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झारखंड: कारोबार बंद हुआ तो इस युवक ने कर दिया ‘मैजिक बल्ब’ का आविष्कार

Bulb boy of jharkhand

झारखंड के कामदेव जमशेदपुर में इमरजेंसी लाइट बेचने का काम करते थे, लेकिन इसी कड़ी में उन्होंने हाथ के छूने से जलने वाले बल्ब से लेकर सेंसर और रिमोट से जलने वाले बल्ब का आविष्कार कर दिया।

कहते हैं कि जुनून के सामने विषम परिस्थितियाँ भी अपने घुटने टेक देती है, कुछ ऐसा ही साबित किया है झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिला के वासुड़दा गाँव के रहने वाले कामदेव पान ने।

25 वर्षीय कामदेव ने मुश्किल हालातों से लड़ते हुए,ऐसे-ऐसे बल्ब का आविष्कार किया है, जिससे कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके को सहारा मिल सकता है। यही वजह है कि उनके क्षेत्र के लोग उन्हें “मैजिक बल्ब बॉय” के नाम से जानने लगे हैं।

Jharkhand magic bulb boy

दरअसल, कामदेव जमशेदपुर में इमरजेंसी लाइट बेचने का काम करते थे, लेकिन इसी कड़ी में उन्होंने हाथ के छूने से जलने वाले बल्ब से लेकर सेंसर और रिमोट से जलने वाले बल्ब का आविष्कार कर दिया।

कैसे शुरू हुआ सफर

सरायकेला कॉलेज से भौतिकी में मास्टर्स करने वाले कामदेव ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से खास लगाव रहा है। मैं इसी क्षेत्र में कुछ करना चाहता था। लेकिन, घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। जिस वजह से 2011 में 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुझे रोजगार के लिए बेंगलुरु जाना पड़ा।”

Jharkhand magic bulb boy
मैजिक बल्ब

वह बताते हैं, “मैं बेंगलुरु में एक आईटी कंपनी में रिसेप्शनिस्ट का काम करता था, लेकिन 2013 में मैं वहाँ से वापस घर आ गया। इसके बाद, मैंने देखा कि यहाँ के मजदूर अपने साइकिल से फैक्ट्री में काम करने जाते हैं। यहीं से मुझे एक ऐसा साइकिल बनाने का विचार आया, जो बैटरी से चले।”

इसके बाद, उन्होंने चाइनीज कंपनी “यो यो बाइक” के मोटर से ऐसा साइकिल बना दिया, जो बैटरी से चल सकती थी। इस साइकिल में 12 वोल्ट के दो बैटरी और दोनों चक्कों में डायनमो लगे थे, जिससे कि साइकिल की बैटरी चलते-चलते चार्ज हो सकती थी।

इस मॉडल विकसित करने में कामदेव के महज 7 हजार रुपए खर्च हुए। लोगों को यह काफी पसंद आया, जिसके बाद उन्होंने इस डिजाइन के 70 से अधिक साइकिल तैयार किये। 

कामदेव यहीं नहीं रुके और उन्होंने दो लाख रुपए कर्ज लेकर अपनी एक दुकान खोली और साइकिल की चेचिस (फ्रेम) को खुद से ही बनाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे साइकिल को स्कूटर का रूप दे दिया। इसे एक बार ढाई-तीन घंटे चार्ज करने के बाद 45-50 किलोमीटर चलाया जा सकता था। लेकिन, नए डिजाइन में लागत राशि 22-23 हजार रुपए आ रही थी।

कामदेव द्वारा निर्मित बैटरी चालित साइकिल

इसके बाद, इतने बड़े पैमाने पर संसाधनों को जुटाने के लिए उन्होंने प्रशासन से लेकर कई कंपनियों से मदद की अपील की, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा हाथ लगी। उनके मॉडल को झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा सराहे जाने के बाद भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली। वहीं दूसरी ओर हैदराबाद की एक कंपनी 1000 साइकिल की डिजाइन को बनाने के लिए फीस पहले ही माँग रही थी। अंततः 2018 के अंत में कामदेव को अपनी दुकान बंद करनी पड़ी।

इसके बाद, कर्ज में डूबे कामदेव अपने घर को चलाने के लिए एलईडी बल्ब बेचने लगे। इसी दौरान कई ग्राहकों ने उन्हें बल्ब को खुद से बनाने का सुझाव दिया और कामदेव ने काफी विचार करने के बाद इस पर काम करना शुरू कर दिया।

कामदेव बताते हैं, “मैंने फरवरी, 2019 में 20 हजार रुपए की पूंजी लगाकर एलईडी बल्ब बनाना शुरू किया था। मैंने अपने बल्ब का नाम पावर लाइट रखा।”

कैसे बनाया मैजिक बल्ब 

कामदेव बताते हैं, “मैं मैजिक बल्ब का निर्माण बल्ब में एक 3.7 वोल्ट की लिथियम ऑयन की बैटरी देकर करता हूँ। इसमें नेगेटिव और पोजेटिव चार्ज के दो पोल होते हैं, जिसे छूने के बाद बल्ब जलने लगता है। साथ ही, यह बल्ब बिजली से भी जलती है और बिजली जाने के बाद यह 3-4 घंटों के लिए खुद ऑन हो जाता है।”

Jharkhand magic bulb boy
12 वाट का मैजिक बल्ब

कामदेव ने अब तक 7 वाट, 9 वाट और 12 वाट के मैजिक बल्ब बनाएं हैं और ऐसे 3000 से अधिक बल्ब बेच चुके हैं। इसे बनाने में 120-130 रुपए का लागत आती है, जिसे वह बाजार में 150-200 की दर पर बेचते हैं।

बनाएं हैं कई और बल्ब

वह बताते हैं, “हम अपने घर में अलग-अलग बल्ब लगाते हैं, लेकिन मैंने ऐसे बल्ब को बनाया है जिसमें नाइट बल्ब, 9 वाट और 12 वाट के बल्ब, एक ही बल्ब और होल्डर में हैं। इसमें बस स्विच ऑन और ऑफ करना होता है।”

इसके अलावा कामदेव ने सेंसर और रिमोट से चलने वाले बल्ब को भी बनाया है।

Jharkhand magic bulb boy
कामदेव ने बनाएं हैं कई और बल्ब

सेंसर बल्ब के बारे में कामदेव बताते हैं, “इसमें मैंने सॉफ्टवेयर के जरिए एक टाइमर डाला है। जिसकी वजह से किसी के घर में घुसने के बाद यह स्वतः जलने लगता है।”

वहीं, उन्होंने रिमोट से जलने वाले बल्ब में पीआईआर (PIR) सेंसर लगाया है, जिससे बल्ब थिएटर, एसी, टीवी यहाँ तक कि मोबाइल के रिमोट से भी जलाया जा सकता है।

कामदेव की इन प्रतिभाओं को देखते हुए उन्हें एचएमटी, जेनेसिस जैसी कंपनियों से भी बुलावा आ चुका है, लेकिन कामदेव का इरादा अपने कारोबार को आगे बढ़ाने और अपना एक अनुसंधान और विकास केन्द्र स्थापित करने का है।

द बेटर इंडिया झारखंड के इस युवा के जज्बे को सलाम करता है और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

अगर आप कामदेव के इन नवाचारों को आगे बढ़ाने में किसी भी तरह से उनकी मदद कर सकते हैं तो उन्हें 06206291208 पर कॉल कर सकते हैं!

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