आदि काल में इंसानों का जीवन अस्थिर था। वे एक जगह से दूसरी जगह घूमते, और अपना जीवनयापन करते थे। ऐसी अवस्था में सर्दी, गर्मी, बरसात, जैसे कई खतरों से बचाव के लिए, मानव जाति ने एक स्थायी निवास की जरूरत महसूस की, और यहीं वास्तुकला का उद्भव हुआ।
धीरे-धीरे, मानव सभ्यता के विकास के साथ भवन निर्माण का भी विकास हुआ। लेकिन, कालांतर में, हमने अपने घरों को बनाने के लिए कई ऐसे कदम उठाए, जिससे आज समस्त मानव जाति पर ही, संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
आज सीमेंट, एसी, और अन्य मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों के अत्यधिक इस्तेमाल से पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। तो, आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलाने जा रहे हैं, जो इन खतरों को देखते हुए, न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल घर बनाने, बल्कि अपने जीवन के तौर-तरीकों में भी बदलाव लाने पर जोर देते हैं।
आर्किटेक्ट सत्य प्रकाश वाराणशी, मूल रूप से बेंगलुरु के रहने वाले हैं और अपनी फर्म ‘सत्य कंसल्टेंट्स’ के तहत, पिछले 28 वर्षों से पर्यावरण के अनुकूल संरचनाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं।
इस दौरान उन्होंने 500 से अधिक परियोजनाओं को अंजाम दिया है। आइए उनके कुछ चुनिंदा परियोजनाओं के बारे में जानते हैं।
पदमा एंड नागराजू कॉटेज
इस परियोजना के तहत, सत्य ने बेंगलुरु में रहने वाले पदमा और नागराजू के लिए एक गेस्ट हाउस बनाया था।
इस घर को उन्होंने 2020 में बनाया था। इसमें एक बेड रूम, लिविंग रूम, किचन और डाइनिंग रूम है। करीब 300 वर्ग फीट के दायरे में, चारों ओर पेड़-पौधों से घिरे, इस घर को बनाने में महज 7 लाख रुपए का खर्च आया था। जो आज, सीमेंट से बने घरों के मुकाबले कहीं अधिक किफायती है।
सत्य बताते हैं, “इस घर को बनाने के लिए 4 महीने का समय पर्याप्त था। लेकिन, लॉकडाउन के कारण इसे पूरा करने में हमें करीब 1 साल लगे। इस प्रोजेक्ट के लिए हमने आर्किटेक्चर के स्थानीय छात्रों को वालंटियरिंग के लिए बुलाया। इसे उन्हें निःशुल्क वर्कशॉप में भाग लेने का मौका मिला और हमें श्रम लागत को कम करने में मदद मिली।”
वह आगे बताते हैं, “इस घर में पिलर को बनाने के लिए बाँस, आधार के लिए पत्थर और दीवारों को बनाने के लिए मिट्टी और चूने का इस्तेमाल किया गया। घर की छत को भी हमने पत्थर से बनाया। हालांकि, बेंगलुरु के मौसम को देखते हुए, इस पर सीमेंट के घोल की एक पतली परत चढ़ाई गई, ताकि लीकेज से बचा जा सके। इसके अलावा, सीमेंट का कहीं और इस्तेमाल नहीं किया गया और न ही स्टील का। इससे हमें घर को सस्ते में बनाने में मदद मिली।”
इस विषय में, घर के मालिक केवी नागराजू कहते हैं, “हमारे मुख्य घर में सिर्फ दो कमरे थे। इसलिए हमने इस घर को गेस्ट हाउस के रूप में बनाया। यह घर बनाना, हमारे लिए सीमेंट के मुकाबले 40% सस्ता साबित हुआ। साथ ही, मिट्टी-बाँस से बने होने के कारण यह अपेक्षाकृत 4-5 डिग्री ठंडा रहता है। इस वजह से मुझे एसी या पंखे की जरूरत नहीं होती है।”
पदमा और नागराजू के लिए घर
गेस्ट हाउस के अलावा, उन्होंने पदमा और नागराजू के लिए 2019 में एक घर भी बनाया।
सत्य बताते हैं कि उनके पास 40×70 फीट के दो प्लॉट थे। एक में, वह जैविक बागवानी करते थे। जबकि, दूसरे मेंं एक छोटा-सा घर बनाना चाहते थे।
वह बताते हैं, “वे सिर्फ दो ही लोग थे और उनकी जरूरतें काफी सीमित थीं। इसके बाद, हमने इसकी पूरी प्लानिंग की और घर बनाना शुरू किया।”
2940 वर्ग फीट में बने इस घर में एक बेडरूम, एक लिविंग रूम, किचन, डाइनिंग रूम, और बाथरूम है। इस घर को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध मिट्टी, पत्थर, बाँस लकड़ी जैसे संसाधनों से बनाया गया है। घर की दीवारों को हॉलो क्ले ब्रिक्स से बनाया गया है। जिससे एयर सर्कुलेशन अच्छा होता है और घर गर्मी के मौसम में ठंडा और ठंड के मौसम में गर्म रहता है।
वहीं, इस घर की छत को क्ले टाइल से बनाया गया है और इसमें कॉलम, बीम नहीं हैं। कार पार्किंग में सिर्फ दो पिलर का इस्तेमाल किया गया है, ताकि छत बन सके। बाकी, घर को इस तरीके से डिजाइन किया गया है कि इसका पूरा भार दीवारों पर हो।
इस घर को बनाने में प्रति वर्ग फीट करीब 2300 रुपए का खर्च आया, जो सीमेंट के घरों के समान ही है, लेकिन अधिक टिकाऊ व पर्यावरण के अनुकूल है।
