वह पहला भारतीय अफ़सर जो ब्रिटिश राज में बना बॉम्बे सीआईडी का डीसीपी; किया था गाँधी जी को गिरफ्तार!

साल 1926 में बॉम्बे सीआईडी (क्राइम इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट) के डिप्टी कमीशनर ऑफ़ पुलिस के तौर पर नियुक्त होने वाले कवासजी जमशेदजी पेटिगरा पहले भारतीय अफ़सर थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें 'खान बहादुर' का खिताब दिया गया था। 

साल 1926 में बॉम्बे (अभी मुंबई) सीआईडी (क्राइम इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट) के डिप्टी कमीशनर ऑफ़ पुलिस के तौर पर नियुक्त होने वाले कवासजी जमशेदजी पेटिगरा पहले भारतीय अफ़सर थे। पेटिगरा ब्रिटिश भारत के सम्मानित अफ़सर थे। न केवल भारतीय बल्कि ब्रिटिश अधिकारी भी उन्हें बहुत मानते थे।

24 नवंबर, 1877 को एक पारसी परिवार में जन्में पेटिगरा की पढ़ाई सूरत और मुंबई (उस समय बॉम्बे) से हुई। भले ही वे ब्रिटिश राज में अफ़सर थे, लेकिन गाँधी जी से उनका बहुत ही प्यारा रिश्ता था। बताया जाता है कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब भी गाँधी जी गिरफ्तार हुए तो उनकी गिरफ्तारी पेटिगरा के हाथों हुई।

दरअसल, एक-दूसरे के साथ उनका रिश्ता सम्मान का था। गाँधी जी स्वयं इस बात पर जोर देते थे कि उनकी गिरफ़्तारी के समय पेटिगरा मौजूद रहें। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गहन और महत्वपूर्ण वर्षों के दौरान उनके काम के लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘खान बहादुर’ का खिताब दिया गया था।

इसके अलावा पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनी ड्यूटी के लिए उन्हें कई सम्मानों से नवाज़ा गया। जिसमे केसर-ए- हिन्द मेडल, इम्पीरियल सर्विस आर्डर, किंग्स पुलिस मेडल शामिल हैं।

फोटो: विकिपीडिया

पुलिस इतिहासकार दीपक राव बताते हैं, “पेटिगरा का कोई औपचारिक पुलिस प्रशिक्षण नहीं हुआ था। उन्होंने सादे कपड़ों में ड्यूटी ज्वाइन की, जिन्हें उस समय ‘सफ़ेदवाला’ कहा जाता था। लेकिन शहर के बारे में उनकी जानकारी और पारसी लोगों से संपर्कों के चलते उन्हें कई बार पदोन्नति मिली। अपने पूरे करियर में उन्होंने केवल सीआईडी ​​में सेवा की और कभी भी उन्हें पुलिस स्टेशन पर पोस्ट नहीं किया गया क्योंकि वह ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने में बहुत अच्छे थे।”

मुंबई पुलिस द्वारा उनकी 75वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में पेटिगरा के परिवार को निमंत्रित किया गया था। इस समारोह के दौरान उनके पोते कवास पेटिगरा ने बताया, “गाँधी जी समझते थे कि मेरे दादाजी केवल अपना काम कर रहे हैं, इसलिए वे भी उनका सम्मान करते थे। यहाँ तक कि जब गाँधी जी इंग्लैंड की राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने गए तो उन्हें यात्रा के लिए दो सिफारिशी पत्रों की जरूरत थी, जिसमें से एक पेटिगरा ने उनके लिए दिया था। इस पत्र को आज भी मणि भवन में संभालकर रखा गया है।”

ब्रिटिश भारत में बहुत ही कम भारतीय अधिकारीयों के पास ब्रिटिश अधिकारीयों को आदेश देने का अधिकार था। पेटिगरा उन अफ़सरों में से एक थे।

इसके अलावा कवास ने बताया कि उस समय बॉम्बे के मशहूर डॉक्टर गिलदेर एक गांधीवादी थे। जब भी गाँधी जी की गिरफ़्तारी होती, तो वे भी साथ में गिरफ़्तार होते थे। एक बार डॉ. गिलदेर, पेटिगरा का इलाज़ कर रहे थे तभी उन्हें गाँधी जी की गिरफ़्तारी की खबर मिली। पेटिगरा का इलाज या फिर गाँधी जी के साथ गिरफ़्तारी, डॉ गिलदेर इस उधेड़बुन में फंस गए थे। लेकिन फिर उन्होंने गांधीजी को एक पत्र भेजा और बताया कि वे पेटिगरा का इलाज कर रहें हैं, इसलिए उनके साथ नहीं आ सकते। गाँधी जी ने भी उन्हें तुरंत स्वीकृति दे दी।

अंग्रेज व भारतीय, दोनों के ही बीच पेटिगरा काफी प्रसिद्द थे। उनकी ख्याति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुंबई के मेट्रो थिएटर के साल 1940 में पेटिगरा के सम्मान में जो मूर्ति लगवाई गयी, उसके लिए लोगों ने चंदा इकट्ठा किया था।

28 मार्च 1941 को पेटिगरा ने दुनिया से विदा ली। पर आज भी वे मुंबई पुलिस के लिए आदर्श हैं, जिन्होंने अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया।

मूल लेख: रेमंड इंजीनियर

( संपादन – मानबी कटोच )


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