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छात्र ने 9 वर्षों तक की बंधुआ मज़दूरी, IAS ने बचाया, अब मिल रही औपचारिक शिक्षा!

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चेन्नई के प्रतिष्ठित मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई कर रहे मल्लेश बदरप्पा छह वर्ष की उम्र में बंधुआ मजदूरी के चंगुल में फंस गए थे।

मल्लेश बदरप्पा, चेन्नई के प्रतिष्ठित मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में बैचलर ऑफ सोशल वर्क कर रहे हैं।

वह सुबह जल्दी उठते हैं, ऑनलाइन क्लास में हिस्सा लेते हैं, अपने साथियों से अंग्रेजी सीखते हैं, अच्छा खाना खाते हैं और रात में सुकून से सो जाते हैं।

आपको यह एक छात्र के जीवन का सामान्य रूटीन लग सकता है, लेकिन आज से 7 साल पहले मल्लेश का जीवन, कुछ अलग था। क्योंकि, इससे पहले वह एक गुलाब के खेत में बंधुआ मजदूरी करते थे।

छह साल की उम्र से, मल्लेश हर सुबह पशुओं को चराने के लिए निकल जाते और दिन का अधिकांश समय कृष्णगिरि में खेतों से गुलाब के काँटे को चुनने में बीताते थे। इस दौरान उनका शोषण कर, ठीक से खाना भी नहीं दिया जाता है।

बेसहारा मल्लेश की माँ का निधन, उनके जन्म के दो हफ्ते बाद हो गई थी और इसके पाँच महीने के बाद उनके पिता भी चल बसे। यह कैसे हुआ, वह नहीं जानते। 

लेकिन, इसके लिए मल्लेश को दोषी ठहराया गया और उन्हें परिजनों द्वारा भी नहीं अपनाया गया।

काँटों के बीच मल्लेश 

21 वर्षीय मल्लेश ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं अपने बड़े भाई मरप्पन और चाची के साथ रहता था। जब मैं दूसरी कक्षा में था, तो मेरा भाई मुझे एक खेत ले गया और उसने मुझे वहाँ काम पर लगा दिया। इस तरह मेरा बचपन खत्म हो गया।”

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मल्लेश, जब उन्हें बाल श्रम से मुक्त कराया गया था।

वह कहते हैं कि उन्हें यह अंदाजा नहीं है कि उनके भाई ने ऐसा क्यों किया।

मल्लेश याद करते हुए कहते हैं, “मैं हर सुबह गायों को चराता था और दूध निकालता था। उसके बाद, मैं पूरा दिन सब्जियों और गुलाब की खेती में गुजारता था। इसी दौरान, खेत के मालिक श्रीनिवास एक दिन आए और मेरे साथ शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया, क्योंकि गायों ने फसल को नुकसान पहुँचा दिया था।”

“मैं अपने मालिक के घर के पास एक छोटी सी जगह में रहता था। यहाँ मेरे भाई कभी-कभी आते थे और चले जाते थे,” मल्लेश ने यह जोड़ते हुए कहा कि उन्हें शक है कि उनका भाई मालिक से पैसे लेने के आता था।

उन्होंने आगे कहा, “मुझे न तो कभी मेरे काम के पैसे दिए गए और न ही पढ़ने दिया गया। मैं मालिक की दो बेटियों को स्कूल जाते देखता था। एक मैंने भी उनसे पढ़ाई करने की अनुमति माँगी, लेकिन उन्होंने नजरअंदाज कर दिया।”

इसके करीब 5 साल बाद, मल्लेश को उनके भाई ने दूसरे मालिक के पास काम पर लगा दिया।

वह कहते हैं, “तब मैं 10-12 साल का था। मेरा दूसरा मालिक मेरा पहले से भी अधिक शोषण करता था। मैं यहाँ अधिकांश समय गुलाब के काँटों को चुनता था, जिस वजह से मेरे हाथों से हमेशा खून बहते रहते थे।”

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने अपने भाई को कभी घर ले जाने के लिए क्यों नहीं कहा। मल्लेश कहते हैं कि इतनी कम उम्र में, उन्होंने खुद को कसूरवार और असहाय महसूस किया और सोचा कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है।

