Placeholder canvas

गोल्ड: स्वतंत्र भारत के पहले ओलंपिक स्वर्ण पदक की अनकही कहानी!

अभिनेता अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म 'गोल्ड' साल 1948 ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम की जीत से प्रेरित है। जानिये इस जीत के पीछे की दिलचस्प कहानी!

पिछले कुछ सालों में अक्षय कुमार ने वास्तविक कहानियों से प्रेरित फ़िल्में करके एक नया रिकॉर्ड कायम किया है। उनकी फ़िल्में, चाहे वो ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ हो या फिर ‘पैडमैन’, सभी में उनके अभिनय ने दर्शकों के दिल को छुआ। इसके साथ ही, वे इन फिल्मों के जरिये बहुत से अनसुने नायकों की कहानी बताने में सफल रहे हैं।

इसी क्रम में राष्ट्रीय पुरुस्कार विजेता अभिनेता की एक और फिल्म, ‘गोल्ड’ भी जल्द ही परदे पर उतरने के लिए तैयार है। यह फिल्म, साल 1948 ओलम्पिक में भारत के पहले गोल्ड मैडल की जीत से प्रेरित है।

ऐसी ऐतिहासिक जीत की कहानी, जिसने भारतीय हॉकी टीम को वैश्विक टीमों के एक विशिष्ट लीग में शामिल किया।

दिलचस्प बात यह है कि 1928 से 1956 तक, भारत ने ओलम्पिक में बिना हारे सीधे छह स्वर्ण पदक जीते!

भारतीय हॉकी टीम 1928 ओलम्पिक में/विकिमीडिया कॉमन्स

साल 1908 में, लंदन से हॉकी की ओलंपिक में शुरुआत हुई। यह वह समय था जब यह खेल भारत में अपनी जड़ें धीरे-धीरे फैलाने में लगा था। कलकत्ता और बॉम्बे में केवल कुछ क्लबों ने छोटे-मोटे टूर्नामेंट आयोजित किए थे। इंडियन हॉकी फेडरेशन (आईएचएफ) की पहली बैठक 7 सितंबर, 1925 को ग्वालियर में हुई, इसी के साथ कर्नल ब्रूस टर्नबुल को अध्यक्ष और एनएस अंसारी को सचिव के रूप में नियुक्त किया गया।

यह इस नए गठित संगठन के प्रयासों के कारण था कि भारतीय हॉकी टीम ने एम्स्टर्डम में 1928 ओलंपिक में अपनी पहली उपस्थिति बनाई। एक उत्कृष्ट शुरुआत में, टीम ने फाइनल में मेज़बान नेदरलैंड को हराकर अपना पहला स्वर्ण पदक जीता।

भारतीय टीम से प्रभावित हॉलैंड के एक पत्रकार ने लिखा था, “भारतीय गेंद गुरुत्वाकर्षण के कानून से अनजान प्रतीत होती है। ऐसा लगता है कि एक खिलाड़ी गेंद की तरफ नज़र गढ़ता है, और बॉल उसी तरीके से आगे बढ़ती है जैसे खिलाड़ी ने इसे मंजूरी दी है।”

इसी टूर्नामेंट में ध्यान चंद के रूप में एक किंवदंती का जन्म हुआ, जिन्होंने फाइनल में एक शानदार हैट-ट्रिक सहित 14 गोल किए।

हॉकी खिलाड़ी ध्यान चंद

फोटो स्त्रोत

एक सैनिक का बेटा, एक मेहनती लड़का जो देर रात तक, चंद्रमा की रौशनी में पढ़ाई करता था। इसलिए उनके साथियों ने उन्हें ‘चंद’ उपनाम दिया था।

यह हॉकी का ही जादू था कि जब टीम एम्स्टर्डम से लौटी, तो हजारों लोग बॉम्बे डॉक्स में अपने ओलंपिक नायकों की झलक देखने के लिए उमड़ आये। यह दृश्य उनके प्रस्थान के काफी विपरीत था जब टीम को केवल तीन लोग विदा करने आये थे।

यह तो बस शुरुआत थी। ओलंपिक में अपने अगले दो सत्रों में, साल 1932 और 1936 में, टीम ने हॉकी के निर्विवाद चैंपियन के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए लगातार स्वर्ण पदक जीते।

हालांकि, ग्रेट ब्रिटेन की कोई भी टीम 1928 और 1936 के बीच ओलंपिक में भाग नहीं लेती थी। इसलिए, ध्यान चंद को हमेशा यह अफ़सोस रहा कि भारतीय टीम को अपने औपनिवेशिक शासकों को उन्हीं के खेल में हराने का मौका नहीं मिला।

पर यह भी जल्द ही बदलना था। वर्ष 1948 था और ओलंपिक लंदन में आयोजित किया जा रहा था। द्वितीय विश्व युद्ध और विभाजन के बाद, आईएचएफ किसी भी तरह से इन खेलों के लिए एक टीम को मैदान में रखने में कामयाब रहा था। ध्यान चंद सेवानिवृत्त हो गए थे, लेकिन भारतीय टीम में प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी।

