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अतीत के अंधेरो को मिटाकर एक उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रहे है बाल सदन के बच्चे !

एक बच्चा जो बकरी के बाड़े में पाया गया, एक विधवा जिसके अतीत ने उसे मौन कर दिया, एक किशोरी जिसका व्यापार उसकी माँ एवं सौतेले बाप ने कर दिया – यह अनेकों उदाहरणो मे से कुछ उदाहरण है जिनका अतीत भले अंधकारमय रहा हो, किन्तु बाल सदन ने उन्हे अपने उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न देखने की न सिर्फ हिम्मत दी, बल्कि उसे पूरा करने का संकल्प भी लिया |

एक बच्चा जो बकरी के बाड़े में पाया गया, एक विधवा जिसके अतीत ने उसे मौन कर दिया, एक किशोरी जिसका व्यापार उसकी माँ एवं सौतेले बाप ने कर दिया – यह अनेकों उदाहरणो मे से कुछ उदाहरण है जिनका अतीत भले अंधकारमय रहा हो, किन्तु बाल सदन ने उन्हे अपने उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न देखने की न सिर्फ हिम्मत दी, बल्कि उसे पूरा करने का संकल्प भी लिया |

पूजा और निशा – एक मध्यम वर्गीय परिवार की दो बहनें हैं | जब ये छोटी थी, तब इनकी माँ को भूमि विवाद के कारण ससुराल वालों ने प्रताड़ित कर घर से निकाल दिया था | इस घटना ने इस महिला का मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया |जब इन लोगो के पास भीख मांगने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था तब इनका सहारा बाल सदन बना | बाल सदन के एक दल ने इन्हे मंदिर से हटा कर रहने को आश्रय भी दिया और दोनों बच्चियो को उज्ज्वल भविष्य भी |

बाल सदन पंचकुला, हरियाणा स्थित, अनाथ एवं निराश्रित महिलाओं एवं बच्चो का आवास है |

पूजा आज साक्षर है तथा होटल मैनेजमेंट की शिक्षा पूरी कर, ओबेरॉय होटल, दिल्ली, में कार्यरत है | निशा बाल सदन मे ही कार्य करती है |

एक बच्चा जो बकरी के बाड़े में पाया गया, एक विधवा जिसके अतीत ने उसे मौन कर दिया, एक किशोरी जिसका व्यापार उसकी माँ एवं सौतेले बाप ने कर दिया – यह अनेकों उदाहरणो मे से कुछ उदाहरण है जिनका अतीत भले अंधकारमय रहा हो, किन्तु बाल सदन ने उन्हे अपने उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न देखने की न सिर्फ हिम्मत दी, बल्कि उसे पूरा करने का संकल्प भी लिया |

Hundreds of kids have left behind their dark past and found a new life at Bal Sadan.
कई बच्चो ने अपने बुरे अतीत से निकलकर बाल सदन में एक नयी ज़िन्दगी पायी है

 

बाल सदन की कहानी सन्न १९९२ मे आरंभ हुई, जब एक असहाय महिला, पंचकुला स्थित, सतीश अलमाड़ी के घर पहुंची | वह अपने पति की यातनाओं से तंग आकर अपने तीन बच्चो के साथ भाग आई थी | ऐसे समय अलमाड़ी ने उसे शरण दी | उस महिला की मदद को उठाया गया एक छोटा सा कदम जल्द ही एक आंदोलन मे परिवर्तित हो गया |

ऐसी कुछ घटनाओ के प्रकाश मे आने के बाद अलमाड़ी ने बाल सदन नामक एक संगठन को पंजीकृत करवाया | दो साल के अंतराल मे कई निराश्रित महिलाओं एवं बच्चों को लाभ पहुंचाया गया | सन १९९५ मे अलमाड़ी का निधन हो गया और जल्द ही यह संगठन अपने मकसद से भटकता चला गया | बच्चों को दान में दिये गए कपड़े, खिलौने, राशन बाज़ार मे बिकने लगे जिस से बाल सदन के बच्चे अस्वास्थ्यकर अवस्था मे रहने को मजबूर हो गए |

इसी समय, चडीगढ़ के होटल इंडस्ट्री मे कार्यरत, कल्पना घई ने हस्तक्षेप किया | कल्पना याद करती है,

“ बाल सदन की हालत देख कर मै हैरान थी | मै इस स्थिति को सुधारने के लिए कुछ करना तो चाहती थी किंतु तत्कालीन  अधिकारी मेरे इस हस्तक्षेप को उचित नहीं मान रहे थे | मुझे कई आरोपों एवं विवादों का सामना करना पड़ा जिस से मै उस स्थान से दूर जाने को मजबूर हो गयी और मुझे शून्य से शुरुआत करनी पड़ी |”

यही से बाल सदन का पुनर्जन्म हुआ | कुछ शुभ चिंतको एवं दोस्तो की मदद से कल्पना ने इस संगठन के लिए धन इकठ्ठा करना आरंभ किया | उसने देखा कि बाल सदन मे २५ बच्चे एक ही कमरे मे अत्यंत दयनीय स्थिति मे रह रहे थे | ऐसी भयावह स्थिति देख कर कल्पना का संकल्प और भी दृढ़ हो गया | उसने बच्चो के लिए एक रसोई घर , शौचालय, पढ़ने एवं सोने क लिए अलग अलग कमरो वाली इमारत की व्यवस्था करने की ठानी |

The kids are taught various skills too.
बच्चो को सभी विषयों में सक्षम बनाया जाता है ताकि वे बड़े होकर स्वावलंबी बन सके