लेकिन, साल 2013 में, जिला प्रशासन के अधिकारियों ने मल्लेश को बाल श्रम के चंगुल से बचा लिया।

इसे लेकर वह कहते हैं, “मैं रोज की तरह काम कर रहा था। अचानक कुछ लोगों ने खेत को चारों ओर से घेर लिया। वे मेरे पास आए और पूछा मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ। इसके बाद, उन्होंने मेरे बारे में पूरी जानकारी हासिल की और मुझे अधिकारी के पास ले गए।”

इस कड़ी में प्रवीण पी नायर, नागपट्टनम के जिलाधिकारी कहते हैं, “हमें गुलाब के खेतों में मजदूरी कर रहे कुछ बच्चों के बारे में सूचना मिली। इसके बाद, हमने बंधुआ मजदूरी की रोकथाम की दिशा में कार्यरत संगठन, अंतर्राष्ट्रीय न्याय मिशन (IJM) के माध्यम से कई जगहों पर छापेमारी की।”

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आईएएस प्रवीण पी नायर

प्रवीण उस वक्त, कृष्णगिरी में डिप्टी कलेक्टर के रूप में तैनात थे और उन्हें जब मामले की सूचना मिली तो, उन्होंने अधिकारियों को तुरंत बच्चों को मुक्त कराने का आदेश दिया।

वह कहते हैं, “सौभाग्य से, बच्चे खेतों में अकेले काम कर रहे थे और मालिक यहाँ नहीं थे। बाद में, हमने मालिकों को हिरासत में लिया और उनपर कानूनी कार्रवाई की।”

जब बच्चे बरामद हुए थे, तो ठीक से भोजन नहीं मिलने के कारण, वे कुपोषण का शिकार हो गए थे। आलम यह था कि वह अपनी उम्र से 2-3 साल छोटे दिखते थे।

प्रवीण कहते हैं कि जिन बच्चों को बचाया गया, उनमें से अधिकांश इरुला जनजाति के थे और यह आर्थिक रूप से काफी कमजोर वर्ग है।

वह कहते हैं, “वे पुआल से बने घरों में रहते हैं और शादी या इलाज के लिए जमींदारों से पैसे उधार लेते हैं। इसके बदले उन्हें तय वर्षों तक मालिकों के खेतों में मजदूरी करना पड़ता हैं।

हालांकि, निर्धारित समय के बाद, ये मालिक उनसे कहते हैं कि अभी सिर्फ ब्याज या पूंजी चुकता हुआ है और शेष राशि के चुकाने के लिए उन्हें और काम करना पड़ेगा।

प्रवीण कहते हैं, “ये राशियाँ ज्यादा बड़ी नहीं होती है। लेकिन, वर्षों तक मेहनत-मजदूरी करने के बाद भी, मालिक यह दावा नहीं करता है कि उसने कर्ज चुका दिया है। इस तरह वह बंधुआ मजदूरी के लिए बाध्य हो जाता है।”

वह कहते हैं, “इन बच्चों के माता-पिता को यह समझ नहीं है कि वह जो कर रहे हैं, वह गलत है। क्योंकि, वो भी इसी माहौल में पले-बढ़े। उनकी दयनीय आर्थिक स्थिति, उन्हें कभी इस दलदल से निकलने नहीं देती।”

आईएएस अधिकारी कहते हैं, “इस क्षेत्र को लिटिल इंग्लैंड के रूप में जाता है, क्योंकि यह गुलाब उगाने के लिए सबसे उपयुक्त है। यहाँ गुलाब के कई नर्सरी हैं और यहाँ दुखद रूप से बच्चों से बंधुआ मजदूरी कराई जाती है।”

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शुरुआती दिनों में पढ़ाई के दौरान कई कठनाइयों का सामना करना पड़ा मल्लेश को

प्रवीण कहते हैं कि मल्लेश और 15 अन्य बच्चों को उनके कार्यकाल के दौरान बचाया गया था। इसके तुरंत बाद, एक प्रमाण पत्र यह उल्लेख करते हुए जारी किया गया कि मालिक से किसी भी कर्ज का भुगतान तत्काल प्रभाव से कर दिया जाएगा। यह एक पहचान प्रमाण पत्र के रूप में भी कार्य करता है।

