रावलगाँव: महाराष्ट्र का वह भूला-बिसरा गाँव, जिसने देश को दीं कई मीठी यादें!

The Forgotten Maharashtra Village

रावलगाँव के उत्पादों ने महाराष्ट्र में गन्ने की खेती के क्षेत्र में एक क्रांति का सूत्रपात कर एक पिछड़े क्षेत्र के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।

बचपन में, मेरा परिवार मुंबई के कांदिवली इलाके में रहता था। उस वक्त की मेरी सबसे मीठी यादें एक 50 वर्षीय चाचा से जुड़ी हुई है, वह चलने और बोलने में सक्षम नहीं थे, लेकिन हर शाम वह अपने व्हीलचेयर से चहलकदमी करने के लिए निकलते थे। वह बच्चों के लिए किसी जादूगर से कम नहीं थे, क्योंकि उनके पॉकेट में रावलगांव द्वारा निर्मित कई तरह की टॉफी रहती थी, हम सबके लिए।

मुझे और मेरे दोस्तों को ‘पीपर’ (गुजराती में कैंडी) चाचा का बड़ी बेसब्री से इंतजार होता था, ताकि हम पारदर्शी  रैपर में पैक पीले और नारंगी कैंडी का मजा से सकें। यह सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक कि हमने घर नहीं छोड़ दिया।

कुछ महीने पहले, मेरा एक बार फिर से वहाँ जाना हुआ, वहाँ जाते ही मुझे सबसे पहले हमेशा मुस्कराते रहने वाले चाचा की ही याद आई। लेकिन, दुर्भाग्यवश अब वह नहीं रहे, लेकिन उनकी बेटी ने अपने घर में मेरा स्वागत किया। 

हमारी बातचीत के दौरान, उसने अचानक ही माफी मांगी और कुछ ही पल के बाद, वह उन्हीं रंगीन टॉफियों से भरी प्लेट को हमारे सामने ले आई। मैं बहुत अचंभित और खुश भी था कि ‘पीपर’ चाचा नहीं रहे, लेकिन उनकी बेटी ने उनकी परंपरा को बरकरार रखा।

ravalgaon
चेरी और पान मसाला

सारा धन्यवाद 1933 में रावलगांव सुगर फार्म लिमिटेड की शुरुआत करने वाले दूरदर्शी वालचंद हीराचंद दोशी का, जिनकी वजह से हमारा खास रिश्ता बरकरार था।

 80 वर्षों से अधिक समय के बाद भी, रावलगांव उन गिने-चुने कंपनियों में से एक है, जो न केवल अपनी गुणवत्ता के लिए, बल्कि हम सभी के बचपन की यादों से भी जुड़ा हुआ है।

आपको पान पसंद याद है? पान के स्वाद वाला वह माउथ फ्रेशनर, जो हमारी जीभों पर एक लाली छोड़ जाता था। उसे खाने से हमें बचपन में बड़े होने के अहसास होता था, क्योंकि बच्चों को पान खाने की इजाजत नहीं होती है। यहाँ तक कि मैंगो मूड, जो पीले और हरे रैपर में होता था, इससे हम पूरे साल तक आम के स्वाद का आनंद लेते थे।

मैंगो मूड

लेकिन क्या आप उस कंपनी के बारे में जानते हैं, जिसने 80 और 90 के दशक के बच्चों को सबसे मीठी यादें देने के साथ-साथ महाराष्ट्र के एक पिछड़े क्षेत्र को एक शहर का रूप दे दिया? या जिसने हजारों ग्रामीणों और किसानों के लिए रोजगार और धनोपार्जन का साधन सुनिश्चित किया।

रावलगांव की रोमांचक कहानी ‘वन्स अपॉन ए टाइम’ से शुरू हुई और अब तक की इसकी यात्रा अत्यंत सुखद और प्रभावकारी रही है।

