आप क्या करेंगें अगर आप किसी ट्रेन में यात्रा करते समय कुछ लड़कियों को डरा हुआ व रोता हुआ देखेंगे? क्या आप उनसे मुँह फेर लेंगें या फिर बात की तह तक जाने की कोशिश करेंगें?
5 जुलाई को आदर्श श्रीवास्तव मुजफ्फरपुर-बांद्रा अवध एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे। अपने कोच में उन्होंने 26 लड़कियों के एक ग्रुप को सहमा हुआ और रोता हुआ देखा। और उन्होंने उन लड़कियों की मदद करने का फैसला किया।
यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि आदर्श का ट्विटर अकाउंट 5 जुलाई, 2018 को ही बना है। अपनी पहली पोस्ट में उन्होंने प्रशासन को उन लड़कियों के बारे में आगाह किया।
उन्होंने तुरंत ट्रेन और कोच की सभी जानकारी के साथ ट्वीट किया।
I am traveling in Avadh express(19040). in s5. in my coach their are 25 girls all are juvenile some of them are crying and all feeling unsecure.@RailMinIndia @PiyushGoyal @PMOIndia @PiyushGoyalOffc @narendramodi @manojsinhabjp @yogi
— Adarsh Shrivastava (@AdarshS74227065) July 5, 2018
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी और लखनऊ के अधिकारीयों ने जैसे ही पोस्ट को देखा तो उन्होंने उस पर गौर किया। लगभग आधे घंटे के भीतर ही उन्होंने इस मामले की छानबीन शुरू कर दी।
आगे की रिपोर्ट के अनुसार, “ये 26 लड़कियां दो आदमियों के साथ थीं। उनमें से एक 22 साल तथा एक 55 साल का था। वे सभी बिहार में पश्चिम चंपारण से हैं। लड़कियों को नारकातियागंज से इदगाह ले जाया जा रहा था। जब पूछताछ की गई, तो लड़कियां कोई भी जवाब देने में असमर्थ थीं, इसलिए उन्हें बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया है।”
सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) और रेलवे पुलिस बल (आरपीएफ) द्वारा की गई तीव्र कार्रवाई के चलते 10 से 14 साल की उम्र की उन लड़कियों को समय रहते बचा लिया गया।
जून 2018 में रेलवे द्वारा उनके सम्पर्क में आने वाले ऐसे बच्चे, जो घर से भागे हुए हैं, या फिर तस्करी किये जाने वाले बच्चों की संख्या के बारे में एक अभियान चलाया गया है।
यह अभियान रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की अध्यक्ष स्तुति कक्केर के साथ शुरू किया है।
इस अभियान के लॉन्च के वक़्त अश्विनी ने बताया, “यह अभियान पूरे रेलवे सिस्टम में बच्चों की सुरक्षा के मुद्दे को हल करने और सभी स्टेकहोल्डर, यात्रियों, विक्रेताओं, बंदरगाहों को संवेदनशील बनाने के लिए शुरू किया गया है। वर्तमान में, रेलवे में बच्चों की देखभाल और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए रेलवे के लिए मानक ऑपरेटिंग प्रक्रिया (एसओपी) 88 स्टेशनों पर सफलतापूर्वक लागू की गई है। अब हम इसे 174 स्टेशनों पर लागू करना चाहते हैं। ”
इस तरह के अभियान वास्तव में संदेश फैलाने और इन बच्चों की मदद करने में कारगर साबित हो रहे हैं।
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( संपादन – मानबी कटोच )
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