जल्द ही वह इसमे सफल भी हो गयी और आज पंचकुला में बाल सदन की अपनी एक इमारत है | यह अब करीब ५० निराश्रित एवं अनाथ बच्चो का शरणास्थल है | यहाँ इन बच्चो की भावनात्मक आवश्यकताओ की पूर्ति करने के साथ उन्हे शिक्षित कर, अपने भयावह अतीत को भूलने की प्रेरणा दी जाती है ताकि ये बच्चे विभिन्न क्षेत्रो मे आगे बढ़ सकें |

बाल सदन इन बच्चो को शिक्षा के लिए अच्छे विद्यालयो मे भेजता है तथा वापस लौटने पर आवश्यकतानुसार ट्यूशन भी करवाता है | दोपहर मे इन बच्चों को कराटे, योगा, नृत्य संगीत, बागवानी, कम्प्युटर आदि की भी शिक्षा दी जाती है | इन्हे शहर के बाहर यात्रा करवाने के साथ, समय समय पर चिड़िया घर, सिनेमाघर तथा कई अन्य समारोह मे भी ले जाया जाता है | इन बच्चो द्वारा वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है, जिसमे ये बच्चे पूरे उत्साह से भाग लेते है |

बाल सदन इन बच्चो की पढ़ाई के साथ साथ पुनर्वास मे भी मदद करता है, और यही प्रयास इस संगठन को एक आम विद्यालय से अलग ला खड़ा करता है |

Bal Sadan is not an orphanage but a home for all the kids who live here.
बाल सदन एक अनाथ आश्रम नहीं बल्कि इन सभी बच्चो का घर है.

कल्पना के शब्दो में, “ हर नया दिन हमारे लिए एक नया संघर्ष ले कर आता है | हर बच्चे का एक अलग अतीत, पृष्ठभूमि और समस्या है | कोई बाल विवाह जैसी कुप्रथा का शिकार बना, तो किसी को देह-व्यापार के लिए बेच दिया गया | कुछ घरेलू हिंसा का शिकार हुए | हमें हर बच्चे के साथ बड़े संयम से पेश आना पड़ता है तथा इन्हे विशेषज्ञो द्वारा परामर्श देने की व्यवस्था भी की जाती है |”

कल्पना खास सचेत रहती है कि बाल सदन इन बच्चो के लिए अनाथालय न बन कर एक घर बने क्योंकि इन बच्चो ने अपने जीवन मे किसी अन्य परिवार को जाना ही नहीं | अतः सदन की ज़िम्मेदारी बच्चों के १८ वर्ष के होने के बाद भी पूरी नहीं होती | सही समय आने पर इन बच्चों की, जिनमे से अधिकतर लड़कियां है, एक अच्छी नौकरी एवं जीवन साथी चुनने मे, मदद की जाती है |

Bal Sadan continues to provide support even when a kid turns 18.
१८ साल के होने के बाद भी बाल सदन इन बच्चो की ज़िम्मेदारी लेता है.

कल्पना बताती हैं, “ हम सिर्फ एक गैर सरकारी संगठन नहीं है, हम इन बच्चो के लिए परिवार है | जब ये बच्चे विवाहित हो जाते है तब भी इन्हे एक घर की आवश्यकता होती है जहा ये लौट सकें | हम इनके लिए वही घर हैं | हम इन्हे शैक्षणिक के साथ साथ भावनात्मक सहारा भी देते है जिनकी इन्हे अधिक आवश्यकता है |”

कल्पना के शब्दों मे, “ हम इन्हे अपना जीवन अपने शर्तों पर जीने के समर्थ बनाते हैं | हमारा उद्देश्य होता है की ये बच्चे अच्छी नौकरियों मे जाएँ न की मजदूरी कर जीवन यापन करें |”

बाल सदन के प्रयासो को हरियाणा सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है, तथा सरकार प्रति माह इन्हें २००० रुपये हर बच्चे के लिए देती है |

हालांकि, सबसे अधिक धन की परेशानी तब होती है, जब यह बच्चे उच्च विद्यालय की शिक्षा पूरी कर किसी व्यावसायिक कोर्स मे दाखिला लेने जाते हैं|

The Bal Sadan team also helps the kids to find good jobs as well.
बड़े होने पर बाल सदन इन्हें अच्छी नौकरी दिलवाने में भी मदत करता है

कल्पना कहती है, “ हमारे पास ऐसी नवयुवतियाँ हैं जो नर्सिंग, कम्प्युटर इंजीन्यरिंग, कंपनी सचीव, आदि की शिक्षा में आगे बढ़ना चाहती हैं | इन्हे विद्यालय भेजना तो आसान होता है, किन्तु व्यावसायिक शिक्षा महंगी होने के कारण हमें अधिकाधिक धन की आवश्यकता पड़ती है|”

“सिर्फ इसलिए, कि यह बच्चियाँ गरीब पृष्ठभूमि से आई है, इसका मतलब यह नहीं कि ये अच्छी नौकरियाँ प्राप्त नही कर पाएँगी | हम इन बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं कि ये मुख्यधारा के कोर्स चुनें ताकि उन्हें अच्छी नौकरी मिलने मे परेशानी न हो |”

अगर आप बाल सदन को किसी भी प्रकार से मदद करना चाहते हैं ताकि ये लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी कर समाज मे अपनी एक पहचान बना सके तो आप kalpanasghai@gmail॰com पर कल्पना से संपर्क कर सकते हैं या फिर इनकी वैबसाइट पर भी जानकारी ले सकते हैं |

मूल लेख – श्रेया पारीक 

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