पुलिस के लिए लोगों के मन में अक्सर एक नकारात्मक छवि रहती है। लेकिन, आंध्र प्रदेश के कोशी बग्गा पुलिस स्टेशन में एक एसआई (SI) के रूप में तैनात, कोट्टुरू सिरीशा ने कुछ ऐसा काम किया है कि लोग उनकी मिसाल देते नहीं थक रहे हैं।
यह घटना 31 जनवरी 2021 की है। सिरीशा को अदवी कोठुर गाँव से किसी ने फोन किया कि वहाँ एक लावारिस लाश पड़ी हुई है।
वह बताती हैं, “मुझे पुलिस स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर, अदवी कोठुर गाँव से किसी व्यक्ति ने सुबह करीब 10:30 बजे फोन किया कि यहाँ एक लावारिस लाश पड़ी हुई है। इसके बाद, मैं तुरंत वहाँ के लिए निकल पड़ी।”
वह आगे बताती हैं, “जिस गाँव में लाश पड़ी थी, वहाँ सड़कें नहीं हैं। इसलिए हमें करीब दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। मैंने वहाँ देखा कि एक 70 वर्षीय बूढ़े आदमी की लाश पड़ी हुई है। उनकी मौत भूख की वजह से हुई थी।”
इसके बाद, उन्होंने स्थानीय लोगों से लाश को एम्बुलेंस तक ले जाने के लिए आग्रह किया, लेकिन कोई आगे नहीं बढ़ा।
वह कहती हैं, “लोग संभवतः कोरोना वायरस और कई अन्य सामाजिक धारणाओं के कारण पीछे हट रहे थे और उन्होंने लाश को हाथ लगाने से इंकार कर दिया।”
वह आगे बताती हैं, “कोई उपाय न देख कर, मैंने अनाथ बच्चों और वृद्ध-जनों की बेहतरी की दिशा में काम करने वाली संस्था, ‘ललिता चैरिटेबल ट्रस्ट’ के कृष्णा को मदद के लिए फोन किया, जो मेरे पिता समान हैं।”
इसके बाद, दोनों ने मिलकर लाश को अपने कंधों पर उठा लिया और दो किलोमीटर दूर खड़े एम्बुलेंस तक ले आए। शाम तक सभी कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद, पूरे रीति-रिवाजों के साथ लाश का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मूल रूप से विशाखापट्टनम की रहने वाली सिरीशा कहती हैं, “इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, मेरे दिल में एक ही बात चल रही थी कि मैं भगवान शिव की सेवा कर रही हूँ।”
पिता चाहते थे, बेटी पुलिस बने
27 वर्षीया सिरीशा बताती हैं, “मेरे पिता राजमिस्त्री का काम करते हैं और माँ गृहिणी हैं। मेरा परिवार कई मुश्किलों से गुजरा है। सरकारी स्कूल से 12वीं तक पढ़ने के बाद, मैंने स्थानीय ‘विशाखा वुमन डिग्री कॉलेज’ से बी. फार्मेसी में ग्रैजुएशन की।”
लेकिन, उनके पिता के. अप्पा राव चाहते थे कि उनकी बेटी पुलिस बने और वर्दी में लोगों की सेवा करे।
वह कहती हैं, “मैंने अपने पिता के सपने को सच करने के लिए, पढ़ाई पूरी करने के बाद, साल 2014 में इसकी तैयारी शुरू की। मुझे पहले प्रयास में ही सफलता मिल गई। मेरी पहली नियुक्ति एक्साइज डिपार्टमेंट (उत्पाद शुल्क विभाग) में एक कांस्टेबल के रूप में हुई और साल 2017 में मुझे एसआई की परीक्षा में सफलता मिल गई।”
सिरीशा का लक्ष्य डीएसपी (DSP) बनना है और वह इसके लिए हरसंभव तैयारी भी कर रही हैं।
वह कहती हैं, “मेरा अगला लक्ष्य डीएसपी के रूप में, लोगों की सेवा करना है। यह मेरा और मेरे पिता का सपना है। इसके लिए मैं ‘राज्य सेवा आयोग परीक्षा’ की तैयारी भी कर रही हूँ।”
पिता से मिली मानवीय मूल्यों की सीख
सिरीशा कहती हैं, “मेरे पिता पढ़े-लिखे नहीं हैं लेकिन, उन्होंने मुझे मानवीय मूल्यों की सीख दी। उनके संघर्षों को देख, मैंने सीखा है कि कठिन हालातों में, जिंदगी में कैसे आगे बढ़ना है और लक्ष्यों को हासिल करना है।”
यही कारण है कि उन्हें जब भी मौका मिलता है, वह ‘ललिता चैरिटेबल ट्रस्ट’ जाती हैं और वहाँ के बच्चों और बुजुर्गों की मदद करती हैं।
महिलाओं के लिए संदेश
वह कहती हैं कि आज पुलिस या ऐसे अन्य विभागों में काम करने वाली महिलाओं को काफी कमजोर समझा जाता है। लेकिन, इस धारणा को गलत साबित करने के लिए, महिलाओं को मजबूती से आगे बढ़ना होगा और दिखाना होगा कि महिलाएं कठिन से कठिन कर्तव्यों को भी सहजता से निभा सकती हैं।
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संपादन – प्रीति महावर
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