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‘पानी की चक्की से आटा’, भारत की इस प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित कर रहा है यह स्टार्टअप

gharat

चंडीगढ़ के तीन दोस्त - विकास सिंगला, अनुज सैनी, और नितिन शर्मा पानी से चलने वाली आटा चक्की यानी घराट की परंपरा को पुनर्जीवित करने और लोगों को इनसे निर्मित ताज़ा आटा खिलाने के मिशन पर हैं।

भारत में सदियों से अलग-अलग अनाजों से आटा बनाये जा रहे हैं। वक़्त के साथ आटा बनाने के तरीके में भी काफ़ी ज़्यादा बदलाव आया है। पहले अनाज को धो-सुखाकर हाथ की चक्की से पीसा जाता था लेकिन, अब इसके लिए बिजली से चलने वाली आटा-चक्कियां मौजूद हैं। 

पर क्या आपको पता है कि भारत में ऐसे भी पहाड़ी इलाके हैं, जहां आटा-चक्की हाथ या बिजली से नहीं बल्कि पानी से चलती है? जी हाँ! इन्हें ‘‘घराट’’ या ‘पनचक्की’ के नाम से जाना जाता है और उत्तराँचल के दैनिक जीवन का यह अभिन्न अंग है। हालाँकि, पिछले एक दशक में जिस तरह से विभिन्न तकनीकें देश में उभरी हैं, उससे आज ये वाटर-मिलें बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुँच गईं हैं। 

देश में पानी की चक्की से आटा बनाने वाले लोग धीरे-धीरे कम होते गए, क्योंकि समय के साथ इसकी मांग कम होती चली गई और इससे मिलों में काम करने वाले कई लोगों ने अपनी आजीविका भी खो दी। कुछ लोगों को अपनी मिलों को बंद करना पड़ा क्योंकि, मिलों को बिजली देने वाले पानी के चैनलों को या तो अवरुद्ध तथा स्थानांतरित कर दिया गया था, या वे सूख चुके थे। इन मिलों को चलाने वाले लोगों के पास इतने साधन नहीं थे कि वे पानी के इन स्त्रोतों की मरम्मत कराते या फिर कोई चेक-डैम बनवाते। 

Himachal Pradesh
The co-founders of Ghrats Fresh Atta Vikas Singla and Anuj Saini

लेकिन चंडीगढ़ के तीन दोस्त – विकास सिंगला, अनुज सैनी, और नितिन शर्मा इन घराटों को पुनर्जीवित करने और लोगों को इनसे निर्मित ताज़ा आटा खिलाने के मिशन पर हैं। 

विकास सिंगला ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमारे देश में अंग्रेजों के समय से ही पानी की मिलों का उपयोग किया जा रहा है। जिससे निर्मित आटा ज़्यादा महीन, नर्म और स्वास्थ्यवर्धक होता है। मेरे दादाजी हमेशा मुझे बताते थे कि यह आटा प्रोटीन और फ़ाइबर से भरपूर होता है। आजकल ‘घराट’ लगभग न के बराबर हैं क्योंकि उनमें से 99% ‘‘घराट’’ अब बंद हो चुके हैं।”  

इन तीनों दोस्तों ने खोई हुई इस परंपरा को पुनर्जीवित किया है, ताकि लोगों को सस्टेनेबल तरीकों से बना खाना मिले और रोज़गार भी। 

क्या है ‘‘घराट’’?

‘‘घराट’’ एक घर या एक चक्की है, जिसे किसी तेज़ बहाव वाले जल-स्त्रोत के नीचे की तरफ बनाया जाता है। इस स्त्रोत के नीचे एक टरबाईन लगाईं जाती है, जो बहते पानी से संचालित होती है। घर के अंदर, दो पत्थर लगाए जाते हैं, जिन्हें एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है। जो अनाज को पीसने के लिए उपयोग में लाये जाते हैं। इन दोनों पत्थरों में से एक टरबाईन के चलने पर घमूता, जबकि दूसरा स्थिर रहता है। 

The gharat placed downstream of a fast-flowing river channel.

इन पत्थरों की चाकी के ऊपर एक फ़नल होती है, जिसे आमतौर पर हॉपर के रूप में जाना जाता है और यह स्टील से बनी होती है। इसमें अनाज रखा जाता है। इस हॉपर को लकड़ी के फ्रेम की मदद से पीसने वाले पत्थर के ऊपर सेट किया जाता है। पत्थरों में अनाज गिरे, यह सुनिश्चित करने के लिए फ़नल के मुंह के पास लकड़ी की एक छोटा सी कील होती है। यह लकड़ी की कील जब आटा पीसने वाले पत्थर के संपर्क में आती है तो फ़नल में कंपन होता है, जिससे अनाज ग्राइंडर के छेद में गिरता है। एक बार जब आटे को बारीक पीस लिया जाता है, तब इसे पत्थर से बाहर निकाल कर एकत्र किया जाता है।

विकास आगे कहते हैं, “पानी की आपूर्ति प्राकृतिक है और पानी को स्टोर करने के लिए कोई चेक-डैम नहीं हैं। लेकिन, कुछ मिल मालिकों ने चट्टानों का प्रयोग कर चैनल पर एक बिंदु बनाया है जहां से पानी को दो धाराओं में मोड़ा जाता है। एक जो चक्की की तरफ तथा दूसरा नदी की तरफ बहता है। जब मिल काम करना शुरू करती है, तो पानी को ‘घराट’ की ओर मोड़ दिया जाता है, और दिन पूरा होते ही पानी को फिर से नीचे की ओर मोड़ दिया जाता है।”

Gharat
The grinding stone inside the gharat.