वह बताते हैं कि इस घर को बनाने में मजदूरी दर अधिक थी, लेकिन इसमें रेगुलर फिनिशिंग को लेकर कोई खर्च नहीं है। क्योंकि, इसे कभी प्लास्टर या पेंट करने की जरूरत नहीं है।
मोंटेसरी स्कूल, 2019
यह एक प्राइवेट स्कूल है, जिसे उन्होंने तमिलनाडु के सेलम में बनाया है।
इस स्कूल को बनाने का काम 2017 में शुरू हुआ था और 2019 में यह बन कर तैयार हुआ। यह एक होम स्कूल है, जिसे तीन से सात साल के बच्चों के लिए बनाया गया है।
इस स्कूल में लाइब्रेरी, प्ले गार्डन, स्विमिंग पुल जैसी सुविधाएं हैं और इसके विजुअल आस्पेक्ट को ऐसे डिजाइन किया गया है, जिससे बच्चों को प्रकृति के साथ एक जुड़ाव हो और उन्हें घर जैसा माहौल मिले। साथ ही, इसमें हवा आवागमन के लिए बड़े-बड़े वेंटीलेटर भी बनाए गए हैं।
इस स्कूल की दीवारों को बनाने के लिए क्ले ब्लॉक और छतों को बनाने के लिए उरुली क्ले का इस्तेमाल किया गया है। जिससे यहाँ भीषण गर्मी में भी, कमरे का तापमान सात से आठ डिग्री ठंडा रहता है।
किससे मिली प्रेरणा
बेंगलुरु के एक कॉलेज से आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन करने के बाद सत्य, आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली स्थित ‘स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर’ चले गए।
वह बताते हैं, “पढ़ाई पूरी करने के बाद, मुझे लॉरी बेकर, शंकर कानाडे, एजी कृष्ण मेनन जैसे प्रतिष्ठित वास्तुकारों के साथ काम करने का मौका मिला। इसके बाद, धीरे-धीरे मेरा रुझान ‘इको-फ्रेंडली आर्किटेक्चर’ की ओर बढ़ने लगा।1990 के दशक के शुरुआती वर्षों से, मैं इसका निरंतर अभ्यास कर रहा हूँ।”
वह आगे कहते हैं, “मैं अपनी संरचनाओं को इस तरीके से बनाने की कोशिश करता हूँ, जो बेहद आसान हो, और उसका जुड़ाव सीधे प्रकृति से हो। इससे घर किफायती होने के साथ-साथ, इको-फ्रेंडली भी होता है।”
मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों से खतरा
सत्य बताते हैं, “प्राचीन काल से ही, हमारी वास्तुकला काफी समृद्ध रही है। लेकिन, 1940 के दशक के बाद, सीमेंट, स्टील जैसे मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों का चलन बढ़ने लगा। बेशक, इससे घर बनाना आसान है। लेकिन, इससे न सिर्फ हम अपनी पहचान को भूलने लगे। बल्कि, इससे प्रकृति को भी काफी नुकसान हुआ है। आज हमें अपने मूल की ओर लौटने की जरूरत है।”
वह बताते हैं, “इसके लिए अंतरराष्ट्रीय वास्तुकारों का रवैया ही जिम्मेदार है। क्योंकि, उन्होंने यहाँ एक ऐसी मानसिकता को जन्म दिया कि, मिट्टी से घर बनाना, पिछड़ेपन का प्रतीक है।”
एक्शन पर देते हैं जोर
सत्य कहते हैं कि, सौ साल पहले हमारे पास इतने उत्पाद नहीं थे। लेकिन, आज हमारे आस-पास सैकड़ों उत्पाद हैं। लेकिन, हमें यह सोचने की जरुरत है कि, वास्तव में क्या हम इससे सौ गुना अधिक कार्य कुशल या खुश हुए हैं? यदि नहीं, तो हमें सोचना होगा कि, हमारी जरूरतें क्या हैं, और हम किन चीजों को नजरअंदाज कर सकते हैं।
वह बताते हैं कि, आज हम सिर्फ बाजार और सरकार को दोष नहीं दे सकते हैं। आज ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हमारा ज्ञान काफी बढ़ चुका है। लेकिन, सिर्फ जागरूकता, परिस्थितियों को नहीं बदल सकती है। हमें व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयास करने होंगे।
समस्या मैं, तो समाधान भी मैं
वह कहते हैं, “यदि मैं समस्या हूँ, तो समाधान भी मैं ही हूँ। इसलिए, आज हमें जिस तरीके से जिंदगी जीनी है, हमें घर भी वैसा ही बनाना होगा। इसके लिए हमें खुद के अंदर झाँक कर, घरों को एक विचार के तहत बनाने की जरूरत है। ताकि, ऊर्जा की खपत को नियंत्रित किया जा सके।”
वह कहते हैं, “कोरोना महामारी ने हमारे जीवनशैली को काफी बदल दिया है, और इससे पूरी दुनिया में ‘कार्बन फूटप्रिंट’ कम हो गया। यदि हमें मानव जाति को बचाना है, तो हमें आगे भी एसी, हवाई यात्रा और अन्य लग्जरी सुविधाओं पर निर्भरता कम करनी होगी। हमें सोचना होगा कि, एक इंसान होकर, हम क्या कर रहे हैं।”
वह अंत में कहते हैं, “लग्जरी सुविधाओं के बिना रहने का अर्थ यह नहीं है कि, हम आधुनिक न बनें। लेकिन, हम आधुनिक सुविधाओं को कितना अपनाएँ, यह हमें व्यक्तिगत स्तर पर सोचना होगा और आगे बढ़ना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों को बेहतर कल मिल सके।”
आप सत्य कंसल्टेंट्स से फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच
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