एक ट्रेन यात्रा से शुरू हुआ सफर

सोलापुर के एक व्यवसायी परिवार में जन्मे वालचंद, रावलगांव की स्थापना के पहले ही क्षेत्र में जाने-माने हस्ती थे।

ravalgaon
सेठ वालचंद हीराचंद दोशी

‘भारतीय परिवहन उद्योग के पितामह’ कहे जाने वाले वालचंद का हाथ कई कारोबारों में था। उन्होंने वालचंद इंडस्ट्रीज लिमिटेड (1908) के तहत रेलवे टनल (सुरंग), भारत की पहली स्वदेशी शिपिंग कंपनी सिंधिया शिपयार्ड (जिसे राष्ट्रीयकरण के बाद हिन्दुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड के नाम से जाना जाता है) से लेकर पहली स्वदेशी ऑटोमोबाइल कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और प्रीमियर ऑटोमोबाइल की नींब रखी।

यहाँ आप उनके बारे में और अधिक पढ़ सकते हैं।

रावलगांव सुगर फार्म लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक निहाल दोशी के अनुसार, 1900 के शुरुआती दशकों के दौरान एक ट्रेन यात्रा के क्रम में वालचंद को किसी व्यक्ति ने महाराष्ट्र के नासिक जिले के एक छोटे से गाँव – रावलगांव के बारे में जानकारी दी थी।

निहाल द बेटर इंडिया को बताते हैं, “एक सरकारी अधिकारी ने वालचंद को हजारों एकड़ की जमीन के बारे में बताया, जिसका उपयोग खेती कार्यों के लिए किया जा सकता था। इसलिए उन्होंने 1,500 एकड़ जमीन खरीदी और अपने कारोबार को शुरू करने के लिए मशीनों की मदद से खेत में मौजूद पत्थरों और चट्टानों को हटाना शुरू कर दिया। उन्होंने यकीन था कि भारत का आर्थिक विकास किसानों के योगदान के बिना संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने अपने क्षेत्र में गन्ने की खेती को बढ़ावा दिया। यह वह समय था जब गन्ने की खेती को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी जाती थी, लेकिन उनकी लगन ने इसे एक नया आयाम दिया।”

एक बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के बाद, उन्होंने इंजीनियरों, रसायनज्ञों और कृषकों की मदद से कई फसलों को अजमाया। अंततः एक दशक के परीक्षणों के बाद वालचंद ने गन्ने की खेती पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित किया और भारत के सबसे पहले चीनी मीलों में से एक की नींव रखी। 

ravalgaon
1933 में की गई थी रावलगांव शुगर फार्म लिमिटेड की स्थापना

1933 में, उन्होंने रावलगांव शुगर फार्म लिमिटेड की स्थापना की और इसके तहत करीब 7 वर्षों के बाद टॉफी बनाने का कार्य शुरू किया। 

वह यहीं नहीं रुके और साल 1934 में पुणे से 200 किमी दूर कलांब में, जिसे अब  वालचंदनगर कहा जाता है, में एक ऐसे ही मॉडल की शुरुआत की।

इन दो मीलों से पूरे नासिक क्षेत्र में रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलने के साथ ही, किसानों को अपने गन्ने के उत्पादन के लिए प्रत्यक्ष बाजार और विक्रेताओं को एक नई आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चैन) मिली, इस प्रकार यह हर किसी के लिए फायदेमंद साबित हो रहा था।

राज्य में गन्ने की खेती को क्रांतिकारी रूप देने का श्रेय अक्सर वालचंद को दिया जाता है।

इसको लेकर लगभग 9 वर्ष पहले कंपनी को संभालने वाले निहाल कहते हैं, “रावलगांव-मालेगांव पट्टी के हर परिवार का कम से कम एक सदस्य हमारे साथ जुड़ा हुआ है, या तो एक विक्रेता के रूप में या एक कर्मचारी के तौर पर। और यही हमारे प्रभाव का मानक है। इतने वर्षों के दौरान, हमारे परिवार ने नैतिकता और सद्भाव के साथ अपनी विरासत को संभालने के लिए कई चुनौतियों का सामना किया है।”

