जून 2013 तक, विमलेश पंवार उत्तराखंड के एक शहर गोविंद घाट में होटल चला रहे थे। यह होटल उन्होंने 1990 में खोला था। समय के साथ उन्होंने काम बढ़ाया और होटल में कमरों की संख्या 30 तक पहुँच गई। उनका होटल वैली ऑफ फ्लावर्स बेसकैंप में था, इसलिए अच्छा-खासा मुनाफा भी मिलता था। लेकिन 18 जून 2013 में विमलेश की ज़िंदगी तब बदल गई जब बादल फटने से उनका होटल मलबे में दब गया। उन पर आपदा से जल्द उबरने और आजीविका के अपने स्रोत को वापस पाने का काफी दबाव था। और तब विमलेश के एक दोस्त ने उन्हें तंजुन एसोसिएट्स के बारे में बताया था।
देहरादून-स्थित इस उद्यम की स्थापना 2013 में सुमित कुमार अग्रवाल ने की थी। यह उद्यम स्थानीय समुदायों के कौशल और आजीविका विकास की दिशा में काम करता है। यह निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को बांस और फेरोकंक्रीट का उपयोग करके संरचना निर्माण करना सिखाता है और साथ ही भोजन और खाद्य प्रसंस्करण भी सुनिश्चित करता है।
47 वर्षीय विमलेश द बेटर इंडिया को बताते हैं कि बाँस के इस्तेमाल के आइडिया ने उन्हें काफी आकर्षित किया। वह कहते हैं, “होमस्टे का निर्माण मई 2014 में शुरू हुआ और सितंबर के अंत तक, मुझे अपनी पहली बुकिंग मिली।”
करीब छह साल से बद्रीविले रिज़ॉर्ट चल रहा है और यह रिज़ॉर्ट गोविंद घाट (जहाँ विमलेश पहले रहते थे) से लगभग 23 किमी दूर बद्रीनाथ में स्थित है। हल्के वज़न औऱ जलवायु के अनुसार ढ़लने वाला बाँस का यह घर भारी बारिश और करीब 15 से 20 फीट बर्फ का सामना आराम से कर सकता है।
इसके अलावा, यह इमारत कम से कम 60 प्रतिशत से अधिक भूकंप-प्रतिरोधी है और इसका निर्माण एक महीने में किया जा सकता है। इसकी कई विशेषताएँ इस घर को अलग और अनोखा बनाती हैं। विमलेश बताते हैं कि सर्दियों में घर करीब 10 डिग्री गर्म रहता है।
तंजुन एसोसिएट्स के सुमित और बद्रीविले रिज़ॉर्ट के विमलेश ने द बेटर इंडिया को उन चीज़ों के बारे में बताया जो पहाड़ में बने इस घर को खास बनाती हैं।
बाँस के साथ एक स्थायी घर का निर्माण
निर्माण प्रक्रिया की सबसे दिलचस्प विशेषताओं में से एक यह है कि इस्तेमाल होने वाले बाँस को किसी भी तरह से चीरा नहीं जाता है। पूरे बांस का उपयोग किया जाता है।
निर्माण क्षेत्र में 20 सालों का अनुभव रखने वाले सुमित कहते हैं कि बाँस एक प्राकृतिक इन्सुलेटर है क्योंकि बाँस में एक बड़ा एयर गैप होता है। इसलिए पूरे बाँस का इस्तेमाल किया जाता है और उसे चीरा नहीं जाता है। वह कहते हैं, “अब अगर आप कंक्रीट घर को देखेंगे, तो घर की पश्चिम की दीवार को ठंडा होने के लिए पूरी रात का समय लगता है। यह इंटीरियर को पूरा दिन गर्म रखता है लेकिन बाँस के घरों में ऐसा नहीं होता है।”
सुमित ने यह भी बताया कि बाँस को ऑटोक्लेव में उपचारित किया जाता है जो यह सुनिश्चित करता है कि बाँस से सभी सैप को बाहर निकाल दिया जाए। वहीं वैक्यूम प्रेशर ट्रीटमेंट बाँस को दीमक या अन्य कीट के हमले से सुरक्षित बनाता है।
नींव को मजबूत बनाने के लिए, यहाँ फर्श फेरो-सीमेंट स्लैब (चिकन जाल और सीमेंट का उपयोग करके) के साथ बनाए गए हैं। यह सीमेंट कंक्रीट की तुलना में आठ गुना अधिक मजबूत होता है, जो घर को भूकंप-रोधी गुण प्रदान करता है।
बाँस पैनल से कमरे की दीवारें बनाई गई हैं और छत पर गाढ़े पेंट की परत चढ़ाई गई जो ठंड से बचाती है।
12 कमरों वाले बद्रीविले रिसॉर्ट के बारे में बात करते हुए विमलेश बताते हैं कि करीब छह महीने तक क्षेत्र में बर्फबारी होती है, जिस कारण आमतौर पर अन्य घरों की दीवारों में नमी भर जाती है, जिस कारण कपड़े और जूते जैसी चीज़ें नम रहती हैं। उन्होंने कहा कि पिछले छह सालों में बाँस के इस घर में, ऐसा कभी अनुभव नहीं किया है।
इसके अलावा, तंजुन जिन बाँस आवास परियोजना का निर्माण करते हैं, उनमें जैव-सेप्टिक टैंक का इस्तेमाल किया जाता है।
सुमित बताते हैं, “शौचालय से सैनिटरी कचरे को यहाँ कंकड़, रेत और लकड़ी के कोयला का उपयोग करके उपचारित किया जाता है। पानी उपचारित हो जाने के बाद, इसे आसानी से बागवानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, शौचालयों में पुन: उपयोग किया जाता है और साथ ही यह अज़ोला (डकवीड फ़र्न) उगाने के लिए भी अच्छा होता है। अजोला पशुधन, मुर्गी पालन और मछली के लिए एक अच्छा चारा है।
घर बनाने में चुनौती?
विमलेश बताते हैं कि मानक गुणवत्ता वाले बाँस की निरंतर उपलब्धता कठिन होती है और अब भी नीलगिरी या चिनार की तरह इसकी व्यावसायिक रूप से खेती नहीं की जाती है। वह बताते हैं, “लेकिन, हम असम से खरीदते हैं और क्षेत्र के एक आपूर्तिकर्ता से लेते हैं।”
विमलेश खुश हैं कि वह लंबे समय से होमस्टे चला रहे हैं और उन्होंने साबित किया है कि यह बारिश, धूप और बर्फ का सामना कर सकता है। सुमित का बाँस के घरों को अधिक लोकप्रिय बनाने का काम जारी है। साथ ही वह पारंपरिक निर्माण तकनीकों में ईंटों का उपयोग करने के विचार पर सवाल भी उठाते हैं।
वह कहते हैं, “हम जानते हैं कि बाँस तेजी से बढ़ता है और मजबूत होता है। तो, उपजाऊ मिट्टी को खोदने और उससे ईंटें बनाने की क्या ज़रूरत है।”
बद्रीविले रिज़ॉर्ट पर जाने के लिए, इस पेज को देखें। और तंजुन एसोसिएट के संपर्क करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
मूल लेख- ANGARIKA GOGOI
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