान से गिर गए।

पर उनके कारण बाकी सेना को दुश्मन पर हमला बोलने का मौका मिल गया। मिशन पूरा करने के बाद जब उनके साथियों ने नीचे गहराई में देखा, जहां उनके निम्बू साहब का मृत शरीर पड़ा था, तो उन्होंने आंसुओं के साथ ये जीत उन्हें समर्पित की,

“ये आपकी जीत है निम्बू साहब, ये आपकी जीत है।”

कप्तान केंगुरुसी केवल 25 साल के थे, जब वे देश के लिए शहीद हो गए। अपने पिता के लिए लिखे आखिरी खत में कप्तान केंगुरुसी ने लिखा था,

“डैड, शायद मैं फिर से हमारे परिवार का हिस्सा बनने के लिए घर न लौट पाऊं। अगर मैं वापिस न भी आ पाऊं तो शोक मत करियेगा। क्योंकि मैंने अपने देश के लिए अपना क=सब कुछ न्योछावर करने का फैसला किया है।”

फोटो स्त्रोत

अपने बेजोड़ साहस और सर्वोच्च बलिदान के लिए, उन्हें मरणोपरांत महा वीर चक्र से सम्मानित किया गया। आर्मी सर्विसेज कॉर्प्स से  को हासिल करने वाले वे एकमात्र सैनिक हैं। उनके मेडल पर लिखा है,

“उन्होंने कर्तव्य के लिए अपनी ड्यूटी से आगे बढ़कर विशिष्ट बहादुरी और दृढ़ संकल्प प्रदर्शित किया और भारतीय सेना की सच्ची परंपराओं में दुश्मन के सामने सर्वोच्च बलिदान दिया है।”

उनकी मौत का शायद उनकी ज़िन्दगी से ज्यादा प्रभाव हुआ। जब उनका शरीर दीमापुर पहुंचा तो हज़ारो लोग उनके गांव के रास्ते पर उनके सम्मान में खड़े थे। उन्हें पुरे सैन्य सम्मान के साथ विदा किया गया। इस दुःख में नागालैंड अपने तीन दशकों के विद्रोह को भूल पुरे देश के साथ खड़ा हुआ।

कप्तान केंगुरुसी जैसे सैनिक हर दिन पैदा नहीं होते हैं। नागा मिट्टी के इस सच्चे बेटे और नायक के बलिदान को हमेशा देश द्वारा कृतज्ञता के साथ याद किया जाना चाहिए जिसकी रक्षा करते उन्होंने अपना बलिदान दिया।

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मूल लेख: संचारी पाल


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