90 के दशक के अंत में, जब रावलगांव एफएमसीजी के क्षेत्र में एक नया खिलाड़ी था, कंपनी बिखर गई, तभी निहाल के पिता हर्षवर्धन दोशी ने पदभार संभाला।

रावलगांव आईएसओ 22000 प्रमाणित कंपनी है, जिसके बाजार में 10 उत्पाद हैं और सभी पूर्णतः शाकाहारी हैं। इनके उत्पादन में आम, दूध, कॉफी जैसे कई प्राकृतिक पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है।

ravalgaon
आईएसओ 22000 प्रमाणित कंपनी है रावलगांव

आरंभ से ही प्रामाणिकता रावलगांव की मुख्य कुंजी रही है। कंपनी अक्सर किसानों के साथ मिलकर खेती के सर्वश्रेष्ठ मानकों का इस्तेमाल करती आई है।

बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाली ऑनलाइन पत्रिका द स्मॉल सप्लिमेंट की संपादक मालती श्रीराम लिखती हैं, “मजेदार रूप से, फैक्ट्री पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा दक्ष है। क्योंकि,  यहाँ उत्पादन के लिए केवल कैन (Cane) के पानी का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे उत्पादित अतिरिक्त ऊर्जा की आपूर्ति शहरों में भी की जाती है। यह कारखाना चारों ओर से हजारों हरे-भरे पेड़ों से घिरा हुआ है। प्रदूषण की रोकथाम के लिए बॉयलर में एक प्रभावी ट्रीटमेंट प्लांट और फ्लाई-ऐश अरेस्टर भी लगाए गए हैं। इसके साथ ही, कंपनी के कर्मचारियों के साथ भी काफी सहज व्यवहार किया जाता है। यदि आप कभी उनके दफ्तर में जाते हैं तो आपको एक बेहद संजीदा माहौल देखने को मिलेगा।”

ravalgaon
आम, दूध, कॉफी जैसे कई प्राकृतिक पदार्थों से बनाई जाती है रावलगांव की मिठाइयां

इस कड़ी में कंपनी की सीएफओ वैशाली कारेकर बताती हैं, “यहाँ लेखा विभाग में 1999 से काम कर रही हूँ और कर्मचारियों को करियर में पर्याप्त विकास और एक परिवार जैसे माहौल की गारंटी दे सकती हूँ। जैसे ही मैं किसी से अपनी कंपनी के बारे में चर्चा करती हूँ, उनके आंखों में एक चमक देख कर मुझे खुशी होती है। यह लोगों का हमारी कंपनी के प्रति प्यार और लगाव ही है जो हमें निरंतर बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है।”

चलिए वापस कंपनी के उत्पादों की ओर बढ़ते हैं, यहाँ हर आइटम को काफी गहनता से विचार कर बनाया जाता है।

ravalgaon
पारदर्शी रैपर में होती है रावलगांव कैंडी

उदाहरण के तौर, नारंगी, रास्पबेरी और नींबू के स्वाद में आने वाले चेरी के लिए पारदर्शी रैपर को चुना गया है, ताकि यह लोगों का अधिक ध्यान आकर्षित करे। ध्यान देने वाली बात यह है कि रैपरों पर आकर्षक फॉन्ट में कंपनियों का नाम न होना बहुत कम देखने को मिलता है।

एक लम्बे अरसे तक मुझे नहीं पता था कि यह चेरी रावलगांव द्वारा बनाई जाती है, क्योंकि उत्पाद पर कंपनी के नाम को पढ़ना मुश्किल है, लेकिन पैक के रंग से उनके व्यापक मार्केटिंग स्ट्रेटजी का अंदाजा लगाया जा सकता है।

