अक्सर हम सुनते हैं कि पिछले कुछ सालों में जैविक और प्राकृतिक खेती का चलन बढ़ा है। लोग जागरूक हो रहे हैं और पारंपरिक खेती से हटकर कुछ अलग कर रहे हैं। लेकिन अगर देखा जाए तो भारत में पारंपरिक खेती रासायनिक खेती नहीं है बल्कि जैविक और प्राकृतिक खेती ही है। रसायनों ने तो हमारे यहाँ बहुत बाद में जगह बनाई, लेकिन उससे पहले लोग प्राकृतिक तरीकों पर ही निर्भर थे। आपको अपने आसपास ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे किसानों के जो बरसों से बिना किसी रसायन के ही खेती कर रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही किसान परिवार से रू-ब-रू करवाने जा रहे हैं।
यह कहानी महाराष्ट्र के अहमद नगर स्थित गुंडेगाँव निवासी संतोष भापकर और उनकी पत्नी ज्योति भापकर की है। संतोष ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे पिताजी जैविक और प्राकृतिक तरीके से खेती करते थे। उन्होंने कभी भी खेतों में रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया। मैं भी अपने पिता के नक़्शे कदम पर चलने की कोशिश की है। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि मेरे आस-पास के किसान भाई ऐसा नहीं कर रहे हैं। मेरी कोशिश है कि लोगों को रसायन मुक्त खेती का रास्ता दिखाऊं।”
और तब संतोष ने ठाना कि वह किसानों को, ग्राहकों को इस बारे में जागरूक करेंगे। साल 2005 में उन्होंने यह मुहिम शुरू की। अनगिनत चुनौतियों का सामना किया, लेकिन हार नहीं मानी। आज संतोष भापकर और उनकी पत्नी ज्योति भापकर का नाम प्रगतिशील किसानों में शामिल होता है क्योंकि उन्होंने न सिर्फ अपनी बल्कि अपने इलाके के लगभग सभी किसानों की उपज को एक ब्रांड नाम बना दिया है- संपूर्ण शेतकरी। इस ब्रांड नाम के अंतर्गत उनकी उपज पैकेजिंग के बाद देश के अलग-अलग शहरों में ग्राहकों तक पहुँच रही है।
कैसे हुई शुरुआत:
महाराष्ट्र के अहमद नगर में गुंडेगाँव के रहने वाले संतोष हमेशा से ही जैविक और प्राकृतिक खेती करते आ रहे हैं। साल 2005 में उन्होंने तय किया कि वह दूसरे किसानों को भी इससे जोड़ें और उन्हें एक प्लेटफार्म पर लाने की कोशिश करेंगे। उन्होंने अपने गाँव में दूसरे किसानों से बात की और उन्हें अपनी ज़मीन के छोटे से हिस्से से शुरुआत करने के लिए कहा। लोगों का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए वह प्रतियोगिता रखते कि जिसकी ज़मीन पर जैविक तरीकों से उपज अच्छी होगी, वह उसे सम्मानित करेंगे। उनका यह तरीका काम कर गया और फिर एक से दूसरे गाँव, दूसरे से तीसरे गाँव करते-करते उनकी पहल बढ़ने लगी।
“लेकिन फिर मुझे लगने लगा कि इलाके के जिन नेताओं को मैं इन किसानों को सम्मानित करने के लिए बुलाता हूँ वह इन किसान आयोजनों का गलत फायदा उठा रहे हैं। किसानों के ज़्यादा वह अपने मतलब के लिए इस मंच का प्रयोग कर रहे हैं। यह मुझे मंजूर नहीं था इसलिए मैंने इन आयोजनों को बंद किया,” उन्होंने बताया।
अब संतोष को कुछ और करना था क्योंकि अब जो किसान जैविक खेती शुरू कर चुके थे, वह उनके पास आने लगे। इन किसानों को अपनी जैविक उपज को बेचने के लिए अच्छी मार्किट नहीं मिल रही थी। तब संतोष ने गाँव के किसानों को इकट्ठा करके उनके अलग-अलग समूह बनाए। इन समूहों में लगभग 100 किसान हैं जो अपने खेतों में अलग-अलग तरह की फसलें बोते हैं ताकि वह ग्राहकों की मांग की आपूर्ति कर सकें। संतोष ने किसानों को साथ में मिलकर सामुदायिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। इससे किसान एक-दूसरे की मदद से आगे बढ़ सकते हैं।
संतोष बताते हैं, “हमारा इलाका चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है और ज़्यादातर मानसून पर निर्भर करता है। मानसून हमारे यहाँ ठीक-ठाक होती है इसलिए हमने खेती की गुणवत्ता को सुधारने पर ध्यान दिया। जैसे सभी किसानों को गौपालन की सलाह दी गयी ताकि घर का गोबर और गौमूत्र मिले। इससे हम खाद, जीवामृत, घनजीवामृत जैसी चीज़ें बनाते हैं। फसल बोने से पहले ज़मीन को अच्छे से तैयार करते हैं। हमने सहफसली की मॉडल भी बनाए हुए हैं ताकि किसानों को लगातार आय मिले। एक ही खेत में दाल, सब्ज़ियाँ, और कुछ औषधीय फसलें हम लगाते हैं।”