यह टीम ओलंपिक में पहली बार अपने ध्वज तले चल रही थीं।

साल 1948 ओलम्पिक/विकिपीडिया

जब मौजूदा चैंपियन वेम्बली स्टेडियम में उतरे, तो लगभग 20,000 लोगों की भीड़ ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया, जो उनका खेल देखने के लिए उत्सुक थे। टीम भी अपने नए स्वतंत्र देश का सर गर्व से ऊंचा करने के लिए अडिग थी। प्राथमिक मुकाबलों में भारतीय टीम के बलबीर सिंह ने प्रतिभाशाली भूमिका निभाई। टीम ने फाइनल में पहुंचने के लिए सेमीफाइनल में नेदरलैंड को हराया।

बिलकुल किसी फिल्म के क्लाइमेक्स की तरह ही, फाइनल में आखिरकार भारत के प्रतिद्वंदी के रूप में ग्रेट ब्रिटेन था। सेमीफइनल में ग्रेट ब्रिटेन ने पाकिस्तान को हराया था, जिनका खेलने का तरीका बिलकुल भारत जैसा था। अंग्रेज़ों को लगा कि फाइनल में भी वे ही जीतेंगें। हालाँकि, उनके लिए फाइनल का मुकाबला किसी सदमे से कम नहीं था।

खेल वाले दिन हल्की बारिश के कारण मैदान भारी और मिट्टीनुमा हो गया था।  यह सभी परिस्थितियां घरेलू टीम (ब्रिटेन) के पक्ष में थी। पर फ़िर भी शानदार खिलाड़ी लेस्ली क्लॉडियस के नेतृत्व में खेल रहे ग्रेट ब्रिटेन को भारतीय टीम ने 4-0 से हरा दिया और आखिर ध्यानचंद का वर्षों का सपना पूरा हुआ!

फोटो स्त्रोत

अंग्रेज़ों से आज़ादी के एक साल बाद ही, उन्हीं की मिट्टी पर भारतीय तिरंगा लहराया और राष्ट्र गान गाया गया। उन खिलाड़ियों के लिए वह एक कभी न भूलने वाला पल था।

ब्रिटिश कप्तान नॉर्मन बोरेट ने प्रेस को बताया, “मुझे नहीं लगता था कि वे ऐसी ज़मीन पर जीत हासिल करेंगे जो उनके खेल के लिए अनुपयुक्त थी। लेकिन आज की रात उन्होंने दिखा दिया कि वे किसी भी परिस्थिति में शानदार हैं।”

साल 1948 ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की जीत कई कारणों से महत्वपूर्ण थी। सबसे पहले, दुनिया की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता 12 साल के अंतराल के बाद (द्वितीय विश्व युद्ध के कारण) वापस आई थी। दूसरा, भारत सिर्फ एक साल पहले स्वतंत्र हो गया था और अभी भी वैश्विक क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहा था। तीसरा, पौराणिक ध्यान चंद की अनुपस्थिति में, ज्यादातर लोगों ने उम्मीद की कि मौजूदा चैंपियन टूर्नामेंट में हार जाएंगे।

न सिर्फ़ भारतीय हॉकी टीम ने अपने विरोधियों को गलत साबित किया, बल्कि इस अंदाज में किया कि उन्होंने दुनिया भर के लाखों खेल प्रशंसकों के दिल जीत लिए।

साल 1952 और 1956 में भारत हॉकी का ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने का सिलसिला जारी रहा। पर 1960 में यह रिकॉर्ड रोम ओलम्पिक में पाकिस्तान ने तोड़ा। हालांकि, भारत ने 1964 में टोक्यो ओलंपिक में पाकिस्तान से ओलंपिक का ताज फिर जीत लिया। कुल मिलाकर, भारत के पास 1928 और 1980 के बीच 12 ओलंपिक में 11 हॉकी स्वर्ण पदक का अविश्वसनीय रिकॉर्ड है!

मॉस्को में भारतीय हॉकी के आखिरी ओलंपिक स्वर्ण के बाद आज 37 साल हो गए है, लेकिन आज भी हॉकी की दुनिया में भारत का नाम गर्व से गूंजता है। साल 1948 और 1952 के खेलों में जीतने वाली टीम के सदस्य केशव दत्त ने एक बार कहा था, “यह हॉकी ही थी, जिसने भारत की जगह विश्व खेलों के मानचित्र पर बनाई थी।”

हाल ही में, अक्षय कुमार की फिल्म ‘गोल्ड’ जो कि इन्हीं सब घटनाओं से प्रेरित है, का एक टीज़र रिलीज़ किया गया। यह फिल्म स्वतंत्रता दिवस के आस-पास ही रिलीज़ होगी।

( संपादन – मानबी कटोच )

मूल लेख: तन्वी पटेल


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X