इसके अलावा, चेरी को पोकी टेक्सचर दिया गया था, ताकि इसमें एक कुरकुरापन हो। इसी तरह, कारमेलाइज्ड मिल्क कैंडी, लेको के रैपर को बांस के अवशेषों से बनाया जाता है।

ravalgaon
बांस के अवशेषों से बनाया जाता लेको के रैपर को

इसके बारे में निहाल कहते हैं, “रैपर के इस्तेमाल से पहले कैंडी को किनारे की दुकानों में शीशे के जारों में रखा जाता था। लेकिन, रैपर के प्रयोग के कारण ग्राहक अब यह नहीं देख सकते थे कि इसके अंदर क्या है, इसलिए हमने पारदर्शी रैपर को अपनाना शुरू किया, ताकि ग्राहकों का विश्वास बना रहे और इसकी रंग और बनावट के अनुसार बच्चे इसे पहचान सकें।”

दिलचस्प बात यह है कि दुनिया की सबसे बड़ी फोन निर्माता कंपनी आईफोन  भी इसी मार्केटिंग स्ट्रैटजी को अपनाते हुए – सफेद ईयरफोन और काला सिल्हूट बनाते हैं।

बेशक, पिछले कुछ वर्षों के दौरान रैपर में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन उन्होंने स्वाद, सुगंध और पैकेजिंग को लेकर हमेशा स्थिरता बनाए रखी। शायद यही कारण है कि कंपनी ने बाजार में कई प्रतिद्वंदी होने के बावजूद अपने ग्राहक के आधार को बनाए रखा।

कंपनी के अन्य उत्पाद पान पसंद, मैंगो मूड, टूटी फ्रूटी, एसोर्टेड सेंटर (नारंगी, रास्पबेरी, नींबू और अनानास जेली), कॉफी ब्रेक, सुप्रीम टॉफी (गुलाबी, इलायची और वेनिला), चोकोक्रीम आदि हैं। 

ravalgaon
समारोहों में भी बांटी जाती है रावलगांव की मिठाइयां

यदि हम उत्पादों के प्रभावशाली स्थिरता की बात करें तो सभी के मूल्य सीमा उल्लेखनीय है।

निहाल कहते हैं, “यदि हमारी कीमत में 3 पैसे की भी बढ़ोत्तरी होती है तो इससे हमारी बिक्री प्रभावित हो सकती है, क्योंकि हमारे ग्राहक समाज के हर वर्ग से हैं। किसी झुग्गी में चेरी खाते बच्चे से लेकर किसी हवाई जहाज में मैंगो मूड का आनंद ले रहे युवा तक, हम चाहते हैं कि हमारी मिठाई का आनंद हर कोई ले। इसलिए प्रवाह बनाए रखने के लिए हमने वजन को कम किया है।”

दूरदर्शन से सोशल मीडिया तक का सफर

यदि आपको किसी ऐसी मिठाई के बारे में पता चलता है जो लोगों के मुँह में पानी ला दे, तो इसके बारे में आप बगल के गाँव में बैठे किसी व्यक्ति को बिना किसी फोन या सोशल मीडिया के कैसे बताएंगे?

साधारणतः आप दूरदर्शन का दरवाजा खटखटाएंगे। लेकिन, सरकारी प्रसारण सेवा पर टाइम स्लॉट मिलने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण मात्र 10 सेकंड के विज्ञापन के जरिए लोगों का ध्यान आर्कषित करना है।

कंपनी के सबसे पहले विज्ञापनों में से एक, जिसमें अभिनेत्री अर्चना जोगलेकर शादी के प्रस्ताव को गुस्से में ठुकराते हुए कहती हैं, “शादी… और तुमसे? कभी नहीं। इसके बाद कथानक विजुअल के साथ कहता है, “पान पसंद… पान का स्वाद… गजब की मिठास। 