उनके यहाँ ज़्यादातर पारंपरिक किस्में उगाई जाती हैं। उनकी फसलों में दालें जैसे हुल्गा, राजमा, मूंग, उड़द, मसूर, कुछ तेल की फसलें जैसे मूंगफली, तील, सूरजमुखी, खुरसाणी, और कुछ अनाज जैसे ज्वार, बाजरा आदि उगाये जाते हैं।
मार्केटिंग पर किया फोकस:
संतोष और ज्योति ने ठान लिया कि वह इन किसानों की मेहनत को मंडी या बिचौलियों की भेंट नहीं चढ़ने देंगे। उन्होंने किसानों से उनकी जैविक उपज को खरीदना शुरू किया। हालाँकि, उनके पास कोई फिक्स बाजार नहीं था पर फिर भी उन्होंने सोचा कि क्यों न अपना बाजार बनाया जाए। सबसे पहले तो वह अपनी गाड़ी में सभी दाल, अनाज आदि ले जाकर राजमार्गों पर खड़े हो जाते और आने-जाने वालों को मार्किट करते थे। कई महीनों तक उन्होंने ऐसा किया और साथ ही, पुणे में मार्किट तलाशनी शुरू की।
“इस काम में हमें काफी वक़्त लगा पर हमने कोशिश नहीं छोड़ी। और मेहनत रंग लाने लगी। हमने पुणे में कुछ दुकानों पर अपने उतपद रखवाए थे तो वहाँ से कॉल आने लगे कि आपकी दाल की मांग बढ़ रही है। जिन लोगों को सीधा सामान दिया था उन्होंने भी संपर्क करना शुरू किया और इसके बाद हमने प्रोसेसिंग यूनिट सेटअप करने पर फोकस किया,” उन्होंने बताया।
सबसे पहले उन्होंने लोन लेकर दाल मिल लगवाई ताकि दालों की प्रोसेसिंग करके इन्हें आगे भेजा जाए। इसके बाद पैकेजिंग यूनिट पर काम किया गया। किसान अपनी उपज को हार्वेस्ट करके इस सेंटर पर पहुँचा देते हैं और यहां पर सभी उपज को धोकर, सुखाकर और साफ़ करके प्रोसेस किया जाता है। पैकेजिंग सेंटर में इन्हें अलग-अलग पैकेज में पैक किया जाता है। इनके ऊपर ब्रांड नाम का टैग लगाया जाता है। फिर इकट्ठे उत्पादों को पुणे, मुंबई और श्रीगोंडा के बाज़ारों में पहुँचाया जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में गाँव की बहुत सी महिलाओं और युवाओं को रोज़गार भी मिला हुआ है। साथ ही, सभी उत्पादों की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के लिए संतोष ने कुछ दिशा-निर्देश तय किए हुए हैं ताकि गुणवत्ता से कोई समझौता न करना पड़े।
फ़िलहाल, संपूर्ण शेतकरी के उत्पाद पुणे-मुंबई के 50 आउटलेट में जा रहे हैं। इसके अलावा, पुणे में 200 घर और मुंबई में 32 घरों को वह सीधा उत्पाद पहुँचाते हैं। उन्हें ग्राहकों से सीधा आर्डर मिलते हैं और वह उसी हिसाब से सभी उतपद पैकेज करके भेजते हैं। नियमित ग्राहकों के लिए उन्होंने कुछ ऑफर और डिस्काउंट मॉडल भी रखे हुए हैं।
अपने इस खेती और मार्केटिंग मॉडल से ‘संपूर्ण शेतकरी’ आज हर महीने लगभग 5 लाख रुपये की कमाई कर रहा है। इससे जुड़े किसान, महीनों और युवाओं को अच्छी आमदनी मिल रही है और ग्राहकों को शुद्ध, स्वस्थ और रसायन मुक्त भोजन। अपने ग्राहकों को बढ़ाने के लिए संतोष-अलग अलग आयोजनों में भी अपनी उपज के साथ पहुँचते हैं। उन्हें इलाके के कृषि विभाग से भी मदद मिल रही है और कई जगह उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
अंत में संतोष सिर्फ यही कहते हैं कि वह ज़्यादा पढ़ नहीं पाए लेकिन फिर भी उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें यहाँ तक पहुँचा दिया है। आगे वह देश भर में अपने उत्पाद पहुँचाने की योजना पर काम कर रहे हैं। आने वाली पीढ़ियों से उनकी सिर्फ यही गुज़ारिश है कि पढ़-लिख कर वह खेती और किसानों को भूलें नहीं। बल्कि अपने देश के अन्नदाता की तरक्की पर काम करें।
यदि आप संतोष से उनके इस मॉडल के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उन्हें 94043 88008 पर कॉल कर सकते हैं!
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