कभी जमीन पर गिरे आटे से भरते थे पेट, पढ़िए एक IRS अधिकारी की प्रेरक कहानी!

UPSC Success Story

औरंगाबाद में सहायक आयकर आयुक्त के रूप तैनात IRS विष्णु औटी का बचपन काफी संघर्षों से भरा था। आलम यह था कि उन्हें अपना पेट भरने के लिए, चक्की मिल में फर्श पर गिरे हुए आटे को जमा करना पड़ता था।

औरंगाबाद के सहायक आयकर आयुक्त, विष्णु औटी को 1972 में अपने पिता द्वारा दी हुई सीख अब भी याद है।

यह बात उस वक्त की है, जब वह रेत और पत्थर से खेल रहे थे। इसी दौरान उनके पिता हरिभाऊ आए और उनके छोटे कंधों पर हाथ रख, समझाया, “यदि आप ठीक से पढ़ाई नहीं करेंगे, तो आप भी मेरी तरह धूप में काम करेंगे। वैसे इंसान बनें जो छाए में बैठता है, मजदूर नहीं।”

हालाँकि, अहमदनगर जिले के कुम्हारवाड़ी गाँव में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने के दौरान, हरिभाऊ ने इन बातों को यूँ ही कहा था। लेकिन, किसे पता था कि उनके ये शब्द विष्णु की जिंदगी बदल देंगे।

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विष्षु औटी

जब वह 10 साल के हुए, उन्हें एहसास हुआ कि गरीबी, पानी की किल्लत और इस तरह की तमाम कठिनाइयों से उबरा जा सकता है और उन्होंने टीवी के जरिए एक अलग जीवन के बारे में पता चला।

वह पढ़-लिख कर कुछ हासिल करना चाहते थे। लेकिन, घर की खराब स्थिति के कारण, यह कतई आसान नहीं थी। लेकिन, विष्णु ने हिम्मत नहीं हारी और हर मुश्किलों का सामना मजबूती से किया।

हिम्मत से किया मुश्किलों का सामना

विष्णु के पिता, हरिभाऊ ने काम करने के दौरान अपने आँखों की रोशनी गँवा दीं। जबकि, माँ कैलासबाई सुन नहीं सकती थीं। वे अपने तीन बच्चों की परवरिश करने के लिए दिहाड़ी मजदूरी करते थे और अक्सर भूखे पेट अपना दिन गुजार देते थे। 

इससे उनके सेहत पर बुरा असर पड़ा और उम्र ढलने के साथ काम करना मुश्किल हो गया।

उनके गाँव की स्थिति भी काफी खराब थी। वहाँ न तो कोई स्कूल था और न ही सूखे की वजह से खेती का कोई साधन। जिसका सीधा असर विष्णु के माता-पिता पर पड़ा। क्योंकि, कोई खेती न होने का अर्थ था कोई मजदूरी कार्य नहीं।

आलम यह था कि हरिभाऊ ने सूखे की वजह से अपनी पत्नी और बच्चे को खो दिया था। फिर, कुछ महीनों के बाद, उन्होंने कैलासाबाई से दोबारा शादी की। जिन्होंने तीन बच्चों को जन्म दिया।

हरिभाऊ और उनकी पत्नी पढ़े-लिखे नहीं थी और विकलांगता ने उनकी कठिनाइयों को और बढ़ा दिया। क्योंकि, कोई भी उन्हें काम पर रखना नहीं चाहता था।

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अपने माता-पिता के साथ विष्णु

विष्णु कहते हैं, “हमारी माँ आटे को काफी गीला कर रोटी बनाती थीं और हम नमक के साथ उसे खाते थे। मेरे माता-पिता हर सुबह काम की तलाश में घर से निकल जाते थे। यदि वे दोपहर तक खाना लेकर नहीं आते थे, तो मेरी बड़ी बहन, भूख से मेरा ध्यान भटकाने के लिए कहानियाँ सुनाती थीं। इसी संघर्ष में, मेरे पिता जी ने मुझे शिक्षा के महत्व के बारे में बताया और इसने हमारे पूरे जीवन को बदल कर रख दिया।”

भले ही उनका जीवन कई कठिनाइयों से गुजर रहा था। लेकिन, विष्णु के माता-पिता ने कभी आँसू नहीं बहाए और न ही कभी किसी को कोसा।

विष्णु को यकीन था कि उनकी जिंदगी बदलेगी और चौथी कक्षा के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखने का फैसला किया, भले ही उनका नया स्कूल गाँव से 4 किमी दूर था।

विष्णु की शिक्षा मराठी में हुई। वह अपने स्कूली दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने चक्की मिल में फर्श पर गिरे हुए, आटे को जमा करना शुरू कर दिया था, ताकि घर को थोड़ी मदद मिल सके।

