आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद लेक्चरर के तौर पर काम किया। शौक के चलते जैविक खेती भी की, लेकिन जब समय कम पड़ने लगा तो नौकरी को तिलांजलि देकर स्वयं को खेती के प्रति समर्पित कर दिया। आज यह किसान हाइड्रोपोनिक तरीके से पाइप में सब्जियाँ उगा रहे हैं।
खेती की इस पानी बचाऊ तकनीक के जरिये लेक्चरर से किसान बने गुरकिरपाल सिंह ने लोगों को खेती का एक नया रास्ता दिखाया है। यदि चाहें तो आप भी इस तकनीक के जरिये 200 वर्ग फुट जैसी छोटी जगह पर भी सब्जियाँ उगा सकते हैं और एक लाख के खर्च से दो लाख तक कमा सकते हैं।
इस तरह शुरू हुआ खेती का सफर
पंजाब के मोगा जिले में धर्मकोट सब डिवीजन में पड़ने वाले कैला गाँव निवासी 37 वर्षीय गुरकिरपाल सिंह ने बेटर इंडिया को बताया, “मेरी नौकरी अच्छी चल रही थी, लेकिन मैं बंधी बंधाई नौकरी से कुछ अलग करना चाहता था। इसी के चलते 2012 में करीब साढ़े पाँच हज़ार स्क्वायर फीट जमीन पर पालीहाउस लगाया और उसमें टमाटर उगा दिए। यह प्रयोग सफल रहा। इससे उन्होंने करीब एक लाख 40 हजार के टमाटर हासिल किए। इसके बाद उन्होंने पालीहाउस से ग्रीनहाउस का रूख किया। इसमें हाइड्रोपोनिक तकनीक से शिमला मिर्च, टमाटर आदि उगाए। यह मूल रूप से इजराइल की तकनीक है, जिसमें मैंने अपनी जरूरत के लिहाज से कुछ सुधार किया। इस तकनीकि में पौधों को पाइपों के बीच उगाया जाता है। इससे मुझे अच्छी खेती हुई और अच्छी कमाई भी हुई। इसके बाद मैंने सब्जियों का उत्पादन बढ़ा दिया।’
तीन साल पहले उगाया ब्राह्मी का पौधा
गुरकिरपाल सिंह बताते हैं कि तीन साल पहले उन्होंने इसी तकनीक से ही ब्राह्मी का पौधा उगाया। यह पौधा पहाड़ी क्षेत्रों में होता है और औषधीय पौधा है। इसे सामान्य रूप से ‘ब्रेन टाॅनिक’ पुकारा जाता है। याददाश्त बढ़ाने, मानसिक तनाव दूर रखने में यह कारगर है। इसकी पत्तियों को सलाद की तरह खाया जा सकता है। गुरकिरपाल बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ब्राह्मी के बाद लहसुन, धनिया और प्याज का भी ट्रायल किया। यह सभी प्रयोग बेहद कामयाब रहे। अब अपने उत्पाद गुरकिरपाल सिंह अन्य स्थानों पर भी भेजते हैं। उत्पाद की गुणवत्ता के प्रति वह बेहद आश्वस्त होते हैं, आखिर सब कुछ उनके हाथ का उगाया हुआ जो होता है। वह मानते हैं कि इंसान थोड़ा अधिक खर्च करने को तैयार है, लेकिन इस समय वह स्वास्थ्य को लेकर कोई समझौता करने को तैयार नहीं। यही कारण है कि उनके ज्यादातर उत्पाद हाथों हाथ बिक जाते हैं।
किफायती साबित हुई हाइड्रोपोनिक तकनीक
