कहते हैं कि काबिलियत उम्र की मोहताज नहीं होती है। हर बच्चे में कोई न कोई हुनर होता ही है बस ज़रूरत है तो उसे पहचानने की और उन्हें आगे बढ़ने के मौके देने की। अगर इन बच्चों को सही मौके मिले तो वह न सिर्फ अपने देश में बल्कि पूरी दुनिया में आपका नाम रौशन कर सकते हैं जैसा कि 14 साल की विनिशा ने किया है।
तिरुवन्नामलाई में रहने वाली 14 वर्षीय विनिशा उमाशंकर का नाम आज हर जगह चर्चा में है। इसकी वजह से उनका इनोवेशन, जो न सिर्फ भारत के लिए बल्कि दुनिया के बहुत से देशों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। विनिशा ने सोलर आयरन कार्ट (Solar Ironing Cart) बनाई है, जिसे कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है। इस कार्ट में प्रेस के लिए चारकोल की जगह सोलर एनर्जी का इस्तेमाल किया जाएगा।
विनिशा को उनके इस इनोवेशन के लिए पहले नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से IGNITE अवॉर्ड मिला था। अब हाल ही में, उन्हें ‘चिल्ड्रेन्स क्लाइमेट प्राइज’ मिला है। यह अवॉर्ड उन्हें स्वीडन की चिल्ड्रेन्स क्लाइमेट फाउंडेशन द्वारा दिया गया है। एक डिजिटल इवेंट में स्वीडन के एनवायरनमेंट एंड क्लाइमेट मिनिस्टर की उपस्थिति में विनिशा को सम्मानित किया गया। अवॉर्ड में विनिशा को 100,000 स्वीडिश क्रोना (लगभग 8.64 लाख रुपये), डिप्लोमा और मेडल दिया गया।
अपने इनोवेशन के बारे में बात करते हुए विनिशा ने बताया कि उनके इस प्रोजेक्ट की शुरुआत तब हुई जब वह मात्र 12 वर्ष की थी। हमेशा से ही अपने आस-पास की समस्यायों और माहौल को लेकर जागरूक रहने वाली विनिशा ने एक दिन स्कूल से लौटते हुए प्रेस करते हुए कुछ लोगों को देखा। उन्होंने देखा कि कैसे वह पहले चारकोल को वह जलाते हैं और फिर प्रेस में भरके कपड़ों पर इस्तरी करते हैं। विनिशा के मन में ऐसे ही सवाल आया कि दिनभर में ये लोग कितना चारकोल जलाते होंगे?
“घर आकर मैंने इस बारे में पढ़ा तो मुझे पता चला कि चारकोल के लिए हमारे यहाँ कितने ज्यादा पेड़ काटे जाते हैं। मैंने अपने माता-पिता से भी इस बारे में डिस्कस किया तो उन्होंने कहा कि फिर इसका क्या विकल्प हो सकता है, वह ढूंढ़ो और इसके बाद से ही मैं इस प्रोजेक्ट पर काम करने लगी,” उन्होंने बताया।
विनिशा ने एक ऐसी आयरन कार्ट (Solar Ironing Cart) का मॉडल बनाया जिसे सौर ऊर्जा से चलाया जा सके। उनकी बनाई कार्ट को कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है। इसे आगे से साइकिल से जोड़ा गया है। इसमें 280 वाट के सोलर पैनल लगाए गए हैं। सोलर पैनल को पॉवर ट्रांसफार्मर, पॉवर कंट्रोलर और बैटरी से जोड़ा गया है।
“मैंने चारकोल से प्रेस करने वाले अपने इलाके के कई वेंडर से बात भी की। उनसे समझा कि उन्होंने क्या-क्या परेशानी होती हैं? सबसे पहले तो उन्हें चारकोल खरीदना पड़ता है और फिर चारकोल को जलाने में और फिर इतनी भारी प्रेस में इस्तेमाल करने से उनकी आँखों में, हाथों में और कमर में दर्द होने लगता है। इसके अलावा, सबसे बड़ी समस्यायों में एक है कि चारकोल के लिए लाखों पेड़ों को काटा जाना,” उन्होंने आगे कहा।
