बेंगलुरु में रहने वाले अर्बन गार्डनर, मणिकंदन पट्टाभिरामन की बागवानी यात्रा की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। यह दिलचस्पी उन्हें अपने नाना और पिता से विरासत में मिली। 40 वर्षीय मणिकंदन याद करते हुए बताते हैं कि चौथी कक्षा से ही उन्होंने बागवानी शुरु कर दी थी। वह कहते हैं, “हम चेन्नई के बाहरी इलाके में रहते थे जहाँ ज़मीन और छत पर पर्याप्त जगह थी। वहाँ पिता के साथ सक्रिय रुप से यह काम किया करता था।”
खाली ज़मीन और छत पर पिता-पुत्र की जोड़ी ने टमाटर, मिर्च, ओकरा, अमरंथ, फलियाँ और नारियल के पेड़ उगाए।
मणिकंदन के नाना भी किसान हैं और बचपन में जब भी वह गाँव जाते थे, तो कई नर्सरी का दौरा करते थे, जिससे उनकी रुचि और बढ़ती गई।
मणिकंदन बताते हैं कि बागवानी से संबंधित ज्ञान को विकसित होने में सालों लगे हैं। वह कहते हैं, “मैं बीज इकट्ठा करता रहा और पौधे उगाता रहा, लेकिन चेन्नई का मौसम कुछ ऐसा है कि ज्यादातर पौधे जीवित नहीं रह पाते। इसलिए, एक तरह से आप कह सकते हैं कि मैंने जितने पौधे उगाए, उससे कहीं अधिक मार डाले हैं। लेकिन,इन वर्षों में मैंने काफी सीखा।“
मणिकंदन आईटी पेशेवर हैं। उन्होंने ‘गीक गार्डनर’ नाम से एक ब्लॉग शुरू किया जिसने अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल की है। इस ब्लॉग के ज़रिए वह पाठकों को नियमित रुप से बागवानी से संबंधित कई तरह के टिप्स भी देते हैं।
बागवानी में अपनी गहरी दिलचस्पी को देखते हुए उन्होंने 2013 में अपनी नौकरी छोड़ दी और ‘हाइपरफार्म्स’ नाम से अपना उद्यम शुरू किया।
यहाँ उन्होंने किचन और छतों के लिए गार्डनिंग टिप्स और DIY किट बेचना शुरु किया और साथ ही खेती की तकनीकों पर वर्कशॉप का आयोजन भी करना शुरु किया।
धीरे-धीरे मणिकंदन ने मिट्टी के बिना खेती, यानी हाइड्रोपोनिक्स खेती पर भी काम करना शुरु किया और करीब दस से अधिक लोगों को अपना कमर्शियल खेत स्थापित करने में मदद की है। उन लोगों ने आगे 5000 से अधिक लोगों को अपने DIY किट की बिक्री के माध्यम से बागानों को शुरू करने में मदद की। करीब 10,000 गार्डनर ऐसे हैं जो उनके साथ संपर्क में हैं और नियमित रुप से चीज़ें खरीदते हैं।
इसके अलावा, बेंगलुरू में मणिकंदन के खेत हैं, जहाँ वह हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का उपयोग करते हुए पालक, तुलसी, नीम, केल, आर्गुला, बोक चॉय इत्यादि पत्तेदार सब्जियाँ उगाते हैं। यहाँ हर महीने आठ से दस टन पत्तेदार सब्जियां उगाई जाती हैं तो आगे समूहकों को बेची जाती है जो आगे इसे ग्राहकों को बेचते हैं।
द बेटर इंडिया के साथ बातचीत में, मणिकंदन ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने जुनून को आगे बढ़ाते हुए इसे एक पेशा बनाया।
इंजीनियरिंग से अर्बन गार्डनिंग तक का सफ़र