अभिनेत्री अर्चना उन्हीं शब्दों को दोहराती है, लेकिन इस बार मीठी आवाज में।

इस विज्ञापन का मूल संदेश यह था कि आपके शब्द चाहे कितने भी कड़वे हो, लेकिन पान पसंद के साथ उनमें मिठास भर सकते हैं। इस कान्सेप्ट पर आधारित विज्ञापनों की एक श्रृंखला ने कंपनी को क्षेत्रीय से एक राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने में मदद की।

यदि आप उन यादों को फिर से जीना चाहते हैं, तो आप उनके सभी विज्ञापन यहाँ देख सकते हैं।

The Forgotten Maharashtra Village
रावलगांव का विज्ञापन

उनके ऑईकानिक पोस्चर ‘वाईज मदर्श चूज रावलगांव स्वीट्स’ ने भी इंटरनेट से पहले के जमाने में एक लहर पैदा की थी। यह कन्फेक्शनरी के उपभोग के खिलाफ चेतावनी देता था, क्योंकि इससे बच्चों को नुकसान हो सकता है। लेकिन, इसी क्षण उनके उत्पाद स्वास्थ्यवर्धक और ताजे हैं।

लोगों से एक भावनात्मक अपील करना एक रणनीति है, जो अब उनके सोशल मीडिया पेजों पर भी दिखाई देता है।

महाराष्ट्र के एक ब्रांड होने के नाते, कंपनी ने अपनी समृद्ध विरासत के तहत हाल ही में राज्य के लोगों (बिक्री का 50% पश्चिमी क्षेत्र से आता है) के लिए खानपान की सेवा शुरू कर दी। कंपनी इंस्टाग्राम के माध्यम से लोगों से जुड़ने का प्रयास कर रही है। इसके तहत पेज पर कंपनी के बारे में दिलचस्प जानकारी साझा की जाती है।

इंटरनेट का विस्तार कंपनी के लिए वरदान साबित हुआ है, खासकर ऐसे समय में जब स्थानीय किराना दुकान बंद हो रहे हैं, तो फैंसी सुपरमार्केट ने कंपनी को एक नई राह दिखाई है।

ravalgaon

निहाल कहते हैं, “पहले, ग्राहक किराना स्टोर से पान पसंद खरीदते थे। लेकिन, अब मॉल होने की वजह से, हमारे पास अधिक विकल्प हैं। लोग हमें अक्सर लिखते हैं कि उन्हें सुपरमार्केट में हमारे कन्फेक्शनरी नहीं मिलते हैं। इसलिए, अब हम वहाँ अपने उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।”

वह आगे कहते हैं, “आज हमारी मिठाई अमेजन के साथ-साथ रिलायंस फ्रेश जैसे सुपरमार्केट में भी उपलब्ध है।  यदि आपको हमारे मिठाईयों की लालसा है, तो आप अपने नजदीकी किराना दुकान में जाएं, क्योंकि हमें इसकी आपूर्ति करते हैं। कई लोगों का मानना है कि हमने अपने उत्पादन को कम कर दिया, लेकिन यह सच नहीं है।”

मेरे परिवार वर्षों से रावलगांव के मिठाईयों का आनंद लेता रहा है, इसको लेकर मेरे पिता, उदय करेलिया कहते हैं कि हमारे रावलगांव हमेशा से ही ‘कुछ मीठा हो जाए’ का प्रतीक था, है और रहेगा। वास्तव में रावलगांव के उत्पाद हमारे जैसे लाखों भारतीयों के लिए मायने रखते हैं।

आप रावलगांव के उत्पाद यहां से खरीद सकते हैं।

सभी फोटो रावलगांव के फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज से लिए गए हैं।

मूल लेख – गोपी करेलिया 

ये भी पढ़ें – जानिए, पहले World War में ऐसा क्या हुआ जो देश को मिल गया स्वदेशी ‘Mysore Sandal Soap’

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X