यह कहानी गुजरात के एक स्कूल की है, जहाँ एक शिक्षक के प्रयास से बच्चों को मिड-डे मील में जैविक तरीके से उगाई गई सब्जियाँ मिल रही हैं, वह भी पिछले 17 साल से!
2001 में नरेंद्र चौहान वडोदरा स्थित वायदपुर प्राथमिक विद्यालय में हेडमास्टर के रूप में नियुक्त हुए। वहाँ उन्हें दो चीजें नज़रआईं।
पहली यह कि स्कूल छोड़कर जाने वाले छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा थी और दूसरी यह कि स्कूल आने वाले ज्यादातर छात्र गाँव के गरीब परिवारों से थे और वे सिर्फ़ मिड-डे मील के लालच में स्कूल आते थे।
चौहान कहते हैं, “स्कूल में बच्चों को जो मिड-डे मील परोसा जाता था, वह बेस्वाद था। भोजन पौष्टिक नहीं होता था और न ही बच्चों की सेहत के लिए फायदेमंद था।”
उन्होंने इस समस्या को दूर करने का विचार किया। संयोग से स्कूल के आस-पास आधा एकड़ परती जमीन खाली थी। उन्होंने उसे घेरकर वहाँ सब्जियाँ उगाने का फैसला किया।
चौहान बताते हैं, “मैं छात्रों को हर दिन लंच में स्वस्थ और स्वादिष्ट भोजन देना चाहता था, इसलिए मैंने खुद ही ऑर्गेनिक खेती करनी शुरू की। धीरे-धीरे छात्रों ने भी मदद करना शुरू कर दिया।”
17 साल बीत चुके हैं। आज वह अपने स्कूली बच्चों के साथ मिलकर टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, पत्ता गोभी, मूली, गाजर, लौकी के साथ ही पालक, मेथी और धनिया जैसी पत्तेदार साग-सब्जियां उगाते हैं।
वह बताते हैं, “हम अपने स्कूल के किचन गार्डन में किसी तरह के रसायन का इस्तेमाल नहीं करते हैं। मैं खुद ही सभी जैविक खादों और कीटनाशकों को बनाता हूँ। गाँव के कुछ किसान भी मुझसे प्रभावित होकर जैविक खेती कर रहे हैं।”
स्वादिष्ट लंच पौष्टिक भी होता है!
वायदपुर प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को हर रोज मिड-डे मील में पालक पनीर, मेथी ठेपला और पौष्टिक सलाद परोसा जाता है। यह बात उस तहसील में सबकी जुबान पर है।
चौहान बताते हैं, “छात्रों के माता-पिता अक्सर यह कहते हैं कि उनके बच्चे हर सुबह इस उत्साह से स्कूल जाते हैं कि आज लंच में क्या कुछ नया मिलेगा।”
वह कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में बच्चों की सेहत में काफी सुधार हुआ है। इन 17 सालों में बच्चे न सिर्फ स्वस्थ हुए हैं बल्कि कक्षा में भी बहुत ज्यादा एक्टिव रहते हैं।
अब तक चौहान स्कूल के खेत में 8000 किलो से अधिक ताजी सब्जियाँ उगा चुके हैं।
छात्र खेती में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं
बच्चे सिर्फ ताजे खाने की थाली पाने के उत्साह में ही स्कूल नहीं आते, बल्कि उन्हें खेती में भी काफी मजा आता है। यही कारण है कि वायदपुर के बच्चे नियमित स्कूल आते हैं। वे अपने नन्हें हाथों से बीज बोने से लेकर हर तरह की सब्जियों की कटाई में माहिर हैं। ऑर्गेनिक खेती की हर गतिविधि में वे काफी उत्साह से हिस्सा लेते हैं।
कभी-कभी सब्जियों की अधिक पैदावार होने पर चौहान छात्रों को कुछ सब्जियाँ अपने घर ले जाने की छूट देते हैं।
चौहान आगे बताते हैं, “इन बच्चों के माता-पिता बहुत गरीब हैं। अधिकांश माता-पिता तो एक टाइम भी अपने बच्चों को पौष्टिक खाना नहीं दे पाते हैं। ऑर्गेनिक स्कूल फूड के कारण अपने बच्चों को स्वस्थ और तंदुरुस्त देखकर उन्हें काफी राहत मिलती है। वे स्कूल में भोजन मिलने वाली इस योजना के प्रति आभारी हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हम यह सारा काम मुफ्त में कर रहे हैं।”
चौहान छात्रों को ऑर्गेनिक खेती सीखने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर छात्र किसान परिवार से हैं और वे भविष्य में वैज्ञानिक तरीके से खेती कर सकते हैं। ताजी सब्जियाँ और पौष्टिक मिड-डे मील के अलावा चौहान छात्रों को यूनिफॉर्म, स्टेशनरी और जूते भी मुफ्त में देते हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनके इस प्रयास से ज्यादा से ज्यादा बच्चे शिक्षा की ओर आकर्षित होंगे और उन्हें बेहतर भविष्य बनाने का अवसर मिलेगा।
मूल लेख- SAYANTANI NATH
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