चेन्नई में जन्मे मणिकंदन बी.टेक की पढ़ाई के लिए कोयंबटूर के भारथिअर विश्वविद्यालय गए। ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने ओरेकल, सोनस नेटवर्क्स और मासकॉन जैसी कंपनियों के साथ आईटी क्षेत्र में दस साल तक काम किया।
पढ़ाई के लिए अपने गृहनगर को छोड़ने के बाद, कॉलेज के दिनों में बागवानी से उनका संपर्क टूट गया। उसके बाद 2007 तक नौकरी करते हुए भी वह बागवानी पर ध्यान नहीं दे पाए। अंत में, जब वह बेंगलुरु में बस गए, तो उन्हें फिर से बागवानी शुरू करने का समय और स्थान मिल गया।
मणिकंदन याद करते हुए बताते हैं, “छत और बालकनी में जगह थी। मैं एक किचन गार्डन बना सकता था। लेकिन उस समय, बागवानी के अभ्यास के लिए इनपुट्स और सामग्री खोजना एक कठिन काम था। ये चीज़ें व्यापक रूप से ऑनलाइन उपलब्ध नहीं थी। सामग्री खोजने के लिए मुझे काफी समय लगता था। और मैं इस जानकारी और संसाधनों को अन्य शौकीन बागवानों के साथ साझा करना चाहता था जो इससे लाभ उठा सकते थे। फिर मैंने अपना ब्लॉग शुरु करने का सोचा और 2008 में, गुमनाम रुप से ‘गीक गार्डनर’ की शुरुआत की।“
मणिकंद के कुछ पाठक थे जो उनसे कई प्रश्न पूछा करते थे। मणिकंद बताते हैं कि यह काफी मज़ेदार अनुभव था। कई पाठकों को लगता था कि वह कोई महिला या को सेवानिवृत व्यक्ति हैं जो बागवानी कर रहे हैं। बाद में उन्होंने खुद को प्रकट किया और उनका बहुत से पाठक उन्हें ‘जीजी’ कहते हैं।
अपनी टेरेस में, उन्होंने 500 वर्ग फुट का ग्रीनहाउस स्थापित किया, जहाँ उन्होंने टमाटर, बेल पेपर, फलियाँ, पपीता और विदेशी साग जैसे लेट्यूस(सलाद पत्ता), अरुगुला, बेसिल(तुलसी), पालक और आदि चीज़ें उगाना शुरू किया। उन्होंने शहरी बागवानों का एक नेटवर्क भी बनाया, जिसके साथ वह बीजों की अदला-बदली करते हैं। कई बार ऐसा भी हुआ कि उन्होंने स्वयं सामग्रियाँ तैयार की और उन्हें उनके लिए उपलब्ध कराया।
इसने उन्हें एक बागवानी इनपुट्स की बिक्री का उद्यम, ‘गार्डन गुरू’ शुरु करने के लिए प्रेरित किया।
समय के साथ, जब वह एक अधिक अनुभवी गार्डनर बन गए, तब उन्होंने हाइड्रोपोनिक्स खेती में हाथ आज़माने का सोचा। यह मिट्टी के बिना और पोषक तत्वों से भरपूर पानी के घोल का उपयोग करके पौधों को उगाने की विधि है।
जल्द ही मणिकंदन ने अन्य लोगों को हाइड्रोपोनिक्स विधि समझाने में मदद करना शुरू कर दिया। वह बताते हैं, “उस समय बगीचा छठी मंजिल पर था। भारी गमले और मिट्टी को ले जाना बेहद मुश्किल था। मैं हल्की सामग्री का उपयोग करना चाहता था और फिर मैंने कोकोपीट के बारे में विचार किया। मैंने इस तकनीक की कोशिश की और सफलता ने वास्तव में मुझे बढ़ावा दिया।”
2013 में, अपनी बेटी के जन्म के साथ, मणिकंदन दो राह पर खड़े थे, जहाँ उन्हें यह फैसला करना था कि क्या वह अपने आईटी करियर को जारी रखना चाहता है या गार्डन गुरु में अपनी सारी ऊर्जा लगाना चाहते है।
मणिकंदन ने बताया, “मैंने गार्डन गुरु में क्षमता देखी और अपना काम पूरा करने के लिए नौकरी छोड़ दी।”
