54 वर्षीय मगन कामरिया गुजरात के मोरबी जिले के जबलपुर गाँव के रहने वाले हैं। उनके पास करीब 30 बीघा जमीन है, जिस पर वह कपास और मूंगफली की खेती करते थे। लेकिन, इससे उनकी कमाई इतनी कम होती थी कि घर चलाना मुश्किल हो गया था। हार कर उन्होंने खेती छोड़ने का मन बना लिया था। इसी बीच उन्हें ‘हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट’ में काम करने वाले अपने बड़े बेटे निलेश से, एक नई वैरायटी के अमरूद के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद, मगन ने अमरूद की खेती (Amrud Ki Kheti) करने का फैसला कर लिया।
मगन ने द बेटर इंडिया को बताया, “पहले हमें एक बीघे से हर साल पाँच से सात हजार की कमाई होती थी। इससे छह लोगों के परिवार को चलाना आसान नहीं था। हार कर हमने खेती छोड़ने का विचार कर लिया। लेकिन, निलेश की सलाह के बाद अब हम अमरूद की खेती करते हैं, जिससे प्रति बीघा 60-70 हजार की कमाई होती है।”
मगन फिलहाल अपने 25 बीघा जमीन पर ‘थाई अमरूद’ की खेती करते हैं। बाकी, 5 बीघा जमीन पर वह खीरा, मिर्च, टमाटर, लौकी जैसी सब्जियों की खेती करते हैं। इस तरह उन्हें, अपने खेती कार्यों से हर साल करीब 20 लाख रुपए की कमाई होती है।
कैसे हुई शुरुआत
मगन ने अमरूद की खेती छह साल पहले शुरू की। अमरूद की उन्नत खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए उनके छोटे बेटे, चिराग छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित वीएनआर नर्सरी गए।
वहाँ ट्रेनिंग लेने के बाद, उन्होंने करीब 4500 पौधे लगाएं। ये सभी पौधे थाई वैरायटी के थे। मगन ने अपनी खेती के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाया, ताकि रोज-रोज सिंचाई के झंझट से मुक्ति मिल जाए और पानी की भी बचत हो।
मगन बताते हैं, “कम बीज और खाने में स्वादिष्ट होने के साथ, इस अमरूद की एक और खासियत है कि, यह 300 ग्राम से 1.5 किलो तक का होता है। यही कारण है कि, हमने शुरुआती दो वर्षों के दौरान, अपने पेड़ों में फल नहीं लगने दिए, ताकि यह सुरक्षित रहे।”
वह आगे बताते हैं, “इस खेती में अधिक लाभ होने के साथ-साथ, एक और फायदा यह है कि हमें इसके रखरखाव के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। पेड़ों को एक बार लगा देने के बाद, हमें 30 वर्षों तक सोचने की जरूरत नहीं है।”
खेती करने का तरीका
मगन कहते हैं, “दो पौधों के बीच में कम से कम 8 फीट और लाइनों के बीच 12 फीट की दूरी होनी चाहिए, ताकि खेतों की जुताई करने में कोई दिक्कत न हो।”
उर्वरकों के इस्तेमाल को लेकर वह कहते हैं, “हम उर्वरक के तौर पर, गाय के गोबर और मूत्र से बने जीवामृत का इस्तेमाल करते हैं। हम अपने खेती कार्यों में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते हैं, क्योंकि इससे खेतों को काफी नुकसान होता है।”
दिया बिजनेस का रूप
चिराग बताते हैं, “हमने शुरू में ही तय कर लिया था कि, हमें अमरूद की खेती को एक बिजनेस का रूप देना है। इससे हमने मार्केट, डिमांड और ट्रांसपोर्टेशन के बारे में जानकारी हासिल कर, बड़े पैमाने पर खेती करने का फैसला किया। क्योंकि, यदि उत्पादन कम होगा तो ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च अधिक आएगा और लाभ नहीं होगा।”
वह बताते हैं, “आज हमारे एक पेड़ में साल में कम से कम 40 किलो फल आते हैं। हमने अमरूद बेचने के लिए राजकोट-मोरबी हाईवे पर ‘जय रघुनाथ फॉर्म’ के नाम से एक दुकान भी खोली है। जहाँ खुदरा और थोक, दोनों तरीके से फल बेचे जाते हैं।”
खुदरा भाव में उनका अमरूद 70-80 रुपए किलो और थोक में 45-70 रुपए किलो आसानी से बिक जाता है। आज उनका बाजार मोरबी के अलावा राजकोट, जामनगर, अहमदाबाद, बड़ौदा जैसे शहरों तक है।
कभी खेती में नुकसान का सामना कर रहे मगन, आज अपने खेती कार्यों को संभालने के लिए 20-25 लोगों को नियमित रूप से रोजगार दे रहे हैं।
साथ ही, वह जल्द ही, अमरूद को प्रोसेस कर, चॉकलेट और जैम बनाने की योजना बना रहे हैं, ताकि अधिक से अधिक हाथों को काम देने में मदद मिले।
यदि आप अमरूद की खेती के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो मगन कामरिया से 09879643956 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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