गुरकिरपाल ने बेटर इंडिया को बताया हाइड्रोपोनिक खेती के लिए न तो आपको जमीन चाहिए और न ही मिट्टी। इसमें नेट हाउस के भीतर प्लास्टिक के पाइपों में पौधों को लगाया जाता है। टाइमर से तापमान को फसल की जरूरत के अनुसार 35 डिग्री से कम पर नियंत्रित किया जाता है। पौधों की जड़ों को पानी में भिगोकर रखा जाता है और पानी में पोषक तत्वों का घोल डाला जाता है। मसलन नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है। इसके नाम से भी साफ है- हाइड्रो का मतलब है पानी और पोनिक का श्रम। पानी सीधे जड़ों को पहुँचता है। उन्हें पोषक तत्व ढूंढने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसी पोषक तत्वों से भरे पानी के जरिये पौधे पनपते और तेजी से बढ़त पा जाते हैं। गुरकिरपाल कहते हैं, “इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि खेतों में उगाई जाने वाली फसलों के मुकाबले इसमें केवल दस फीसदी पानी की आवश्यकता होती है। इस्तेमाल किए गए पानी को भी फिर से प्रयोग किया जा सकता है। फर्टिलाइजर की भी लागत नहीं आती। कुल मिलाकर बचत ही बचत। देश के ऐसे क्षेत्रों में जहां पानी की समस्या या कमी है, वहाँ इस तकनीक का प्रयोग अब हो रहा है। कुल मिलाकर इस तकनीक की खेती से फायदा ही फायदा है।” गुरकिरपाल की खेती अब सभी के लिए मिसाल बनी है।
लाखों के टर्नओवर वाला स्टार्टअप खड़ा किया, कई लोगों को रोजगार दिया
गुरकिरपाल बताते हैं कि जैविक खेती की बदौलत उन्होंने लाखों के टर्नओवर वाला स्टार्ट अप एग्रोपोनिक एजीपी खड़ा किया है। वह अपनी उगाई फसलों की मार्केटिंग एवं बिक्री आदि सब कुछ स्वयं कर रहे हैं। इसमें उन्होंने कई लोगों को रोजगार भी दिया है। गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले और कंप्यूटर इंजीनियरिंग में पीजी की डिग्री हासिल करने वाले गुरकिरपाल सिंह अब नौकरी से भी तीन गुना आय अर्जित कर रहे हैं। पंजाब के साथ ही अन्य राज्यों के किसान भी उनका काम देखने के लिए पहुँचते हैं। वह गुरकिरपाल से हाइड्रोपोनिक खेती के टिप्स लेते हैं। यहाँ तक कि मोगा जिला प्रशासन की टीमों ने भी उनके काम का मुआयना किया है। उसे बेहतर माना है।
हाइड्रोपोनिक तकनीक के प्रचार प्रसार के लिए यहाँ के डिप्टी कमिश्नर ने भी गुरकिरपाल का काम देखकर कृषि विभाग को इस तरह का प्रोजेक्ट एक एकड़ में खड़ा करने को कहा है। गुरकिरपाल पंजाब के एक कृषक संगठन से भी जुड़े हैं। इसकी बदौलत इस खेती के प्रचार प्रसार में भी वह लगे हैं।
मेहनत और तकनीकि की जुगलबंदी पर भरोसा
गुरकिरपाल सिंह मेहनत और तकनीक की जुगलबंदी में विश्वास करते हैं। वह खेती को अपना पूरा समय देते हैं। उनका कहना है कि जितना बेहतर पोषण, देखभाल और ध्यान पौधों को मिलेगा, उनसे उतना ही बेहतर परिणाम हासिल होगा।
उतनी ही बेहतर फसल होगी। खेती धैर्य माँगती है। इसे मेहनत से ही संवारा जा सकता है। यदि आप कोई भी सपना देखें तो उसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करें। मंजिल तक पहुंचने का रास्ता छोटे छोटे और पुख्ता कदमों से तय होता है, यह ध्यान रखें। इसके बाद भी यदि कोई भी बाधा आए तो धैर्य के साथ उसका सामना करें और समाधान तलाशें। आपको आपकी मंजिल पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।
(गुरकिरपाल सिंह से उनके मोबाइल नंबर 9855521906 पर संपर्क किया जा सकता है)
संपादन- पार्थ निगम
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