गार्डन गुरु के माध्यम से, उन्होंने कई शहरी निवासियों के लिए किचन गार्डन स्थापित किए और बीज, पोषक तत्व मिश्रण, मिट्टी आदि बेचे।
धीरे-धीरे, उन्होंने 2017 की शुरुआत में हाइपरफार्म्स की स्थापना की। यह एक उद्यम है जो ग्राहकों को अपने हाइड्रोपोनिक्स फार्म स्थापित करने में मदद करता है। 2018 में, उन्होंने हाइपरफार्म्स प्राइवेट लिमिटेड के तहत इन दोनों उद्यमों को विलय करने यानी एक करने का फैसला किया।
दिल से किसान
वर्तमान में, हाइपरफार्म्स का अपना हाइड्रोपोनिक फार्म है, जिसकी देखभाल मणिकंदन सहित पाँच लोगों की टीम करती है। मणिकंदन की पत्नी विनीता सिंघल, ऑनलाइन ‘द गार्डन गुरु’ पोर्टल के माध्यम से DIY हाइड्रोपोनिक, बागवानी और अन्य इनपुट्स की बिक्री का काम देखती हैं। मणिकंदन की टीम बड़े हाइड्रोपोनिक फार्म स्थापित करती है और साथ ही छत और घर के बगीचे स्थापित करने का काम भी देखती है। मणिकंदन इन सभी विभिन्न गतिविधियों की देखरेख करते है।
लगभग पाँच साल पहले, बेंगलुरु की गृहिणी आरती चावला बागवानी शुरू करना चाहती थीं और तब उनके दोस्त ने उन्हें मणिकंदन से संपर्क करने के लिए कहा। अब वह अपने घर की टेरेस पर भिंडी, बैंगन, टमाटर, शकरकंद जैसी सब्जियाँ उगा रही हैं वह भी पूरी तरह से केमिकल मुक्त।
55 वर्षीय चावला कहती हैं, “उन्होंने मेरे लिए 10,000 वर्ग फुट का एक बगीचा स्थापित किया, जिससे मुझे अपना भोजन उगाने में मदद मिली। कभी-कभी उत्पादन इतना अधिक होता है कि मुझे इसे दूसरों को देना पड़ता है। मुझे खुशी है कि मैंने एक नया शौक सीखा है और समय के साथ, मेरी रुचि और ज्ञान बढ़ रही है। मैं अब अन्य गार्डनरों को सुझाव भी देती हूँ।”
इसके अलावा, हाइपरफार्म्स ने उन लोगों के लिए भी बड़े हाइड्रोपोनिक फार्म स्थापित किए हैं जो अब खुद उद्यमी हैं।
प्रशांत रामचंद्रन एवरग्रीन फार्म्स के संस्थापक हैं जिन्होंने पिछले साल अगस्त में इसका संचालन शुरू किया था। 30 वर्षीय, प्रशांत पिछले साल की शुरुआत में हाइपरफार्म्स के संपर्क में आए थे क्योंकि वह हाइड्रोपोनिक सेट अप करना चाहते थे जहाँ वह रीटेल के लिए ताजा साग उगा सकें।
प्रशांत ने बताया कि एक साल के ऑपरेशन में, अपने आधे एकड़ के हाइड्रोपोनिक फ़ार्म पर, वह लगभग 22 विभिन्न प्रकार के साग उगाते हैं जैसे बेसिल, पालक, बोक चॉय, जापानी केल, ऐमारैंथस, रॉकेट लीफ आदि।
ये साग बेंगलुरु, चेन्नई और मुंबई में बेचे जाते हैं।
प्रशांत बताते हैं, “गहन विश्लेषण करने के बाद, हमने पाया कि हाइपरफार्म्स खेत की स्थापना के लिए मणिकंदन सबसे अच्छे होंगे। अब भी, वह हमारी सारे प्रश्नों का जवाब देकर हमारी सहयाता करते हैं। वह आगे आने वाली चुनौतियों की ओर भी इशारा करते हैं, इसलिए हम उनका सामना करने के लिए तैयार रहते हैं।”
हाइपरफ़ार्म्स साग भी उगाते हैं जो अन्य कृषि उद्यमों के माध्यम से लोगों को उपलब्ध कराया जाता है।