इस कड़ी में वह कहते हैं, “घर के पास एक छोटा-सा चक्की मिल था। मैं स्कूल से लौटते वक्त, मालिक से अनुरोध करके फर्श पर पड़े आटे को जमा कर, घर ले आता था। उसमें धूल और फफूंद भी होते थे, लेकिन हमें इससे फर्क नहीं पड़ता था। यह शायद पहली बार था कि घर में, मेरी वजह से कुछ बदलाव आया था। मैंने इसे महसूस किया और विचार किया कि मैं चीजों को सही कर सकता हूँ।”

इसके बाद, विष्णु ने कई कार्यों में ग्रमीणों की मदद करना शुरू कर दिया। जैसे – वह लोगों को सामान ढोने में मदद करते थे, जिससे उन्हें 2-3 रुपए मिलते था। इसके अलावा, वह अपने जूनियर को भी पढ़ाते थे। लेकिन, इतना सब कुछ करते हुए भी उनका ध्यान अपनी पढ़ाई से नहीं भटका।

उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से दसवीं की परीक्षा में 79 फीसदी अंक लाए और यहीं से उनकी जिंदगी ने नया रुख ले लिया।

एक स्कूल शिक्षक से लेकर आयकर अधिकारी तक का सफर

शिक्षा के महत्व और अपने क्षेत्र की स्थिति को देखते हुए विष्णु ने डी. एड (डिप्लोमा इन एजुकेशन) किया और 1999 में एक शिक्षक के तौर पर अपनी नौकरी शुरू की। 

हालांकि, उनका स्कूल गाँव से 150 किलोमीटर दूर था, जहाँ वह अपनी पत्नी और माता-पिता के साथ रहते थे। इसी दौरान, उन्हें अपने साथियों से महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग परीक्षा के बारे में पता चला। 

चूंकि, इसके लिए उन्हें सिर्फ अपने ज्ञान के दायरे को बढ़ाने की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने इसमें अपना हाथ आजमाने का फैसला किया। उनका विचार था कि यदि वह एक अधिकारी बन जाएंगे, तो वह जमीनी स्तर पर परिस्थितियों को बदल सकते हैं।

इसके बाद, उन्होंने अध्यापन के साथ-साथ बिना किसी कोचिंग के परीक्षा की भी तैयारी शुरू कर दी। इसी कड़ी में उन्होंने यशवंत राव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी से बीए भी किया।

फिर, 2010 में, विष्णु ने अपने पहले ही प्रयास में एमपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल कर ली और उनकी पहली पोस्टिंग जलगाँव में हुई। वह वहाँ बिक्री कर विभाग में सहायक आयुक्त के तौर पर नियुक्त किए गए थे।

वह कहते हैं, “इस नतीजे से पहली बार मेरी आँखों में खुशी का आँसू थे। उस दिन पूरे गाँव ने मेरे परिवार के साथ जश्न मनाया। मुझे याद है कि मैंने अपने बेटे को वही सलाह दिया, जो मेरे पिता ने मुझे दिया था।”

लेकिन, वह यहीं नहीं रुके और उनकी इच्छा राष्ट्रीय सेवा परीक्षाओं में सफलता हासिल करने की थी। इसी कड़ी में उन्होंने 2013 में यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।

इस बार फिर, उन्होंने कोई कोचिंग नहीं ली और तमाम व्यस्तताओं के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी। हालांकि, इस बार उन्हें नतीजे से ज्यादा डर नहीं लग रहा था। क्योंकि, असफल होने की स्थिति में भी उनके पास एक सुरक्षित नौकरी थी।

लेकिन,अपने अथक प्रयासों के बाद, 2016 में उन्होंने अपने तीसरे प्रयास में 1064 रैंक के साथ यूपीएससी में सफलता हासिल कर ली। दिलचस्प बात यह है कि इसी साल, उनके बेटे ने भी 10वीं की परीक्षा में डिस्टिंक्शन के साथ पास किया।

अपने पहले दो प्रयासों को विफलता मानने के बजाय, विष्णु इसे सीखने की प्रक्रिया मानते हैं। इस दौरान उन्होंने अपनी गलतियों को पहचाना और तीसरे प्रयास के लिए उस पर मजबूती से काम किया।

वह कहते हैं, “मैंने उन बाधाओं को पार किया, जो इससे भी कठिन थे। मेरे माता-पिता ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। आज मैं जहाँ हूँ, उनके बदौलत हूँ।”

पिछले चार वर्षों में, विष्णु ने अपनी मेहनत, धैर्य और दृढ़ संकल्प से कई जिम्मेदारियों को संभाला है। 

विष्णु की कहानी वास्तव में उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है, जो अपने जीवन में तमाम कठिनाइयों का सामना कर, कुछ हासिल करना चाहते हैं, कुछ बनना चाहते हैं।

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मूल लेख – GOPI KARELIA

संपादन – जी. एन. झा

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