देश में रोबोट के प्रयोग को लेकर लंबे समय से बहस जारी है। जहाँ कई लोग रोबोट को मानवता के लिए खतरा बताते हैं, वहीं कुछ लोग इसे उपयोगी भी मानते हैं। हम सभी ने कोरोना महामारी के दौरान देखा कि रोबोट ने अस्पताल से लेकर सड़क पर भोजन बाँटने में, इंसानियत की किस तरह से मदद की।
तो, आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स से मिलाने जा रहे हैं, जिन्होंने महज 22 साल की उम्र में रोबोटिक्स और इनोवेशन के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
यह कहानी है मूल रूप से हरियाणा के पानीपत के रहने वाले अर्श शाह दिलबगी की। अर्श फिलहाल, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, यूएस में ऑपरेशन रिसर्च एंड फाइनेंशियल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन कर रहे हैं।
लेकिन, उन्होंने 16 साल की उम्र में एक ऐसा यंत्र बना डाला था, जो एमियोट्रॉफ़िक लैटरल स्कलिरॉसिस और पार्किंसन रोग जैसी बीमारियों की वजह से अपनी आवाज खो बैठे लोगों को साँसों के जरिए बोलने में मदद कर सकती है। उनके इस प्रोजेक्ट को ‘गूगल साइंस फेयर अवॉर्ड 2014’ के लिए चुने गए 15 प्रोजेक्ट में भी शामिल किया गया।
अर्श के इस डिवाइस का नाम ‘टॉक’ है और यह संवर्धी एवं वैकल्पिक संचार यंत्र है। यह एम्योट्रोफिक लेटरल स्केलेरोसिस (एएलएस) बीमारी से निपटने में मदद करता है। बता दें कि एएलएस एक न्यूरो-डिसॉर्डर रोग है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करता है।
इसे लेकर वह बताते हैं, “मैं एक बदलाव लाना चाहता था और कुछ ऐसा बनाना चाहता था, जिससे समस्त मानव जाति की मदद हो। ‘टॉक’ एक ऐसा ही एक डिवाइस है।”
‘टॉक’ का डिजाइन काफी सरल है और यह काफी आसानी से पोर्टेबल है। यह उस वक्त दुनिया का एकमात्र एएसी उपकरण था, जो साँसों को आवाज देता है।
यह कैसे काम करता है?
अन्य एएसी उपकरणों के विपरीत, टॉक उपयोगकर्ताओं को व्हीलचेयर तक सीमित नहीं करता है, जो इसे और अधिक आरामदायक और सुलभ बनाता है। इस यंत्र में अलग लिंग और आयु वर्ग के लिए नौ अलग-अलग आवाजें हैं।
दिलबगी कहते हैं, “इसमें भाषा के संश्लेषण के मद्देनजर यूजर को सही सिंबल का चयन करने के लिए जटिल मैट्रिक्स मैप सीखने की जरूरत नहीं है और न ही उन्हें खुद को व्यक्त करने के लिए किसी स्क्रीन पर टकटकी लगाने की जरूरत है।”
यह दो मोड में काम करता है – कम्युनिकेशन मोड और कमांड मोड। कमांड मोड के जरिए यूजर डब्ल्यू – वाटर जैसे पूर्वनिर्धारित कमांड को बोल सकता है, जबकि कम्युनिकेशन मोड, आम बोलचाल के वाक्यांशों को एनकोड करने और बोलने में मदद करता है।
उस वक्त बाजार में ऐसे एएसी उपकरणों की कीमत हजारों डॉलर थी, लेकिन अर्श के टॉक डिवाइस की कीमत महज 100 डॉलर थी। अर्श का इरादा इस डिवाइस को आम लोगों तक पहुँचाने का था, लेकिन दुःखद रूप से इस प्रोजेक्ट को साल 2015 में रोकना पड़ा।
