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कोलकाता की पहली महिला मूर्तिकार माला पाल

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मूर्तियाँ बनाने में माहिर होने के बावजूद माला पाल को अपने मूर्तिकार पिता के वर्कशॉप में तक जाने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि वह एक महिला थी।

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लेकिन पिता के निधन के बाद उन्होंने अपने भाईयों के साथ मिलकर मूर्तियां बनाना शुरू किया।

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यह मौका भी उन्हें उनके हुनर के कारण नहीं बल्कि मज़बूरी में मिला था।  

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हुआ यूँ था कि एक दिन उनके भाई को मूर्ति का ऑर्डर पूरा करने में देर हो गयी थी। तब उन्होंने अपने भाई की मदद करके के लिए पहली बार मूर्ति बनाई।  

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कोलकाता का मशहूर कुमारटुली इलाका मूर्तिकारों का घर है। जहां मूर्तियाँ बनाने का व्यवसाय लंबे समय से पुरुष-प्रधान रहा है।

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पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्यौहार दुर्गापूजा के समय तो यहां का आकर्षण देखने लायक होता है।

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लेकिन पुरुष प्रधान इस व्यवसास की धारणा को तोड़ते हुए माला ने आज यहां अपनी अलग पहचान बना ली है।

इतना ही नहीं आज उनकी बनाई छोटी फोल्डेबल मूर्तियां विदेशों तक जा रही हैं।  

इसके आलावा वह एक स्कूल भी चलाती हैं, जहाँ वह आने वाली पीढ़ी को मूर्तियां बनाना सीखा रही हैं।

उनकी इस क्लास में सात-आठ साल के बच्चे भी आते हैं जिन्हें अपनी पारम्परिक कला सीखाकर माला को बहुत ख़ुशी मिलती है।