बालाकृष्णन धात्रीश्री एक उद्यमी और ’ग्रीनज़’ के सह-संस्थापक हैं। यह एक उद्यम है जो दक्षिण बेंगलुरु के अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में लोगों को ताजी सब्जियों की आपूर्ति करता है। वर्तमान में, वह हर महीने हाइपरफार्म्स से लगभग दो टन पत्तेदार सब्जियाँ खरीद रहे हैं।
बालाकृष्णन कहते हैं, ”हम अच्छी गुणवत्ता की वजह से उनसे खरीद रहे हैं। हमने अब तक जिनको भी इसकी आपूर्ति की है, उन्हें आज तक कोई शिकायत नहीं हुई है। हमारे डिलीवरी लॉजिस्टिक्स और उनके ताजा साग के साथ, यह हमारे और ग्राहकों, दोनों के लिए अच्छा है क्योंकि उन्हें वह उत्पादन मिलता है जो कि फसल कटाई के तीन घंटे के भीतर उन्हें दिया जाता है।”
बाधाओं पर विजय पाना और आगे बढ़ना
जुनून के पीछे भागने का यह मतलब नहीं है कि सामने चुनौतियाँ नहीं होती हैं। मणिकंदन ने सामने आए चुनौतियों के बारे में भी बताया।
मणिकंदन कहते हैं, “मुझे लगता है कि बहुत से लोगों के पास कृषि व्यवसाय के बारे में विचार हैं लेकिन इसमें आने से पहले यह जानना ज़रुरी है कि यह वास्तव में क्या होता है। जब ग्राहक अपने खेतों को स्थापित करने के लिए हमारे संपर्क में आते हैं, तो हम यह समझाने की पूरी कोशिश करते हैं कि उनकी क्या उम्मीदें हैं। सबसे बड़ी चुनौती उन्हें पुराने अभ्यास को भुला कर और नई चीज़ सीखने में मदद करना है।”
उन्होंने यह भी बताया कि कृषि अभ्यास के रूप में हाइड्रोपोनिक्स ऐसी चीज नहीं है जिसे अधिक समर्थन और स्वीकृति की आवश्यकता है। वह बताते हैं, “हालाँकि यह तकनीक पारंपरिक कृषि में इस्तेमाल होने वाले पानी का 70 प्रतिशत बचाने में मदद करती है, लेकिन बहुत सारे लोगों को इसका अभ्यास करते हुए हम नहीं देखते हैं। मैं चाहता हूँ कि अन्य सरकारी निकायों द्वारा भी अधिक भागीदारी और प्रोत्साहन हो।”
एक किसान के रूप में, दूसरी चुनौती यह है कि लोग अच्छी गुणवत्ता के भोजन के लिए थोड़ा ज्यादा खर्च नहीं करना चाहते हैं। लेकिन, उन्हें लगता है कि अधिक जागरूकता पैदा करके इस मानसिकता को बदला जा सकता है। इसके अलावा, कुशल किसानों की तलाश एक चुनौती है, खासकर अब जब वह अपने काम के विस्तार की उम्मीद कर रहे हैं। इसलिए, उन्होंने इन लोगों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं जो संचालन में शामिल होने से पहले मूल बातें सीख सकते हैं। वह हाइड्रोपोनिक्स में अधिक लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए भी उत्सुक हैं।
अंत में वह कहते हैं, “मैं एक उत्पादक के रूप में लोगों को सबसे अच्छे स्वाद वाला ताज़ा भोजन उपलब्ध कराना चाहता हूँ। इन्हें खाने से स्वास्थ्य के साथ-साथ आनंद भी मिलना चाहिए। मुझे यह भी उम्मीद है कि मैं अधिक लोगों को अपने बगीचे और खेतों को स्थापित करने में मदद करके अपने स्वयं के भोजन को विकसित करने में सक्षम कर सकता हूं। मुझे लगता है कि मैं कृषि को सामान्य करने और इसे लोगों के जीवन में वापस लाने में मदद करता हूँ।”
मूल लेख- ANGARIKA GOGOI
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