इसके बाद, अधिकारियों द्वारा इन बच्चों की सरकारी स्कूल में पढ़ाई हॉस्टल में रहने की व्यवस्था की गई। वहीं, मालिकों पर बाल श्रम, शोषण, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार, बंधुआ मजदूरी और कई अन्य आरोपों के साथ कानूनी कार्रवाई की गई।

मल्लेश की मुश्किलें

हालांकि, मल्लेश की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत, उन्हें एक सरकारी आवासीय स्कूल में, छठी कक्षा में भर्ती कराया गया था, ताकि उनकी पढ़ाई समयबद्ध तरीके से हो सके।

इसे लेकर आईजेएम के कम्यूनिटी रिलेशन लीडर सोलोमन एंटनी कहते हैं, “मल्लेश जैसे बचाए गए बच्चों की भलाई के लिए हम उन्हें हमेशा अपनी निगरानी में रखते हैं। मल्लेश ने हमें बताया कि शिक्षक उन्हें हमेशा डिमोटिवेट करते हैं और उन्हें कहा है कि अपने कमजोर अकेडमिक स्किल की वजह से वह 10वीं में फेल हो जाएंगे।”

सोलोमन कहते हैं कि आठवीं क्लास पास करने के बाद, मल्लेश को कृष्णागिरि के रायकोट्टई स्थित सरकारी आवासीय स्कूल में ले जाया गया। जहाँ शिक्षकों को मल्लेश के इतिहास के बारे में बताते हुए, उनके प्रति संवेदनशीलता दिखाने का अनुरोध किया गया।

इस बदलाव से मल्लेश संतुष्ट थे और इससे उन्हें दसवीं की परीक्षा में सफलता हासिल करने के लिए, साहस और आत्मविश्वास मिला।

मल्लेश कहते हैं, “यह मेरे लिए काफी कठिन था और मैंने परीक्षा में बेहतर करने के लिए घंटों तक पढ़ाई की। मेरी स्कूली शिक्षा तमिल में हुई, लेकिन 10वीं के बाद, अंग्रेजी में पढ़ाई शुरू की। जिस वजह से मेरे राह और चुनौतीपूर्ण हो गई।”

मल्लेश का सपना एक आईएएस अधिकारी बनने का है, ताकि वह कमजोर और असहायों की मदद कर सकें। इसी को देखते हुए, आईजीएम ने उन्हें सोशल वर्क में ग्रेजुएशन करने का सुझाव दिया।

आईएएस बनना चाहते हैं मल्लेश

मल्लेश अपने सपने को साकार करने के लिए, अपने खाली समय को अंग्रेजी सीखने में बीताते हैं। 

हालांकि, मल्लेश के भाई अभी भी उन्हें अपनी माँ की मौत का जिम्मेदार मानते हैं और उन्हें अपने परिवार में शामिल करने से इंकार करते हैं।

जिंदगी खूबसूरत है, मल्लेश कहते हैं!

वर्षों के शोषण और संघर्ष के बावजूद, मल्लेश को अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है। वह कहते हैं, “हम जिंदगी में जो कुछ भी देखते हैं, वह सुंदर नहीं हो सकता है। लेकिन, यही तो जिंदगी की सुंदरता है।”

इसे लेकर आईजेएम के मीडिया रिलेशन हेड एस. एम. संतोष कहते हैं, “मल्लेश की कहानी, एक बदलाव का तकाजा है। यह तभी संभव है, जब सभी हितधारक एकजुट होकर प्रयास करते हैं। उनकी कहानी में कई लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है।”

संतोष, सभी प्रशासनिक, पुलिस अधिकारियों, शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने मल्लेश को इस मुकाम तक पहुँचने में मदद की।

वह अंत में कहते हैं, “मल्लेश, जिस समुदाय से हैं, वहाँ शिक्षा का स्तर काफी खराब है। अंततः उन्हें बंधुआ मजदूरी में उतरना पड़ता है। मल्लेश की कहानी से उन्हें अपने जीवन में कुछ नया हासिल करने की प्रेरणा मिल सकती है।”

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संपादन – जी. एन झा

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