विनिशा की यह कार्ट एक साथ कई समस्यायों का समाधान है। अगर वेंडर्स चारकोल की जगह सोलर आयरन कार्ट (Solar Ironing Cart) का इस्तेमाल करें तो उनकी लागत काफी कम होगी और साथ ही, ग्रीन हाउस गैस एमिशन एकदम जीरो होगा। चारकोल पर निर्भरता कम होगी तो हम ज्यादा से ज्यादा वृक्ष भी बचा पाएंगे। विनिशा के इस प्रोजेक्ट के प्रोटोटाइप को बनाने में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने उनकी मदद की और उन्होंने ही इस इनोवेशन के लिए पेटेंट भी फाइल किया।
इस सोलर आयरन कार्ट (Solar Ironing Cart) की कीमत फ़िलहाल 35 से 40 हज़ार रुपये के बीच है। इस पर उनका कहना है कि अगर कोई वेंडर इस कार्ट को खरीदना चाहे तो यह सिर्फ एक बार की लागत उन्हें देनी होगी। इसके बाद उन्हें किसी भी चीज़ पर खर्च करने की ज़रूरत नहीं है। हमारे यहाँ साल में कम से कम 300 दिन सूरज की भरपूर रौशनी मिलती है। इसलिए बिना किसी लागत के वेंडर्स अपना काम कर पाएंगे और वह पर्यावरण के अनुकूल काम करते हुए।
इसके साथ ही इस कार्ट में मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट और पीसीओ भी फिट किए जा सकते हैं। इनसे ज़रूरतमंद लोग आकर सर्विस ले सकते हैं और वेंडर की अतिरिक्त कमाई हो जाएगी।
विनिशा को भारत के बाल शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार 2021 के लिए भी नामित किया गया है।
अपनी सफलता का श्रेय विनिशा अपने माता-पिता को देतीं हैं, जिन्होंने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। विनिशा के पिता बिज़नेस करते हैं और उनकी माँ एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं। बचपन से ही उन्होंने विनिशा को अपने मन की करने की आज़ादी दी। उसके आइडियाज को नकारने की बजाय, उसे ऐसे साधन दिए जो उन आइडियाज पर काम करने में उसकी मदद करें। जैसा कि उनके पिता उमाशंकर कहते हैं कि उन्होंने विनिशा को सीखने के पूरे साधन दिए।
बचपन से ही उनके घर में तरह-तरह की साइंस, एक्टिविटी की किताबें हुआ करती थीं। ज़रूरी नहीं कि बच्चे सिर्फ स्कूल तक की पढ़ाई में ही सीमित रहे। स्कूल की पढ़ाई अपनी जगह है लेकिन अगर बच्चे को आगे बढ़ाना और उनकी काबिलियत को बढ़ाना है तो उसके दायरे हम बाँध नहीं सकते।
“हमने कभी अपनी बेटी से यह नहीं कहा कि वह कुछ नहीं कर सकती है। हमेशा उसका मनोबल बढ़ाया। अगर वह कुछ ट्राई करती तो हम सबसे पहले उसे प्रोत्साहित करते। कभी भी कम नंबर आने पर हमने उसकी तुलना दूसरों से नहीं की और न ही कभी उसके प्रोजेक्ट्स को खुद करके दिया। वह अपनी सोच और सूझ-बुझ से करती वह बेस्ट है। इसी तरह तो उसका अपना खुद का विकास होगा,” विनिशा की माँ ने बताया।
अंत में विनिशा और उनके माता-पिता सिर्फ यही संदेश देते हैं कि अपने बच्चों की तुलना न करें, क्योंकि हर बच्चा दूसरे से अलग है। आपके बच्चे की जो क्षमता और काबिलियत है, उसे निखारने की कोशिश करें। अपने बच्चों की ताकत बनें और उन्हें आगे बढ़ाएं!
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संपादन: जी. एन. झा
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