इन तीनों दोस्तों का बड़ी ही कम उम्र में ‘‘घराट’’ से परिचय हो गया था। अनुज का कहना है कि उनके पिता व्यवसाय के लिए पहाड़ों की यात्रा किया करते थे और हमेशा ‘‘घराट’’ से बने आटे के बैग लेकर घर लौटते थे। जब अनुज बड़े हुए तो उन्होंने भी लैंडस्केपिंग का अपना व्यवसाय शुरू किया। कुछ परियोजनाओं के लिए, वह भी अक्सर हिमालय की यात्रा करते और सोचते थे कि वह फिर से ‘घराट’ से ही पिसा आटा लेकर घर जाएँ। लेकिन बहुत ढूंढ़ने पर भी उन्हें कोई ‘घराट’ नहीं मिला। 

अनुज आगे कहते हैं कि वह उन लोगों के यहां गए जिनके बारे में उनके पिता उन्हें बताते थे। लेकिन वहां के ‘घराट’ या तो बंद हो चुके थे या फिर बहुत ही दयनीय स्थिति में थे। उनमें से कुछ के पास मिल चलाने के लिए कोई जल-स्त्रोत ही नहीं था। उन्होंने आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि इन मिल-मालिकों को बेहतर आजीविका की तलाश में या तो पलायन करना पड़ा या फिर कोई और काम करना पड़ा। 

‘घराट’ को किया पुनर्जीवित

‘घराट’ को पुनर्जीवित करने के लिए उन्होंने हिमाचल और हरियाणा पर फोकस किया। उन्होंने उन घराटों को ढूंढा जो कुछ साल पहले छोटे-बड़े कारणों से बंद हुए थे, जैसे कि कोई मरम्मत न होने के कारण, कोई जल-स्त्रोत रुकने के कारण या फिर सही मार्किट न मिलने की वजह से बंद हुए हों। उन्होंने इन घराट-मालिकों से बात की और फिर सभी घराटों की मरम्मत करवाई। जून 2020 में उन्होंने अपना ब्रांड लॉन्च किया तथा अपने ब्रांड का नाम भी ‘घराट- फ्रेश’ रखा है।

Chandigarh Startup Ghrat Fresh
A gharat revived by Vikas, Anuj and Nitin.

विकास ने बताया, “वर्तमान में हमने पाँच घराटों को पुनर्जीवित कर दिया है तथा जो परिवार इसके मालिक हैं, उनके द्वारा इस कार्य का ध्यान रखा जा रहा है। दो ‘घराट’ हरियाणा के भादी शहर और मदीना में स्थित हैं, और अन्य तीन परवाणू, हिमाचल प्रदेश में हैं। हमने मिल मालिकों के साथ एक अनुबंध किया है, जिसमें हम ‘घराट’ की मरम्मत के लिए वित्तीय मदद, कच्चा माल और एक मासिक वेतन देंगे इसके अलावा अतिरिक्त रोज़गार की आवश्यकता होने पर हम उन्हें भुगतान भी करते हैं।” 

अब तक उन्होंने ऐसे  20 घराटों की पहचान की है और उपभोक्ता-मांग के अनुरूप उन्हें पुनर्जीवित करने पर आगे भी काम करेंगे।

अनुज कहते हैं, “इस बीच, हमने इसकी पैकेजिंग के लिए चंडीगढ़ में एक जगह भी खरीदी है। इन स्थानों से ट्रकों द्वारा पहाड़ों में जहाँ वाहन नहीं जा सकते, आटा पहुँचाया जाता है तथा घोड़ा-गाड़ियों का इस्तेमाल आटा लाने के लिए किया जाता हैं।”

Chandigarh Startup
Some of the products offered by Ghrat Fresh.

गेहूं के आटे  के अलावा, इन चक्कियों में मकई, बेसन तथा काले गेहूं का आटा, साथ ही गरम मसाला, धनिया पाउडर, और मिर्च पाउडर सहित कई प्रकार के मसाले भी बनायें जाते हैं। उनका कहना है कि उन्हें पंजाब, हरियाणा, लुधियाना और शिमला से हर दिन अच्छी संख्या में ऑर्डर मिल रहे हैं।

विकास कहते हैं, “चंडीगढ़, मोहाली और पंचौली में हम मुफ्त होम डिलीवरी करते हैं, लेकिन अन्य जगहों के लिए डिलीवरी-फ़ी ली जाती है।”

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संपादन: प्रीति महावर

मूल लेख: रौशिनी मुथुकुमार

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