इसे लेकर वह कहते हैं, “टॉक एक मेडिकल डिवाइस है और हमें जल्द ही एहसास हो गया था कि ऐसे किसी भी डिवाइस को आम लोगों के लिए लॉन्च करने के लिए कई नियामक संस्थाओं और क्लीनिकल ट्रायल से गुजरना पड़ता है और टॉक के मामले में हमें समझ में आ गया था कि यह प्रक्रिया काफी महंगी होने वाली है और उस वक्त हमारे लिए इतना खर्च उठाना संभव नहीं था।”
इसके बाद उन्होंने पेटेंट फाइल किया और साल 2015 में इस प्रोजेक्ट पर काम करना बंद कर दिया। इस वजह से टॉक एक कंज्यूमर डिवाइस नहीं बन पाई।
इसके अलावा, अर्श ने साल 2016 में क्लमसी नाम से एक रोबोट डॉग को भी बनाया, जो फिलहाल नई दिल्ली में प्रेजिडेंट एस्टेट के संग्राहलय में सुरक्षित है।
इसे लेकर वह कहते हैं, “क्लमसी 16 सर्वो मोटर्स और आईएमयू यूनिट के साथ एक रोबोट डॉग है। यह एक रिसर्च प्रोजेक्ट था और इसके तहत हम डीप लर्निंग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट न्यूरल नेटवर्क विकसित करना चाहते थे। इसके तहत हमने सॉफ्टवेयर के जरिए एक वाकिंग मैकेनिज्म को विकसित किया। यह रोबो डॉग, फिलहाल राष्ट्रपति भवन संग्रहालय, नई दिल्ली में सुसज्जित है।”
इसके अलावा, पिछले 5 वर्षों के दौरान अर्श ने एप्पल, ब्रिजवाटर जैसी कई प्रतिष्ठित संस्थाओं में भी काम किया है और कुछ ही महीने पहले उन्होंने अपना एक एप लॉन्च किया है – जेच एप।
इस एप के बारे में वह कहते हैं, “यह एक बैंकिंग एप है और इसके तहत हमारा उद्देश्य मूल्यों के आदान-प्रदान को सहज और न्यायसंगत बनाना है। क्योंकि, आज सभी बड़े बैंक ट्रांजेक्शन के दौरान काफी चार्ज करते हैं। इससे छोटे व्यवसायों को 11 प्रतिशत तक शुल्क चुकाना पड़ता है। हमारी कोशिश इसे न्यूनतम करने की है।”
क्या कहते हैं रोबोटिक्स के बारे में
अर्श कहते हैं, “रोबोट के बारे में हमारे दिमाग में जो पहली छवि उभरती है, वह हॉलीवुड की फिल्मों को लेकर होती है। लेकिन, रोबोटिक्स का दायरा यहीं तक सीमित नहीं है, आज के दौर में मशीनें हमारी जिंदगी से काफी बड़े पैमाने पर जुड़ी हुई हैं। आज ऑटोमेशन का इस्तेमाल अस्पतालों में हार्ट सर्जरी करने से लेकर सड़कों पर भोजन वितरण करने तक किया जा रहा है, जिससे हमारी जिंदगी में इसकी उपयोगिता साबित होती है।”
भारत के संदर्भ में क्या है राय
आज के समय में भारत को विज्ञान और तकनीकी विकास के क्षेत्र में काफी कमतर आँका जाता है, लेकिन अर्श के विचार इससे ठीक विपरीत हैं।
वह कहते हैं, “भारत, तकनीकों के विकास को लेकर कई मायनों में पूरी दुनिया से आगे है। उदाहरण के तौर पर हम मिशन मंगलयान को ले सकते हैं। इसरो के इस महत्वाकांक्षी परियोजना की पूरी दुनिया में तारीफ हुई थी। इसके साथ ही, भारत में डिजिटल बैंकिंग का चलन भी काफी तेजी से बढ़ रहा है, जो एक बेहद सकारात्मक संदेश है।”
टॉक डिवाइस के संबंध में अर्श का वीडियो यहाँ देखें।
द बेटर इंडिया अर्श शाह दिलबगी के उज्जवल भविष्य की कामना करता है।
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संपादन – जी. एन झा
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